Sunday 15 March 2020

SP Bharill

एक खुला पत्र

मेरा सौदा हो गया और मुझे पता भी नहीं 

मेरा नाम जनता है, मैं भारत की जनता हूँ, मैं आज अपना दर्द बयान करना चाहती हूँ, इस बात की परवाह किया बिना कि कोई सुनेगा या नहीं सुनेगा, मैं उस लोकतांत्रिक भारत की जनता हूँ, जिसे तुम सब मिलकर जनता जनार्दन कहते हो, और मैं खुश हो जाती हूँ, मतलब समझते तो जनार्दन का?

मैं किसी पार्टी की नहीं हूँ,  मैं हर बार ये निश्चित करती हूँ इस बार किसे अपने ऊपर राज करने देना है, क्योंकि मुझे पता है बस यही एक दिन है जो मेरे हाथ में है फिर तो जिसे मैंने कुर्सी पर बैठा दिया मेरे ऊपर उसका राज चलता है, पर ये क्या हुआ……. ?

मैंने 15 साल किसी एक पार्टी को मेरे ऊपर राज करने दिया और इस बार मुझे लगा कि जब मैं ही सरकार बनाने वाली हूँ तो क्यों न मौक़ा किसी और को दिया जाये, मैंने दिया, पर ये क्या हुआ???

निर्णय तो मेरा था सरकार बनाने का और कर कोई और गया? 
अधिकार तो मेरा था और पलट कोई और गया?
मेरा सौदा हो गया और मुझसे तो पूछा ही नहीं, 
तो मेरे उस वोट का क्या हुआ? जिस वोट का मेरा संमवैधानिक अधिकार था  
तुमने मुझ से ना तो महाराष्ट्र में पूछा और ना ही मध्य प्रदेश में और ना ही कहीं और ……(सभी जगह मेरे ही कपड़े उतर रहे हैं)  

मुझे तो अब लगने लगा है कि मेरी कोई क़ीमत ही नहीं है, इतना ही नहीं मेरे साथ धोखा हो रहा है।
मैं चाहता कुछ और हूँ और होता कुछ और है तो फिर मैं क्यों दूँ अपना वोट जिसे तुम क़ीमती कहते हो मेरे लिए तो वो कौड़ी हो गया, माफ़ करिये क़ीमती तो अब रहा ही नहीं, बे-क़ीमती हो गया है मेरा वोट। 

मैं चुनती किसी हूँ और हतियाता कोई और लेता हैं, वाह रे मेरा लोकतांत्रिक समवैधानिक देश, नमन है तुम्हें। 

तुम सब मिलकर मुझे बहला लेते हो और मैं हर बार तुम्हारी हरकतों को देख कर भी तुम्हारी बातों में आ जाती हूँ, बाद में तुम मिलकर क्या करते हो मुझे पता भी नहीं चलता है, जो पता चलता है वो tv से जिसमें कुछ इनकी बोलते हैं तो कुछ उनकी मेरी तो कोई बोलता भी नहीं है और ना ही कोई पूछता है। 

मैंने ना तो अकेले तुम्हारे बिल्ले को चुना था और ना अकेले तुम्हें, मैंने तुम दोनो को मिलकर चुना था और तुम जब मन में जो आता है वो अपने आप निर्णय कर लेते हो और मेरे साथ खिलवाड़ करते हो, मेरी भावनाओं को तो तुम कुछ समझते ही नहीं हो। 

सुनो! 
तुम्हें जिस बिल्ले से लड़ना है लड़ो मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है, पर वो बिल्ला तुम छोड़ नहीं सकते और ना ही किसी में मिला सकते हो मेरी Permission के बिना अगले 5 तक, बहुत खर्च किया है मैंने इस लोकतंत्र के त्योहार में, खून पसीने की कमाई लगी है मेरी इसमें, मुझे तो तुम्हारे महल, कोठियों, हाउस में, गेट से अंदर आने की Permission भी नहीं है तुम्हारे भारी भरकम दरबान, गार्ड, मुझे रोक देते हैं, घुसने ही नहीं देते हैं, आना तो तुम्हें ही पड़ेगा मेरे पास,  तुम फिर लड़ो, दुबारा जीतो अपने अपने बिल्लों के साथ जो तुम्हें पसंद हो और राज करो मुझ पर, बन जाओ हमारे भाग्य विधाता, मैं खुश हो जाऊँगी। 

ध्यान रखना मैं हूँ जनता जनार्दन, कोई मेरा पार पा ही नहीं सकता और ना ही अंदाज़ा लगा सकता है, मैं किस वक़्त किस करवट बैठ जाऊँ, इसलिये मेरी भावनाओं का ध्यान रखना और बता देना सबको कोई मेरे साथ खिलवाड़ ना करे। 

तुम्हारी अपनी 
मैं हूँ महान भारत की सामान्य जनता

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