Saturday 14 April 2018

भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातें।

rpmwu126
14.04.2018

14 अप्रैल 2020 : भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महििलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की जयंती पर देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने अछूतों, गरीब, कमजोर, असहाय, महििलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये।
भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष को सत् सत् नमन व उनके जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातें
1. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ मुख्य तय उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।
2. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल रखने की जरूरत है।
3. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।
4. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे।
5. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी।
6. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।
7. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 
 8. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया।
9. SCST : Work hard with full devotion and sincerity, learn skills and become masters in your areas, do not use Babasahab's name like carpet to hide your inefficiencies. 
10. Do not discriminate on the basis of caste, religion etc., try to understand back ground of a person. Software depends on upbringing. 
11. Remember face of Babasahab in any adversity, one can work to find solution. 
उक्त तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है।
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 1 April 2018

देश की न्याय व्यवस्था में सुधार की सख्त व महत्ति आवश्यकता है।

rpmwu125
01.04.2018

हमारे देश में जातिप्रथा का प्रचलन आदिकाल से उच्च वर्ग कहे जाने वाले लोगों की स्वार्थ सिद्धी के कारण चला आ रहा है। देश में अधिकतर लोगों का इस संदर्भ में दौहरा चरित्र (hypocrisy) है । सामान्यत : हर व्यक्ति कहता है कि जातिवाद करना गलत है परन्तु जब जाती के आधार पर दिये गये आरक्षण व अन्य कानूनी प्रावधानों की बात आती है तो ऊँची कही जाने वाली जातियों के कई लोग इनका विरोध करते है एवं दूसरी ओर वे अंतर्जातिय विवाह इत्यादि की घोर खिलाफत भी करते है। ऐसे लोग उनके बच्चो की शादी दलित परिवारों में कदापी नहीं करते है एवं वे उनके अगले जीवन में दलित के घर जन्म लेने की सम्भावना तक से सहम जाते है।
देश की न्यायपालिका पर ऊँची कही जाने वाली जातियों के व्यक्तियों का ही कब्जा है एवं वे ही  आरक्षण व संविधान प्रदत्त अन्य प्रावधानों को कमजोर करते रहते है। उदाहरणार्थ -
1) नई भर्ती में न्यूनतम आरक्षण को अधिकतम सीमा (minimum representation को maximum limit या restriction) में बदल देने की कोशिश।
2) पदोन्नति में आरक्षण पर रोक।
3) SC/ST Act के प्रावधानों को कमजोर करने का निर्णय।
उच्च न्यायापालिका द्वारा उक्त बिषयों पर दिये गये अनेकों निर्णय इस बात के प्रमाण है कि देश की न्याय व्यवस्था में नकारात्मक जातिवाद की भरमार है एवं  निर्णय आरक्षित वर्ग के प्रतिकूल लिए जाते है।
वर्तमान व्यवस्था, न्यायपालिका में भर्ती के तरीके में बदलाव नहीं करने देना चाहती हैं। उच्च न्यायापालिका में चुनिंदा जातियों व परिवारों का ही बोलबाला रहा है।
दिनांक 02.04.2018 को होने वाले विरोध प्रदर्शन में पूरजोर माँग रखी जाये कि उच्च न्यायपालिका के चयन हेतु अख्तियार किये जा रहे वर्तमान सिस्टम को बदला जाये ताकि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता व ईमानदारी आ सके।
हमें भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर उच्च न्यायपालिका में होने वाली भर्ती के तरीके को बदलवाने की जरूरत है ताकि उच्च व उच्चतम न्यायालयों में निष्पक्ष व बिना जातिवाद के वायरस से संक्रमित लोग पहुंचे जिससे लम्बी अवधि में वंचित व पिछड़ी जातियों के लोगो के हकों की रक्षा हो सके।
इस बिषय पर माननिय लोकसभा सांसद दौसा श्री हरीश चंद्र मीना द्वारा संसद में रखे गये पक्ष का विडियो नीचे लिंक में है, कृपया देखे व प्रण करे कि जब तक माँग पूरी नहीं हो जाती है हम लगातार संघर्षरत रहेगें।
https://youtu.be/T7e0Y29Ueik
रघुवीर प्रसाद मीना