Monday 28 August 2017

देश में खराबियों की असली जड़ : Hypocrisy - दोगलापन अर्थात कथनी एवं करनी में अन्तर।

rpmwu117
27.08.2017

मारे देश में जितनी भी खराबियाँ है उनके विभिन्न कारण हो सकते हैं परंतु हिप्पोक्रेसी अर्थात दोगलापन या कहे कथनी एवं करनी में अंतर अधिकतर खराबियों का एक मुख्य कारण है।
क्या हमने सोचा है कि आखिरकार हमारे देश के नागरिकों  की कथनी एवं करनी में बहुत अधिक अंतर क्यों है?  मेरे मत के अनुसार  इस बात का उत्तर  हिंदू धर्म  की मान्यताओं में छुपा हुआ है। हिंदू धर्म के अनुसार कण-कण में भगवान विराजमान है परंतु  अछूत व्यक्ति  मैं धर्मांध लोगों को भगवान नहीं दिखा। इसी प्रकार हम कहते हैं कि गाय हमारी माता है परंतु गाय जब रोड पर पॉलिथीन खाती है तो उसमें माता का भाव नहीं दिखता है। चुनावों के समय सभी पार्टियां अंधाधुंध पैसा खर्च करती है परंतु कैंडिडेट्स, इलेक्शन खर्चे दाखिल करते समय सरासर झूठ बताते है। यही हाल सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों व आम जनता का भी है। कहेंगे कुछ और करेंगे कुछ और।
हम यदि अपने-अपने ऑर्गनाइजेशन की कार्यशैली को देखें  तो पता चलता है कि  हमारे अधिकतर अधिकारी व कर्मचारी सभी मिटिंगस् के दौरान या अन्यथा बातें तो अच्छी-अच्छी करेंगे परंतु जब कार्य करना होगा तो हम वैसा ही करेंगे जिसे हम स्वमं कंडेम करते हैं। यदि कथनी और करनी में अंतर नहीं हो तो हमारे हर कार्य की गुणवत्ता बहुत श्रेष्ठ होगी और हमारा ऑर्गनाइजेशन सही दिशा में उन्नति करेगा।
यह हमारा दोगलापन है कि निरीक्षणों के दौरान या मीटिंगस् में सब कुछ अच्छा करने के लिए तैयार हो जाते हैं परंतु जब धरातल पर देखते हैं तो जिस बात को हमने कहा है उसे करते नहीं है। लिहाजा दिये गये निर्देशों की वर्षों तक भी कंप्लायंस नहीं होती है और जिससे हमारे विभिन्न क्षेत्रों और कार्य करने के तरीकों में वींछित सुधार नहीं होता है।
सरकार भी दोगलापन की शिकार है। नेता चुनाव के समय कहते कुछ हैं और बाद में करते कुछ और हैं। ऐसा होने के कारण देश में नेताओं सरकार के प्रति जनता का विश्वास कम हो जाता है और अन्य लोग भी बड़े नेताओं के नक्शे कदम पर चल कर उसी प्रकार दोगलेपन का व्यवहार करने लग जाते हैं और उनकी कार्यशैली भी इसी से प्रभावित होती है और वे अनजाने में ही एक ऐसी कल्चर डेवलप कर देते हैं जिसमें की अच्छी गुणवत्ता का कार्य होना लगभग असंभव है।
अतः यदि हम देश की उन्नति, ब्राँड वैल्यू और अच्छी गुणवत्ता के कार्य देखना चाहते हैं तो हमें अपनी कथनी और करनी में सामंजस्य बिठाना होगा और जो कहें वह करें एवं दोगलेपन को व्यवहार से बिलकुल हटा दें।
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 26 August 2017

You Start Dying Slowly का हिन्दी अनुवाद..

rpmwu116
26.08.2017

नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..
1) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।
2) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।
3) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।
4) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।
5) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
*तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!*
इस सुन्दर कविता के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।।

Friday 25 August 2017

सवाई माधोपुर के पास बनास नदी में बजरी की अंधाधुंध खनन एवं उसके दुष्परिणाम।

rpmwu114
24.08.2017

दिनांक 19 अगस्त 2017 को मैं सवाई माधोपुर गया था। वहां देखा कि बनास की बजरी रेलवे के वैगनस् में लोड होकर लखनऊ के पास मोहनलालगंज भेजी जा रही है। लोगों से चर्चा की तो पता लगा कि प्रतिदिन हजारों ट्रक बजरी सवाई माधोपुर के पास स्थित बनास नदी से मैकेनाइज्ड तरीके से खनन एवं लोडिंग के पश्चात यूपी, दिल्ली, हरियाणा व अन्य स्थानों पर भेजी जा रही है। लोगों ने यह भी बताया कि यह खनन बड़े स्तर पर एक ही कम्पनी के तहत की जा रही है एवं इसमें क्षेत्र व प्रदेश के बड़े नेताओं व अन्य बडे़ लोगों का सहयोग या हिस्सेदारी है। इनके प्रभाव के कारण प्रशासन भी बिलकुल मौन रहता है।
इतने व्यापक स्तर पर खनन होने से निम्नलिखित हानि है-
1. एक बड़ी फर्म या कम्पनी व उसके साझादारों को ही लाभ, सामान्य व्यक्तियों को कोई लाभ नहीं।
2. खनन व लोडिंग के कार्य मैकेनाइज्ड होने के कारण लोकल मजदूरों को कोई रोजगार मुहैया नहीं।
3. बजरी बनने की प्रक्रिया में हजारों साल लगते हैं और अब बारिश भी कम हो रही है जिसके कारण आने वाले समय में क्षेत्र में बजरी की मात्रा बहुत कम हो जाएगी और बजरी की उपलब्धता भयंकर रूप से घट जायेगी और आसपास के लोगों को बजरी बहुत महंगी दर पर मिलेगी या हो सकता है कि बाहर से लानी पड़े।
4.भारी खनन से पर्यावरण व इकोलॉजी पर कुप्रभाव।
5. सरकार को भी रायल्टी के रूप में बहुत कम राशि की प्राप्ति हो रही है जबकि खनन करने वाली कंपनी बहुत बड़ा लाभ कमा रही है।
आवश्यकता है कि इस प्रकार हो रही भयंकर खनन को रोकने के लिए संयुक्त रुप से प्रयत्न किए जाएं। देखा जाए कि लीज़ दस्तावेज में क्या-क्या शर्ते है? क्या उनकी अनुपालना हो रही है? तथा सरकार को बजरी की वास्तविक कीमत की तुलना में क्या प्राप्त हो रहा है?
बजरी खनन एक ऐसा कार्य है जिसे हर कोई व्यक्ति कर सकता है और सरकार यदि चाहे तो कई सारे व्यक्तियों को छोटे-छोटे खनन का पट्टा देकर उन्हें व्यवसाय मुहैया करवा सकती है तथा लोकल लोगों को भी रोजगार की संभावना बढ़ा सकती है। और कम से कम लीज़ राशि पर्याप्त हो ताकि सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी हो सके और आने वाली धनराशि विकास के कार्यों में तो खर्च हो सके।
आप सभी के पास उपलब्ध जानकारियां एवं सुझाव साझा करें। यदि किसी के पास लीज के पेपर्स हो तो उपलब्ध करवाये या आरटीआई के माध्यम प्राप्त करने की कोशिश करे।
रघुवीर प्रसाद मीना