Thursday 30 April 2020

कैसे_लिखा_है? वह बहुत अंतर करता है।

rpmwu341 dt. 30.04.2020
आप #चीजों_को_कैसे_लिखते हैं, यह बहुत अंतर करता है। लिखते वक्त शब्दों का चयन व उनसे होने वाले प्रभाव और कुप्रभाव दोनों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए।

जब पूरा लिख लिया गया हो तो एक या दो बार पुनः विचार करें कि क्या जो प्रेसित करना चाहते हैं वही भावार्थ है या नहीं? कोई ऐसी बात तो नहीं लिखी जो दूसरों को बेवजह खराब लगे। क्या शब्दों को बदलने से समान या अच्छे भावार्थ के साथ दूसरों को अनावश्यक चोट पहुंचाने से बचा जा सकता है तो बचना ही उचित है। संप्रेषण में दूसरे के सम्मान का ध्यान रखा जाना हमेशा समझदारी है।

लेकिन यदि आपकी एकदम उचित, ज्यादातर लोगों के कल्याण की सही बात दूसरों को उनकी झूठी ईगो या दकियानूसी सोच और मानसिक अविकसितता के कारण खराब लगे तो ऐसे लोगों की बिना परवाह किये उसको निसंकोच व निडरता से अवश्य लिखना चाहिए। यही सिद्धांत बोलने में भी अपनाना चाहिए।

एक साधारण उदाहरण के लिए इस विडियो को देख सकते हैं- https://youtu.be/S9JxJoL1y0c

रघुवीर प्रसाद मीना 

Wednesday 29 April 2020

रिजर्वेशन के स्थान पर रिप्रजेंटेशन, ज्यादा उचित, सम्मानजनक और अधिकार दिलाने वाले शब्द की मांग करने का वक्त आ गया है।

rpmwu340 dt. 29.04.2020

आजकल आए दिन माननीय न्यायालयों के न्यायाधीश , अखबार के सम्पादक  व मीडिया से जुड़े पत्रकार आरक्षण (रिजर्वेशन) की समीक्षा के बारे में कहते हुए ऐसा प्रतीत कराते हैं जैसे कि रिजर्वेशन भीख में दी हुई कोई वस्तु है और देश की सभी समस्याओं की जड़ रिजर्वेशन ही हैै। जिन दकियानूसी सोच वाले अविवेकशील लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि रिजर्वेशन देश में सभी जाति और समुदाय के लोगों को समानता के स्तर पर लाने का एक सिद्ध कारगर उपाय है उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि जिस प्रकार घर में सभी बहन भाइयों का समान अधिकार होता है उसी तरह देश में रहने वाले सभी जाति, धर्म, संप्रदाय व समुदाय के नागरिकों का भी देश संचालन व रिसोर्सेज में समान अधिकार होना चाहिए। जिन समुदायों के नागरिक विकास के स्तर में पीछे रह गयेेे, उसका मूल कारण क्या रहे है। महाभारत के काल सेे ही एकलव्य व कर्ण को शिक्षा व सम्मान और वीरता के प्रदर्शन से वंचित रखने का प्रयास किसने किया? अछूतों को पढ़ने लिखने से किसने रोका? वर्ण व्यवस्था ने अनगिनत लोगों के सम्मान को गहरी ठेस पहुंचाई या नहीं? 

देश के संविधान की मूल भावना है कि देश के हर जाति, धर्म, संप्रदाय व समुदाय के नाागरिक आगे बढ़े और देश के विकास में भागीदार रहे तथा सभी का देश के रिसोर्सेज पर समान रूप से अधिकार है। इसी भावना के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जिन लोगों का भूतकाल में वर्ण व्यवस्था या उनके स्थानीय होनेे या अन्य कारणों से शोषण व अत्याचार हुआ है, उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए रिजर्वेशन मुहैया कराया गया। 

कई लोग कहते हैं कि रिजर्वेशन के प्रावधान से गुणवत्ता खराब हो रही है एवं मेरिट का कोई महत्व नहीं रह गया है। ऐसे सभी लोगों को एकलव्य व कर्ण की मेरिट याद नहीं आती है। वे ये भी भूल जाते है कि भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था उससे पूर्व जब विदेशी आक्रांताओ ने भारत को लूटा और शासन किया तब किसी भी प्रकार का रिजर्वेशन नहीं था, फिर भी देश और नागरिकों के साथ क्या क्या नहीं हुआ? 

आजादी से पूर्व जब हमारे देश में अंग्रेजों का राज था तो उस समय अंग्रेज हमारे यहां के स्थानीय लोगों से हर प्रकार से मेरिट में अब्बल थे, तो क्या मेरिट में अब्बल होने वाले लोगों को राज करने देना चाहिए था? और आज भी बहुत सारे देश ऐसे हैं जो हमारे देश की तुलना में तकनीकी, विज्ञान, अनुसंधान व अनेकों भौतिक वस्तुओं और सुुख सुुविधाओं में आगे हैं, तो क्या ऐसी स्थिति में उनको कॉन्ट्रैक्ट देकर सरकार चलाने दे दिया जाना चाहिए? 

वास्तव में जरूरत है कि देश में रहने वाले सभी जाति, धर्म, संप्रदाय व समुदाय के लोगों का महत्वपूर्ण जगहों पर रिप्रेजेंटेशन होना चाहिए। यही सुनिश्चित करने के लिए रिजर्वेशन की अवधारणा बनाई गई कि कम से कम एक न्यूनतम निर्धारित प्रतिशत रिप्रेजेंटेशन तो रिजर्वेशन के माध्यम से सुनिश्चित किया ही किया जाए। अब समय को देखते हुए रिजर्वेशन के स्थान पर जो एकदम उचित शब्द है रिप्रेजेंटेशन उसकी बात करनी चाहिए। हर जाति, धर्म, सम्प्रदाय व समुदाय के लोगों का उनकी जनसंख्या के अनुपात में न्यायपालिका, कार्यपालिका व सरकार की प्रत्येक अथॉरिटी एवं रिसोर्सेज पर हक होना चाहिए।

समझदार लोगों को  1) राज्यसभा, 2) उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों 3) मंत्रियों के सलेेक्शन 4) सरकार के प्रत्येक विभाग की "की" पोस्टस् की नियुुुक्तियों 5) प्राइवेट क्षेत्र के हर स्तर के रोजगारों मेंं जनसंख्या के आधार पर रिप्रजेंटेशन की बात करनी चाहिए। 

रघुवीर प्रसाद मीना 

Tuesday 28 April 2020

संपादकीय लेख का पुनर्विचार आवश्यक : गुलाब कोठारी, राजस्थान पत्रिका, दिनांक 28 अप्रैल 2020

rpmwu339 dt. 28.04.2020
दिनांक 28 अप्रैल 2020 को जयपुर से प्रकाशित होने वाली राजस्थान पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर इस अखबार के संपादक श्रीमान गुलाब कोठारी ने पुनर्विचार आवश्यक नाम से एक संपादकीय लिखी। इस संपादकीय का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने एवं समझने के तत्पश्चात है लगा कि श्री गुलाब कोठारी के स्वयं के विचार उनकी संपादकीय में कई जगहों पर एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। मुझे तो लगता है कि उन्हें उनकी संपादकीय को पुनः विचारपूर्वक पढ़ना चाहिए और इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए कि वास्तव में वे क्या संदेश देना चाहते हैं? श्री गुलाब कोठारी ने लिखा है कि आरक्षण आत्मा का विषय है, फिर लिखा कि आरक्षण हीन भावना लाता है और आरक्षण ने देश की अखंडता की हत्या की है। उन्होंने आरक्षण को घुण की संज्ञा तक दे डाली और लिखा है कि पिछले 7 दशकों में आरक्षण ने देश की संस्कृति, समृद्धि व अभ्युदय सब को खा गया। 

यह भी लिखा है कि नीतियां बुद्धिजीवी बनाते हैं जिनका माटी से कोई जुड़ाव नहीं होता, उनमें संवेदना नहीं होती। उनको निर्लज्ज तथा प्रज्ञा हीन तक कह डाला।  साथ में लिखा है कि सरकारें आरक्षण पर मौन रहती हैं और उन्हें नकारा तथा नपुंसक तक की संज्ञा दी है। 

अंत में लिख दिया कि जाति आधार सही है या नहीं इस पर पुुुनर्विचार होना चाहिए। जब आरक्षण के इतने सारे नुकसान गिना दिए हैं तो पुनर्विचार की क्या आवश्यकता है उसे जड़ से समाप्त करने के लिए ही सूझाव देना चाहिए था।

परंतु इसी लेख में श्री गुलाब कोठारी के दूषित मन की भावना प्रकट हो ही गई हैं। उनका मानना है कि आरक्षण ने प्रकृतिदत्त वर्ण व्यवस्था से समाज को मुक्त कर दिया है जबकि वर्ण व्यवस्था कायम रहनी चाहिए। उन्होंने लिखा है कि मनुष्य में ही नहीं,  वर्ण व्यवस्था तो पशु पक्षी व देवताओं में भी होती है। उनकी सोच है कि जो लोग खेती, पशुपालन या और छोटे-मोटे पुश्तैनी कार्य से जुड़े रहे हैं उन्हें वही कार्य करते रहना चाहिए, उन्हें शिक्षित होकर नौकरी करने से क्या लाभ है? उनके शिक्षित होने से गुणवत्ता खराब हो रही है। उन्होंने तो यह भी कहा कि व्यक्ति जिस वर्ण में जन्मा है वे उसके कर्म का फल है। यही नहीं पशु पक्षी कीट की योनियों में जन्म लेने तक को कर्म का फल बता दिया है। अपरोक्ष रूप से इंगित किया है कि जो भी आरक्षित वर्ग के लोग हैं वे उन समाजों में उनके पूर्व जन्म में कर्मों के कारण हैं।

इसके अलावा उन्होंने युवा वर्ग को भड़काने का कार्य भी किया है और 1990 में आरक्षण विरोधी आंदोलन की बढ़ाई भी की है। 

यदि आज के जमाने में कोई व्यक्ति इस प्रकार की दकियानूसी बातें करें और आरक्षण के नुकसान के सिवाय उसके लाभ यदि समझ में ही नहीं आ रहे है तो ऐसे लोगों को संपादकीय लिखने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के लोगों की विचारधारा एक तरफ तो वर्ण व्यवस्था की वकालात करती है और दूसरी तरफ जाति के आधार पर आरक्षण का विरोध करती हैं। इस बात को भलीभांत समझते हुए कि वर्ण व्यवस्था जिसे कमजोर वर्गों के शोषण के लिए जिम्मेदार मानते हुए भारतीय संविधान के आर्टिकल 13 के तहत जड़ से समाप्त करने की बात कहीं गई, उसी की खुले में वकालात करना देशद्रोह के समान है। 

वर्ण व्यवस्था की वकालत करने वाले श्री गुलाब कोठारी को समझना चाहिए की यदि आरक्षण नहीं होता तो देश में निम्नलिखित तीन स्थितियां हो सकती थी - 
प्रथम : स्थिति होती जिसमें जो लोग आरक्षित वर्ग में है वे अपना अलग देश बना लेते। 
दूसरी : स्थिति होती कि यदि आरक्षित वर्ग के लोग अलग देश बनाने में सफल नहीं होते तो देश में हर समय असमानता व विभिन्न प्रकार के शोषणों के कारण गृह युद्ध चलता रहता। और तीसरी स्थिति होती कि यदि आरक्षित वर्ग के लोग उक्त दोनों कार्य करने में असफल रहतेे तो वे उनके पोटेंशियल/क्षमता की तुलना में बहुत ही छोटा कार्य करते रहते जिसकी वजह से देश को स्किल केे आभाव में बहुत भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता। 

वास्तव में आरक्षण सभी के विकास व उत्थान के लिए एक आवश्यक उपाय है और जिन जातियों व समुदायों को आरक्षण मिला है उनकी आजादी के पहले और आजादी के बाद वर्तमान स्थिति से पता चलाया जा सकता है कि आरक्षण एक कितना कारगर उपाय सिद्ध हुआ है। 

समझदार लोगों को इन मुद्दों को उठाना चाहिए कि 1) राज्यसभा, 2) उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों 3) मंत्रियों के सलेेक्शन  4) सरकार के प्रत्येक विभाग की "की" पोस्टस् की नियुुुक्तियों 5)  प्राइवेट क्षेत्र के हर स्तर के रोजगारों में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए। 

रघुवीर प्रसाद मीना 

Sunday 26 April 2020

माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्तियां।

                 rpmwu338 dt. 26.04.2020

वैसे तो खबर पुरानी है परन्तु माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों के सम्बन्ध में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री द्वारा कही गई बातें एकदम सही है। इन पर सुधारात्मक कार्यवाही की जरूरत है। 

#दीपक_तले_अंधेरा, एक पुरानी और प्रचलित कहावत है। वास्तव में इसमें दीपक की गलती नहीं है, बनावट व आकार के कारण ऐसा होता है कि प्रकाश दूर तो चला जाता है परन्तु दीपक के आसपास प्रकाश नहीं पहुंच पाने के कारण अंधेरा ही रह जाता है।  ऐसी स्थिति में दीपक के आसपास उजाला करने के लिए आवश्यकता है कि किसी अन्य बाहरी स्त्रोत द्वारा वहां प्रकाश पहुंचाया जाएं।

उपरोक्त के मद्देनज़र संसद का चाहिये कि माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के सम्बन्ध में एक नई पारदर्शी प्रक्रिया बनाकर उसकी अनुपालना करवायें। हम सभी को चाहिए कि इस बात को अपनी-अपनी पहुंच व पोजिशन के अनुसार आगे बढ़ाये। 

रघुवीर प्रसाद मीना 

Friday 24 April 2020

Fearlessness & Selflessness of Bharat Ratna Dr.Bhim Rao Ambedkar

 rpmwu337 dt. 24.04.2020

Dr.Br Ambedkar was fearless, he did not succumb to the pressure of Congress when he decided to represent interests of untouchables and weaker sections in front of the commission against the decision of the Congress to boycott the Simon Commission. 

He also tore apart manu_smriti and burnt its copy openly and publicly to dispel away the fear of the brahminical system from the minds of the untouchables.

He always represented and fought for the rights of his people and never tried to hide his identity. Also he was tremendously selfless as he never bothered for his personal and family interests in the fight against the brahminical system that had created and fostered untouchability causing abominable sufferings to human dignity. Knowing very well that even after having high educational qualifications, the system of untouchability will bring him disrepute and insult on returning to India after studying in abroad, he preferred to come back to India and work for eradication of untouchability and social upliftment of the downtrodden.

BHARAT RATNA DR. BHIM RAO AMBEDKAR WAS A SUPREMELY FEARLESS AND A SELFLESS CRUSADER. 

Raghuveer Prasad Meena

Tuesday 21 April 2020

Leader & Boss

rpmwu336 dt. 21.04.2020

#Boss wants everything for himself and takes credit for the good works and alleges others for the failures.

#Leader explores the way for success and allows others to take advantage of his hard work and move in the right direction. He gives credit to others for the success and assumes responsibility for failures.

Raghuveer Prasad Meena 

व्यक्ति का व्यवहार एक स्किल है जिसे सुधारा जा सकता है।

rpmwu335 dt. 21.04.2020

व्यक्ति का #व्यवहार उसकी स्वयं व दूसरों की खुशी व चिन्ता का महत्वपूर्ण कारक होता है। व्यवहार जीवन जीने की एक #अतिमहत्वपूर्ण_स्किल है, जिसे व्यक्ति चाहकर उत्तम कर सकता है। व्यक्ति यदि काम करने में बहुत अच्छा हो परन्तु यदि उसका सामान्य व्यवहार रूखा हो तो ऐसे लोगों को घमंडी या नासमझ मानते हुए उन्हें सामाजिक नहीं समझा जाता है।

सफलता व अपनी और दूसरों की खुशी के लिए, #अच्छे_काम के साथ #
अच्छा_व्यवहार अतिआवश्यक है।

रघुवीर प्रसाद मीना

व्यक्ति के ज्ञान व झूठी ईगो में सम्बन्ध।

rpmwu334 dt. 21.04.2020

व्यक्ति की झूठी ईगो और उसका ज्ञान आपस में इनवर्सली प्रोपोर्शनेट होते हैं। अर्थात् यदि किसी व्यक्ति ज्ञान उच्च कोटि का है तो उसकी झूठी ईगो बहुत कम होगी और यदि ज्ञान कम है तो उसकी ईगो बहुत अधिक होगी।

व्यक्ति यदि चाहे तो स्वयं आत्मनिरीक्षण करके पता कर सकता है कि उसके ज्ञान व ईगो की स्थिति कैसी है और सुधारात्मक एक्शन ले सकता है।

रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 15 April 2020

14 अप्रैल 2020 को बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर की जन्म जयंती के अवसर पर दीप प्रज्वलित करना।

rpmwu333 dt. 15.04.2020

कल 14 अप्रैल 2020 को सम्पूर्ण भारतवर्ष में पहली बार व्यापक स्तर पर भारतरत्न बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर की जन्म जयंती के अवसर पर अनेकों लोगों ने घरों में दीप प्रज्वलित किए और खुशियां मनाई। जिन लोगों को ऐसा लगता है कि देश की आजाद के पश्चात संविधान के लागू होने की वजह से उनके जीवन में खुशहाली आई है, उन सब लोगों को पुराने रीति-रिवाजों को छोड़कर ज्योतिबाफुले, बाबासाहब, अन्य समाजसेवियों, माँ-बाप, भाईयों-बहनों और रिश्तेदारों व दोस्तों जिनकी वजह से उनके समाज व समुदाय को लाभ हुआ है, के जन्म दिवस के अवसर पर इस प्रकार के उत्सव मनाने चाहिए। घर में अच्छे पकवान बनाए जाएं व लोगों को खाना खिलाया जाएं और घर व आपस में उत्सव जैसा माहौल रखें। 
आदिवासियों के लिए 9 अगस्त, विश्व आदिवासी दिवस और बिरसा मुंडा तथा जयपाल सिंह मुंडा व लोकल आदिवासी नेताओं जैसे कप्तान छुट्टन लाल, लक्ष्मीनारायण झरवाल, कालाबादल एवं इस प्रकार की विभूतियों के जन्म दिवस के अवसर पर घर में उत्सव जैसा माहौल रखें और खुशियां बांटे।

कृपया इस विषय में आपके क्या विचार है, अवश्य अवगत कराये।

रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 11 April 2020

Profile of Raghuveer Prasad Meena

Name : Raghuveer Prasad Meena, 
DOB : 8th July 1967

Birth Place : Piloda, Tehsil :  Wazirpur (earlier Gangapur City), Distt. : Sawai Madhopur, Rajasthan 

Educational Qualification: Bachelor’s Degree in Mechanical Engineering, studied in Govt. Secondary School Piloda from 1st to 8th, Govt. Higher Secondary School Gangapur City from 9th to 11th, Maharajas College 1st year TDC (12th), Jaipur, Initial engineering studies at MNR Engineering College, Allahabad, IIT Delhi and finally studied at IRIMEE, Jamalpur (Bihar) after selection in SCRA through UPSC. 

Backgorund :  Group A IRSME railway officer in level 14 with 26 years of experience, presently posted as Chief Mechanical Engineer in South Westen Railways, Hubballi. Had postings at Rajkot, Ratlam, Gandhidham, Phulera, Jaipur and Jabalpur in various capacities as Assistant Mechanical Engineer, Divisional Mechanical Engineer, Senior Divisional Mechanical Engineer, Dy. Chief Mechanical Engineer, Chief Rolling Stock Engineer and Additional Divisional Railway Manager. 


Awards : National award at the level of Minister for Railways (2 times) and General Manager for meritorious services and also got Jamalpur Association Award for leadership. He has always been rated as outstanding officer in APARs throughout his career of 26 years.

Foreign Tours : Singapore, Malaysia, Indonesia, Thailand and Russia for training and other important assignments of the government.

Brief Particulars of Leadership Initiatives: He is General Secretary of Aravali Vichar Manch (AVM) for last 5 consecutive terms, a social organization of tribal officers. This organization takes up matters related to welfare and upliftment of tribals and encourages youth to excel in education. He is also General Secretary of South Western Railway Officers Association and President of Piloda Gram Vikas Samiti of his village taking up matters mostly relating to education and development. As a student, he held a prestigious post of General Secretary of Jamalpur Gymkhana then he was General Secretary of Institute of Rolling Stock Engineers, Jaipur for 2 terms. Also he has been President Railway Residents Management Association at Ganapti Nagar Railway Colony, Jaipur. He organised and participated in numerous programmes and meeting to eradicate social evils and promote education. Importantly he organised an eye camp, wherein 35 persons were operated for cataract. He makes masses aware on important social issues through regular blogs on social media .

11 अप्रेल : महात्मा ज्योतिराव फुले की जन्म जयंती के अवसर पर उन्हें शत-शत नमन।


rpmwu332 Dt. 11.04.2020
ज्योतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - 11 अप्रैल 1827 , मृत्यु - 28 नवम्बर 1890) एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें 'महात्मा फुले' एवं 'जोतिबा फुले' के नाम से जाना जाता है। महात्मा फुले जाति से माली थे । सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिए इन्होंने अनेक अभूतपूर्व कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।
महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले
Mphule.jpg
जन्म11 अप्रैल 1827
खानवाडीपुणेब्रिटिश भारत (अब महाराष्ट्र में)
मृत्यु28 नवम्बर 1890 (उम्र 63)
पुणे, ब्रिटिश भारत
अन्य नाममहात्मा फुले/जोतिबा फुले/ जोतिराव फुले
धार्मिक मान्यतासत्य शोधक समाज
जीवनसाथीसावित्रीबाई फुले
हमारे देश में 19 वीं सदी में स्त्रीयों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। वे हर प्रकार के अधिकार से वंचित रहती थी। स्त्रियों की तत्कालीन दयनीय स्थिति से महात्मा फुले जी बहुत व्याकुल और दुखी होते थे। इसलिए उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे समाज में क्रांतिकारी बदल लाकर ही रहेंगे। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले जी को स्वयं शिक्षा प्रदान की। सावित्रीबाई फुले जी भारत की प्रथम महिला अध्यापिका थी। महात्मा फुले स्त्री पुरूष भेदभाव को समाप्त करना चाहते थे। उनका मूल उद्देश्य स्त्रीयों को शिक्षा का अधिकार प्रदान कराना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थनविधवाओं के मुड़न का विरोध करना रहा है। महात्मा फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा के जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रीयों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रीयों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया।  उन्होंने कन्याओं के लिए भारत देश की पहिली पाठशाला पुणे में बनाई।  

आधुनिक भारत में शूद्रों-अतिशूद्रों, महिलाओं और किसानों के मुक्ति-संघर्ष के पहले नायक जोतीराव को बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर ने गौतम बुद्ध और कबीर के साथ अपना तीसरा गुरु माना है। 

19 वीं सदी में जातिप्रथा के विरुद्ध, महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए तथा किसानों को अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने हेतु जिस महापुरुष महात्मा ज्योतिराव फुले ने समाज सेवा की मिसाल कायम की उनके द्वारा समाज को दिखाई गई दिशा में अभी भी कार्य करना शेष है। आओ हम उनकी जन्म जयंती पर अपने आप से वायदा करें कि उनके सपने को साकार करने हेतु सम्पूर्ण लगन, उत्साह व मेहनत से काम करें। भारत एक खोज के इस अंश को अवश्य देखें। 

https://youtu.be/TPiab336g4w

रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 4 April 2020

धर्मांधता या धार्मिक अंधविश्वास का प्रदूषण (#DAP) का ईलाज जरूरी है।

rpmwu331
 04.04.2020

धर्म से व्यक्ति को अच्छा चरित्र, दूसरों के हक व स्वतंत्रता का सम्मान करना, कमजोर की सहायता करना व मानवीय पहलूओं पर खरा उतरना सिखना चाहिए।
जबकि धर्मांधता में डूबे लोग मानसिक रूप से कम विकसित होने के कारण वे दूसरे धर्मों से घृणा, जाति समुदाय के आधार पर ऊंच-नीच, दूसरों को नुकसान पहुंचाना और स्वयं के धर्म की हर गलत चीज को सही समझते है।
निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के लोग या देश में लाॅकडाऊन होने पर मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित करने वाले सभी लोग धर्मांधता में डूबे हुए हैं।
धर्मांधता या धार्मिक अंधविश्वास का प्रदूषण (#DAP) एक बिमारी की तरह है। इसका ईलाज जरूरी है।
रघुवीर प्रसाद मीना

अरावली विचार मंच की ओर से राजस्थान के मुख्यमंत्री के कोविड़-19 मिटिगेशन फंड में 5 लाख रू. का आर्थिक सहयोग।

rpmwu330
04.04.2020

सर्व विदित है कि COVID-19 महामारी की चुनौती से सारा विश्व जुझ रहा है और इस त्रासदी ने हमारे दरवाजे पर भी दस्तक दे दी है। भारत और राजस्थान सरकारें इस त्रासदी से निपटने के लिए सार्थकता से लगातार प्रयासरत है।

 #अरावली_विचार_मंच, आदिवासी सरकारी/अर्द्ध सरकारी/गैरसरकारी उपक्रमों के अधिकारियों या समकक्ष की जयपुर स्थित पंजीकृत संस्था (पंजियन सं 389/ 2003-04), आदिवासियों के विकास के साथ राजस्थान के विकास में 2003 से सतत् प्रयत्नशील है।

संस्था के सदस्यों ने COVID-19 से लड़ने के लिए राजस्थान राज्य के #मुख्यमंत्री_राहत_कोष में ₹5 लाख का अंशदान करने का निर्णय लिया और आज दिनांक 04 अप्रेल 2020 को संस्था के चेक क्रमांक  551095 के माध्यम से ₹ 5 लाख की राशि मुख्यमंत्री राहत कोष हेतु प्रदान की गई। 

यह राशि, सदस्यों के नियोक्ताओं के माध्यम से PMRF और CMRF राहत कोषों में दिये गये एक दिन/दो दिन के वेतन में कटौती के योगदान और सीधे व्यक्तिगत योगदान के अलावा है।

इसके अतिरिक्त यह संस्था और सदस्य आमजन को इस महामारी से बचाव के उपाओं के प्रति जागरूक करने के साथ जरूरतमंद लोगों के लिए तैयार भोजन 
और ग्रॉसरी पैकेट के वितरण का कार्य भी मुस्तैदी से कर रहे हैं।

हमें विश्वास है कि हम सब सरकार के साथ मिलकर इस त्रासदी से अवश्य ही सफलतापूर्वक निपट लेंगें ।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना
महासचिव, अरावली विचार मंच

Thursday 2 April 2020

Untouchability_छूआछूत

romwu329
02.04.2020

#Untouchability_छूआछूत जिन्होंने बनाई व जो उसका अनुसरण करके एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से नीचा दिखाते रहे हैं उनको अवश्य पाप लगेगा और एक दिन आयेगा जब ऐसे लोगों को समाज में #दकियानूसी और #मानसिक_रूप_से_अविकसित समझा जायेगा।

जो लोग जाति के आधार पर आरक्षण का विरोध करते हैं उन्हें चाहिए कि वे इस विडियो को पूरा देखें व जाति की वजह से स्वयं भेदभाव नहीं करें और दूसरों को भी भेदभाव नहीं करने हेतु प्रेरित करें।

हमें जाति के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने में अहम् भूमिका निभाई चाहिए। मनुष्य को मनुष्य समझते हुए सभी को सम्मान दे।

रघुवीर प्रसाद मीना