Sunday 22 March 2020

सरकारी... इस शब्द की छवि पर निर्भर करता है निजिकरण।

rpmwu273
10.10.2019

सरकारी... इस शब्द की छवि पर निर्भर करता है निजिकरण। 

आजकल कई लोग निजीकरण (प्राईवेटाइजेशन) के विरोध में धरना प्रदर्शन इत्यादि में जुटे हुए हैं और उनका मानना है कि ऐसा करने से सरकारी क्षेत्र की नौकरियां कम हो जाएंगी और आने वाली पीढ़ियों को सरकार में नौकरी लगना बड़ा दुर्लभ हो जाएगा।

वास्तव में हो क्या रहा है जिसके कारण प्राईवेटाइजेशन करना पड़ रहा है? बहुत से कारणों में से एक मुख्य कारण है यह है कि जो भी उत्पाद या सेवायें सरकारी है उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होने के कारण सरकारी शब्द की इज्जत ही कम हो गई है। कोई व्यक्ति किसी उत्पाद अथवा सेवा के बारे में कहेगा कि सरकारी है इसका मायना यह माना जाता है कि उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होगी।

अब देखें कि सरकारी उत्पादों व सेवाओं की गुणवत्ता कम करने के लिए कौन जिम्मेदार है? सरकार के अधिकारी एवं कर्मचारी ही इस शब्द की छवि खराब करने के लिए खासतौर पर जिम्मेदार है। अभी वास्तव में भी यदि हम ऑफिस या सरकारी उपक्रमों में देखें तो लोग उन्हें दिए गए कार्यों को भलीभांति निष्पादित नहीं करते हैं जिसके कारण कार्यों की गुणवत्ता उच्च स्तर की नहीं बन पाती है। लोगों को लगता है कि निजीकरण या प्राइवेट करने से चीजों की गुणवत्ता में जोरदार सुधार हो जाएगा।

सरकारी एवं प्राइवेट चीजों को वृहद् तौर पर देखें तो प्रधान रूप से निम्नलिखित पता चलता है -
1. सरकारी क्षेत्र में छोटे कर्मचारियों की सैलरी प्राइवेट में कार्य करने वाले कर्मचारियों की अपेक्षा लगभग 3 गुणा अधिक मिलती है। और उन्हें समय पर छुट्टियां, मेडिकल फैसिलिटी, घूमने-फिरने की सुविधाएं इत्यादि मिलती है व जाॅब सेक्योरिटी भी होती है। इन्हीं वजहों से छोटी सेवा करने वाले लोग हमेशा सरकारी नौकरी ही करना चाहते हैं। जब छोटे कर्मचारियों को कम सैलरी मिलेगी तो वे प्राप्त कम वेतन से उनके बच्चों की अच्छी देखरेख व पढाई नहीं करवा पायेंगे। ऐसा होने से देश की आने वाली काफी बड़ी जनसंख्या कमजोर बनेगी और देश के लिए अच्छे नागरिकों की कमी हो जायेगी।

अब तक जितनी भी सरकारें रही है, उनके प्रधानमंत्री से लेकर छोटे से छोटे अधिकारी व कर्मचारियों की सम्मिलित जिम्मेदारी बनती है कि सरकारी कही जाने वाली चीजों की छवि इस प्रकार की खराब बन गई है। आवश्यकता है कि सरकारी शब्द की छवि को सुधारा जाये। जो भी लोग सरकार में कार्य कर रहे हैं उन्हें बहुत अधिक गंभीरता से सोचना होगा कि इस सरकारी शब्द की छवि को कैसे सुधारें? मुझे लगता है कि सरकार के बड़े मंत्री व अधिकारी कार्य में यदि ईमानदारी, स्किल, नॉलेज व खराब को खराब कहने की ताकत रखगें तो चीजें सुधर सकती है अन्यथा सरकारी(खराब) से प्राईवेट (बेहतर) की परिवर्तन को रोक पाना बहुत मुश्किल है। अत:  सरकार को चाहिए कि सरकार के "की" पदों पर केवल और केवल योग्य व कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों को ही पोस्ट करें। सभी को खुश करने की जगह जिन लोगों को अच्छा अनुभव हो और जिनका अच्छा सेवा रिकॉर्ड रहा है उनको ही "की"पदों पर लगाया जाए ताकि ऐसे लोग वास्तव में आॅर्गनाईजेशन का भला कर सके।
33 वर्ष की अधिकतम सेवा या 60 वर्ष की अायु पर सरकारी लोगों को सेवानिवृत्ति दे देनी चाहिए। क्योंकि जैसे-जैसे व्यक्ति की सेवा बढ़ती जाती है वह निर्णय लेने व कार्य करने की गति को धीमा कर देता है और अपने सेवानिवृत्ति के छोर पर आते समय लोगों से विभिन्न प्रकार के संबंध स्थापित करने की फिराक रहता है। साथ ही वह ऐसे निर्णय नहीं लेता है जिससे कि काम नहीं करने वाले लोगों को खराब लगे। वह सामान्यतः सभी को प्रसन्न रखना चाहता है, ताकि शांति बनी रहे।  इसी प्रकार जो भी अधिकारी या कर्मचारी उन्हें दिए गए कार्य को भलीभांति निष्पादित नहीं करता है तो ऐसे लोगों को सेवा से हटाते समय कतई संकोच नहीं करना चाहिए।
2. प्राइवेटाइजेशन करने से पहले सरकार की चीजों को सही करने का भरसक प्रयत्न किया जाए ताकि चीजें सरकार के नियंत्रण में रहकर अच्छी गुणवत्ता की बन सके।

3.  प्राइवेट सेक्टर में छोटी सेवा करने वाले लोगों का शोषण को बंद किया जाना चाहिए। उन्हें न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करवाया जाए और साथ ही इपीएफ और ईएसआई इत्यादि के प्रावधानों की अनुपालना करवाई जाये।

No comments:

Post a Comment

Thank you for reading and commenting.