Wednesday 31 July 2019

तीन_तलाक_को_अवैध_घोषित_करने_वाले_बिल_का_स्वागत_करना_चाहिये

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31.07.2019

तीन_तलाक_को_अवैध_घोषित_करने_वाले_बिल_का_स्वागत_करना_चाहिये

लाक तलाक तलाक कहकर महिलाओं को छोड़ देना आज के जमाने में कोई समझदारी की बात नहीं कही जा सकती है। जो लोग इस प्रचलन को सही बता रहे हैं उनकी सोच दकियानूसी है और वे धार्मिक कट्टरवाद से ग्रसित है या महज़ वोट की राजनीति कर रहे हैं। पार्लिमेंट में तीन तलाक को अवैध घोषित करने वाला बिल पारित हो चुका है। इससे महिलाओं को सुकून मिलेगा और उनके मन में एक सुरक्षा की भावना भी पैदा होगी कि उन्हें केवल तलाक तलाक तलाक कहकर घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता है, अब कानून उनके साथ है।
व्यर्थ की धार्मिक भावनाओं से जुड़े इस प्रकार के और कई पहलुओं पर नए कानून बनने चाहिए और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से दूर हटकर जय विज्ञान व जय अनुसंधान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 28 July 2019

मार्मुगाओ बंदरगाह, वास्को डि गामा, गोआ

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28.07.2019

मार्मुगाओ बंदरगाह, वास्को डि गामा, गोआ

#Coal_handling_at_ports
आज दिनांक 28 जुलाई 2019 को सुबह बीच पर जाने के बाद मार्मुगाओ बंदरगाह, वास्को द गामा, गोआ पर शिप से कोल की अनलोड़िग व मालगाड़ियो में साईलोज् के माध्यम से आॅटोमेटिक लोड़िग को देखा व समझा। विभिन्न इकोनॉमिक कारणों से हमारे देश में बाहर से कोल का आयात होता है जोकि बड़े-बड़े पानी के जहाजों में आता है। इन जहाजों की कैपेसिटी 80 हजार टन से 1 लाख 10 हजार टन तक की होती है अर्थात 23 से 31 माल गाड़ियों (59 BOXN, 3500 टन) के बराबर कोल एक जहाज में परिवहन होता है। कोयले को खाली करने के लिए विशेष अनलोडिंग मशीनें को प्रयुक्त किया जाता है। मशीन की एक बकेट में करीब एक वैगन में आने वाला कोयला (लगभग 60 टन) एक बार में खाली हो जाता है। इस प्रकार फिर भी शिप को खाली करने में करीब ढाई दिन का समय लगता है।कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से कोल पहले स्टेकर्स तक जाता है और वहां से लोडिंग के लिए बनाए गए साइलो में जाता है। साइलो में लगभग ऑटोमेटिक लोडिंग होती है जब वैगन को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है और एक वैगन करीब 2 से 3 मिनट में लोड हो जाता है और इस प्रकार संपूर्ण 59 वैगनो का रेक 2 से 3 घंटे में लोड होता है। लोड़ होते समय भी वैगनस् में ओवर लोड नहीं हो, इस बात का ध्यान रखा जाता है। उसके बाद भी संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रेक का इलेक्ट्रॉनिक इनमोशन वे ब्रिज पर वेमेंट होता है। 
रेलवे को प्रतिदिन लगभग 7 से 8 लोड़ेड रेख मिलते हैं एवं एक रेक का औसतन किराया लगभग ₹40 लाख होता है, इस प्रकार रेलवे को प्रतिदिन इस पोर्ट से लगभग 3 करोड़ रू. की आय होती है जोकि काफी महत्वपूर्ण है। 
सुझाव है कि जब भी आप कहीं बाहर जाए तो टेक्नोलॉजी से संबंधित चीजों को देखने व समझे का प्रयास करे ताकि आपका स्वयं का ज्ञान बढ़ेगा और दूसरों के ज्ञान बढ़ाने में भी मदद कर सकेगें तथा वैज्ञानिक सोच विकसित होगी। 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 27 July 2019

Castlerock to Kulem 27 KM

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27.07.2019

Castlerock to Kulem 27 KM

#Great_Indian_Railways
#Castlerock_to_Kulem 27 KM
#Western_Ghats

आज दिनांक 27 जुलाई 2019 को हुबली से कैसलराॅक, कैसलरॉक से कोल्लम व कोल्लम से वास्कोडिगामा तक 199 किलोमीटर क्रमशः मेल एक्सप्रेस, मालगाड़ी व पैसेंजर ट्रेन में पायदान निरीक्षण किया।
हुबली से शुरू होकर वास्कोडिगामा तक का सम्पूर्ण सेक्शन बहुत ही खूबसूरत है और गाड़ियों के ऑपरेशन के माध्यम से चैलेंजेज् से भरा हुआ है। इस सेक्शन में कैसलरॉक से कोल्लम तक 27 किलोमीटर में औसतन 1:49 अर्थात् हर 100 मीटर में 27 किलोमीटर तक जमीन का स्तर 2 मीटर से भी अधिक गहरा होता जाता है एवं कई स्थानों पर रूलिंग ग्रेडियेंट 1:37 है। कैसलरॉक स्टेशन का MSL(Mean Sea Level) 621 मीटर है और कोल्लम स्टेशन का MSL केवल 77 मीटर है, इस प्रकार 27 किलोमीटर की दूरी में MSL 544 मीटर यानी आधे किलोमीटर से अधिक जमीन का स्तर डाउन हो जाता है। 
भारतीय रेल गोवा के पोर्ट से कर्नाटक जोकि डेक्कन प्लेटू पर स्थित है वहां सामग्री ट्रांसपोर्ट करती है। इस खंड में जब गाड़ी लोडेड कंडीशन में डाउन दिशा में जाती है तो आॅटोमेटिक ब्रेक एप्लिकेशन वाले 5 लोको एक साथ गाड़ी के आगे लगाये जाते है। और जब गाड़ी अपग्रेडियन्ट में चढ़ाई करती है तो 2 लोको आगे व 3 लोको पीछे लगाये जाते हैं। साथ में मालगाडी़ में न्यूनतम 90% ब्रेक पावर सुनिश्चित की जाती है और गाड़ी की स्पीड 30 किमीप्रघ तक ही रखी जाती है। इस प्रकार के भयंकर घाट के टैरेन में ट्रेक मेंन्टेन करना भी एक जबरदस्त चैलेंज है। स्टाफ व उनके परिवार भी असहज वातावरण में निवास करते है। इन सब के बावजूद भी समर्पित रेल कर्मी पूर्ण निष्ठा से उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए देश की सेवा करते हैं। 
इसी सेक्शन में दूधसागर फॉल्स जो की बहुत ही खूबसूरत है आता है। आनेवाले दिनों में टूरिस्टस् के आवागमन व उनके सफर को खूबसूरत बनाने के लिए दक्षिण पश्चिम रेलवे विस्टाडोम कोचेस के साथ स्पेशल ट्रेन के परिचालन का प्लान कर रही है।
कैसलरॉक में रहने वाले जिन रेल कर्मियों ने यात्रा को सहज व यादगार बनाया उनको बहुत-बहुत धन्यवाद। 

Thursday 25 July 2019

प्राईवेटाइजेशन_Vs_सरकारी

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24.07.2019

प्राईवेटाइजेशन_Vs_सरकारी

सरकारी संस्थाओं का प्राइवेटाइजेशन छोटी ग्रेड की नौकरी लगने वाले बेरोजगारों के लि‍ए वास्तव में अशुभ समाचार है। सरकार में कार्यरत ग्रुप डी के कर्मचारियों को जो वर्तमान में वेतन व अन्य सुविधाएं मिलती है उससे प्राइवेट कार्य करने वाले लोगों को करीब एक तिहाई ही वेतन मिलता है और कोई जाॅब सिक्योरिटी भी नहीं होती है। ऐसे में क्या प्राइवेट कार्य करने वाले लोग उनके बच्चों को अच्छी पढ़ाई करवा सकेगें? क्या उन्हें पोष्टिक भोजन खिला सकेगें? क्या छोटा प्राइवेट कार्य करने वाले लोगों के बच्चों को अच्छा भारतीय नागरिक नहीं बनना चाहिए? क्या शहरों में एक इंसान की तरह रह पाएंगे? 

नियमित सरकारी कार्यो की आऊटसोर्सिंग करना एवं सरकारी संस्थाओं का प्राइवेटाइजेशन करना देश के युवाओं के हित में नहीं है। अत: सभी जिम्मेदार प्राधिकारियों को इस विषय की गंभीरता से समीक्षा करनी चाहिए और जो सरकारी कर्मचारी काम नहीं करते है उनके विरूद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए परन्तु काम नहीं करने की बात पर जो लोग अभी सरकारी जाॅब में है ही नहीं, उनके रास्ते बंद करना उचित नहीं है।
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 21 July 2019

हम्पी_किष्किन्धा

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21.07.2019

#हम्पी_किष्किन्धा

आज दक्षिण पश्चिम रेलवे में कार्यरत साथियों के साथ हम्पी क्षेत्र, जिसे पहले किष्किन्धा के नाम से जाना जाता था, में पिकनिक स्वरूप आउटिंग की। वहां की चीजों को देखकर लगा कि वास्तव में भारत पहले कला के क्षेत्र में बहुत ही अग्रणी व धनाढ्य था। लोगों में गजब की स्किल व मेहनत करने का जज्बा रहा होगा। परन्तु धीरे धीरे कला विलुप्त होती गई। इसके पीछे मुख्य कारणों में से एक कलाकारों व काम करने वालों का समाज में कम मान सम्मान होना भी किसी हद तक रहा है। आज देश में स्किल इतनी कम हो गई कि प्रधानमंत्री को स्किल इंडिया पर विशेष बल देना पड़ रहा है। यदि देश में स्किल बढ़ानी है तो काम करने वालों का समाज में उचित मान सम्मान करना होगा व उन्हें अच्छा मानदेय देना होगा। 
किष्किन्धा आज जो हम्पी है, वाल्मीकि रामायण में पहले बाली तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है।
आज के संदर्भ में यह राज्य तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के इलाके में माना गया है। रामायण के काल में विन्ध्याचल पर्वत माला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में एक घना वन फैला हुआ था जिसका नाम था दण्डक वन। उसी वन में यह राज्य था। इसी क्षेत्र में अंजना पर्वत पर हनुमान जी का जन्म होना बताया जाता है। 
हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। यह तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है और अब केवल खंडहरों के रूप में ही अवशेष है। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को के विश्व के विरासत स्थलों में शामिल किया गया है। हर साल यहाँ हज़ारों की संख्या में पर्यटक और तीर्थयात्री आते हैं। हम्पी का विशाल फैलाव गोल चट्टानों के टीलों में विस्तृत है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक स्मारक चिह्न हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष आदि असंख्य इमारतें हैं।
वास्तव में देखने योग्य जगह है। जिन साथियों ने समय निकालकर मेरी यात्रा को सहज व सुखद बनाया, उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद।
रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 20 July 2019

सोनभद्र आदिवासी नरसंहार के लिए जिम्मेदार कौन ?

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19.07.2019

सोनभद्र आदिवासी नरसंहार के लिए जिम्मेदार कौन ? 

दरअसल मामला तब का है जब 1955 में बिहार कैडर के एक आईएएस अफसर प्रभात कुमार मिश्रा इस इलाके के कलेक्टर बन कर आये उन्होंने सोनभद्र जिले की मूर्तियां पंचायत के उम्भा और सपही गाँव के गोंड आदिवासियों की लगभग 600 बीघा जमीन प्रशासन के साथ मिलकर अपने नाम करा ली। 1989 में यह जमीन आईएएस की पत्नी, बच्चो और आदर्श सोसाइटी के नाम करा दी।
गौंड आदिवासी इस ज़मीन पर पिछले हजारों सालों से रहते आ रहे थे लेकिन सरकारों की लापरवाही के चलते उन्हें भूमि पर पट्टे नही दिए गए थे। ऐसे में आदिवासी जमीन को जोत, बो रहे थे लेकिन मालिक प्रसाशन की मदद से मिश्रा जी बन गए। 2006 के वनाधिकार कानून के बाद जब आदिवासियों को जमीन पर पट्टे देने का मामला आया। तब पूर्व आईएएस मिश्रा की बेटी ने 160 बीघा जमीन कुछ वर्ष पूर्व उसी गाँव के प्रधान यज्ञदत्त भूरिया को बेच दी।
जब तक जमीन आईएएस नाम पर थी उसके आदमी इस आदिवासियों से लगान (क़ानूनी तौर पर लगान 1952 बंद हो गया) बसूल करते रहे। पूर्व आईएएस की बेटी जमीन से आदिवासियों को बेदखल करना चाहती थी लेकिन अकेले संभव नही था ऐसे में 600 बीघा जमीन में से एक हिस्सा 160 बीघा दबंगों को औने पौने दामों पर बेच दिया ताकि बाकी जमीन खाली कराई जा सके।
पिछले कुछ वर्ष पूर्व से यज्ञदत्त भूरिया इस जमीन पर कब्जा करना चाहता था लेकिन आदिवासी जमीन खाली करने को तैयार नही थे इसी घटना ने नरसंहार की पृष्ठभूमि तैयार की।
घटना के दिन 18 जुलाई 2019 को जमीन को कब्जाने के के लिए यज्ञदत्त भूरिया लगभग 30-32 ट्रेक्टर ट्रॉलियों में भरकर लगभग 200 लोगों के साथ जमीन पर कब्ज़ा करने पहुंचा और जब आदिवासियों ने प्रतिरोध किया तो फायरिंग की परिणाम स्वरुप 10 आदिवासी घटना स्थल पर मारे गए, 4 गंभीर हालत में है, 25 घायल है जिनका इलाज अभी चल रहा है।
अब इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार कौन :-
1 :- आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा ? जिसने प्रशासन के साथ मिलकर के आदिवासियों की जमीन अपने नाम की ? लेकिन ऐसे तो हजारों मिश्रा है जिन्होंने आदिवासियों की जमीनें अपने या अपने चहेतों के नाम करा राखी है।
2 गाँव का प्रधान यज्ञदत्त भूरिया और उसके लोग ? जिन्होंने आदिवासियों पर गोलीबारी की। तो उत्तर है नही। क्योकि हर आदिवासी बाहुल्य गाँव में एक यज्ञदत्त भूरिया है और आये दिन ऐसे घटनाओ को अंजाम फेटे है लेकिन कार्यवाही के नाम पर कुछ नही होता।
3 सरकारें जिन्होंने आदिवासियों को अभी तक जमीन पर मालिकाना हक़ नहीं दिया ?
4. आदिवासी जो कि सदियों से वहां रहते आ रहे हैं और जमीन के अधिकार का हक मांगते रहे हैं?
सरकार, नेताओं व देश के हर आम नागरिक को सोचना व समझना होगा कि आखिरकार हमारे ही देश के आदिवासियों को उनका न्याय संगत हक को क्यों नहीं दिया जा रहा है? उनको हक दिलवाने की मुहिम को पवित्र भावना से परिणाम मिलने तक आगे बढ़ाना होगा।
रघुवीर प्रसाद मीना

Friday 19 July 2019

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 10 आदिवासियों की हत्या।

rpmwu245
20190719

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 10 आदिवासियों की हत्या।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के घोरावल तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत मूर्तियां के उभ्भा गांव में गोंड़ आदिवासियों की 600 बीघा जमीन को लूटने के लिए हत्यारे लोगों ने उन पर गोंलियां बरसायी, जिसमें तीन महिला समेत 10 गोंड आदिवासी मारे गये और 25 लोग घायल हो गए। देश की आजादी से पहले से ही गोंड़ आदिवासी पुश्तों से उस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं लेकिन उन्हें आज तक पट्टा नहीं दिया गया। बल्कि सरकारी पदाधिकारियों की मिली-भगत से उक्त जमीन को एक नौकरशाह और ट्रस्ट के नाम पर लिख लिया गया उसके बाद जमीन को किसी और को बेच दिया गया। जमीन का खरीददार व उसके किराये के लोग दल-बल और ट्रक्टरो में अपने साथियों को लेकर जमीन जोतने आया और आदिवासियों द्वारा विरोध जताने पर उन पर गोलियां बरसायी गयी।
जब देश आजाद हुआ था उस समय के राजा महाराजाओं के पास महल, अकूत दौलत व बड़ी मात्रा में जमीने उनके पास छोड़ दी गई जबकि आदिवासी जो कि पहाड़ और जंगल में रहते हैं उनके नाम पर अभी तक भी जमीने आवंटित नहीं की गई है। यही कारण है कि आदिवासियों की जमीन आसानी से दबंग लोगों द्वारा छीन ली जाती है और आदिवासी कुछ नहीं कर पाते। वर्ष 2006 में वन अधिकार अधिनियम आने के पश्चात अभी तक भी अनेकों राज्यों में वन अधिकार अधिनियम की पूर्णतः अनुपालना नहीं हो पाई है और आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल करने के प्रकरण सामने आते रहते हैं। कुछ दिन पूर्व माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे आदेश जारी किए थे कि जिन आदिवासियों के भूमि आवंटन के प्रकरण रद्द कर दिए गए हैं उन्हें जंगल से बेदखल कर दिया जाए परंतु सरकार ने दया का भाव दिखाते हुए अपील की जिस पर और मौलत मिल गई है।
इस विषय में निम्न कार्यवाही की आवश्यकता है -
1. आदिवासियों की भूमि को छीनने वाले लोगों के विरूध्द प्रशासन द्वारा त्वरित कड़ी कार्रवाई की जाये।
2. केंद्र व राज्य सरकारों को दया का भाव दिखाते हुए आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम के तहत जल्द ही पुश्तैनी भूमि के कानूनी अधिकार के दस्तावेज प्रदान करवायें।
3. सभी जन नेताओं खासकर आदिवासियों को चाहिए कि वे आदिवासियों को मिलने वाले भूमि अधिकार पत्र आबंटन की मॉनिटरिंग करें और जल्द से जल्द उन्हें अधिकार पत्र दिलवाये।
4. समाजसेवी व पढ़े लिखे लोगों को चाहिए कि एक अभियान चलाकर अपने अपने या जहां सम्भव हो सके वहां गांव, तहसील व जिला में देखें कि कितने भूमि अधिकार से संबंधित प्रकरण लंबित हैं उनकी स्वयं समीक्षा करें एवं पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर व क्षेत्र के नेताओं की मदद लेकर उन्हें  भूमि अधिकार पत्र दिलवाने में मदद करें।
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 13 July 2019

गरीबी मिटाने के लिए आत्ममंथन

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20190712

गरीबी मिटाने के लिए आत्ममंथन 

देश में 50% आदिवासी व 33% दलित न मुस्लिम गरीब है। यह विचारणीय बिन्दु है। देश के हर नागरिक व सरकारों की साझा जिम्मेदारी है कि वह इन वर्गो की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए त्वरित प्रभावी कदम उठाए।
दूसरों को दोष देने की वजाय इन वर्गो के लोगों को स्वयं को गहराई से सोचना तथा अपने विचारों, भावनाओं आदि का परीक्षण करने, आत्म-मंथन, आत्म- विश्लेषण करने की ज्यादा जरूरत है कि आखिरकार ऐसा क्यों है? मुझे तो ऐसी परिस्थिति के लिए निम्नलिखित मुद्दे काफी जिम्मेदार लगते हैं -
1.धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) को ज्यादा गले लगाना। इसके कारण सफलता के लिए स्वयं की मेहनत से अधिक देवीय शक्तियों पर अधिक विश्वास करते हैं, बचत को शिक्षा पर खर्च नहीं करके पदयात्रा, कथा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान इत्यादि पर खर्च करते हैं।
2. कमजोर आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए रोजगार हेतु घर से दूर नहीं जाना।
3. इन वर्गो के अधिकारी व कर्मचारी भी मजदूरों के कल्याण से जुड़े सरकारी पहलूओं जैसे न्यूनतम मजदूरी का भुगतान, ईपीएफ व ईएसआई की कटौती इत्यादि को इम्लेमेंट नहीं करवाते हैं।
4 परम्परागत चीजों पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से खेती को भी केवल पारम्परिक ढ़ग से ही करते है, नई तकनीक का प्रयोग नहीं करते हैं। खेती में अब लागत अधिक होने के कारण बचत नहीं हो पाती है।
5. जो लोग किसान व मजदूरों के हितों पर कुठाराघात करते हैं, उनके विरूद्ध आवाज नहीं उठाते हैं।
6.जो भी समाज अग्रणी है उनकी अच्छाईयां ग्रहण करें और स्वयं को अग्रणी बनाने की सोचे।
7. सरकार बनाने के लिए चुनाव जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था है उससे दूर रहते हैं या वोट को लालच के आधार पर किसी को भी दे देते हैं।
इन वर्गो के पढ़े लिखे व अग्रणी लोगों की और ज्यादा जिम्मेदारी है कि वे कमजोर व कम शिक्षित लोगों की अवश्य मदद करे व उन्हें सही दिशा में अग्रेसित करे।
साथ में सरकार को भी चाहिये कि देश के हर नागरिक के उत्थान हेतु माहौल बनायें व जो लोग स्वार्थवश ऐसा नहीं होने देते हैं, उनकी पहचान कर उनके प्रति कड़ा रुख अख्तियार करें।
कृपया आप भी इस विषय में अपने विचार शैयर करें।

Monday 8 July 2019

अध्ययन केन्द्र, समय की जरूरत।

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20190708

गांव में चाय पीने की जगह होती है, ताश खेलने की जगह होती है, हुक्का पीने के लिए जगह होती है, पूजापाठ के लिए मंदिर होते हैं परंतु पढ़ने के लिए कोई सार्वजनिक जगह नहीं होती है। गांव में बच्चे उनके घरों पर विभिन्न प्रकार के व्यवधानों के बीच बड़ी मुश्किल से पढ़ाई कर पाते है।
आज के समय में यदि सबसे ज्यादा जरूरत है तो वह गांव में पढ़ने की जगह बनाने की है। हम लोग मंदिर, कथा, भागवत, पदयात्रा इत्यादि पर जो खर्च करते हैं यदि इनके स्थान पर गांवों में वातानुकूलित अध्ययन केंद्र जिसमें लाइब्रेरी और बच्चों को बैठ कर  पढ़ने का एक माहौल बनाये तो मुझे लगता है कि गांव में रहने वाले बच्चों की ज्यादा तरक्की होगी। ऐसा होने से देश के विकास में इस प्रकार के अध्ययन केंद्र बहुत अधिक लाभकारी साबित होंगे।
आओ प्रण करें कि हम अपने पैसे को धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषणो (DAP) के स्थान पर अध्ययन केंद्र बनाने में इन्वेस्ट करें ताकि भावी पीढ़ियों को इनका लाभ मिल सके और देश के विकास की गति तेज हो सके। प्रधानमंत्री जी का नारा जय जवान, जय किसान से साथ जय विज्ञान और जय अनुसंधान साकार हो सके।
सांसद, विधायक व अन्य जन प्रतिनिधि भी उनके व सीएसआर के फंड से अध्ययन केन्द्र बनवाये।
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 3 July 2019

आदिवासियों की व्यथा।

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20190702

आदिवासियों_की_व्यथा
देश में आदिवासियों की स्थिति यदि आज भी देखी जाए तो सबसे दयनीय है। उन्हें जंगल व पहाड़ से जंगली जानवरों की भांति खदेड़ दिया जाता है। हर भारतीय नागरिक की जिम्मेदारी है कि उनकी ऐसे होने वाली दशा को रोकने के लिए स्वयं एवं सामूहिक प्रयत्न में अवश्य ही भागीदारी निभाएं।
जब देश आजाद हुआ था तब राजा महाराजाओं को उनके महल, भूमि व अकूत संपत्ति उनके जीवन की सुगमता के लिए उनके पास छोड़ दी जबकि उनमें से कईयों ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया।  दूसरी और आदिवासियों ने कई बार अनेकों स्थानों पर आजादी की लड़ाई में अपनी जान न्यौछावर की, फिर भी उनके जंगल व पहाड़ पर रहने को कानून संवत नहीं माना गया। ये लोग जहां रहते हैं वहां बहुत लंबे समय से रहते आ रहे हैं।
वर्ष 2006 में वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को उनके रहने के स्थान व उनके जीविकोपार्जन हेतु जमीन के अधिकार उन्हें देने थे परंतु विभिन्न बहानों से आज भी करोड़ों आदिवासियों को उनके रहने व खेती करने के अधिकार नहीं दिये जा रहे है। साथ में बेदखली की वजह से उन्हें उनके छोटे बच्चों को गिर्वी रखना पड़ रहा है।
राज्यसभा सांसद डाॅ किरोड़ी लाल मीना जी ने दौ बार इस मुद्दे को संसद में उठाकर बहुत ही सराहनीय व आवश्यक काम किया है।
हम सभी की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आदिवासियों को उनका हक दिलवाया जाए। जंगल में जहां वे रह रहे हैं और जिस भूमि पर खेती कर रहे हैं उनके अधिकार उन्हें दिलाए जाएं ताकि वे एक सम्मानजनक जीवन यापन करके उनके बच्चों को पढ़ा सके और भारत देश की मैनस्ट्रीम से कालांतर में जुड़ सकें।
रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 1 July 2019

अंतर्राष्ट्रीय_विश्व_आदिवासी_दिवस 9 अगस्त 2019

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01.07.2019

अंतर्राष्ट्रीय_विश्व_आदिवासी_दिवस 9 अगस्त 2019
संपूर्ण विश्व में अंतरराष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाया जाता है। आदिवासी अधिकारियों की पंजीकृत संस्था अरावली विचार मंच की ओर से पिछले 5 वर्षों से इस दिन को पर्व की भांति हर्षोल्लास के साथ  लगातार मनाया जा रहा है। इस दिन आदिवासी उनके अधिकारों एवं आदिवासियों की भविष्य की योजनाओं के बारे में विचार-विमर्श करते हैं ताकि आदिवासियों की विकास की एक दिशा तय हो सके। सरकार को चाहिए कि इस महत्वपूर्ण दिवस को पब्लिक होलीडे डिक्लेअर करें।
वर्ष 2019 के विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर हम एक डिमांड जोरदार तरीके से हर जगह रखें कि भारत के प्रत्येक राज्य की राजधानी में "#आदिवासी_सांस्कृतिक_केंद्र" की स्थापना हो जिनमें ऑडिटोरियम, मीटिंग हॉल्स, आर्ट डिस्प्ले गैलेरी, खेलकूद के मैदान, गेस्ट हाउस, हॉस्टल्स, व लाइब्रेरी इत्यादि की व्यवस्था और संचालन सरकार स्वयं करें।
सोशल मीडिया अर्थात् टि्वटर, ईमेल, वाट्सएप, फेसबुक इत्यादि के माध्यम से सरकार से इस विषय में मांग करे। 
रघुवीर प्रसाद मीना