Monday 19 December 2016

A very very serious and dangerously damaging issue.....requiring urgent attention of everyone. यदि हम समाज का वास्तव में भला करना चाहते है तो गाँवों में फैल रही स्मैक के नशे की लत को रोकने में सभी आवश्यक रूप से अपनी जिम्मेदारी निभाये।

rpmwu106  
18.12.2016
A very very serious and dangerously damaging issue.....requiring urgent attention of everyone.
यदि हम समाज का वास्तव में भला करना चाहते है तो गाँवों में फैल रही स्मैक के नशे की लत को रोकने में सभी आवश्यक रूप से अपनी जिम्मेदारी निभाये।
आज एक गाँव की दो बुजुर्ग महिलाओं से बात करने के दौरान बडी़ खतरनाक बात पता चली कि गढ़ी, गाँबडा़, काडाखाना, रूँद का पुरा, कोटडा इत्यादि गाँवों के बेरोजगार युवा शराब के अलावा स्मैक का नशा करते है। इनकी सँख्या काफी अधिक है। इस प्रकार के लोगो के घरवाले खासकर उनकी पत्नियाँ बहुत अधिक परेशान रहती है, वे नशे की लत को छुडा़ने के लिए अंधविश्वास के चलते देवी देवताओं पर जाती है और बहुत जतन करती है कि किसी तरह से उनके पतियों की लत छुट जाये। ऐसे युवाओं की जिन्दगी घोर अंधकारमय है। कृपया संलग्न विडियो को अवश्य देखे https://www.facebook.com/raghuveer.p.meena/videos/1179092452139174/ ।

यदि यह लत फैलती है तो हमारी भावी पीढ़ी का भविष्य भयंकर अंधकारमय होना तय है। और हम फेसबुक पर नेताओं की भलाई बुराई में ही अपना अमूल्य समय नष्ट करते रहेगें।
हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि हम स्मैक बेचने वाले नेटवर्क के क्रियाकलापों को रोके, उसे कमजोर करने के लिए पुलिस को सुराग दे व उसकी मदद करें, प्रभावशाली व्यक्तियों को इस लत के विरूद्ध आवाज उठाने के लिये प्रोत्साहित करे।
जिन लोगो को लत लग चुकी है उनके उपचार के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट हेतु सलाह दे व सहायता करें।
रघुवीर प्रसाद मीना


Friday 16 December 2016

सरकारी/गैरसरकारी विभागों व संस्थाओं में सेवा करने वाले व्यक्तियों के लिए एक उपयोगी सलाह।

rpmwu105 
16.12.2016 
सरकारी/गैरसरकारी विभागों व संस्थाओं में सेवा करने वाले व्यक्तियों के लिए एक उपयोगी सलाह। 

अक्सर देखा जाता है कि विभिन्न संस्थाओं में अधिकारियों व कर्मचारियों के संगठन बने होते हैं, परन्तु साधारण दिनों में अधिकतर लोग उनके क्रियाकलापों में रूचि नहीं दर्शातें और जब आवश्यकता पड़ती है तो वे विभिन्न लोगों व संगठनों के पदाधिकारियों से जाकर सहायता की अपेक्षा रखते हैं।

संगठन में संख्या बल व रूचि से कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोगों का बहुत महत्त्व होता है, उन्हीं से संगठन मजबूत होते हैं। प्रशासन मजबूत संगठनों की ही परवाह करता है। अतः प्रशासन से सही न्याय पाने हेतु संगठनों को मजबूत करना आवश्यक है।

सेवारत लोगों को चाहिए कि अनुशासित सेवा के साथ-साथ वे संगठनों के संचालन व गतिविधियों में अधिक से अधिक भाग लें एवं सक्रिय होकर उनसे जुड़े रहें ताकि आवश्यकता पड़ने पर संगठन की ओर से उन्हें भी अपेक्षित सहायता मिल सके। 

एक और बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि किस संगठन का सपोर्ट करे ? आज के ज़माने में व्यक्तिगत नुकसान करना तो मुश्किल है परन्तु नीतिगत मुद्दों जैसे पदोनत्ति में आरक्षण तथा स्थानातरण की नीति इत्यादि से वर्ग विशेष के कर्मचारियों को भारी क्षति पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। अत: चाहिए कि आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों के संगठन को मजबूत करे ताकि वह आपके हक़ के लिए सक्षमता से लड़ सके। 

रघुवीर प्रसाद मीना

लोग मानते हैं माइट इज राइट Might is Right जबकि वास्तव में होता है Right is Might.

rpmwu104 
16.12.2016
लोग मानते हैं माइट इज राइट Might is Right जबकि वास्तव में होता है Right is Might.

जब कोई बड़ा व्यक्ति किसी साधारण व्यक्ति के साथ गलत कर देता है और गलत करने वाले का काफी दिनों तक नुकसान नहीं होता है तो अक्सर लोग कहते हैं कि Might is Right अर्थात् जिसकी लाठी उसकी भैंस।

गहराई से यदि सोचें तो पता चलता है कि वास्तविकता इसके विपरीत है। यानि यदि बात सही है तो उसमें बहुत ताकत होती है और अन्ततः सही बात की ही विजय होती है। रामायण, महाभारत या अन्य धर्म शास्त्रों को देखें तो हमेशा सही की जीत ही दर्शायी गई है। सही पर लड़ने वाले चरित्र हमेशा कमजोर व दुर्बल थे जबकि जो गलत थे व जिनके साथ लड़ाई की गई वे बहुत शक्तिशाली होने के बावजूद भी गलती पर होने के कारण अन्ततः हार गये। रामायण में राम के पास रावण की तुलना में बहुत कम संसाधन व शक्तिबल था, फिर भी राम की विजय हुई। इसी प्रकार महाभारत में कौरवों की अपेक्षा पांड्वों के पास कुछ भी नहीं था फिर भी सही पर होने के कारण उनकी विजय हुई।

बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने जब अस्पृश्यता के विरूध जंग छेड़ी थी तो उस समय उनका मुद्दा सही था और अस्पृश्यता करने वाले गलत थे। बाबा साहब व उनके सहयोगी हर प्रकार से कमजोर थे परन्तु मुद्दा सही होने के कारण वे अस्पृश्यता करने वाले ताकतवर व प्रभावी लोगों से भी लड़ाई में जीते और अन्ततः संविधान के माध्यम से अस्पृश्यता को समाप्त किया गया।

उक्त विवेचना के मद्देनजर यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि यदि विषय या मुद्दा सही है या जनहित का है तो उसकी जीत अवश्य ही होगी, विरोधियों की ताकत से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। सही व जनहित के कार्यों के लिए गलत करने वाले ताकतवर लोगों से भी लड़ा जा सकता है। अन्ततः विजय सही मुद्दे पर लड़ने वाले व्यक्ति की ही सुनिश्चित है।

रघुवीर प्रसाद मीना

Thursday 15 December 2016

दूसरों का अच्छा नहीं सोचने वाले स्वयं का भी भला नहीं कर सकते।

rpmwu103
15.12.2016
दूसरों का अच्छा नहीं सोचने वाले स्वयं का भी भला नहीं कर सकते।

प्रत्येक मनुष्य के मन में हमेशा दो तरह के भाव चलते रहते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति सुबह जल्दी जागने की अपेक्षा से शाम को जल्दी सो जाता है तो जब सुबह अलार्म बजता है तो एक भाव कहेगा कि सोते वक्त तय किया था कि जल्दी उठा जाये तभी दूसरा भाव कहेगा कि थोड़ा और सो लो।  ऐसी स्थिति में व्यक्ति उसके ज्यादा भारी भाव  के अनुसार निर्णय करता है। यदि अच्छा भाव अर्थात् जल्दी जागने की कहने वाला ज्यादा सामर्थ्य हुआ तो व्यक्ति जग जायेगा और यदि दूसरा भाव ज्यादा भारी हुआ तो वह सोता रहेगा। 

इसी प्रकार विभिन्न परिस्थितियों जैसे गलत की शिकायत करू या नहीं, घर के बाहर या रास्ते में कूड़ा फेंकू या नहीं, जाति धर्म की अनदेखी करके सही का साथ दूँ या नहीं, संस्था के अनुशासन से यदि स्वयं को नुकसान  होता है तो उसका समर्थन करूँ या नहीं इत्यादि में प्रत्येक मनुष्य के मन में दोनों भाव काम करते रहते हैं और जो भी भाव भारी हो जाता है वह उसी के अनुसार निर्णय ले लेता है।

यदि व्यक्ति उसके आचरण व दैनिक क्रियाकलापों में दूसरों के साथ न्याय व करूणापूर्ण सोच रखता है तो उसका अच्छा भाव मजबूत होता जायेगा और अच्छे भाव के प्रबल होने से दुविधा के समय स्वयं सही निर्णय लेगा। और यदि वह दुसरों के साथ गलत कराता है तो उसका स्वमं का ख़राब वाला अन्तर्भाव प्रबल बनेगा जो कि उसे स्वमं हेतु ख़राब निर्णय लेने के लिए बाध्य करेगा।  

अतः यदि व्यक्ति स्वमं का भला चाहता है तो आवश्यक है कि वह दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करे तथा न्याय व करूणायुक्त सोच रखे ताकि उसका अच्छा अन्तर्भाव मजबूत बने और वह दूसरों के साथ-साथ अपना स्वमं का भी भला करे। 

रघुवीर प्रसाद मीना



Tuesday 13 December 2016

गजब की बिडम्वना - गरीब या साधारण परिवार से आने वाले लोग उनके जैसे या कमजोर लोगो पर ही जोर चलाते है।

rpmwu102
10.12.2016
गजब की बिडम्वना - गरीब या साधारण परिवार से आने वाले लोग उनके जैसे या कमजोर लोगो पर ही जोर चलाते है।

कल बिहार के भागलपुर में गरीब व कमजोर वर्ग की महिलाओं व पुरूषों पर लाठीचार्ज के दौरान पुलिस ने भयंकर त्रासदी बरती। आये दिन देखने में आता है कि पुलिस वाले मोटर साईकिल, स्कूटर, स्कूटी, अन्य छोटे वाहन या लोडिंग वाहन वालो को रोड पर रोक कर जाँच करती रहती है एवं छोटी मोटी गलती होने पर भी बिना चालान के नहीं छोडती है। दूसरी ओर बडे व महँगे वाहन वालो को वह सामान्यत: तो रोकती ही नहीं है और यदि रोक लेती है तो किसी प्रभावकारी व्यक्ति से फोन आने पर बिना चालान छोड देती है।

यह हाल पुलिस का ही नहीं वरन् सभी विभागों का ही है। जब कोई बडा आदमी किसी कार्यालय में जाता है तो उस पर समय इत्यादि के कोई नियम नहीं लगते है जबकि गरीब व कमजोर पर हर नियम लागू किये जाते है। उनके लिए मिलने का समय निर्धारित होता है, जबकि बडों के लिए ऐसा नहीं होता है। बडे व्यक्ति को छोटीमोटी फीस देने की भी जरूरत नहीं होती है, कहते सहाब आप रहने दो आप से कोई फीस लेगें क्या? जबकि छोटे लोगो से 5 या 10 रू लेना भी नितान्त आवश्यक समझा जाता है।

अब सोचो ऐसा कौन कर रहा है? अधिकतर वे ही लोग कर रहे है जो गरीब या साधारण परिवार से आते है। ऐसे लोगो को गरीब, कमजोर व पिछड़ों की मदद करनी चाहिये परन्तु वे ऐसा नहीं करके विपरीत करते है। यह गंभीर विचारणीय बिन्दु है जिस पर हम सभी को सोचना होगा एवम् अपनी कार्य शैली में बदलाव करके बडों के साथ साथ गरीब, कमजोर व पिछडो की मदद करनी चाहिये, उन पर अत्याचार तो कदापी नहीं करना चाहिये।

रघुवीर प्रसाद मीना

सब-स्टैडर्ड क्वालिटी या खराब कार्यो को स्वीकार करना प्रदर्शित करता है कि या तो व्यक्ति के ज्ञान में कमी है या फिर उसका चरित्र कमजोर है। It reflects bad on the character of the person accepting the poor or sub-standard quality.

rpmwu101
09.12.2016
सब-स्टैडर्ड क्वालिटी या खराब कार्यो को स्वीकार करना प्रदर्शित करता है कि या तो व्यक्ति के ज्ञान में कमी है या फिर उसका चरित्र कमजोर है। It reflects bad on the character of the person accepting the poor or sub-standard quality.

हमारे देश में बनी चीजों की क्वालिटी या फिनिशिंग उतनी अच्छी नहीं होती है जितनी विदेशों में बनी चीजों की होती है। हमारे देश में आदत सी बन गई है कि हम सब-स्टैडर्ड चीजो को भी बिना ज्यादा प्रतिरोध के स्वीकार कर लेते है, लोगो से और बेहतर क्वालिटी देने की अपेक्षा ही नहीं करते है।

उत्पाद या कार्य की खराब क्वालिटी के लिये कार्य करने वालों से ज्यादा जिम्मेदार उसे स्वीकार करने वाले होते है। यदि किसी कर्मचारी द्वारा किया गया कार्य खराब गुणवत्ता का है और निरीक्षण करने वाला पर्यवेक्षक उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिये बिना उसे स्वीकार कर लेता है तो यह निश्चित है कि उस कर्मचारी के कार्य की गुणवत्ता में कभी भी सुधार नहीं होगा। इसी प्रकार यदि ठेकेदार द्वारा किये गये कार्य की गुणवत्ता खराब है और जाँच करने वाला निरीक्षक अज्ञानता या प्रलोभन वश उसे स्वीकार कर लेता है तो कार्य की गुणवत्ता में सुधार की सम्भावना बहुत कम रहती है।

अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे खराब व सब-स्टैडर्ड कार्य को स्वीकार करना कम कर दे और कालान्तर में बंद ही कर दे। स्वयं व अधिनस्त कार्य करने वाले लोगों के ज्ञान व कौशल में सुधार किया जाये। लौभ-लालच को कम करे व ठेके पर होने वाले कार्यो की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार करवायें।

उत्पाद व कार्यो की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु निम्नलिखित बातें काफी सहायक हो सकते है-
1. व्यक्ति की छवि - लोगो को लगना चाहिये कि आप खराब गुणवत्ता के उत्पाद या कार्य स्वीकार ही नहीं करते है।
2. जैसा आप चाहते है, इच्छा करते है उसके बारे में कार्य करने वालों को स्पष्ट दिशानिर्देश दे दिये जाये।
3. कार्य करने के लिये आवश्यक संसाधन मुहैया करवाये जाये।
4. खराब कार्य करने वालों को प्रशिक्षण व अच्छा कार्य करने वालों को प्रोत्साहन दिया जाये।
5. ठेके पर कराये जाने वाले कार्यो को भी समझदारी से करवाया जाये, बेबजह न तो ठेकेदार को परेशान करे और न ही खराब गुणवत्ता स्वीकार करे। लिखित में नियमित कार्यवाही की जाये।

रघुवीर प्रसाद मीना

देश की बडी जनसंख्याँ की खराब आर्थिक स्थिति के लिए बिचौलिए भी है प्राथमिक रूप से जिम्मेदार।

rpmwu100
09.12.2016
देश की बडी जनसंख्याँ की खराब आर्थिक स्थिति के लिए बिचौलिए भी है प्राथमिक रूप से जिम्मेदार।

बिचौलिए किसान, मजदूर व सामान्य उपभोक्ता के हक को मारते है। मंडी में काम करने वाले बिचौलिए किसान की कडी मेहनत से होने वाली आमदनी से बहुत ज्यादा मार्जिन रखते है। उपभोक्ता तक सामान के पहुँचने तक वह कई लेयरस् में बिचौलियों के माध्यम से गुजरता है। विज्ञापनों के कारण भी सामान की काँस्ट बढती है। यदि किसान 1 रू कमाता है तो बिचौलिए 4 से 10 रू या उससे भी ज्यादा कमाते हैं। एक एस्टिमेट के अनुसार 30 रू की चीज उपभोक्ता को 100 रू में मिलती है।

इसी प्रकार मजदूरों के हक को भी ठेकेदार मारते है। कार्य करवाने वाले विभाग या व्यक्ति व मजदूरो के बीच ठेकेदार भारी मार्जिन रखते है। उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं देते है। मजदूर उनके बच्चो को ठीक ठाक स्कूल तक में भी नहीं पढा पाते है।

सरकार को चाहिये कि बिचौलियों के मार्जिन पर अंकुश लगाये व बनाये गये नियमों की क्रियान्वित करवाये। किसान की फसल के लिए न्यूनतम सपोर्ट प्राईस व मजदूरो के लिए न्यूनतम वेतन को बढ़ाये। सरकार के ऊँचे पदों पर कार्य करने वाले सभी लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे किसान, मजदूर व सामान्य उपभोक्ता को उनका हक दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करे।

रघुवीर प्रसाद मीना

"Tit for Tat" (जैसा को तैसा) is not a good policy, one should maintain his/her dignity...

rpmwu99
08.12.2016
"Tit for Tat" (जैसा को तैसा) is not a good policy, one should maintain his/her dignity...

Generally while doing something undignified people say that it was essential for people like that OR they justify saying "tit for tat" without realising that in the process they are lowering their personality and indulging in the actions which are not palatable to the standards of his/her behaviour.

Suppose someone has not behaved in a good and befitting manner, let us say he/she has exhibited "c-category" behaviour and you rate your behaviour as much superior in "A-category". Now if you apply "tit for tat" philosophy then you are lowering the level of your behaviour from A to C category which is contrary to your way of life and principles.

Therefore one should avoid applying this "tit for tat" theory and always try to maintain dignity of his/her personality.

Raghuveer Prasad Meena

Do not make yourself C-Category Unloadable...

rpmwu98
07.12.2016
Do not make yourself C-Category Unloadable...

In railways when wagons become unloadable due to heavy damages then they are marked for C-Category repairs and taken out of trains and sent to Workshops for repairs.

Wagons become unloadble due to fault or negligence of others during loading but in life one can see many persons who try to become unloadable i.e. they like to pretend that they are not capable of doing work and try to find such ways and means that seniors avoid asking them to work. Such kind of people are making themselves unloadable with the intention to avoid work and responsibilities.

This kind of life style harms the most none other than them, such people are seldom respected in the office and in society, even family as well. So never try to shirk responsibilities, one should play positive role in the system and always try to perform best of the abilities and continuously strive for improving the knowledge and the skills of oneself.

People should view one as an ASSET rather than Liability in the System.

Raghuveer Prasad Meena