Saturday 10 September 2016

कैसे समाज के बच्चों को सफाईवाला बनने से बचाया जाये?

rpmwu85
10.09.2016
मीना समुदाय के लोगों की सबसे सकारात्मक बात जो मैंने नोट की है वह यह है कि हमारे लोगो के मन में कोई हीन भावना नहीं है| गाँव में आज भी लोग दूसरों को इसीविसी या सिटपिटी जात का ही समझते है| व्यक्ति की आर्थिक हालात से इसमें कोई ज्यादा फर्क नहीं देखा गया है| और ये ही कारण है कि हमारे समुदाय के लोग बड़ी बहादुरी के साथ सरकारी कार्य करते है| समुदाय के लोगो में यह भावना किसी मूल्यवान एसेट से कम नहीं है|  

हर कार्य का महत्व है, जातिपॉति नहीं होनी चाहिये ऐसा अक्सर सभी कहते है फिर भी कोई व्यक्ति अपने बच्चों को सफाईवाला नहीं बनाना चाहता है। हमारे समाज के लोग पहले कभी सफ़ाईवालो का कार्य नहीं करते थे।परन्तु अब देखा जा रहा है कि लोग सफ़ाईवालो में भर्ती हो रहे है। एक ओर तो कहा जा रहा है कि समाज की उन्नति हो रही है दूसरी ओर खराब आर्थिक हालात व आसानी से पैसा कमाने की अवधारणा से लोग सफ़ाईवालो तक में भर्ती हो रहे है। हमारे समाज का सामाजिक स्तर गिरता जा रहा है। सफ़ाईवालो के बच्चों में हीन भावना आना तय बात है। एक दिन ऐसे लोग तो हीन भावना से ग्रस्त होंगे ही अपितु समस्त समुदाय के सामाजिक स्तर पर इस बात का विपरीत प्रभाव पड़ेगा| 

इतिहास की थोड़ी बहुत जानकारी सभी को है और जिन्हें नहीं है करते रहना चाहिये। परन्तु आवश्यक है कि आज व भविष्य को कैसे सुधारा जाये? कैसे मीना बच्चों को सफ़ाई वालों में भर्ती होने से रोका जाये? इन बिषयों पर चर्चा हो तो ज्यादा लाभकारी हो सकती है।

मेरे मत के अनुसार सफाईवाला बनने से बेहतर है कि व्यक्ति उसकी स्किल्स का विकास करे व अन्य कार्यो में जाये| सरकार की योजनाओ का लाभ लेते हुए गाँव में रहकर 5 भैसे पालकर जीवन जीना ज्यादा बेहतर व संतोषजनक हो सकता है| 

यदि किसी भाई या बहन को यह पोस्ट ख़राब लगे तो उसके लिए क्षमा करे|

रघुवीर प्रसाद मीना

पोस्ट का उद्देश्य : राजनेताओं को बुरा लगे और वे नींद से जागे।


rpmwu85
09.09.2016


राजस्थान राज्य में सरकारी कर्मचारी व अधिकारियों के ज्ञान में कमी के कारण मीना (समुदाय) व मीणा (सरनेम) की सही जानकारी नहीं है जिसकी वजह से मीना अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्तियों को राज्य के कई स्थानों पर जनजाति प्रमाणपत्र बनवाने एवम यदि सरकारी प्राधिकारियों की गलती से त्रुटिपूर्ण बना दिए गए है तो उनमें सुधार करवाने में आये दिन भारी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। कई बच्चो को नौकरी के समय जाती प्रमाणपत्रो के वेरिफिकेशन में परेशानी उठानी पड़ रही है। राज्य व केंद्र के अलग प्रारूप है अत: उन्हें अलग अलग बनवाना पड़ रहा है। क्यों नहीं ये दोनों प्रारूप एक हो सकते है ? राज्य सरकार, केंद्र के प्रारूप में बने प्रमाणपत्रों को क्यों नहीं मान्यता देती है? दो अलग अलग प्रमाणपत्र बनवाने में मेहनत व खर्च दोगुना हो जाता है।

राजस्थान राज्य में मीना अनुसूचित जनजाति समुदाय की आबादी कुल जनजाति आबादी की 50% है। राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए सांसद की 3 व विधायक की 25 सीटें आरक्षित है। इन सभी सीटों पर अनुसूचित जनजाति के लोग ही चुनाव लड़ते है । वर्तमान में इन सीटों पर जो सांसद और विधायक है वे सभी अनुसूचित जनजाति के ही है, जो चुनाव हारे वे भी इसी समुदाय के है। जनता राजनेताओ को इसलिए चुनती है कि आवश्यकता पड़ने पर वे उनके काम आये एवम आशा करती है की न केवल दिक्कतों का हल निकले अपितु वर्ग विशेष की उन्नति में मदद करे।

सरकारी प्राधिकारियों की त्रुटि से मीना समुदाय के कई व्यक्तियों को मीणा वर्तनी के साथ जनजाति प्रमाणपत्र जारी कर दिए गए, यह मसला लंबे समय से चलता आ रहा है। परन्तु सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रायलय, राजस्थान सरकार के दिनांक 30.09.2014 और 23.12.2014 के जिला कलेक्टर्स  को जारी  परिपत्रो के पश्चात् स्थिति गंभीर हो गयी और मीना  समुदाय के लोगो को अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र बनवाने में भारी दिक्कतें आनी लगी एवम जारी किये गए त्रुटिपूर्ण प्रमाणपत्रो को सही करवाना तो असंभव हो गया ।  समस्या के समाधान के लिए सामाजिक संगठनो, कांग्रेस एवम राजपा के राजनेताओ ने प्रयास किये परन्तु समाधान करवाने में सभी असफल ही रहे। बीजेपी के राजनेताओ ने भी थोडी बहुत कौशिश की पर कोई लाभ नहीं हुआ । 

यह सोचने का पहलू है कि बीजेपी जिसकी राज्य में सरकार है उसके नेताओ को तो लगता है कि इस मुद्दे से कोई लेना देना ही नहीं है। यदि समस्त प्रकरण को देखा जाये तो समाधान के प्रयासों में बीजेपी के राजनेताओ की पूर्णतया उदासीनता झलकती है । अब कोई कोर्ट की और से रोक भी नहीं है फिर भी सरकार मसले का समाधान ना करके मीना समुदाय के लोगे को परेशान होने के लिए विवस कर रही है और इस पार्टी के अनुसूचित जनजाति समुदाय के नेता आरक्षित सीटों से चुनाव तो लड़ लेते है पर उन्हें जनता के दर्द से कोई फर्क नहीं पड रहा है। सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बीजेपी के राजनेताओ एवम इस पार्टी से जुड़े लोगों की बनाती है। जब भी ये राजनेता क्षेत्र के दौरे पर आएं इनसे पूछा जाना चाहिए कि आप इस निराधार मसले का समाधान क्यों नहीं करवा पा  रहे है?  उनसे उनके द्वारा किये गए प्रयासों के बारे में पूछा जाना चाहिए। 


इसी प्रकार विपक्ष की मुख्य भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी के नेताओ से भी प्रश्न करने चाहिए की वे तथा उनकी पार्टी क्या कर रही है?  क्यों नहीं इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जा रहा है? कांग्रेस पार्टी भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के मीना समुदाय की परेशानियों को दूर करने में कोई ख़ास रोल अदा नहीं कर रही है। हमारे समुदाय के कांग्रेस के नेता भी प्रभावी रूप से मसले के समाधान हेतु प्रयासरत नहीं है । इस पार्टी के राजनेताओ  से पूछा जाये कि कम से कम एक अच्छे विपक्ष  के रूप में तो मीना समुदाय की मदद करे। 

राजपा के नेताओ ने बड़ी भारी रैली का आयोजन किया, अब एक साल होने जा रहा है। परन्तु लाभ कोई नहीं हुआ। और उसके बाद इस दल के नेताओ ने भी मुद्दे पर ध्यान देना छोड़ दिया । 

इन सभी पार्टियों खासकर बीजेपी के मीना समुदाय के राजनेताओ को समस्या के समाधान हेतु नींद से कौन जगायेगा ? कैसे खुलेगी इनकी नींद? क्या किया जाना चाहिए इन राजनेताओ का ताकि समाज को हो रही दिक्कते दूर हो?  या फिर इनसे उम्मीद रखना छोड़ देनी चाहिए? 

कृपया अपने अपने जानकर राजनेतओं से पूंछे कि कौनसी ऐसी परेशानी है या योजना है जिसके कारण वे चुप बैठे है? 


रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 8 September 2016

मीना-मीणा एक है, रट को छोड़कर हमें मीना व मीणा के भेद को समझना और समझाना होगा।

rpmwu84
    08.09.2016

मीना-मीणा एक है, रट को गाने वाले मीना समुदाय के समझदार व्यक्ति भी उन लोगों को परोक्ष रुप से सहयोग दे रहे हैं जिन्होंने इस आधारहीन बात को मीना-मीणा मुद्दा बनाकर आदिवासी मीना समाज के लोगों को परेशानी में डाल दिया है। हमारे समाज के प्रबुद्धजन भी इसी बात को विभिन्न प्रकारों से जस्टीफाई करने में लगे हैं कि मीना व मीणा एक ही अनुसूचित जनजाति है। जबकि तथ्य यह है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 के तहत राजस्थान राज्य के लिए मीना समुदाय को हिन्दी भाषा में “मीना” तथा अंग्रेजी भाषा में "Mina" शब्दों से अधिसूचित किया गया है। संवैधानिक अनुच्छेदों एवं रिकाॅर्डों में मीना (Mina) ही अंकित है। भारत के महापंजियन के अभिलेखों के अनुसार राजस्थान राज्य में मीणा जाति या जनजाति का उल्लेख नहीं है। 

राजस्थान राज्य के कई क्षेत्रों में बोली-भाषा एवं उच्चारण में अन्तर के कारण न को ण बोलने का प्रचलन है। जिसके कारण मीणा बहुप्रचलित शब्द हो गया। इस वजह से कई क्षेत्रों में मीना जनजाति के लोग स्वयं एवं अन्य सरकारी कर्मचारी व अधिकारी भी इस समुदाय के लोगों का सरनेम मीणा लिखने लग गये। आज भी जिन व्यक्तियों का सरनेम दस्तावेजों में मीना है, सरकारी दफ्तरों व प्रिन्ट मीडिया में अक्सर मीणा लिख दिया करते है। राजस्थान राज्य में पहले अंग्रेजी की पढ़ाई कक्षा 6 से प्रारम्भ होती थी जिसमें सिखाया जाता था कि 'इ' की मात्रा के लिए 'i' का प्रयोग होता है तथा ई की मात्रा के लिए 'ee' का प्रयोग होता है। इसी कारण से आदिवासी सामुदाय के लोग जो बाद में पढ़ने लगे, सरनेम की स्पेलिंग के लिए अंग्रेजी में मीना को Meena लिखने लग गये।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338ए के तहत् एक संवैधानिक संस्था है जिसे न्यायालय के अधिकार प्रदत्त हैं। आयोग के अध्यक्ष महोदय ने दिनांक 28.10.2015 को आयोग की ओर से मुख्य सचिव राजस्थान को लिखे गये पत्र के माध्यम से अवगत कराया है कि उपनाम जाति/समुदाय नहीं होता है, जाति/समुदाय को उपनाम से जोड़कर संदेह नहीं करना चाहिए। भारत के किसी भी नागरिक को उपनाम लगाने के लिए कोई पाबंदी नहीं है। उपनाम किसी व्यक्ति की जाति या समुदाय का संकेत नहीं करता है। उन्होंने उनकी जनजाति का उदाहरण देते हुए कहा कि उराॅव जनजाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में संविधान द्वारा अधिसूचित किया गया है परन्तु उनकी जनजाति के लोग अपना उपनाम कुजूर, टोपो, लकड़ा आदि लिखा करते हैं।

वर्ष 1986-87 में आयुक्त अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ने 28वीं रिपोर्ट में उपनाम के बाबत् लिखा है कि -
1) सूचियों में क्षेत्र शब्दावली का उपयोग नहीं किया जाये केवल वही नाम उपयोग में लें जो संविधान द्वारा उल्लिखित है। 

2) सरनेम के आधार पर समुदाय के नाम में संशय ना करें। यदि कोई गैर अनुसूचित जाति या जनजाति व्यक्ति ऐसा सरनेम लगाये जो कि एससी/एसटी के समान है तो उसे एससी/एसटी नहीं माना जा सकता है।

मीना समुदाय के कई व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र जारी करते समय वर्तनी में त्रुटि प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकृत प्राधिकारियों द्वारा की गई है। उनके जाति प्रमाणपत्रों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 के अनुसार हिन्दी में मीना व अंग्रेजी में Mina वर्तनी दर्शाई जानी चाहिए थी, परन्तु प्राधिकारियों ने हिन्दी में मीणा व अंग्रेजी में Meena शब्दों का प्रयोग करके गलती की है जिसके कारण मीना समुदाय के व्यक्तियों को असुविधा एवं दिक्कतों में डाल दिया है। NCST की सम्पूर्ण गाइडलाइन्स के अवलोकन के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें -

28.10.2015 NCST Guidelines for Chief Secretary of Rajasthan


आजादी से पूर्व एवं आजादी के पश्चात् सन् 1901 से 2011 पिछले 110 वर्षों की समस्त जनसंख्या गणना के ऑंकड़ों में राजस्थान राज्य के सम्पूर्ण मीना समुदाय को एक ही हेड हिन्दी में मीना व अंग्रेजी में Mina के अन्तर्गत गिना गया है और इन्हीं ऑंकड़ों के आधार पर विभिन्न राजनीतिक व पंचायत के पदों पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

हमारी जनजाति के समुदाय की सही स्पेलिंग हिन्दी में मीना व अंग्रेजी में Mina है। देश में किसी भी व्यक्ति को सरनेम लगाने पर कोई पाबंदी नहीं है। अतः व्यक्ति नाम के साथ सरनेम के रूप में मीना, मीणा, Meena, Mina, गाँव का नाम, गोत्र, पति का नाम, पिता का नाम या कुछ भी नहीं लगाने के लिए स्वतंत्र है। केवल ध्यान यह रखना है कि जाति/जनजाति के काॅलम में हिन्दी में मीना व अंग्रेजी में Mina स्पेलिंग्स ही उल्लेखित की जाये।

कुछ लोग जाती प्रमाणपत्रों अथवा नोकरियों हेतु आवेदन करते समय बोर्ड के दतावेजों में लिखे मीणा सरनेम को मीना में एवम Meena को Mina में बदल देते है जबकि सरनेम को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है। सरनेम को बदलने से भविष्य में परेशानी आ सकती है।  

उक्त समस्त तथ्यों के मद्देनजर हम सभी को यह भली भाँति समझ लेना चाहिए कि हमारा समुदाय मीना (Mina) है। मीणा (Meena) या अन्य सरनेम/उपनाम मात्र है। हमें यह कहना छोड़ना होगा कि मीना और मीणा एक ही जनजाति है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 7 September 2016

राजनेताओं की बड़ी रैलियाँ व हेलोकॉप्टर यात्रा ।

rpmwu82 
    07.09.2016
देखने में आता है कि कई राजनेता उनके वर्चस्व को साबित करने के लिए अनेको बार बड़ी-बड़ी रैलियाँ आयोजित करते हैं एवं जहाँ अन्य सस्ते साधनों से जाया जा सकता है तथा समय की भी कोई ज्यादा मारा मारी नहीं हो फिर भी वहाँ हेलीकॉप्टर इत्यादि से जाते हैं। ऐसे कृत्यों से अन्य समाजों के लोगो के मन में हमारे समाज के प्रति नकारात्मकता और बढती है। इन बड़ी रैलियों तथा हेलीकॉप्टर के आवागमन में वास्तव में बहुत अधिक धन खर्च होता है जिसका भार अन्ततः राजनेताओं के सपोटर्स व जनता को ही उठाना पड़ता है।

यह विचारणीय बिन्दु है कि यदि कोई राजनेता 30-35 वर्ष से सक्रिय राजनीति में हो और हर मुद्दे के लिए रैली या धरना देना पड़ रहा है तो इसका क्या तात्पर्य है? क्या यह ऐसा नहीं है कि जैसे पिता बनने के उपरांत भी व्यक्ति बेटे का कार्य कर रहा हो? साधारणतय: ऐसा लगता है कि ऐसे राजनेता सामान्य तरीकों से सरकार व प्रशासन से कार्य नहीं करवा पाते हैं और उन्हें हर बार भीड़ दिखाने की आवश्यकता पड़ती है जबकि होना यह चाहिए कि जैसे-जैसे राजनेता वरिष्ठ बनाता जाये वैसे वैसे उसकी बात का वजन इतना बढ़ जाना चाहिए कि उसका सरकार व प्रशासन के अधिकारियों व कर्मचारियों को केवल इशारा करने अथवा कहने मात्र से ही कार्य सम्पन्न हो जाने चाहिए। ऐसा नहीं होना उन राजनेताओं के व्यक्तित्व पर प्रश्नचिह्न इंगित करता है।

समाज के धन को अनावश्यक रैलीयों व हेलॉकॉप्टर्स में लगाने की वजाय सकारात्मक कार्यों जैसे बालिका छात्रावास का निर्माण, गरीब बच्चों की पढ़ाई हेतु आर्थिक सहायता तथा समाज के लोगों को रुकने के लिए शहरों में भवन बनवाने इत्यादि में लगाना ज्यादा लाभकारी होगा।

अनुरोध है कि उक्त विषय पर विवेकपूर्ण तरीके से चिन्तन करके अपने विचार व्यक्त करें।


रघुवीर प्रसाद मीना



मीना अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को जनजाति प्रमाणपत्र बनवाने में आ रही दिक्कतों के सम्बंध में।

rpmwu83 
    07.09.2016
कई स्थानों पर मीना समुदाय के व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र बनवाने में अभी भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस विषय में मुख्य सचिव श्री ओ. पी. मीना से मुलाकाल की गई, उन्होंने कहा कि जिन्हें भी परेशानी आये वे लोकल प्राधिकारियों से मिल ले एवं यदि समस्या का समाधान नहीं होता है तो उनके पास जाकर समस्या के अवगत कराया जा सकता है। इस क्रम में कल दिनांक 06.09.2016 को अजमेर निवासी श्री अरून कुमार मीणा मेरे सुझाव पर सीधे उनसे जाकर मिले तथा उन्होंने कलेक्टर अजमेर से समस्या के निराकरण हेतु बात की।

हालांकि उक्त तरीका मीना समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र बनवाने में आ रही समस्या का स्थाई समाधान नहीं है, परन्तु फिर भी यह रास्ता हमारे लिए खुला है जिसका उपयोग हमे  करना चाहिए।

एक और प्रकरण में यह देखने में आया कि पिछले दो वर्षों से इस मसले के बहुत अधिक चर्चा होने के बावजूद भी लोगों को अभी तक यह समझ नहीं आया है कि हमारी अनुसूचित जनजाति का नाम क्या है? एक व्यक्ति ने अनुसूचित जनजाति के कॉलम में हिन्दी में मीणा व अंग्रेजी में Meena दर्शाकर अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र हेतु आवेदन किया हुआ था। कृपया इस बात को हम सभी को अच्छे से समझ लेना चाहिए कि हमारे समुदाय के लिए संविधान की सूची में हिन्दी में मीना एवं अंग्रेजी में Mina स्पेलिंगस् अधिसूचित है। अतः हम नाम के साथ सरनेम से प्रभावित हुए बिना अनुसूचित जनजाति के कॉलम में हिन्दी में मीना एवं अंग्रेजी में Mina ही दर्शाएं। 

शैक्षणिक दस्तावेजों में सरनेम यदि हिंदी में मीणा एवम अंग्रेजी में Meena लिखा हुआ है तो सरनेम को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है। सरनेम जैसा है वैसा ही लिखें, केवल ध्यान यह रखना है कि अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र के कॉलम में हिन्दी में मीना एवं अंग्रेजी में Mina दर्शाकर अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र लेने हेतु आवेदन पत्र भरे जायें।

इसी प्रकार अन्य दस्तावेजों में भी हम सभी को अनुसूचित जनजाति के कॉलम में हिन्दी में मीना एवं अंग्रेजी में Mina दर्शाना हैं। सरनेम को परिवर्तित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 6 September 2016

सरकार संसाधनों के उपयोग की दिशा उसी प्रकार मोड़ सकती है जैसे डैम बनाकर पानी के बहाव को मोड़ देती है। जनता को निर्वाचित प्रत्याशी व चुनी हुई सरकार का सम्मान करना चाहिए एवं उनसे काम करवाने में ही समझदारी है।


rpmwu81
    06.09.2016

सरकार संसाधनों के उपयोग की दिशा उसी प्रकार मोड़ सकती है जैसे डैम बनाकर पानी के बहाव को मोड़ देती है। जनता को निर्वाचित प्रत्याशी व चुनी हुई सरकार का सम्मान करना चाहिए एवं उनसे काम करवाने में ही समझदारी है। 

हम सभी जानते हैं कि नदियों पर डैम बनाकर सरकार पानी के बहाव की दिशा को बदल सकती है एवम ऐसे क्षेत्रों में पानी पहुँचा सकती है जहाँ पर पानी की कमी रही है तथा उससे उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आर्थिक सम्पन्नता बहुत अच्छी हो सकती है। सरकार ने ऐसा कई स्थानों पर किया है। और संसाधनों के साथ भी सरकार ऐसा ही कर सकती है। भारत सरकार का बजट लगभग 20 लाख करोड़ रूपये का होता है। जिसके अन्तर्गत नीतियां बनाकर  सरकार विभिन्न क्षेत्रों के उत्थान व उन्नति के लिए प्रयास करती है।

यह जनता के ऊपर है कि क्षेत्र विशेष या समाज विशेष के लोग सरकार से किस प्रकार अधिक से अधिक लाभान्वित होने हेतु सार्थक रूप से आवाज उठाते है और सरकारी संसाधनों के उपयोग से अपने क्षेत्र व समाज की उन्नति करवायें। कई लोग ऐसे होते हैं कि चुनावों में जिसको वोट दिए है वह प्रत्याशी हार जाता है तो जीतने वाले निर्वाचित प्रत्याशी अथवा सरकार से कभी काम कराने की मंशा ही नहीं रखते हैं। प्रजातंत्र में लोगों की यह सोच सही नहीं है। प्रजातंत्र में मतदान से प्रत्याशी को निर्वाचित करना एक सामान्य प्रक्रिया है। जिसे 100 में से 51 वोट मिल जाते हैं, वह चुनाव जीत जाता है और जिसे 49 वोट मिलते हैं वह हार जाता है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं समझा जाना चाहिए कि जिन व्यक्तियों ने हारने वाले प्रत्याशी को वोट दिये हैं, उनका जीतने वाले प्रत्याशी या सरकार पर कोई अधिकार नहीं है। प्रजातंत्र की सच्ची भावना तो यही है कि सभी लोगों का जीते हुए निर्वाचित प्रत्याशी एवं चुनी हुई सरकार पर पूर्ण अधिकार है और उनसे कार्य करवाने हेतु बेझिझक संपर्क करना चाहिए। इसी प्रकार जीते हुए प्रत्याशी व चुनी हुई सरकार दोनों को उनको वोट देने वाले तथा उनको वोट नहीं देने वाले सभी मतदाताओं की समान रूप से उन्नति एवं विकास हेतु कटिबद्ध होना चाहिए। चुने हुए प्रत्याशी व सरकार से कार्य करवाने में समझदारी है और फिर भी मतदान के समय मत अपने विवके से ही दिया जायें।

रघुवीर प्रसाद मीना

कहाँ देखना चाहते हैं हम 500-1000 वर्ष बाद आदिवासी समुदाय को - सलाह वही दो जो हम अपने बच्चों व परिवारजन को देते हैं।


                                                                rpmwu80
06.09.2016

विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों एवं चर्चाओं के दौरान कई लोग आदिवासियों की संस्कृति को संरक्षित करने के नाम पर ऐसी बातें करते हैं जिससे कि आदिवासी समुदाय कभी उन्नति की ओर अग्रेषित नहीं हो पायेगा। उनका कहना होता है कि लोग परम्परागत खेती करते रहें, शहरों से दूर गाँवों में ही रहें, देवी देवताओं व अन्य धार्मिक परम्पराओं को ज्यों का त्यों मानते रहें, कार्यक्रमों में आदिवासी वेषभूषा में ही आया-जाया जाये, अधिक धन संग्रह करने से क्या लाभ है, संतोषी सदा सुखी, दूसरे लोग बदमाश होते हैं, उनसे मिले-जुले नहीं इत्यादि इत्यादि। अब यह देखते हैं कि क्या सलाह देने वाले व्यक्ति उनके स्वयं के बच्चों व परिवारजनों को ऐसी ही सलाह देगें?  क्या ऐसे लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे व परिवारजन और लोगों से नहीं मिले-जुले, उनकी अच्छाईयाँ ग्रहण नहीं करें एवं आधुनिक जगत में उन्नति नहीं करें? हम सभी को समाज के कार्यक्रमों व मीटिंस् तथा चर्चाओं के दौरान हमेशा ऐसी सलाह देनी चाहिए जो कि हम हमारे परिवारजनों व बच्चों को देते हैं। अन्यथा यह ऐसा होगा जैसे कि कोई व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाये व हिन्दी माध्यम की वकालत करे।

500-1000 वर्ष बाद आदिवासी समुदाय देश के अन्य अग्रणी समुदायों के समकक्ष खड़ा हो, ऐसा सपना हमें देखना चाहिए। हम हर प्रकार से सक्षम बनें, उन्नति करें और प्रजातांत्रिक राज में हमारा अच्छा प्रतिनिधित्व हो। काश ऐसा हो कि आदिवासी इतने विकसित हो जाये कि उन्हें  आगे बढ़ने के लिए किसी सहारे की जरूरत ही नहीं पड़े। 


रघुवीर प्रसाद मीना

प्रजातांत्रिक व्यवस्था के राज में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए राजनीति से सम्बंधित मसलों पर समझदारी व तर्कपूर्ण तरीके से विचार व चर्चा करके निष्कर्ष पर पहुँचना होगा।

rpmwu79
06.09.2016

अमूमन सामाजिक कार्यक्रमों व मीटिंस् इत्यादि के दौरान यह कहा जाता है कि कृपया कोई भी राजनीति की बात नहीं करे। आयोजक यह हिदायत उनके लम्बे अनुभव के आधार पर इस विचारधारा से देते हैं कि समाज के लोग राजनीति जैसे महत्वपूर्ण विषय पर तकपूर्ण तरीके से समझदारी दिखाते हुए बात नहीं करते हैं। जैसे ही राजनीति से सम्बंधित बातें सामने आती हैं तो विवेकपूर्ण जवाब देने के बजाय लोग एक दूसरे को गाली-गलौज करने लगते हैं अथवा ऐसे मुद्दों को सामने ले आते हैं, जिससे बात करने की बजाय कार्यक्रमों में हुड़दंग सा मच जाता है।

प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति के वोट का समान महत्व है अतः हर व्यक्ति को उसका मत प्रकट करने का अधिकार है। प्रजातंत्र में मतदाताओं तक सही बात पहुँचाने के लिए संवाद एवं स्वस्थ बहस होती रहनी चाहिए जबकि हम राजनीति के मसलों पर बहस से दूर रहने का प्रयास करते हैं। यहाँ तक कि राजनीति जैसे महत्वपूर्ण शब्द को ही कई लोग नकारात्मक अर्थात् षडयंत्रकारी कार्रवाई से जोड़ते हुए मानते हैं। जो समाज या समुदाय स्वस्थ तरीके से राजनीतिक मसलों पर बातें नहीं कर सकते वे कभी राज करने की स्थिति तक नहीं पहुँच पायेंगे। अतः आवश्यक है कि राजनीतिक मसलों पर संसदीय भाषा में तर्कपूर्ण व स्वस्थ बहस एवं विचार प्रकट करने हेतु निःसंकोच व निडर होकर भाग लिया जाये।

एक और महत्वपूर्ण बात यह नोट की गई है कि पूर्व में जिन समाजों के लोग वोट डालने में रूचि नहीं दर्षाते थे वे अब दुकान बन्द करके व महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़कर मतदान करने जाते हैं, जबकि हमारे एवं हमारे जैसे समाज के लोगों की मतदान करने में रूचि कम होती जा रही हैं। जो लोग गाँवों से शहर में आ गये हैं वे मतदान के समय गाँव जाकर मतदान नहीं करते हैं, जिसके कारण मतदान का प्रतिशत बहुत नीचे रह जाता है एवं परिणाम विपरीत आ जाते हैं।

अतः आवश्यक है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था के राज में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए राजनीति से सम्बंधित मसलों पर सामाजिक कार्यक्रमों व मीटिंस् में विचार व्यक्त करने देने चाहिए तथा वक्ताओं को चाहिए कि वे समझदारी व विवेकपूर्ण तरीके तथा साफ मन से उनके विचार व्यक्त करें साथ ही सभी को मतदान में अवश्य हिस्सा लेने हेतु कटिबद्ध होने की आवश्यकता है। 


रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 5 September 2016

अखिल भारतीय श्री मीना सामाजिक एवं शैक्षणिक समिति, कोटा के तत्वाधान में श्री भैरू लाल कालाबादल जी के जन्म दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम।

rpmwu79
05.09.2016
अखिल भारतीय श्री मीना सामाजिक एवं शैक्षणिक समिति, कोटा के तत्वाधान में श्री भैरू लाल कालाबादल जी के जन्म दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम।

दिनांक 04.09.2016 को श्री भैरू लाल कालाबादल जी के जन्म दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय श्री मीना सामाजिक एवं शैक्षणिक समिति, कोटा के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम को अटेन्ड करने हेतु मैं और श्री धनसिंह मीना, मुख्य इंजीनियर, उत्तर पश्चिम  रेलवे, कोटा गये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री पी.आर.मीना, आईएएस थे एवं श्री रघुवीर सिंह मीना, संभागीय आयुक्त कोटा ने समारोह की अध्यक्षता की। श्री आर.डी.मीना, सेवानिवृत्त आरएएस, श्री महावीर मीना पूर्व जिला प्रमुख बूँदी, श्री भारत मारन, पूर्व जिला प्रमुख, बारा, श्रीमती कमला मीना, पूर्व जिला प्रमुख कोटा, श्री कपिल मीना, आईएएस, श्री श्याम बिहारी मीना, आईएएस, श्री प्रेमराज मीना, आरटीएस, श्री हरी प्रकाश मीना, सीनियर मैनेजर, ग्रामीण बैंक एवं कोषाध्यक्ष, श्री दीनदयाल मीना, श्री हेमराज मीना, श्री सीताराम मीना, श्री चन्दालाल चकवाला, श्री सत्यनारायण मीना, श्री कौशल  मीना, श्री मुकुट बिहारी मीना एवं अन्य गणमान्य समाजसेवी कार्यक्रम में मौजूद थे। कोटा की इस विजिट एवं कार्यक्रम के दौरान रक्त दान के साथ निम्नलिखित अच्छी बातें देखी व महसूस की -

1.कोटा में श्री मीना सामुदायिक भवन एवं अतिथि गृह एवं श्री मीना बालिका छात्रावास का निर्माण एवं संचालन तथा श्री मीनेश विश्विद्यालय  के लिए 30 एकड़ भूमि का आवंटन समिति में कार्यरत सेवाभावी तथा कर्मठ पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के समर्पण से सम्पन्न हो पाया है।

2.श्री लक्ष्मन मीना, सेवानिवृत्त आईपीएस, इस संस्था के अध्यक्ष हैं। श्री आर. डी. मीना, सेवानिवृत्त आरएएस अधिकारी इस संस्था के डॉरेक्टर बहुत ही मेहनती, मिलनसार हैं एवं सबको साथ लेकर काम करते हैं। संस्था के अन्य पदाधिकारी भी पूरी लगन के साथ समिति के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और समाज की सेवा कर रहे हैं।

3.कार्यक्रम में मेधावी छात्रों को प्रशस्ति पत्र दिये गये तथा आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्रों को आर्थिक सहायता हेतु ” काला बादल शिक्षा सहायता योजना“ का शुभारम्भ किया गया, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी बच्चों को कम से कम 10 हजार रूपये प्रति वर्ष की आर्थिक सहायता देना प्रारम्भ किया गया। इस अवसर पर श्री कपिल मीना, आईएएस व श्री श्याम बिहारी मीना, आईएएस दोनों ने बच्चों को प्रोत्साहित किया एवं अपने-अपने मोबाईल नम्बर सार्वजनिक रूप से सभी को दिये और कहा कि पढ़ाई व सिविल सर्विस से सम्बंधित गाईडेन्स के सम्बंध में कभी भी उनसे सम्पर्क किया जा सकता है।

4.सबसे महत्वपूर्ण बात यह लगी कि कोटा की इस समिति में वहाँ के अधिकतर लोगों को विश्वास है। सभी लोग मिलजुलकर एवं समर्पण की भावना से कार्य कर करते हैं। कोटा की इस समिति ने अच्छे कार्य करने के विचारों को न केवल प्रयासों तक सीमित रखा है बल्कि भौतिक रूप में परिवर्तित कर एक बहुत अच्छे स्थान पर अतिथि गृह एवं बालिका छात्रावास का निर्माण व संचालन तथा विश्विद्यालय  हेतु भूमि आवंटन करवा लिया गया है। समिति द्वारा समाज हित के इन कार्यों के लिए समिति का हर सदस्य एवं पदाधिकारी धन्यवाद का पात्र है। राज्य के अन्य क्षेत्रों में कार्यरत समाज सेवाभावी व्यक्तियों को कोटा की इस समिति द्वारा किये जा रहे कार्यों से सीख लेने की अवश्यकता  है। यह भी देखा गया कि सेवानिवृत्त समाज सेवी बहुत लगन से सामाजिक कार्य कर रहे हैं।

5.यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त कार्यों हेतु भूमि के आवंटन में समिति के पदाधिकारियों की श्री शांतिधारीवाल, पूर्व मंत्री राजस्थान सरकार एवं स्व. श्री भरतराम मीना, पूर्व आईएएस, ने मदद की और हमारे समाज को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया।

6.एक और महत्वपूर्ण बात यह देखी कि यूटीआई कोटा द्वारा सरकारी स्तर पर बनाये गये एक सामुदायिक भवन का नाम “श्री भरूलाल काला बादल सामुदायिक भवन” रखा गया है। अवश्यकता है कि अन्य शहरों एवं स्थानों पर भी सरकारी योजनाओं, सरकारी भवनों व सड़कों के नाम आदिवासी नेताओं व समाजसेवियों के नाम पर रखे जायें। इस सन्दर्भ में हम सभी को मिलकर हर स्तर पर माँग रखनी चाहिए।

7.मेरे मतानुसार कोटा में कार्यरत यह समिति सामाजिक सेवा में अग्रणितम सामाजिक संस्था है। समाज की अन्य संस्थाओं, समाज के सेवाभावी व्यक्तियों, सेवानिवृत्त अधिकारियों, कर्मचारियों को कोटा की इस समिति के कार्यों को देखकर सीख लेनी चाहिए और समाज हित में किये जाने वाले कार्यों को भौतिक स्वरूप में बदलने के लिए कटिबद्ध तरीके से ठोस कार्यवाही करने की अवश्यकता है।

8. समाज के युवाओं की शादी हेतु "minarishye.com" वेब साइट का उदधाटन करवाया गया। हम सभी को इस वेबसाइट का उपयोग करना चाहिए । 

9. अखिल भारतीय श्री मीना सामाजिक एवं शैक्षणिक समिति, कोटा के तत्वाधान में प्रताप नगर, जयपुर में बनाये जा रहे बालिका छात्रावास के भवन के निर्माण हेतु आर्थिक सहयोग करने हेतु निवेदन है ताकि समाज की बालिकाओं को जयपुर में रहकर पढ़ाई करने की एक अच्छी सुविधा विकसित हो सके।

रघुवीर प्रसाद मीना