Friday 30 July 2021

क्या मीना हिन्दू है?

 
rpmwu420 dt.30.07.2021

क्या मीना हिंदू है? यह प्रश्न अब बार-बार उठने लगा है और मीनाओं की एतिहासिक विरासत आमागढ़, जयपुर में जून जुलाई 2021 में अज्ञात लोगों द्वारा मुर्तियों को खंड़ित करने, भगवा ध्वज पहनाने और उसको उतारने एवं तत्पश्चात एक राजनेता द्वार यह कहना कि आदिवासी हिंदू नहीं है और दूसरे राजनेता द्वारा यह कहना कि मीना हमेशा हिंदू थे, हिंदू है और हिंदू रहेंगे, समाज के वरिष्ठ राजनेताओं के इस प्रकार केे स्टेटमेंटस् से युवाओं मेंं भ्रम और अधिक बढ़ गया है। 

मीना आदिवासी है। प्रकृति पूजक थे और है। हमारे पूर्वज सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, जीवात्मा, वनस्पति जगत, पशुपतिनाथ के रूप में शिवजी व जननी के रूप में पार्वती माँ तथा स्थानीय देवी-देवताओं को कृतज्ञता प्रदर्शित करने व सम्मान देने के रूप में पूजते रहे है। कालांतर में हिन्दू संस्कृति मानने वाले जनमानस के साथ रहकर उनकी रीति रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानने लग गये।

आसान भाषा में यह ऐसे है जैसे कि हिन्दी मातृभाषा वाला व्यक्ति उसकी आवश्यकता अथवा परिवेश के कारण अंग्रेजी सीख ले। वह व्यक्ति है तो हिन्दी मातृभाषा वाला ही, अंग्रेजी सीख लेने के कारण उसे अंग्रेज नहीं कह सकते है जबकि वह हिंदी लिखते समय रेल व रोड जैसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करे। इसी प्रकार प्रकृति पूजक मीना आदिवासी समुदाय को उनकी जीवनपद्धति में प्रकृति पूजा के साथ हिन्दू रीती रिवाजों व देवी देवताओं के मानने से उन्हें हिन्दू नहीं कह सकते है। 

हिन्दू मान्यताओं की भेदभावयुक्त वर्ण व्यवस्था आदिवासियों पर लागू नहीं होती है। और न ही उन्हें उसमें कोई रूचि लेनी चाहिए। अनेकों लोग हिन्दू का मतलब एक जीवन पद्धति मानते है परन्तु एक वर्ग विशेष जो कि हिन्दू वर्ण व्यवस्था में अपने आप को शीर्ष पर बैठा मानता है और वह दूसरों का धार्मिक अंधविश्वास के बल पर शोषण करता है और दूसरों को नीचा होने का बोध करता है। अस्पृश्यता की उत्पत्ति भी उनकी घिनौनी सोच का परिणाम था। आज भी जब काम है तो सभी हिन्दू है कहने वाले लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर हिन्दूओं की उन्नति की राह में आयेदिन नये नये प्रपंच व रोड़े रचते रहते है। ऐसी स्थिति में हमारी पहचान प्रकृति पूजक आदिवासी के रूप में ही सही व उचित है।

कई विद्वानों का मानना है कि मीना समुदाय सिंधुघाटी सभ्यता के लोग है। आर्यों ने भारत देश में उत्तर पश्चिम दिशा से प्रवेश किया और उस क्षेत्र में रहने वाले मूलनिवासियों को वहां से विस्थापित होने पर मजबूर कर दिया और मूलनिवासी लोगों की जनसंख्यां का घनत्व राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड में अधिक हो गया। यह बात इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि जब आर्य भारत में आये थे उस समय सभी जनसंख्यां कृषि व पशुपालन पर निर्भर रहती थी और आज के पाकिस्तान सहित पंजाब, हरयाणा व उत्तरप्रदेश तीनों राज्यों में नदियों की उपलब्धता व उपजाऊ भूमि होने से इन राज्यों में आदिवासियों की जनसंख्याँ भौगोलिक परिस्थियों के कारण सबसे अधिक होनी चाहिए जबकि वास्तव में या तो है ही नहीं या लगभग नगण्य है। इस प्रकार निश्चित है कि राजस्थान राज्य में मीना समुदाय भारत में आर्यों के आने से पहले से ही निवास करता है। मीना एक बहादुर कौम है और उसके वीर पुरुषों  एवं योद्धाओं ने राजस्थान में अनेकों जगह राज किया और दुर्ग व स्मारक बनवाये। मीना समुदाय के लोग प्रकृति पूजक रहे है, वे सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, वनस्पति जगत, जीवात्मा को विभिन्न स्वरूपों में सम्मान देते और पूजते आये है।  मीना समुदाय के राजाओं के साथ धोखा किया गया और वे राजा से प्रजा बन गए। तत्कालीन शासकों द्वारा मीना समुदाय के लोगों को नियंत्रित करने और उनका दमन करने के लिए अंग्रेजों से मिलकर उनके विरुद्ध जरायमपेशा कानून एंव दादरसी कानून लागु किये गए जो कि आजादी के बाद समाज सेवकों के अथक प्रयासों व कड़ी मेहनत से समाप्त हो पाये। यह भी उल्लेखनीय है कि विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध मीना समुदाय के अनेकों बहादुरों ने युद्ध किया। महाराणा प्रताप, राणा सांगा व  शिवाजी के साथ जी जान से लड़े और उन्हें सम्मान दिलवाया।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में दी गई परिभाषा के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ है ऐसी जनजातियां या जनजातीय समुदाय या ऐसे के कुछ हिस्से या समूह जो कि जनजातियों या आदिवासी समुदायों के रूप में अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित है। अनुच्छेद 342 के तहत मीना समुदाय राजस्थान राज्य के 12 अनुसूचित जनजाति समूहों में क्रमांक 9 पर अंकित है। अनुच्छेद 25 व  26 के अनुसार सभी नागरिकों को कोई भी धर्म मानने की स्वतंत्रता प्रदान की हुई है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 (2) के अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड 25 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों पर यह अधिनियम लागु नहीं है।

जनजाति समूह मुख्य रूप से जीवन शैली, स्थानों, मूल्यों और विश्वास प्रणालियों के माध्यम से अन्य समूहों से भिन्न होते है। किसी समुदाय विशेष को अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मलित करने हेतु 5 विशेषताएं होनी चाहिए 1.आदिम लक्षण या जीवन का तरीका 2.भौगोलिक अलगाव  3.संपर्क करने में संकोच 4.विशिष्ट संस्कृति  5.सामान्य/आर्थिक पिछड़ापन। इस प्रकार सभी जनजाति समुदाय दूसरे अग्रणी समाजों से अलग होते है।

कालांतर में आजीविका व विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से राजस्थान के मीना समुदाय के लोग मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व महाराष्ट्र में पलायन कर वहां भी निवास करने लगे है। इन प्रदेशों में हिन्दू धर्म को मानने वाले आर्थिक रूप से अग्रणी समाजों के लोगो के संपर्क में आने के कारण प्रकृति की पूजा करने वाले मीना समुदाय के नागरिक हिंदू रीति रिवाजों को भी मानने लगे। आज के दिन अधिकांश मीना, प्रकृति की पूजा के साथ हिंदू रीति रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानते है। यह ऐसे हुआ जैैसे हिन्दी मातृभाषा वाले बच्चे परिवेश, माहौल व आवश्यकता के अनुसार हिंदी के साथ अंग्रेजी भी सीख लेते है। लेकिन जिस प्रकार का वातावरण बन रहा है उससे ऐसा लगता है कि भविष्य में आदिवासी बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर की तरह हिंदू रीति रिवाजों को मानना बंद कर दे, जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण है - 

1.  आदिवासी समुदायों में वर्ण के आधार पर ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं है। परन्तु हिन्दू लोग उनमें वर्ण व्यवस्था का पैमाना लगाकर उन्हें आरक्षण के कारण नीचे के पायदान पर स्थापित करना चाहते है। जो कि आदिवासियों को कतई स्वीकार्य नहीं है क्योंकि किसी ज़माने में आदिवासियों ने राज किया हुआ है और आज भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में दूसरे सुमदाय या जातियां उनके ऊपर ही आश्रित रहती है अतः वे उसी गौरव के साथ जीना चाहते है। 

2. मीना समुदाय के आदिवासी पढ़ने लिखने व सभी के साथ भाईचारा से रहने में विश्वास करते है परन्तु महसूस किया जाता है कि प्रकृति पूजा के साथ हिन्दू रीती रिवाज़ों को मानने के वाबजूद अग्रणी हिन्दू समुदाय उनके विरुद्ध विभिन्न तरह के भेदभाव करके उनको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते रहते है। 

3. अशिक्षित व्यक्ति धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषणों (DAP) में ज्यादा विश्वास रखते है और जीवन की समझ नहीं आने वाली चीजों को भगवान के आश्रय पर छोड़ देते है। चालाक लोग स्वयं के लाभ हेतु उनके भोलेपन का लाभ उठाकर उन्हें भगवान का डर एवं उसमें आस्था और पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करते रहते है। इसी सोच के कारण आदिवासियों को भी पढ़ने-लिखने से वंचित रखा गया। देश में संविधान लागू होने के पश्चात व आरक्षण जैसे सकारात्मक प्रावधानों के कारण देश के आदिवासी शिक्षा ग्रहण करने लगे है और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषणों से दूर होने लगे है। 

4.  हिंदू धर्म पर एक वर्ण/जाति विशेष ने एक प्रकार से उनके स्वयं के लाभ के लिए कब्जा कर लिया है। जैसे लोग फिटर, टेक्नीशियन, इलेक्ट्रिशियन व मैकेनिक इत्यादि में आईटीआई करते है उसी प्रकार से उस वर्ण/जाति के बच्चे गुरुकुलों में जाकर कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण करते है और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण को बढ़ावा देकर दूसरों के बल पर स्वयं की आजीविका चलाते है। गुरुकुलों में दूसरी जाति समुदाय के लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता है। शिक्षित युवा अब इस बात को समझने लगे है। 

5. जितने भी धार्मिक स्थल है या तो अधिकांशतः राजा महाराजाओं या अन्य भामाशाओं द्वारा दान की गई जमीन पर है अथवा अनाधिकृत रूप से कब्जा की गई जमीन पर है और उनको बनाने के लिए भी समाज के लोगों द्वारा चंदा एकत्रित किया जाता रहा है। ऐसे धार्मिक स्थलों पर जाति विशेष द्वारा कब्जा कर लेना अनुचित प्रतित होता है। 

6. धार्मिक स्थलों की पूजा-अर्चना करने की आड़ में अपने आप को श्रेष्ठ समझना और पूजा-अर्चना करवाने वाली जनसंख्या को नीचा समझना आखिर कब तक चलेगा? 

7. हिन्दू धर्म के शीर्ष पर बैठे समाज के बारे में धारण बन गई है कि खाय भी और गुर्राय भी। एक ओर तो आदिवासियों से सम्मान के साथ दान-दक्षिणा लेते है और दूसरी ओर राजनितिक, व्यावसायिक व सरकारी और निजी क्षेत्रों में उनकी उन्नति को रोकने के लिये वर्ग विशेषों द्वारा समता मंंच जैसे संगठनों की गतिविधियां, न्यायालयों और सरकार के महत्वपूर्ण पदों बैठे व्यक्तियों द्वारा उनकी अथॉरिटी का दुरुपयोग किया जाता है। शिक्षित व नौकरीपेशा लोगों को यह समझ आने लग गया है।

8.  शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न हो रहा है इसकी वजह से भी धार्मिक प्रपंचों से जुड़ी चीजों से युवा विमुख होते जा रहे है। 

9. सूचना प्रौद्योगिकी के युग में देश के समस्त आदिवासी युवा आपस में संवाद कर सकते है और उन्होंने ऐसा करना प्रारंभ भी कर दिया है। उनको लगता है कि देश की जल जंगल जमीन जो कभी उनके पुरखों की हुआ करती थी वहीं पर एकलव्य के समय से ही धार्मिकता का दुरुपयोग करके उन्हें हाशिए पर खड़ा कर दिया गया है।

10. आदिवासी युवाओं को लगता है कि हिन्दू धर्म केवल समुदाय विशेषों के उत्थान के लिए ही है शेष जनसंख्यां मात्र सेवा करने के लिए बनी है। उन्हें जीवन भर मेहनत करने के साथ हमेशा कम महत्पूर्ण ही समझा जाता रहेगा।

आखिर देश के आदिवासी हिन्दू धर्म के बारे में अब ऐसा सोचने पर क्यों मजबूर हो रहे है ? जो भी व्यक्ति या संगठन चाहते है कि आदिवासियों को हिन्दू धर्म के रीती रिवाजों को मानना चाहिए, उन्हें आदिवासियों के साथ उनके द्वारा किये जा रहे व्यवहार के बारे में विचार करना चाहिए न कि आदिवासियों को ही दोष दे।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना



Wednesday 28 July 2021

Dream of Ivan Fernández : push and help each other to win.

rpmwu419 dt. 28.07.2021 

Maintaining and displaying values are more important than winning the race by shortcuts or deceits or by taking advantage of ignorance of the opponents!

While doing any thing wrong if one starts thinking that "will this make my mother feel proud?" Normally person will not indulge in wrong doings.

Remember this Kenyan runner Abel Mutai who was just a few feet from the finish line, but became confused with the signage and stopped, thinking he had completed the race.   A Spanish runner, Ivan Fernandez, was right behind him and, realising what was happening, started shouting at the Kenyan to continue running.   Mutai didn't know Spanish and didn't understand. Realising what was taking place, Fernandez pushed Mutai to victory.  A journalist asked Ivan, "Why did you do that?" Ivan replied, "My dream is that someday we can have a kind of community life where we push and help each other to win."  The journalist insisted "But why did you let the Kenyan win?" Ivan replied, "I didn't let him win, he was going to win.   The race was his." The journalist insisted, and again asked, "But you could have won!" Ivan looked at him and replied, "But what would be the merit of my victory? What would be the honor in that medal? What would my Mother think of that?"  Values are passed on from generation to generation.

कर्म का महत्व।

rpmwu418 dt. 28.07.2021

व्यक्ति कर्म खराब करके धार्मिक बनने की कोशिश करें तो उसका कोई मतलब नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण है व्यक्ति का उसके कर्तव्यों के प्रति समर्पण।

कई व्यक्ति #अपने_स्तर_का_कार्य नहीं करके जूनियर्स का कार्य करते रहते है एवं स्वयं के स्तर के कार्य की ओर उनका ध्यान ही नहीं जाता है। ऐसा करने से बचने की जरूरत है और जूनियर्स को काम सिखाना चाहिए ताकि वे सिस्टम के लिए बेहतर रूप से काम आ सके। 

वरिष्ठ व्यक्ति निर्णय लेने में देरी करता है तो उसके तीन कारण हो सकते है - 1. काम समझ नहीं आ रहा हो अर्थात अक्षमता या 2. किसी के दबाव में हो या 3. निर्णय लेने में कुछ उम्मीद रखता हो।   ये तीनों ही स्थितियां खराब है। व्यक्ति को #तत्परता व दूसरों के प्रति #संवेदनशील होकर #निर्णय लेना चाहिए।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Sunday 25 July 2021

आदिवासी धरोहरें एवं उनका संरक्षण - सरकार को निभानी चाहिए जिम्मेदारी।

rpmwu417 dt. 25.07.2021 
आदिवासी धरोहरें हमारे देश के आदिवासियों के गौरवपूर्ण अतीत को याद दिलाकर मन में गर्व दिलाती है। आदिवासी धरोहरों के संरक्षण से देश के आदिवासियों के मन में सरकार के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव उत्पन्न होगा। परन्तु उनकी समय पर सुध नहीं लेना हम सभी की सामूहिक उदासीनता का परिचय है। यदि हम लंबे समय तक घर में ताला नहीं लगाये और चोर घुस जाये तो गलती मालिक की भी है। मालिकों की सजगता बहुत जरूरी है। 

आदिवासियों के #आमागढ़ (आंबागढ़), जयपुर दुर्ग के सम्बन्ध में हाल ही में वाद विवाद पैदा हुआ है। इस विषय में विचारणीय एवं एक्शनेबल पहलू निम्नलिखित है - 

1. अधिकांश आदिवासी धरोहरों का मालिकाना वन विभाग या पुरातत्व विभाग अर्थात सरकार के पास है। अतः सीधे तौर पर सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी बनती है कि आदिवासियों की समस्त धरोहरों का उचित रखरखाव, विकास व संरक्षण करें। जनजातियों के विकास हेतु अलग से उपलब्ध फण्डस् का कुछ हिस्सा इस काम में लिया जा सकता है। 

2. जनजातियों के मामलों के मंत्रालय व आदिवासी राजनेताओं को चाहिए कि वे सरकार के माध्यम से सभी चिन्हित आदिवासी धरोहरों को नोटिफाई करवाकर उनका संरक्षण व विकास करवायें। पुरातत्व व वन विभागों में इस कार्य की मोनिटरिंग की उच्च पर जिम्मेदारी प्रदान की जाये। जनजातियों के विकास से सम्बन्धित मंत्रालय को इस सम्बन्ध में समन्वय करना चाहिए। 

3. आदिवासियों के सामाजिक संगठनों व व्यक्ति विशेषों को चाहिए कि वे आदिवासी धरोहरों की रक्षा करने वाले हर व्यक्ति व संस्था का समर्थन व सहयोग किया जाये। हमेशा जरूरत पड़ने पर सभी प्रकार की रेखाओं को तोड़कर उनका साथ दे। दूसरे समझदार तथा वृहद सोच रखने वाले महानुभावों, संगठनों व संस्थाओं का साथ व समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करें। 

4. जो लोग आदिवासियों की धरोहरों के साथ खिलवाड़ करते है उनका न्यायायिक प्रक्रिया व आमने सामने हर तरह से मुँहतोड़ जवाब दे। किसी से भी डरने या लिहाज़ करने की जरूरत नहीं है। जो लोग, संगठन व संस्थाएं धरोहरों से खिलवाड़ करने वालों का साथ देते है, उन्हें ऐसा नहीं करने हेतु व्यक्तिगत व सामूहिक स्तरों पर समझाया जाये। उनकी संख्या कम करने का प्रयास करें न कि बढ़ाने का । किसी भी जाति, धर्म व समुदाय के विरूध्द सामान्य तौर पर अनावश्यक भड़काऊ भाषा के प्रयोग करने से बचे। 

5. आवश्यकता है कि सभी आदिवासियों को भी समय व संसाधन खर्च कर, अपनी धरोहरों की ओर नियमित रूप से ध्यान देने को प्राथमिकता दे। समय समय पर वहां जाये, देखें व कुुछ गलत हो रहा हो तो उसके बारे में आवाज उठायें। आदिवासी सामाजिक संगठन मिलकर व्यवस्थित तरीके से अपनी धरोहरों को पहचान कर उनके संरक्षण की मुहिम चलाये। सामूहिक रूप से #आदिवासी_धरोहर_संरक्षण_समिति बनाकर आदिवासी धरोहरों का संरक्षण करवाया जाये। 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 24 July 2021

डाॅ भीमराव अम्बेडकर : गुरु पूर्णिमा

rpmwu416 dt. 24.07.2021

गुरू_पूर्णिमा : मैंने भारतरत्न बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर की जीवनी, विचारधारा, मिशन, कार्यों व समर्पण को जानने हेतु अनेकों किताबें व दस्तावेज पढ़े है।अन्य दूसरे महान धार्मिक व राजनीतिक हस्तियों के जीवन व कार्यो के बारे में भी अध्यन किया है।

जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति राजनैतिक गतिविधियों में जनहित के मुद्दों हेतु समर्पित नहीं था और न ही है।

मैं आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर बाबासाहब की विचारधारा व कार्यो के सामने नतमस्तक हूं। इस शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीख सकता है और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करने की आवश्यकता है  -

शिक्षा : से व्यक्ति बहुत सम्मान पा सकता है व आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। शिक्षा की सुविधाओं को महत्व देवे। ऐसी संस्थाओं से जुड़े जो गरीब व कमजोर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करते है। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे। ऊंगलियों के बीच में होकर समाधान ढूंढे ना कि परेशानी। 

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे। देश की उन्नति में बाधक कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को सही करने लिये हिन्दू कोड बिल के प्रकरण पर उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 
 
5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। कश्मीर के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट थी कि कश्मीर को विशेष राज्य का स्टेटस नहीं दिया जाये। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया। धर्म परिवर्तन के समय भी देशहित का ध्यान रखा व  बदले की भावना नहीं रखी। यदि बौद्ध के अलावा किसी और धर्म को ग्रहण करते तो देश की राजनीति ही अलग हो जाती। 

11. आरक्षित वर्ग आरक्षण देश के नागरिकों के समग्र विकास (inclusive growth) का एक महत्वपूर्ण टूल है। यदि आरक्षण नहीं होता तो देश को बहुत अधिक नुकसान होता। आरक्षण नहीं होने से देश में 3 स्थिति हो सकती थी। प्रथम दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्गों का अलग देश बन जाता, द्वितीय अलग देश नहीं बन पाता तो देश में अत्याचारों के विरूद्ध दलित, आदिवासी व पिछड़ो के अधिकारियों के लिए गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती अथवा तृतीय यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो एक बहुत बड़ी जनसंख्या उनकी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती। 

आरक्षित वर्ग के लोगों के जीवन का उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।

16. दूसरों को गलत करने से रोके : अस्पृश्यता को समाप्त करवा कर उन्होंने दूसरों को और अधिक पाप करने से रोका। यदि कोई गलत या अत्याचार कर रहा है तो उसे गलत करने से रोकना चाहिए। 
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। जरुरत है कि बाबासाहब के महान व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर हम सभी अपने अपने कार्य को सही तरीक़े से पूर्ण क्षमता व एफिसिन्सी के साथ निष्पादित करें। साथ में दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें और यथासंभव सभी देशवासियों को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। इतिहास की ज्यादा खोजबीन करने की बजाय वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाबासाहब के द्वारा लिखे गए दस्तावेजों व किताबों को पढ़े और उनसे प्रेरणा ले। Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. Small minds discuss people, medium minds talk of events and great minds ponder over ideas. Implementation of the provisions of the constitution is extremely important for the welfare of the citizens, we all must individually and collectively strive for the same.

जय भीम
रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 20 July 2021

श्री प्रभु लाल देवन्द सर - गुणवत्तायुक्त जीवनमूल्यों से ओतपोत्र व्यक्तित्व एवं अरावली विचार मंच के प्रधान पैट्रन (संरक्षक)

(05-07-1944 से 17-07-2021, 77 वर्ष 12 दिन) 
श्री प्रभु लाल देवन्द (से.नि.मेजर) भारतीय रेलवे की इंडियन रेलवे सर्विसेज ऑफ़ मैकेनिकल इंजीनियर के 1971 बैच के बेहद सफल व तकनीकी ज्ञान से परिपूर्ण अधिकारी रहे। उनके गौरवपूर्ण सेवा काल के दौरान उन्होंने रेलवे के अनेकों महत्वपूर्ण संस्थानों यथा पश्चिम रेलवे, मुंबई, अनुसंधान, डिजाइन एवं मानक संगठन (आरडीएसओ), लखनऊ, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, गुहाटी, रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड, अजमेर  व उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर में मुख्य कारखाना प्रबंधक, लोअर परेल वर्कशाप, मुम्बई, चैयरमेन रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड, अजमेर, अपर मंडल रेल प्रबंधक, जयपुर तथा चीफ़ वर्कशॉप इंजीनियर, पश्चिम रेलवे, चर्चगेट,मुम्बई व उपरे, जयपुर के सम्मानित व विशिष्ट पदों पर सफलता पूर्वक दक्षतापूर्ण कार्य किया और वे वर्ष 2004 में सेवानिवृत्त हुए। रेल इंडिया टेक्नीकल एंड़ इकोनॉमिक सर्विसेज (राइट्स) के प्रोजेक्ट्स में डीज़ल लोको के संचालन व रखरखाव हेतु अफ्रीकी देशों में भी भारतीय रेल के साथ देश का नाम रोशन किया। श्री प्रभु लाल देवन्द सर ने जीवन के हर क्षेत्र में गुणवत्ता व सिस्टम्स पर बहुत महत्त्व दिया। जयपुर मंडल में आईएसओ लगाने की बात हो या  रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड, अजमेर की छबि को सुधारने का मसला हो या आरडीएसओ में विभिन्न डिजाइनों से सम्बंधित मसले हो, उनके योगदान को हमेशा याद रखा जायेगा।

श्री देवन्द साहब का मानना था कि सेवानिवृत्ति के पश्चात व्यक्ति थर्ड लाइफ (तीसरी जिंदगी) जीता है जिसमें वह बहुत पॉवरफुल होता है क्योंकि उसके पास समुचित समय, धन व अनुभव से परिपूर्ण होता है। उनकी थर्ड लाइफ में उन्होंने हैल्थ व वेलनेस के क्षेत्र में जनहित के लिए जोरदार उदाहरणार्थ कार्य किया। देवन्द साहब विभिन्न विषयों पर बहुत सारी किताबें पढ़ते थे और हमेशा नई चीजें सीखने में विश्वास रखते थे। सेवानिवृत्ति के पश्चात् दौड़ने की टेक्निक सीखी और उन्होंने अनेकों बार 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ न केवल पूर्ण की अपितु उनकी कैटेगरी में प्रथम स्थान पर भी आये। उनके मोटिवेशन से अनेको युवा मित्रों ने भी मैराथन दौड़ना प्रारंभ की और जिसे गर्व के साथ पूर्ण करते रहे। मैराथन जैसी कठिन दौड़ को सरलता से पूर्ण करने हेतु श्री प्रभु लाल देवन्द सर द्बारा बताई गई टिप्स व टेक्निकस् को याद करते हुए वे सभी अपने आप को उनके सानिध्य प्राप्त होने के लिए बेहद सौभाग्यशाली समझते है। श्री देवन्द साहब ने खुले दिल से सभी को अपना पोस्चर सही रखने, श्वास लेने की सही विधि, बैलेंस्ड डाइट इत्यादि के बारे में आगे से जाकर जानकारी देकर लाभान्वित किया। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक बैलेंस व नैतिक मूल्य बेहतर करने हेतु उन्होंने जीवन विद्या की पद्धति को पहले स्वयं सीखा और फिर दूसरों को उसके प्रति उत्साहित किया। अनेकों लोगों को मेन्टरिंग के माध्यम से श्री देवन्द साहब ने जीवन की राह में गाईड किया। वे चाहते थे कि मेन्टरिंग को व्यवस्थित तरीके से अपनाकर बड़े स्तर पर लोगों का भला किया जाये ताकि बेहतर समाज का सृजन हो सके।

देश के आदिवासियों के लिए एक कल्याण व उत्थान हेतु थिंक टैंक विकसित करने के उद्देश्य से आदिवासी अधिकारियों व समकक्ष की सामाजिक संस्था अरावली विचार मंच की सन् 2003 में स्थापना की। श्री प्रभु लाल देवन्द अरावली विचार मंच के प्रथम आजन्म संरक्षक एवं अध्यक्ष थे। जब संस्था का रजिस्ट्रेशन हुआ था उसी वक्त उन्होंने रू. 15000/- का आशान्वित सहयोग देकर, वे आजन्म संरक्षक के रूप में सदस्यता ग्रहण करने वाले केवल एकमात्र व्यक्ति थे। अरावली विचार मंच के प्रत्येक उद्देश्य को निर्धारित करने मेंं श्री देवन्द साहब ने बहुत सोच-विचार, ऊर्जा व समय लगाया। प्रमुख रूप से अरावली विचार मंच के निम्नांकित उद्देश्य तय किये गए - 
1. सदस्यों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए उनके बीच आपसी सहयोग के आधार पर भ्रातृत्व भाव विकसित करना व उनके व्यक्तित्व निर्माण हेतु      विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन तथा उनकी समस्याओं के निदान हेतु प्रयत्न करना।
2. सदस्यों में देश प्रेम, आत्मविश्वास, स्वाभिमान तथा मानवीय गुणों का सर्वांगीण विकास करना।
3. समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों जैसे बालविवाह, दहेज प्रथा, नशाखोरी आदि से मुक्त होने हेतु कार्यक्रम बनाना व जागरूकता उत्पन्न करना।
4. समाज में बालिकाओं के स्वास्थ्य व शिक्षा को प्रोत्साहन देना, प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार करना व सीमित परिवार अपनाने हेतु लोगों को जागरूक करना।
5. बुजुर्गों के प्रति सम्मान एवं उनके प्रति सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना।
6. कमजोर वर्ग के हितों की रक्षा के लिए व्यवस्था में व्याप्त कमजोरियों को उजागर करना तथा सामाजिक न्याय दिलवाने के लिए कार्य योजना बनाना        तथा क्रियान्वयन करना।
7. सेवाभावी, सेवानिवृत्त प्रतिभाओं को संगठित करना तथा उनके माध्यम से युवा वर्ग की प्रच्छन्न प्रतिभा एवं शक्तियों के रचनात्मक मार्गदर्शन हेतु नेटवर्क      बनाना तथा क्रियान्वयन करना।
8. बच्चों, महिलाओं, अपंग-अपाहिजों तथा कमजोर वर्ग के लोगों के सशक्तिकरण के लिए प्रयत्न करना।
9. समान विचारधारा वाले व्यक्तियों /समूहों से विचारों का आदान-प्रदान करना ।
10. खेलकूद व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
11. समाज की होनहार प्रतिभाओं का उचित मार्ग दर्शन एवं सम्मान करना व उनमें से निर्धनों को आर्थिक सहायता देना।
12. पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन करना।
कालांतर में अरावली विचार मंच को उन्होंने एक छोटे पौधे से पेड़ बनाने में अतिविशेष योगदान दिया। सदस्यों में आपस में सकारात्मक संवाद व सहकारिता कायम करने में उनकी विशिष्ट भूमिका रही। श्री प्रभु लाल देवन्द, प्रधान पैट्रन (संरक्षक) के सानिध्य व दिशानिर्देशों में अरावली विचार मंच आदिवासियों के कल्याण से संबंधित मामलों में हमेशा सक्रिय रहा। राजस्थान में एक जाति विशेष के उग्र आंदोलन व अनुचित दबाव के कारण उसको एसटी में शामिल करने पर विचार करने के लिए गठित चोपड़ा समिति को महत्वपूर्ण दस्तावेज, सूचना और गवाह प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मीना-मीणा मुद्दे को समझाने हेतु दूसरी सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर दस्तावेज़ एकत्रित किये, प्रेजेंटेशन दिए, सेमिनार व मीटिंग्स आयोजित करवाई जिससे जनता, नेताओं, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और सरकार को इस मुद्दे को सही रूप से समझने में मदद मिली। स्वदेशी लोगों के अधिकारों से संबंधित मुद्दों के प्रति जनजागृति हेतु अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस के उत्सव को बड़े स्तर पर वर्ष 2015 से लगातार सेलिब्रेट करके लोकप्रिय बनाया। देश की जनजातियों को एकजुट करने के लिए जयपुर में "अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद" की राष्ट्रीय स्तर की बैठक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित करवाने का प्रबंधन संभाला। सदस्यों के परिवार मिलन आयोजनों से महिला सशक्तिकरण के साथ सामाजिक मुद्दों पर अनेकों परिचर्चा की। आर्थिक रूप से कमजोर 24 आदिवासी छात्र-छात्राओं को 12000/- रुपये प्रति वर्ष की आर्थिक सहायता प्रदान की। 10वीं या 12वीं में 80% या उससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले 142 प्रतिभाशाली आदिवासी छात्र-छात्राओं को योग्यता प्रमाण पत्र और नकद पुरस्कार से सम्मानित करके उन्हें प्रोत्साहित किया। गरीब आर्थिक पृष्ठभूमि वाली आदिवासी छात्राओं के लिए प्रताप नगर, जयपुर में छात्रावास के निर्माण हेतु अरावली विचार मंच के सदस्यों द्वारा लगभग 28 लाख रु. का वित्तीय सहयोग स्वयं किया तथा लगभग 36 लाख का सहयोग दूसरे समाज सेवा का भाव रखने वाले महानुभावों व संस्थाओं से प्रदान करवाने में अहम भूमिका निभाई। सामूहिक विवाह सम्मेलनों को बढ़ावा देने के लिए 3 स्थानों पर रू. 83000/- का योगदान दिया। 13/200 पॉइन्ट रोस्टर को समझने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों की व्यवस्था की। समय समय पर सामाजिक मुद्दों पर जनजागृति हेतु पत्रिकाएं प्रकाशित की जाती रही। हाल ही में श्री देवन्द साहब की पहल से 3 ई_पत्रिकाएँ 1.जनजातीय समाजों को सशक्त बनाना 2. जनजातीय सशक्तिकरण 3. जनजातीय नेताओं का योगदान प्रकाशित की गई जो कि बेहद जनप्रिय हुई। कोविड़-19 सर्वव्यापी महामारी के समय जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन और राशन के पैकेट वितरण के साथ-साथ मुख्यमंत्री कोविड-19 मिटिगेशन कोष में 5 लाख रु. का सहयोग प्रदान किया गया।

श्री प्रभु लाल देवन्द सर को हर व्यक्ति एक सकारात्मक सोच रखने वाला, सिस्टेमेटिक कार्यशैली, जीवन के हर पहलू में गुणवत्ता, दृढ़ संकल्पी, आमजन के लिए मददग़ार, महिला सशक्तिकरण के पुरजोर समर्थक, विश्वास करने योग्य अग्रज, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्तित्व के रूप में हमेशा याद रखेगा। हम सभी उनकी दिवंगत आत्मा की शांति के लिए कामना करते हुए उनके सपनों व  विचारों को साकार करने के प्रयास करेंगे। ॐ नमः शिवाय। 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना,
मुख्य यांत्रिक इंजीनियर, भारतीय रेलवे
एवं महासचिव, अरावली विचार मंच।
rpmwu415 dt. 19.07.5021

Wednesday 14 July 2021

पंचो के प्रति कृतज्ञ रहे व उनका आदर करें।

rpmwu414 dt. 14.07.2021

#Life_lesson आज पंच शब्द का जोरदार अर्थ मिला है। साधारणतया पंचों की राय का मतलब माना जाता है कि पांच महानुभावों की राय। परन्तु प्रकृति के पांच तत्व अर्थात् पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि व आकाश ही असली #पंच है।

यदि मनुष्य वास्तव में सस्टेनेबल डवलपमेंट चाहता है तो उसे प्रकृति के इन पांच पंचों की परवाह व आदर करना होगा। इनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना ही मनुष्यता है। इन पंचों को अंधाधुंध नुकसान पहुंचाने से समस्त मानव सभ्यता खतरे में पहुंच कर विलुप्त भी हो सकती है।

#respectthe5elements

Regards
Raghuveer Prasad Meena 

Tuesday 13 July 2021

अपने मष्तिष्क को तिजोरी की तरह प्रयोग में ले न कि डस्टबीन की भांति।

rpmwu413 dt.13.07.21

#Life_lesson व्यक्ति यदि उसके मन मष्तिष्क में लम्बे समय तक क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, बदले की भावना, दूसरों को दूखी करने की सोच, संकुचित व दकियानूसी विचारधारा या धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (#DAP) जैसे नकारात्मक भाव रखता है तो वे डस्टबीन में रखे कचरे के समान सड़ने लगते है जिनकी बदबू उसके व्यक्तित्व व व्यवहार में परिलक्षित होती है। ऐसे लोग स्वयं को ही सबसे अधिक नुकसान करते है और दूसरों के प्रति भी उनका नजरिया संकीर्ण हो जाता है। अत: अपने मन मष्तिष्क में नकारात्मक भावों को लम्बे समय तक नहीं रहने दिया जाये।

व्यक्ति को मन में हमेशा दूसरों के प्रति सद्भाव, सहयोग तथा कल्याण की सोच रखनी चाहिए। आप 2 उन घटनाओं को याद करो जब आपके साथ किसी ने अच्छा व्यवहार किया हो या आपकी सहायता की हो एवं इसी तरह 2 उन अवसरों को याद करो जब आपने दूसरों की मदद की हो। ये दोनों स्थितियां आपको प्रसन्नता प्रदान करेंगी। इनके विपरीत नुकसान करने की घटनाओं की याद आपके मन को क्षुब्ध कर देगी।

हमेशा याद रखे कि हमारा मष्तिष्क कचरे रखने वाली डस्टबीन नहीं है। उसे अच्छे सद्विचार व सद्भाव विकसित करने की तिजोरी की रूप में काम में ले।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 12 July 2021

उतना ही ले थाली में, व्यर्थ न जाये नाली में। अन्न का आदर करें, बर्बाद नहीं करें।

         rpmwu412 dt.12.07.2021

#Life_lesson अन्न उत्पन्न करने में बहुत अधिक मेहनत व संसाधन खर्च होते है। पता होना चाहिए कि #1_किलो_गेहूं पैदा करने में लगभग #800_लीटर_पानी खर्च होता है। राजस्थान में एक बीघा भूमि का आकार 165 फीट x 165 फीट यानी 27225 वर्गफीट अर्थात 3025 वर्गगज या 2529.285 वर्गमीटर होता है। गेहूं पैदा करने के लिए खेत की न्यूनतम 5 बार सिंचाई करनी पड़ती है। एक बार की सिंचाई में 3 इंच पानी की आवश्यकता को समझे तो एक बीघा में गेहूं पैदा करने के लिए 5 बार सिंचाई हेतु 9.64 लाख लीटर पानी की जरूरत रहती है और पैदावार होती है लगभग 30 मण यानी 1200 किलो। इन आंकड़ों से प्रति किलो गेहूं के लिए 803 लीटर पानी की आवश्यकता निकलती है। जहां पैदावार कम या ज्यादा है ये आंकड़ा तदनुसार बदल सकता है। इसके अलावा खेतो की जुताई का खर्च, खाद (देशी, डीएपी व यूरिया), बीज, किसान की मेहनत, मजदूरों की लागत व ओले, टिड्डी इत्यादि का रिस्क अलग है। 

दूसरी ओर संसार में अाज भी अनेकों लोगों को दिन में भरपेट खाना नहीं मिलता है।

हर समझदार व्यक्ति को चाहिए कि खाने को बिलकुल भी बर्बाद नहीं करें। जितना चाहिए थाली में उतना ही ले। अनावश्यक खाने से भी व्यक्ति बीमारियों से ग्रसित होता है, खाने के साथ दवाईयों पर बेवजह खर्च करना पड़ता है।

सादर
Raghuveer Prasad Meena


Sunday 11 July 2021

विनम्रता के साथ वैज्ञानिक सोच विकसित करके आगे बढ़े।

rpmwu411 dt 11.07.2021

#Life_lesson अनेकों देश व लोग जो आज विकास की राह में बहुत पीछे है वे उनके पुराने दिनों पर गर्व करते हुए भ्रम में रहते है और काफी अधिक समय वे भूतकाल की बातों में ही नष्ट करते रहते है। आवश्यकता है कि आज व भविष्य की स्थितियों पर अधिक समय व ऊर्जा लगाई जाये।

Small minds discuss people in their absence. 
Medium minds discuss events of the past. 
Great minds discuss ideas to progress ahead.

यदि वास्तव में आगे बढ़ना है तो भूतकाल को यथार्थ में समझकर वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। विनम्रता (humility) के साथ सभी को सम्मान देते हुए आगे बढ़ने की वैज्ञानिक सोच विकसित करें।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Saturday 10 July 2021

भ्रष्टाचार का पेड़

rpmwu410 dt. 10.07.2021

#goodwork  ACB Rajasthan has been doing real commendable job by nabbing a lot of corrupt public servants.

वैसे तो हर प्रकार का भ्रष्टाचार गलत है परन्तु अपोइंटमेंट के समय रिश्वत लेना भ्रष्टाचार का पेड़ लगाने जैसा है। इस प्रकार का भ्रष्टाचार देश के नागरिकों व सिस्टम के लिए दीर्घकालिक नुकसान को जन्म देता है। क्योंकि सामान्यतः जो व्यक्ति रिश्वत देकर नौकरी लगता है वह उसके जीवन में जरूर ही भ्रष्ट बनेगा, वह उसके द्वारा भुगतान की गई राशी को जल्दी से जल्दी वसूलना चाहेगा। ऐसे रिश्वतखोरों की वजह से ईमानदार व योग्य कैंडिडेट्स को भी भारी नुकसान होता है।

आवश्यकता है कि नौकरी लगाने के नाम पर होने वाले हर प्रकार के धोखे व भ्रष्टाचार पर और अधिक नकेल कसी जानी चाहिए ताकि ईमानदार व योग्य कैंडिडेट्स के साथ न्याय हो सके तथा कालांतर में सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार कम हो और देश के नागरिकों के लिए सरकारी फण्डस् का सही सदुपयोग हो। 

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Sunday 4 July 2021

भ्रष्टाचार बन रहा है उत्प्रेरक अंधविश्वास व धार्मिक क्रिया-कलापो को बढ़ाने में। सीधे-साधे लोग होड़ में लुट रहे है व नहीं कर रहे है जनहित के कार्यों में आर्थिक सहयोग।

 भ्रष्टाचार बन रहा है उत्प्रेरक अंधविश्वास व धार्मिक क्रिया-कलापो को बढ़ाने में। सीधे-साधे लोग होड़ में लुट रहे है व नहीं कर रहे है जनहित के कार्यों में आर्थिक सहयोग। [rpmwu409 dated 04.07.2021]

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यह देखने में आया है कि अंधविश्वास व धार्मिक क्रिया-कलाप जैसे कथा, भागवत, यज्ञ इत्यादि में कई लोग बहुत अधिक धन ख़र्च कर देते है। यज्ञ की मुख्य कुण्डी पर बैठने हेतु लाखों रू. तक की बोली लगती है। कथा-भागवतों के कार्यक्रमों में भी कथा वाचक व उसके सहयोगी लाखों रू. एकत्रित करके ले जाते है।
अब यह देखे कि कौन लोग है जो इस प्रकार के आयोजनो में अधिक धन ख़र्च करते है? अनुभव व आम लोगो से हुई बातचीत के अनुसार भ्रष्टाचार से धन कमाने वाले अधिकतर लोग इन प्रोग्रामों को ज्यादा करवाते है। इसका कारण यह भी बताया जाता है कि ऐसे लोग यह समझते है कि इस प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन से भ्रष्टाचार करने से हुए पाप कम हो जायेंगे।
भ्रष्टाचार में लिप्त इस प्रकार के लोगो से प्रभावित होकर या होड़ में कई अंधविश्वासी लोग भी ऐसे आयोजनो में मेहनत से कमाये धन को भी नष्ट करते है। जब सामाजिक महत्व व गरीब के हित के कार्य जैसे कन्या छात्रावास के निर्माण या गरीब होनहार बच्चे की पढ़ाई में आर्थिक सहयोग के लिए उनसे बात करते है तो वे विभिन्न प्रकार के बहाने बनाते है व सहयोग नहीं करते है।
इस प्रकार के अंधविश्वास पर भ्रष्टाचार से कमाये गये धन को ख़र्च करने से समाज को निम्न चार प्रकार के नुकसान प्रमुखत: है-
1. भ्रष्टाचार करने के कारण आम आदमी (कॉमन मेन) को डॉयरेक्ट या इनडॉयरेक्ट हानि व परेशानी। जो व्यक्ति भ्रष्टाचार का शिकार होता है वह भी फिर भ्रष्टाचार करके धन कमाने का प्रयास करता है। इस प्रकार यह भ्रष्टाचार का एक कुचक्र बन जा रहा है जिससे देश की जनता परेशान हो रही है व देश की छवि पर भयंकर विपरीत असर हो रहा है।
2. ऐसे लोगो की होड़ में या उनसे प्रभावित होकर सामान्य लोग भी इन कथा, भागवत व यज्ञों में लुट रहे है। वे अंधविश्वासी व कम साहस वाले बनते जा रहे है।जिससे देश व समाज सभी को नुकसान है।
3. जब लोग इन धार्मिक प्रपंचों में धन व्यर्थ कर देते है तो उनके पास अच्छे कार्यों में सहयोग के लिए धनराशि नहीं बचती है। इससे सामाजिक उत्थान के कार्यों की मात्रा व गति दोनों ही कम हो जा रही है।
4. एक और नुकसान यह है कि कथा-भागवत, यज्ञ इत्यादि करने वाले लोगो की संख्यॉ बढ़ती जा रही है। क्योंकि उनको कमाई का बहुत ही सरल साधन मिल जा रहा है। ये लोग नॉन-प्रोडक्टिव और कहे तो अंधविश्वास फैलाने वाले नकारात्मक कार्य में लिप्त हो जा रहे है। यदि लोग इनके कार्यों को प्रोत्साहित नहीं करगें तो ये बुद्धिमान लोग देश हित के सकारात्मक कार्य कर सकेंगे।

यदि धन से वास्तव में मानवता की भलाई ही करनी हो तो गरीब होनहार बच्चों की पढ़ाई , छात्रावासों के निर्माण,  शारीरिक रूप से कमज़ोरों को उनकी हैल्थ सुधारने या ग़रीब-बेसहाराओं को उनके हक़ दिलाने में मदद करे। ज़रा सोचो कि शुभ कार्य या खुशी के मौक़े पर किसी ने #DAP (धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण) के कार्यो की बजाय किसी गरीब होनहार बच्चे की पढ़ाई में मदद करने का कार्य किया हो और वह बच्चा बड़ा होकर योग्य इंसान बन जाये तो कालांतर में इस बात से कितना अच्छा लगता रहेगा।


कृपया उक्त का अवलोकन कर अपने विचारों से अवगत कराये। साथ ही कथा-भागवत व यज्ञ इत्यादि के स्थान पर और क्या क्या जनहित के सामाजिक कार्य करवाये जा सकते है उनके बारे मे भी बताये।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना