Sunday 17 November 2019

17 नवम्बर 1913 : मानगढ़ आदिवासी नृशंस हत्याकांड।

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16.11.2019

17 नवम्बर 1913 : मानगढ़ आदिवासी नृशंस हत्याकांड।

अंग्रेजो द्वारा राजस्थान राज्य के बांसवाड़ा जिले में #मानगढ़_धाम_नृशंस_हत्याकांड जालियाँवाला_बाग_नृशंस_गोलीकांड से 6 वर्ष पहले 17 नवम्बर, 1913 को हुआ था।

13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में घटित जालियाँवाला बाग़ गोलिकांड में ब्रिटिश सरकार के अनुसार 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए। लेकिन तत्कालीन अख़बारों के अनुसार मरने वालों का आंकड़ा 1000 के आसपास था। जबकि #मानगढ_धाम_नृशंस_हत्याकांड़ में 1500 से अधिक आदिवासियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई और 900 लोगों की गिरफ्तारी हुई।

#मानगढ़_धाम_के_आदिवासी_बलिदान_की_कहानी
गोविन्द गुरु, एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थे। 

वे आदिवासियों में अलख जगाने का काम करते थे। उन्होंने 1890 में एक आन्दोलन शुरू किया था जिसका कि मूल उद्देश्य आदिवासी-भील समाज को शाकाहार के प्रति जागरूक करना और आदिवासियों में फैल रही नशे की लत को दूर करना था। इस आन्दोलन को ‘भगत आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इस दौरान भगत आन्दोलन को मजबूती प्रदान करने के लिए गुजरात से संप-सभा जो एक धार्मिक संगठन था, उसने भी सहयोग देना शुरू कर दिया। संप-सभा भीलों से करवाई जा रही बेगारी के ख़िलाफ़ काम करती थी। इस आन्दोलन में अलग-अलग गाँवों से लगभग #पांच_लाख आदिवासी-भील जुड़ गए थे।

1903 में गोविन्द गुरु ने मानगढ़ को अपना ठिकाना चुना और वहाँ से अपना सामाजिक कार्य जारी रखा। 1910 तक आते-आते भीलों ने अंग्रेजों के सामने 33 मांगें रखी। जिनमें मुख्य रूप से अंग्रेजों और रजवाड़ों द्वारा करवाई जा रही #बंधुआ_मज़दूरी और #लगान से जुड़ी मांगें थी। अंग्रेजों के आलावा वहां के स्थानीय जमींदार, सामंत भी इनका शोषण करने में पीछे नहीं थे। इसी के विरोध में गोविन्द गुरु ने भगत आन्दोलन शुरू किया था। जब जमींदारो, सामंतों और रजवाड़ों को लगा की भगत आन्दोलन दिन प्रति दिन बड़ा होता जा रहा है तो उन्होंने अंग्रेजों को इस बात की जानकारी दी। अंगेजों ने गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन आदिवासियों के भयंकर विरोध के चलते अंग्रेजों ने गोविन्द गुरु को रिहा करना पड़ा। इसका असर यह हुआ कि हुक्मरानों का जुल्म आदिवासियों पर और बढ़ गया। यहाँ तक कि उन पाठशालाओं को भी बंद करवाना शुरू कर दिया जहाँ आदिवासी बेगारी के विरोध की शिक्षा ले रहे थे।

मांगें ठुकराए जाने, खासकर बंधुआ मज़दूरी पर कुछ भी एक्शन न लेने की वजह से आदिवासी गुस्सा हो गए और घटना से एक महीने पहले मानगढ़ की इस पहाड़ी पर एकत्रित होना शुरू हो गए। ये लोग नारे के रूप में सामूहिक-रूप से एक गाना गाते थे,
''#ओ_भुरेतिया_नइं_मानुं_रे_नइं_मानुं''

इस दौरान बेगारी के स्थान पर अंग्रेजों ने जुताई के बदले साल के सवा रुपये देने का वादा किया जिसे आदिवासियों ने ठुकरा दिया। तब अंग्रेजों ने 15 नवम्बर, 1913 तक पहाड़ी को खाली करने का आदेश दे डाला।
इन्हीं दिनों एक घटना और घटी कि गठरा और संतरामपुर गाँव के लोग गुजरात के थानेदार गुल मोहम्मद के अत्याचारों से परेशान थे। उससे निपटने के लिए गोविन्द गुरु के सबसे नज़दीकी सहयोगी पूंजा धीरजी पारघी ने कुछ लोगों के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। एक ही समय इन दो घटनाओं, पहाड़ी पर जमा होना और गुल मोहम्मद की हत्या, से अंग्रेजों को बहाना मिल गया।

17 नवम्बर, 1913 को मेजर हैमिल्टन ने अपने तीन अधिकारियों और रजवाड़ों व उनकी सेनाओं के साथ मिलकर मानगढ़ पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया और अंधाधुंध गोलीबारी करके 1500 से भी अधिक लोग मार दिये गए, गोविन्द गुरु को जेल में डाल दिया गया व उनके सहयोगी पूंजा धीरजी को काले-पानी की सजा दी गई। इसके अलावा 900 अन्य लोगों की भी गिरफ़्तारी हुई।

भील आदिवासीयों के इस नृशंस हत्याकांड का इतिहास में बहुत कम उल्लेख हैं, जो कि विचारणीय पहलू है। भील आदिवासियों को आज भी देश में वह स्थान नहीं मिला है जिसके वे हक़दार हैं जबकि सभी को ज्ञात है कि भील वही जनजाति है जिसके कि वीर योद्धा महाराणा प्रताप के सम्मान के लिये मर मिटे व शहीद हो गए।
मानगढ़ धाम में शहीद हुए आदिवासी गणवीरों की शहादत को शत् शत् नमन।

जोहार

रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 16 November 2019

मनुष्य की श्रेणी।

rpmwu286
16.11.2019

मनुष्य की श्रेणी। 

मनुष्य को उसको कार्यकलापों के आधार पर निम्न तीन बड़े वर्गों में विभक्त किया जा सकता है - 

#प्रथम ऐसे लोग जो कि स्वयं ती वजाय दूसरों के कल्याण के लिए बहुत अधिक कार्य करते हैं जैसे स्वामी विवेकानंद, विनोवा भावे, ज्योतिबा फुले, बिरसा मुंडा, महात्मा गांधी, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, मदर टेरेसा व अनेक महापुरुष। ऐसे लोग लेते कम है और देते ज्यादा है।

#द्वितीय ऐसे लोग जो कार्य करते हैं और कार्य के बदले में मेहनताना या सैलरी अथवा रिम्यूनेरेशन लेते हैं। ये लोग जो कर रहे है उसके लिए प्रतिफल लेने की आकांक्षा रखते हैं।

#तृतीय वे लोग जो कार्य नहीं करते हैं और बिना कार्य पैसे प्राप्त करने की मंशा रखते हैं जैसे कि कामचोर, ठग, धोखेबाज, चोर, परजीवी इत्यादि।

व्यक्ति को स्वयं समझना होगा कि वह उक्त तीन में से किस श्रेणी में आता है। और किस श्रेणी में उसे होना चाहिए। यदि वह उचित श्रेणी में नहीं है तो अपने आप को क्रमोन्नत करने के लिए उसे अपनी कार्यशैली में बदलाव करना होगा। दूसरों के लिए नहीं तो कम से कम स्वयं की नजरों में क्रमोन्नत होने के लिए उसे प्रथम या द्वितीय श्रेणी में आने की कोशिश करनी चाहिए। किसी भी हालत में तृतीय श्रेणी में रहकर उसे जीवन व्यर्थ नहीं करना चाहिए।

रघुवीर प्रसाद मीना

Thursday 14 November 2019

बिरसा मुंडा को नवाजा जाना चाहिए भारत रत्न से।


rpmwu285 dt. 14.11.2019

#बिरसा_मुंडा को नवाजा जाना चाहिए भारत रत्न से। 

महान् आदिवासी देशभक्त व स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के माता पिता का नाम सुगना मुंडा और करमी हातू थे। उनका जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड प्रदेश में राँची के उलीहातू गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढ़ने गये। वे हमेशा ब्रिटिश शासकों द्वारा देश वासियों पर उस समय किये जा रहे अत्याचारों के बारे में मन में सोचते रहतेे थे। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये नेतृत्व प्रदान किया। 

1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से वहां के लोगों की सेवा की। 1अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर उन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी। त्याग व दूसरों की मदद की भावना के कारण आम आदमी द्वारा उन्हें उनके जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा मिल चुका था। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती आबा" के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव व समझाईस से पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागृत हुई। 
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 मार्च 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये।
बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में ली। माना जाता है कि अंग्रेजो द्वारा उन्हें एक धीमा जहर दिये जाने के कारण उनकी मौत हुई। आज भी बिहारउड़ीसाझारखंडछत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है। मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है। 
महान् देश भक्त व स्वतंत्रता सेनानी वीर शहीद बिरसा मुंडा को उनकी देश भक्ति व आदिवासियों में आजादी के लिए सामाजिक जागृति लाने के लिए उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाना चाहिये। 
रघुवीर प्रसाद मीना 


Tuesday 12 November 2019

वेतन चोर व उनके मददगारों का मन गरीब मजदूरों से भी गरीब है।

rpmwu284 dt.11.11.2019

वेतन चोर व उनके मददगारों का मन गरीब मजदूरों से भी गरीब है। 

अनेक अवसरों पर सभी के ध्यान में आया होगा कि छोटी प्राईवेट नौकरी करने वाले कई मजदूरों व कामगारों को सरकार के मुताबिक तय की गई न्यूनतम मजदूरी के अनुसार जो वेतन देय होता है या तो उतना दिया ही नहीं जाता हैं अथवा ठेकेदार या संस्था कागजों में तो उतना दिखा देते हैं परंतु उनके क्रेडिट कार्ड इत्यादि लेकर या एडवांस रिकवरी के नाम पर उस पैसे को पुनः वापस अपने पास ले लेते हैं।

ऐसे वेतन चोर व उनके सहयोगकर्ता मन से उन गरीब मजदूरों व कामगारों से भी गरीब है जिनका कि वेतन पहले से ही बहुत कम होने के बावजूद उसमें से भी वे चोरी करते है।

कई सरकारी लोग इस प्रकार की वेतन चोरी में हिस्सेदार बनते हैं और यदि उनका समर्थन नहीं मिले तो वेतन चोरी हो पाना बहुत मुश्किल है।

मजदूरों व कामगारों के लिए तय न्यूनतम वेतनमान समान प्रकृति के कार्य करने वाले सरकारी कर्मियों के वेतन का लगभग 1/3 या उससे भी कम होता है। और उसमें से भी यदि लोग चोरी करें और चोरी करवाएं तो यह कितना निंदनीय कृत है।

जिस व्यक्ति को सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन मिल रहा हो वह कैसे अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करके उन्हें भारत का अच्छा नागरिक बना पाएगा?

जो लोग वेतन चोरी करते हैं और करवाते हैं दोनों को ही शर्म आनी चाहिए कि वे वास्तव में क्या कर रहे हैं? उन्हें इस प्रकार की घटिया हरकतें नहीं करनी चाहिए। और सिस्टम को भी चाहिए कि इस प्रकार के वेतन चोरी के मामले यदि सामने आते हैं तो उन्हें अत्यंत कड़ाई से डील किया जाए ताकि वेतन चोरी  करने वालों को सख्त से सख्त सबक मिले और मजदूरी का कार्य करने वाले लोगों को कम से कम न्यूनतम मजदूरी तो मिलना सुनिश्चित हो सके।

रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 10 November 2019

उपयुक्त #संसाधन या #व्यक्ति को ढूंढे : वांछित #कार्य #सुगमता से #सम्पन्न हो सकता है।

rpmwu283
10.11.2019

उपयुक्त #संसाधन या #व्यक्ति को ढूंढे : वांछित #कार्य #सुगमता से #सम्पन्न हो सकता है। 

कुछ दिन पहले आवास की पुताई के पश्चात दरवाजों पर #डिस्टेम्पर के जो दाग धब्बे व #निशान रह गए थे उन्हें #छुड़ाते समय बहुत जोरदार सीख मिली। डिस्टेम्पर के निशानों को छुड़ाने के लिए पहले साधारण डस्टर का प्रयोग किया गया उनसे वे बहुत मुश्किल से छूट पा रहे थे, उसके बाद स्कॉच ब्राइट का प्रयोग किया गया उससे भी वे आसानी से नहीं छूट पा रहे थे, परंतु जब #स्टील_वूल का प्रयोग किया गया तो वे तुरंत बहुत ही आसानी से छूटने लगे।

उक्त घटनाक्रम से यह बात समझ में आती है कि यदि किसी कार्य को करने के लिए आॅर्गनाईजेशन या व्यक्तिगत जीवन में सबसे #उपयुक्त_संसाधन का प्रयोग करेंगे तो वह #कार्य बहुत ही #आसानी से #संपन्न हो सकता है।

यह बात केवल दाग धब्बों को छुड़ाने तक ही सीमित नहीं है। जिंदगी में जब भी हम कोई कार्य करना चाहते हैं और यदि हम #उपयुक्त_संसाधन_या_व्यक्ति का #चुनाव कर लेते हैं तो वह #कार्य बहुत ही #आसानी से #संपन्न हो सकता है। और जब तक उपयुक्त संसाधन या व्यक्ति नहीं मिलता है तो उस कार्य को करने में बहुत अधिक मेहनत लगाने के बावजूद भी वह संपन्न नहीं होता है।

अतः किसी भी #कार्य को #आसानी से करने के लिए आॅर्गनाईजेशन या व्यक्तिगत जीवन में #उपयुक्त_संसाधन_या_व्यक्ति को ढूंढने की खासी आवश्यकता है ताकि किये जाने वाले वांछित कार्य को #सुगमता से #संपन्न किया जा सके।

रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 9 November 2019

अयोध्या राम मंदिर

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09.11.2019

#अयोध्या_राम_मंदिर

आज दिनांक 9 नवम्बर 2019 को राम जन्मभूमि पर माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अब वहां पर श्री राम का भव्य मंदिर बनना तय हो गया हैं। यह फैसला अधिकतर हिंदू जनसंख्या को बहुत अच्छा व सही लग रहा है।

इस फैसले के बाद देश के नागरिकों को समझना चाहिए कि भव्य मंदिर बनने से वास्तव में देश व नागरिकों को क्या लाभ होने वाले हैं?

मंदिर बनने से हिन्दू धर्म की जड़े और मजबूत होगीं। परन्तु यह विचारणीय पहलू है कि क्या हिंदू धर्म में आज तक भी सभी हिन्दूओं को समानता का अधिकार हो गया है? क्या हिन्दू बहुजन जनसंख्या अभी भी ऊंच नीच की अवधारणा से ग्रसित नहीं है?

क्या यह मंदिर फिर एक और बड़े व्यवसाय की यूनिट की तरह बन जाएगा जिससे केवल कुछ ही लोगों को लाभ होने वाला है? और दूसरे लोग वहां जाकर केवल और केवल खर्चा करेंगे और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) को बढायेंगे।

जो ट्रस्ट बनाया जाएगा उसमें क्या हिंदू कहे जाने वाले हर समुदाय का प्रतिनिधित्व होगा? वहां पर जो आमदनी होगी उसमें सरकार व ट्रस्ट की क्या भागीदारी होगी? ट्रस्ट उस आमदनी का क्या कर सकेगा?

आपके मन में बहुत से और सवाल हो सकते है, कृपया उन्हें साझा करें व अपने विचार भी व्यक्त करें।

रघुवीर प्रसाद मीना

Friday 8 November 2019

निजिकरण_Privatization

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08.11.2019

निजिकरण_Privatization

यह निश्चित है कि निजीकरण से जो #समुदाय या लोग #बिजनेस करते हैं या बिजनेस करने की मंशा रखते हैं उन्हें #लाभ होगा और जो #समुदाय या लोग सरकारी #नौकरी करने की सोच रखते हैं उन्हें #हानि होगी।
एक और बात है कि #निजीकरण में किस व्यक्ति को #जॉब पर रखना है व किस को नहीं रखना है या किस को किस स्तर पर रखना है यह #कांट्रेक्टर व उसके प्रबंधन पर #निर्भर करेगा। और सरकार जितनी #सैलरी कर्मचारियों को देती है वह उसका लगभग 1/3 या उससे #कम सैलरी कर्मियों को देगा। क्या ऐसी सैलेरी पर काम करने वाले लोग उनके #बच्चों, जो कि भारत का #भविष्य बनने वाले है, को सही ढंग से #पालन पोषण व #पढ़ा लिखा पायेंगे?

ऐसे में बहुत आवश्यकता है कि #निजीकरण को किन-किन क्षेत्रों में बढ़ाया जाए और किन में नहीं यह #गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि निजीकरण आखिरकार क्यों रहा है? इस बात को समझना होगा, #निजीकरण होने के पीछे यह सोच खासी काम करती है कि #सरकारी_लोग #काम_नहीं करते हैं और करते हैं तो अच्छी गुणवत्ता का काम नहीं करते है। इस सोच का सकारात्मकता से इलाज करना भी सरकारी लोगों के हाथ में ही है। अंधाधुंध निजीकरण की ओर जाने की वजाय आवश्यकता है की सरकारी #सिस्टम्स को #सही किया जाए और जो लोग काम नहीं करते हैं या खराब काम करते हैं या खराब काम करने या काम नहीं करने का माहौल बनाते है उनके प्रति #कड़ा_रुख अपनाया जाए। वास्तव में जो लोग काम नहीं कर रहे हैं या काम नहीं करने का माहौल बनाते हैं वे #भावी_पीढ़ी के लिए सरकारी जॉब के #रास्ते_बंद कर रहे हैं। अतः बहुत ही सख्ती से निपटने की जरूरत है।
33 वर्ष की सेवा या 60 वर्ष की उम्र पर #सेवानिवृत्ति का #फार्मूला #तुरंत लागू कर देना चाहिये क्योंकि ऊपर बैठे लोग जब काम नहीं करते है तो आॅर्गनाईजेशन को भारी नुकसान होता है।

रघुवीर प्रसाद मीना

Tribal Helping Hands Sanstha, Jaipur, Rajasthan.

rpmwu280
08.11.2019

Tribal Helping Hands Sanstha, Jaipur, Rajasthan. 

@Support to financially weaker Tribal Girls in their Education.
प्रताप नगर बालिका छात्रावास, जयपुर में आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी छात्राओं को प्रवेश दिलवाने हेतु आर्थिक सहायता देने के प्रमुख उद्देश्य से ट्राईबल हेल्पिंग हैंड नाम की एक संस्था बनाई गई हैं जोकि राजस्थान सरकार के सहकारिता विभाग में दिनांक 04.11.2019 से रजिस्टर्ड संस्था है।
आज दिनांक 2 दिसंबर 2019 तक संस्था 26 छात्राओं का प्रतापनगर बालिका छात्रावास में एडमिशन करवा चुकी है। ट्राईबल हेल्पिंग हैंड संस्था की ओर से आर्थिक सहयोग देने हेतु निम्नलिखित क्राइटेरिया है -
1 . यदि किसी बच्ची के पेरेंट्स नहीं है और आय का कोई भी स्रोत नहीं है और छात्रा पढ़ने में अव्वल है तो उन बच्चियों के लिए ग्रुप सम्पूर्ण फीस ₹4000 की आर्थिक सहायता प्रदान कर सकती है।
2  एक लाख से कम आय वाले BPLपरिवार की बच्चियो को संस्था से 2500/- प्रतिमाह की आर्थिक सहायता।
3. रू 1 से 1.5 लाख के बीच सालाना आय वाले परिवार की बच्चियों को ₹1500/- प्रतिमाह की आर्थिक सहायता।
4. रू.1.5 से 2 लाख के बीच सालाना आय वाले परिवार की बच्चियों को रू. 1000/-प्रतिमाह की आर्थिक सहायता।
5 . ₹2 लाख से ज्यादा सालाना आय वाले परिवार की बच्चियों को संस्था की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नहीं दी जाएगी।
संस्था की ओर से आपसे अनुरोध है कि -
1. यदि आपकी जानकारी में उक्त कैटेगरीज् में कोई छात्रा हो तो उसकी जानकारी निम्न लिंक पर उपलब्ध करवायें।
https://docs.google.com/forms/d/1CZNyLCgQGf_UOk31P6ZLs-fha9U2e6KpcTytEcQxe4I/edit?usp=drivesdk
2. यदि आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी छात्राओं के अध्ययन में आप मदद करना चाहते हैं तो कृपया इस संस्था से जुड़े, इसके सदस्य बने एवं अपनी ओर से सदस्यता शूल्क व सालाना आर्थिक सहयोग राशि प्रदान करें। बैंक अकाउंट की डिटेल्स :
Name : TRIBAL HELPING HANDS SANSTHA
A/C No. 38903030777
IFSC : SBIN0031477
3. आपकी जानकारी निम्न लिंक पर दें एवं श्री धर्म सिंह मीना मो. 8299651354 से सम्पर्क करें।
https://docs.google.com/forms/d/1CZNyLCgQGf_UOk31P6ZLs-fha9U2e6KpcTytEcQxe4I/edit?usp=drivesdk
4. जिन सक्षम लोगों या संस्थाओं को आप जानते हैं उनसे इस संस्था के लिए सहयोग राशि प्रदान करवाएं ताकि संस्था अधिक से अधिक आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी छात्राओं के अध्ययन में मदद कर सकें।
5. यदि आपकी ओर से कोई सुझाव हो तो उससे अवश्य अवगत करवायें।

रघुवीर प्रसाद मीना

#DAP : जो जितने प्रदुषण में रहते है वे उतनी ही जल्दी परेशानी में पड़ते हैं।

rpmwu279
07.11.2019

#DAP : जो जितने प्रदुषण में रहते है वे उतनी ही जल्दी परेशानी में पड़ते हैं। 

यह सर्वविदित है कि जो व्यक्ति जितने प्रदूषण में रहेगा उसका स्वास्थ्य उतना ही खराब होने वाला है यह ना केवल जल, वायु व नॉइज पोलूशन के लिए सही है बल्कि धार्मिक अंधविश्वास की प्रदूषण (DAP) के लिए भी उतनी ही सही है। अतः जो भी लोग या समुदाय धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण में जितना ज्यादा डूबे रहेंगे उनकी सोच उतनी ही पीछे एवं प्रदूषित रहने वाली है। अतः धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) से स्वयं को दूर रखें व दूसरों को भी दूर रहने की सलाह दी जाये।

व्यक्ति को कभी भी धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) और नैतिकता को एक समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। नैतिकता अलग चीज है और धार्मिक अंधविश्वास अलग।

व्यक्ति को नैतिक तो होना ही चाहिए। सबसे बड़ी नैतिकता यह है कि वह सही कार्य को करें जोकि अधिकतर लोगों के हित में हो और उस कार्य को अच्छी तरह संपादित करें, दूसरों के उत्थान के प्रति सोचे, पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाए, भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हो इत्यादि। इन चीजों का धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से कोई लेना देना नहीं है, ये नैतिक चीजें हैं जो कि व्यक्ति में होनी ही चाहिए। धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से दूर रहने से व्यक्ति की सोच सही व वृहद् होगी।

रघुवीर प्रसाद मीना

प्रकृति को नुकसान करने वाले या तो धूर्त है या स्वार्थी है।

rpmwu278
07.11.2019

प्रकृति को नुकसान करने वाले या तो धूर्त है या स्वार्थी है।

सर्वविदित है कि #श्वास(वायु) के बिना मनुष्य का एक दो मिनट भी जीवित रहना भी मुश्किल है। इसी प्रकार #पानी, #पृथ्वी, #सूर्य से मिलने वाला प्रकाश, जो कि एनर्जी का अल्टीमेट साॅर्स है व जिनकी वजह से समस्त वनस्पतिजगत व जीव जंतुओं का पोषण होता है और वनस्पति व जीव जंतुओं के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही संभव नहीं है, का प्रत्येक मनुष्य के जीवन में #जीवनदायी अहम् रोल है।

व्यक्ति वायु जिसे हुए सांस के रूप में ग्रहण करता है निशुल्क मिल रही है और जिस पानी के बिना उसका काम नहीं चल सकता वह भी लगभग निशुल्क में मिल रहा है जिस पृथ्वी पर रह रहा है वह भी निशुल्क मिल रही है और सूरत से जो प्रकाश मिल रहा है वह भी फ्री में ही मिल रहा है।

वायु, जल, पृथ्वी, सूर्य का प्रकाश जैसी बड़ी बड़ी व जीवनदायी चीजें #फ्री मिलने के बावजूद वह इन चीजों को ही बेतरतीब तरीके से #नुकसान पहुंचाता जा रहा है। और कोई बिना परवाह किए हुए उन्हें उनका दुरुपयोग भी कर रहा है। ऐसे लोगों के बारे में हम क्या कहेंगे? क्या ये लोग वास्तव में धूर्त हैं? अथवा अपने स्वार्थ के वशीभूत जिन चीजों से उनका जीवन चल रहा है उनको ही नुकसान करते वक्त लम्बी सोच नहीं रख रहा है?

हम सभी को चाहिए कि स्वयं पर्यावरण को कम से कम नुकसान करें व दूसरों को भी बताएं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना कितनी धूर्तता का काम है।

रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 5 November 2019

निर्माण कार्यों की धीमी गति से नुकसान।

rpmwu277
05.11.2019

निर्माण कार्यों की धीमी गति से नुकसान। 

कहते हैं कि भ्रष्टाचार विभिन्न समस्याओं की जड़ है और यह बात काफी हद तक सही है।  परंतु निर्माण कार्यों की धीमी गति से जितना नुकसान देश में होता है वह भ्रष्टाचार की तुलना में बहुत अधिक है। कार्यों के निर्माण की गति यदि सही नहीं है तो जो पैसा निर्माण करने के प्रोसेस में लॉक होता रहता है उसका उतने समय तक कोई लाभ नहीं होता है जितने समय तक कि कार्य संपन्न होकर उस असेट का उपयोग होना प्रारंभ नहीं हो जाये।
उदाहरण के तौर पर एक बहुत ही साधारण तरीके से समझने के लिए बताना चाहूंगा कि यदि पानी की सप्लाई के एक कार्य में ट्यूबेल लगाना, टंकी बनाना व पाइप लाइन लगाना सम्मिलित है और यदि इनमें से कोई भी कार्य समय पर संपन्न नहीं हो तो पानी की सप्लाई नहीं हो सकती है। यदि पाइपलाइन जैसा छोटा कार्य समय पर पूरा नहीं हो और टंकी बनाने में भारी पैसा खर्च कर दिया जाए तो उस खर्च किए हुए पैसे का क्या लाभ क्योंकि बिना पाईपलाईन के पानी की सप्लाई नहीं की जा सकती है।

इसी प्रकार यदि किसी पानी की परियोजना मैं पूरी पाइपलाइन बिछा दी गई हो, टंकियां बना दी गई हो परंतु जहां से पानी की सप्लाई होनी है वहां से सप्लाई प्रारंभ नहीं हो तो इतने भारी भरकम पैसे को पाइपलाइन व टंकी बनाने में खर्च करने का क्या लाभ?

ऐसे ही कहीं पर डैम के माध्यम से सिंचाई परियोजना बनानी हो और डैम बनाने में बहुत धन खर्च कर दिया जाए और नहर नहीं बनाई जाए, तो डैम में लगे हुए पैसे का क्या लाभ?

इस प्रकार के अनेकों उदाहरण हमारे जीवन में देखने को मिल सकते हैं। अतः आवश्यकता है कि जो भी कार्य करने हैं उनकी गति को तेज किया जाए ताकि जो पैसा उन पर खर्च किया जा रहा है उसका लाभ देश और जनता को समय पर मिल सके।

यदि कार्यों में विलंब होता है तो उसकी जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिए और प्रयत्न करने चाहिए कि उस प्रकार की देरी की पुनरावृत्ति दूसरे स्थानों पर नहीं हो।

रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 3 November 2019

सरपंच का चुनाव

rpmwu276
03.11.2019

सरपंच का चुनाव

राजस्थान में कुछ ही दिन बाद सरपंच के चुनाव होने वाले हैं। आज के जमाने में सरपंच का रोल सिस्टम में बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। सरपंच के माध्यम से केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं विभिन्न एनजीओ बहुत सारे कार्य ग्राम सभा से करवाते हैं। परंतु यह सामान्यतः सुना जाता है और देखा भी है कि सरपंच किए जाने वाले कार्यों को सही ढंग से निष्पादित नहीं करवाते हैं और उनकी गुणवत्ता बहुत ही निम्न स्तर की होती है। और बहुत सारे कार्य ऐसे होते हैं जो कि नितांत आवश्यक होने के बावजूद भी उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

जनता को चाहिए की सरपंच चुनते समय बहुत ही योग्य, ईमानदार, ऊर्जावान व कर्मठ व्यक्ति का चुनाव करें।
यदि जनता ईमानदार होगी तो सरपंच भी ईमानदार होगा। इस भावना को ध्यान में रखते हुए जनता को चाहिए कि चुनाव के दौरान सरपंच से किसी भी प्रकार का अनावश्यक खर्चा इत्यादि नहीं करवाएं। और यदि आवश्यकता हो तो उसके लिए स्वयं कुछ खर्च कर दें। ताकि आने वाले 5 सालों में वह पूर्ण निष्ठा के साथ पंचायत के माध्यम से गांव की सेवा करेगा।

कृपया आप सभी इस विषय में अपने अपने मत से अवगत करवाएं।

रघुवीर प्रसाद मीना