Monday 22 January 2024

श्रीराम भगवान से प्रेरणाएं एवं सीखें

rpmwu468 dt. 22.01.2024
आज दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में श्रीराम भगवान के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न होने जा रहा है और देश के नागरिकों में बहुत ही उल्लास और जोश है। आशा करनी चाहिए कि वर्तमान व भावी पीढ़ियां श्रीराम भगवान की जीवन-पद्धति को थोड़ा-बहुत अपनाकर सामाजिक सौहार्द व देश के विकास में बेहतर जिम्मेदारी निभायेंगी। 

श्रीराम भगवान की जीवन लीला के बारे में रामायण जी, रामलीला, धारावाहिकों, फिल्मों, बुजूर्गो के सानिध्य व अन्य ग्रथों और दस्तावेजों से थोड़ी बहुत जानकारी तो लगभग सभी को है। उनके जीवन से ली जाने वाली प्रेरणाएं व सीखें को लिख पाना तो सम्भव नहीं है। फिर भी मोटे तौर पर हर व्यक्ति निम्नलिखित प्रेरणाएं व सीखें ग्रहण करके सामाजिक व्यवस्था को बेहतर बनाने व देश की उन्नति में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है -
1. अपने चरित्र में मानवीयता के उच्च आदर्श व सिद्धांत विकसित करें।
2. संबंधों को निभाने के लिए त्याग करने की भावना हो। आराम व स्वार्थ से ऊपर उठे। माँ बाप के आदेशों व भावनाओं और भाइयों के प्रति समर्पित रहे। दूसरों द्वारा हमारे लिए किये गये कार्यों हेतु हमेशा कृतज्ञ रहे।
3. अच्छों को संरक्षण दे तथा दुष्टों के विनाश की कार्यवाही को जनकल्याण ही समझे।
4. अपने से धन, बल, बुद्धिमता व सामाजिक व्यवस्था में कमजोर व्यक्तियों के साथ सहजता व आदर से वार्ता करे। किसी का भी सामाजिक तौर पर तिरस्कार नहीं करें। सभी को सम्मान दे। छुआछूत नहीं करें। हंसते-मुस्कुराते मानवीयता से मिले।
5. दूसरों की बातों को ध्यान और धीरज से सुनें। उनमें विश्वास कायम करे। दूसरों के विचारों और भावनाओं के प्रति सच्ची सहानुभूति रखें। दूसरे की दृष्टि से घटनाओं या वस्तुओं को देखने का प्रयास करें। अपनी त्रुटि को शीघ्र स्वीकार करें।

यदि हम भगवान श्रीराम को आदर्श मानकर जीवन जिये तो सामाजिक  व्यवस्था को अच्छी बनाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकते है।
सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 3 January 2024

महान समाजसेविका माता सावित्रीबाई फुले

rpmwu468 dt. 03.01.2024
(03.01.1831 - 10.03.1897)

महिलाओं के लिए शिक्षा प्रारम्भ करवाने वाली सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। मात्र 10 वर्ष की आयु में इनका विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ था। 5 सितंबर 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। 

जब माता सावित्रीबाई महिलाओं की शिक्षा के लिए आगे आई तब समाज में महिलाओं को पढ़ाया नहीं जाता था। उनके अग्रणी रोल के कारण उनका बहुत विरोध हुआ, लोगों ने अपमान किया परन्तु उन्होंने बहादुरी और जज्बा दिखाया। वे महिला शिक्षा की प्रेरणा स्त्रोत है। उन्हें शत-शत नमन। 

सादर 

रघुवीर प्रसाद मीना 


जयपाल सिंह मुण्डा को जाने व याद करें और प्रेरणा ले।

rpmwu467/03.01.2024
जयपाल सिंह मुंडा 
(3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970) 

जयपाल सिंह मुंडा देश के आदिवासियों और झारखंड में हुए विभिन्न आदिवासी आंदोलनों के एक सर्वोच्च नेता थे।  जयपाल सिंह मुंडा पढ़ने में बहुत इंटेलिजेंट थे, वे भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने वाले प्रथम आदिवासी थे। 1928 में हॉकी के विश्व कप जिसमें भारत विजेता हुआ, उस टीम के कप्तान थे। 

वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जयपाल सिंह मुंडा कंस्टीट्यूएंट असेंबली के सदस्य थे, जिन्होंने ने संविधान के निर्माण के समय आदिवासियों के हित के संबंध में जरूरी पक्ष रखें और आदिवासियों को संविधान में जो अधिकार मिले हुए है उसमें जयपाल सिंह मुंडा का बेहद बड़ा व जोरदार योगदान रहा है। 

उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हर क्षेत्र यथा पढ़ाई, खेल व राजनीति में अच्छा प्रदर्शन किया जा सकता है। अपने लोगों के हित की बातों को बहादुरी व समझदारी से कहा जा सकता है और उन्हें लाभान्वित किया जा सकता है। 

भारत देश में आज तक किसी भी आदिवासी शख्सियत को भारतरत्न से नवाजा नहीं गया है। हमें मांग करनी चाहिए कि आदिवासियों को हक दिलाने वाले महान राजनीतिज्ञ श्री जयपाल सिंह मुण्डा जी को भारतरत्न से पुरस्कृत किया जाये। 

जोहार
रघुवीर प्रसाद मीना