Friday 18 June 2021

खुशी एवं संतोष : अच्छे व मददगार पलों में है।

rpmwu408 dt. 18.06.2021

 खुशी और मन में संतोष किन चीजों से तत्काल (इस्टैंट) रूप में आता है? आपके साथ कभी किसी ने अच्छा किया हो, आपकी मदद की हो उनमें से दो महत्वपूर्ण पलों को याद करें एवं इसी प्रकार जब आपने किसी की मदद की हो उनमें से भी दो पलों को भी याद करें। दोनों स्थितियों में आपको अच्छा महसूस होगा। परन्तु ठीक इसी के विपरीत, यदि आपके साथ किसी ने खराब किया या आपने किसी के साथ खराब किया तो इन दोनों ही स्थितियों में आपको खराब महसूस होगा। 

जब इतनी सरल सी बात है कि अच्छा करने की घटनाओं को याद करने मात्र से लोंगलास्सटिंग प्रसन्नता मिलती है, खुशी होती है व संतोष मिलता है तो हमें चाहिए कि हम अपनी जीवनशैली में विचार व आत्मावलोकन करके दूसरों की मदद व उनके जीवन को सुलभ बनाने की सोच विकसित करे एवं व्यवहार में अपनाएं।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 17 June 2021

#कृतज्ञ रहे व स्वयं भी दूसरों के लिए सार्थक करें।

rpmwu407 dt. 17.06.2021

जब चीजें आसानी से मिलती है तो उनकी वैल्यू या उनके पीछे मेहनत व लगा समय समझ नहीं आता है। रोटी तो महज़ आसानी से समझने के लिये एक उदाहरण है। यदि गहराई से समझे तो महसूस कर सकते है कि हमारे जीवन में काम आने वाली या जीवन को सुलभ बनाने वाली हर चीज के पीछे किसी की बहुत मेहनत, लगन व रिसर्च तथा बनाने में समय लगा हुआ है।


रोटी के साथ कपड़ा, घर, बिजली, घर में आने वाला पानी, टीवी, मोबाइल, चश्मा, किताबें, पेन, व्हीकल, दवाईयां व वैक्सीनस्, रेल, रोड, हवाईजहाज़, जुते, घर के उपकरण व मशीनें इत्यादि और जिसके बारे में आप सोचे उसे बनाने के पीछे बहुत मेहनत, रिसर्च व समय लगा हुआ है। हम इनको आसानी से उपयोग में लेते है।


उपरोक्तनुसार हम सभी, बहुत सारे दूसरे लोगों के ऋणी है। अतः हमें दूसरों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए एवं हमें स्वयं भी दूसरों के जीवन को बेहतर व सुलभ बनाने के लिये सार्थक काम करने चाहिए।


सादर

Raghuveer Prasad Meena

Monday 14 June 2021

धन के अभाव में भी व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है। आचार विचार उत्तम रखने में धन नहीं चाहिये।

rpmwu406 dt 14.06.2021

उपरोक्त लेख में बहुत ही जोरदार सीख लिखी है। किसी व्यक्ति को अपने आप को उसके मन में अच्छा समझने से दूसरा कोई भी नहीं रोक सकता है। व्यक्ति अपने भाव में उच्च विचार रखें व दूसरों की मदद करने की भावना विकसित करे। ऐसा हरेक व्यक्ति को स्वयं ही करना है। हालांकि आसपास के वातावरण से फर्क पड़ता है, उदाहरणार्थ यदि कोई बाग बगीचों व फूलों में घूम रहा हो तो उसके मन में अच्छे भाव आयेंगे और यदि वह गंदे नाले या सड़ी गली चीजों के आसपास है तो वह खराब ही सोचेगा। व्यक्ति की कड़ी मेहनत व अनेकों जतनो के पश्चात भी यदि वह आसपास के वातावरण में बदलाव नहीं कर सके तो उसे जगह बदल लेना ही श्रेष्ठतम है। संगत का भी व्यक्ति की सोच बनने में अतिमहत्वपूर्ण रोल होता है, अतः संगत सोच समझकर ही तय करें एवं यदि सही नहीं है तो ज्यादा समय तक उसमे नहीं रहे, बदल लेने में ही समझदारी है। 

बिना धन के ही कोई भी व्यक्ति दूसरों के मिलने पर मुस्कुरा सकता है, मीठी वाणी में बात कर सकता है, प्रशंसा कर सकता है, शुभकामनाएं दे सकता है एवं अपने हाथों से मदद कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार अपनाए तो वह जीवन में स्वयं के प्रयत्नों व दूसरों की मदद एवं आशिर्वाद से जरूर ही सफल हो जाएगा।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 12 June 2021

जहाँ न्याय नहीं वहां उजाड़ निश्चित है। अत: न्यायपूर्ण व्यवहार करें।

rpmwu405 dt. 12.06.2021

एक अच्छी सीख है कृपया अवश्य पढ़ें....

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? 

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है। 

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! 

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा 

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये। 

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। 

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। 

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! 

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जाँच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। 

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? 

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! 

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है! 

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं! 

जहाँ भी दुर्दशा है उसका मूल कारण अनैतिक न्याय व्यवस्था व न्याय नहीं मिलने की सोच से अत्याचार के विरूध्द आवाज नहीं उठाना है।

हम स्वयं का आत्मावलोकन करें और अपने आप में सही को सही व गलत को गलत कहने का साहस लायें और दूसरो को ऐसा व्यवहार करने हेतु प्रेरित करें। किसी जगह/समाज/परिवार में यदि न्याय सही होने लगे तो वहां उन्नति व विकास और खुशहाली अवश्य होगी।

(यह कहानी हमारे एक वरिष्ठ साथी श्री रामप्रसाद जी ने शैयर की है, मैंने फोटो लगाया है एवं अंतिम निष्कर्ष में मेरी सोच से बदलाव किये है।) 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 10 June 2021

Elite (अभिजात) : जो कमजोर का ध्यान नहीं रखे वह एलीट कहलाने योग्य नहीं है।

rpmwu404 dt. 10.06.2021

शब्दकोश की परिभाषा के अनुसार एलीट (अभिजात) सबसे धनवान, सबसे शक्तिशाली, सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा अथवा सबसे प्रशिक्षित ग्रुप के लोग होते है।

यदि कोई व्यक्ति उससे आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या अथॉरिटी में कमजोर व्यक्तियों का शोषण करें अथवा उनसे अपेक्षित ढंग से व्यवहार नहीं करे या प्रताड़ित करे तो क्या ऐसे लोग एलीट कहलाने योग्य है? मेरे मतानुसार बिलकुल नहीं, क्योंकि कोई व्यक्ति यदि उससे कमजोर का शोषण करे तो वह मानसिक रूप से बिलकुल भी एलीट नहीं है वह लालची या खुदगर्ज या घमंडी या कम समझदार होने की वजह से मानसिक रूप से कम विकसित है। दूसरों का ध्यान नहीं रखने वालों को एलीट समझा ही नहीं जा सकता है। 

छोटे कर्मचारियों व जूनियर्स पर बेवजह रोब जमाने वाले, ठेके के कर्मियों के न्यूनतम वेतन की चोरी करने वाले, रिश्वत लेने वाले, कमजोर व गरीब का शोषण व अत्याचार व उनकी मजबूरी का लाभ उठाने वाले लोग एलीट नहीं हो सकते है।

यदि किसी को वास्तविक रूप से एलीट ग्रुप का सम्मान चाहिए तो उसे कमजोर व गरीब का सम्मान व मदद करनी चाहिए। उनके जीवन को बेहतर बनाने में प्रसन्नता महसूस करनी चाहिए। किसी भी प्रकार का शोषण तो कदापि नहीं करें। छोटों के जीवन को बेहतर बनाना ही मानवीयता व एलीट होने की खास पहचान है। 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Wednesday 9 June 2021

निष्ठा (Loyalty) सकारात्मक है परन्तु अंधनिष्ठा बेहद नुकसानदायक होती है।

 

rpmwu403 dt. 09.06.2021

निष्ठा को हमेशा सकारात्मक समझा जाता है। परन्तु देखा गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर अथवा सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्ति या समाज जिस व्यक्ति या सिस्टम के प्रति निष्ठावान होते है वे लम्बे अरसे तक निष्ठावान बने रहते है। वे उनकी निष्ठा को जल्दी से परिवर्तित नहीं करते है। इसके विपरीत आर्थिक रूप से सक्षम व सामाजिक रूप से अग्रणी व्यक्ति या समाज समय की आवश्यकता के अनुसार अपनी निष्ठा में बिना बहुत अधिक देरी किये परिवर्तन कर लेते है। 

गलत या दकियानूसी व्यक्तियों या सिस्टम्स या संस्थाओं या रीति-रिवाजों के प्रति एक ढर्रे पर चलते हुए निष्ठावान बने रहना अंधनिष्ठा है जो कि किसी भी व्यक्ति या समाज के लिए गंभीर रूप से नुकसानदेह है। यदि कोई व्यक्ति या सिस्टम या संस्था या रीति-रिवाज गलत ढर्रे पर चलने लगे या दकियानूसी हो जाये तो उसके प्रति निष्ठावान बने रहना कोई समझदारी नहीं है। हमें अपनी निष्ठा बहुत सोच समझकर तय करनी चाहिए एवं समय की आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन करने में कोई गलत या अनैतिक नहीं है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Behaviour of a gentleman

SOME SOCIAL RULES THAT MAY HELP YOU:

1. Don’t call someone more than twice continuously. If they don’t pick up your call, presume they have something important to attend to;

2. Return money that you have borrowed even before the person that borrowed you remember or ask for it. It shows your integrity and character. Same goes with umbrellas, pens and lunch boxes.

3. Never order the expensive dish on the menu when someone is giving you a lunch/dinner.

4. Don’t ask awkward questions like ‘Oh so you aren’t married yet?’ Or ‘Don’t you have kids’ or ‘Why didn’t you buy a house?’ Or why don't you buy a car? For God’s sake it isn’t your problem;

5. Always open the door for the person coming behind you. It doesn’t matter if it is a guy or a girl, senior or junior. You don’t grow small by treating someone well in public;

6. If you take a taxi with a friend and he/she pays now, try paying next time;

7. Respect different shades of opinions. Remember what's 6 to you will appear 9 to someone facing you. Besides, second opinion is good for an alternative;

8. Never interrupt people talking. Allow them to pour it out. As they say, hear them all and filter them all;

9. If you tease someone, and they don’t seem to enjoy it, stop it and never do it again. It encourages one to do more and it shows how appreciative you're;

10. Say “thank you” when someone is helping you.

11. Praise publicly. Criticize privately;

12. There’s almost never a reason to comment on someone’s weight. Just say, “You look fantastic.” If they want to talk about losing weight, they will;

13. When someone shows you a photo on their phone, don’t swipe left or right. You never know what’s next;

 14. If a colleague tells you they have a doctors' appointment, don’t ask what it’s for, just say "I hope you’re okay". Don’t put them in the uncomfortable position of having to tell you their personal illness. If they want you to know, they'll do so without your inquisitiveness;

15. Treat the cleaner with the same respect as the CEO. Nobody is impressed at how rude you can treat someone below you but people will notice if you treat them with respect;

16. If a person is speaking directly to you, staring at your phone is rude;

17. Never give advice until you’re asked;

18. When meeting someone after a long time, unless they want to talk about it, don’t ask them their age and salary;

19. Mind your business unless anything involves you directly - just stay out of it;

20. Remove your sunglasses if you are talking to anyone in the street. It is a sign of respect. Moreso, eye contact is as important as your speech; and

21. Never talk about your riches in the midst of the poor. Similarly, don't talk about your children in the midst of the barren.

22.After reading a good message try to say       "Thanks for the message".

APPRECIATION remains the easiest way of getting what you don't have.... ❤❤

from NC Meena's fb page

Tuesday 8 June 2021

1st_May #the_international_labour_day



 rpmwu402 dt. 08.06.2021
#1st_May #the_international_labour_day

The real producers of wealth have always remained the lowest group in the society. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। आआो हम सभी आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर प्रण ले कि काम करने वाले हर व्यक्ति को उसका हक व अधिकार दिलाये। उसका सम्मान करें। सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी तो कम से कम दिलाने में सकारात्मक भूमिका निभायेे। काम करने वाले हर व्यक्ति की परेशानियों को कम करने में हम जो भी कुछ कर सकते है वह हमें करना ही चाहिये। सादर Raghuveer Prasad Meena

मैडिकल ईलाज व जाँचों में होने वाली बेईमानी

 rpmwu401 dt. 08.06.2021

मैडिकल ईलाज व जाँचों में होने वाली बेईमानी को बखूबी व साधारण तरीके से समझाया है। हर जिम्मेदार अथॉरिटी व व्यक्ति को सिस्टम को सही करने पर ध्यान देने की जरूरत है।

दवाईयों की वास्तविक कीमत व एमआरपी में भी बहुत बड़ा अन्तर होता है। इस अन्तर को भी कम करने की जरूरत है। यदि एमआरपी कम होगी तो प्रतिशत में जाने वाला कमिशन भी कम हो जायेगा और मरीज पर पड़ने वाला भार कम होगा। वीडियो के लिए निम्न लिंक को क्लिक करें -

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4117454481636275&id=100001152913836

सादर

Raghuveer Prasad Meena

Do good to others by acts of kindness and acts of generosity.

 rpmwu400 dt. 08.06.2021.

#dogoodtoothers one feels good by acts of kindness and acts of generosity. Please watch video on the following link :

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4126109384104118&id=100001152913836

Regards

Raghuveer Prasad Meena

गरीब व कमजोर से बार्गेनिंग करने में कोई समझदारी नहीं है।

rpmwu399 dt. 08.06.2021

वास्तव में सही बात है कि व्यक्ति गरीब व कमजोर पर बेवजह दादागीरी करता है। मजदूर/सब्जीवाले/रिक्शावाले/छोटी दुकान वाले इत्यादि से कुछ पैसे कम करवाकर अधिकांश लोग अपने आप को बहुत होशियार समझते है। दूसरी ओर दवा वालों व बड़े होटल व रेस्तरां वालों से कोई बार्गेनिंग नहीं करता है।

यदि गरीब व कमजोर को थोड़े अधिक पैसे चले भी जाये तो समझना चाहिए कि धर्म का काम हो गया है। बिना मंदिर जाये भक्ति हो जाती है और जरूरतमंद की मदद हो जाती है।

विचारणीय पहलू है। जरा सोचिए व यदि ऐसा करते है तो अपनी आदत बदले। वीडियो के लिए निम्न लिंक को क्लिक करें -

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4157123234336066&id=100001152913836


सादर

Raghuveer Prasad Meena

Sustainable_development by पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी

rpmwu398 dt. 08.06.2021

पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने बताया कि विज्ञान से विकास व विनाश दोनों हो सकते है। मनुष्य को अच्छे व्यक्ति की तौर पर पृथ्वी पर रहना सीखना होगा। #sustainabledevelopment

वीडियो देखने के लिए निम्न लिंक को क्लिक करें -

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4126774044037652&id=100001152913836


संगत_company का जीवन में बहुत अधिक प्रभाव व महत्व होता है।

rpmwu397 dt. 08.06.2021 

#संगत_company का जीवन में बहुत अधिक प्रभाव व महत्व होता है। व्यक्ति के विशेष गुणधर्म विकसित होने व उसकी पहचान बनने में संगत का बहुत बड़ा योगदान होता है।

व्यक्ति को दूर से पहचान ने की विधि -
यदि आप किसी व्यक्ति को नजदीक से नहीं जानते है परन्तु उसकी संगत में रहने वाले व्यक्ति को नजदीक से जानते है तो समझ लिजिए कि दूर वाले व्यक्ति का व्यवहार व आचरण आपके द्वारा नजदीकी से जानने वाले व्यक्ति के समान ही होंगे।
विचार करके कई दूर वाले व्यक्तियों को इस विधि से परखें और यदि सही लगे तो काॅमेंट जरूर करें। वीडियो देखने के लिए निम्न लिंक को क्लिक करें - 
सादर
Raghuveer Prasad Meena

defectivesoftware वास्तव में हमारे देश के अधिकांश लोगों की सोफ्टवेयर में #जाति बहुत ही भयंकर तरह से चिपकी हुई है।

rpmwu396 dt. 08.06.2021

#defectivesoftware वास्तव में हमारे देश के अधिकांश लोगों की सोफ्टवेयर में #जाति बहुत ही भयंकर तरह से चिपकी हुई है। यह मनुष्य के सॉफ्टवेयर में वायरस की भांति है। विचार करके सोचे तो इसमें लोगों का स्वयं का ज्यादा दोष भी नहीं है। क्योंकि बचपन की परवरिश व सरकारी दस्तावेजों की आवश्यकताओं ने ही नागरिकों को ऐसा बना दिया है। पहले तो जाति के आधार पर पीने के पानी को हाथ लगाना या नहीं लगाना, क्लास में अन्दर बैठना या बाहर बैठना इत्यादि तय होते थे। थाने में आरोपी की जाति देखकर ही अनुमान लगा लेते थे कि वह सही है या गलग और तदनुसार ही उसके साथ आगे की कार्रवाई होती थी।
सरकार को चाहिए कि जाति लिखने की आवश्यकता को जल्दी से जल्दी समाप्त करें। जब व्यक्ति वयस्क हो जाता है तो उसको स्वयं भी जाति-धर्म से ऊपर उठकर तर्कसंगत तरीके से सोचना व आचरण करना चाहिए।

गौतमबुद्ध ने जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने व अंधविश्वास और कुरीतियों से दूर रहने की शिक्षा दी।

                                                                                                                          rpmwu395 dt.08.06.2021

 गौतमबुद्ध ने जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने व अंधविश्वास और कुरीतियों से दूर रहने की शिक्षा दी।

आज (26 मई 2021) बुद्ध पूर्णिमा है । बैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है क्योंकि इसी पूर्णिमा के दिन बुद्ध से सम्बंधित तीन घटनायें हुई - 1-बुद्ध का जन्म (563 ई०पू० ,लुम्बिनी में ) 2- ज्ञान की प्राप्ति (528 ईo पूo, बोधगया में ) 3-बुद्ध का महापरिनिर्वाण (483 ई० पू० , कुशीनगर में) कपिलवास्तु में शाक्य वंश के राजा शुद्धोदन के घर जन्मे बुद्ध (पूर्व नाम सिद्धार्थ) के बारे में ज्योतिषियों ने भविष्य वाणी की थी कि ये बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और या फिर सन्यासी। पिता ने सिद्धार्थ को सम्पूर्ण ऐश्वर्य में उलझाये रखने का प्रयास किया ताकि सन्यास का विचार भी उसके मन में ना आये। फिर हम सब जानते हैं कि सिद्धार्थ अपने सेवक छंदक के साथ जब नगर भ्रमण को निकले तो क्रमशः वृद्ध , रोगी और मृतक को देख कर विचलित हुए कि जीवन में रोग, जरा और मृत्यु का दुःख अवश्यम्भावी है। फिर एक सन्यासी को शांत और प्रसन्न चित्त देख कर सिद्धार्थ ने निश्चय किया कि वे स्वयं दुःख की निवृत्ति का उपाय खोजेंगे। 29 वर्ष की आयु में बुद्ध ने सब ऐश्वर्य त्याग दिये और पत्नी यशोदरा और पुत्र राहुल को सोता छोड़ सत्य की खोज में वन को निकल पड़े । गुरुओं की शरण में गये, 6 वर्ष तक कठोर तप किया, शरीर मृतप्राय: हो गया परंतु अभी राह ना मिली। बस बुद्ध को मार्ग मिला - ‘मध्यमा प्रतिपदा’ का मार्ग। निर्बाध इन्द्रिय विलास (extreme indulgence in sensory pleasures) और कठोर तप (rigorous self denial) की दो चरम अवस्थाओं को नकार कर बुद्ध ने मध्य मार्ग (#middle_path) का ज्ञान दिया।

बौद्ध दर्शन का सार चार आर्य सत्यों (four noble truths) में निहीत है -
1- सर्व-दुःख दुःखम् ( there is suffering everywhere in this world)
2- दुःख-समुदय (there is a cause of suffering) द्वादश निदान के सिद्धांत में बुद्ध ने तृष्णा (desires) को दुःख का मूल कारण माना ।
3- दुःख-निरोध (there is a way to get rid of suffering)
4- दुःख-निरोध-मार्ग (the path to relieve the suffering) दुःख के निवारण का जो मार्ग बुद्ध ने बताया , वह अष्टांग मार्ग (eightfold noble path) कहलाया-
1. सम्यक् दृष्टि – Right Views
2. सम्यक् संकल्प – Right Resolve
3. सम्यक् वाक् – Right Speech
4. सम्यक् कर्मान्त – Right Actions
5. सम्यक् आजीव – Right Livelihood
6. सम्यक् व्यायाम – Right Efforts
7. सम्यक् स्मृति – Right Mindfulness
8. सम्यक् समाधि – Right Concentration
बुद्ध ने आत्म अनुभव (self experience) को श्रद्धा (faith) के ऊपर माना । बुद्ध ने कहा : मुझ पर भरोसा मत करना। मैं जो कहता हूं उस पर इसलिए भरोसा मत करना कि मैं कहता हूं। सोचना, विचारना, जीना। तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही लगे, तो उसे सही मानना ।
उन्होंने कहा - अपने दीपक स्वयं बनो (#अप्प_दीपो_भव)। स्वयं बुद्ध बनो ।
निर्वाण जीवन का अंत नहीं है। अष्टांग मार्ग का अनुसरण कर दुःख का निवारण करना ही वस्तुतः निर्वाण है । ऐसा कर व्यक्ति जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और अंततः महापरिनिर्वाण को प्राप्त होता है ।
(वाट्सएप पर प्राप्त हुआ, अच्छा लगा तो कुछ परिवर्तनों के बाद सभी की जानकारी व जीवनशैली को बेहतर बनाने के लिए प्रेसित किया है।)

रूठी_हुई_खामोशी_से_बोलती_हुई_शिकायतें_अच्छी_होती_है

rpmwu394 dt. 08.06.2021 

#Life_lesson

किसी को प्रेम देना सबसे बड़ा उपहार है और किसी का प्रेम पाना सबसे बड़ा सम्मान है। #रूठी_हुई_खामोशी_से_बोलती_हुई_शिकायतें_अच्छी_होती_है आपस के सम्बन्धों को सुदृढ़ रखने के लिए कोई भी कंफ्यूजन हो तो हमेशा अकेले में सीधी बात करने से अधिकांशतः स्थिति स्पष्ट और सम्बन्ध सही रहते है। सादर Raghuveer Prasad Meena

सामाजिक_विषमता_व_अत्याचार_समाप्ति_के_कानून इनके बारे में जरूर जाने व विषमता और अत्याचार की समाप्ति में स्वयं का रोल अदा करें।

rpmwu393 dt. 08.06.2021

#संविधान_का_आर्टिकल_13 क्या है?

आर्टिकल 13 के अनुसार साविधान लागू होने की दिनांक से पहले जीतने भी धार्मिक ग्रन्थ, विधि कानून जो विषमता पर आधारित थे उन्हें *शून्य घोषित किया गया।* व्याख्या - इस कानून के अनुसार भारत रत्न बाबा साहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर ने सिर्फ एक लाइन में ढाई हजार सालों की उस व्यवस्था और उस कानून की किताबों को शून्य घोषित कर दिया जो इंसानों को गुलाम बनाने के लिए इस्तेमाल की जा रही थी जैसे संविधान लागू होने से पहले भारत में मनुस्मृति का कानून लागू था। मनुस्मृति के अनुसार भारत के शूद्र व अति शूद्र और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था एवं संपत्ति का अधिकार भी नहीं था।। इसके अलावा मनुस्मृति के कानून के अनुसार शुद्र वर्ण को सिर्फ कुछ वर्णो की निस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था और अति शूद्र लोगों को पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। यह विषमता वादी कानून इतनी कठोरता से लागू था जिसे पढ़कर बाबा साहब का हृदय कांप उठा था। बाबा साहब ने इस मनुस्मृति के कानून का अध्ययन किया तो पाया कि भारत की #महिलाएं_दोहरी_गुलाम है ,उन्हें तो सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु ही समझा जाता था। इसके अलावा सती प्रथा, बाल विवाह,बेमेल विवाह,वैधन्य जीवन,मुंडन प्रथा आदि क्रूर प्रथाएं लागू थी।। यह प्रथा इसलिए लागू की गई ताकि चालाक लोगों द्वारा निर्मित जाति व्यवस्था मजबूत बनी रहे और शूद्र व अति शूद्र लोग उनकी गुलामी व बेगारी करते रहे। 19वीं सदी में ज्योतिराव फुले, सावित्री बाई फुले, विलियम बैटिंग, लार्ड मैकाले आदि विद्वानों ने अपने अपने स्तर पर बहुत कोशिश की इस व्यवस्था को खतम करने की। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी विद्वता के दम पर 25 दिसंबर 1927 को इस मनुस्मृति नामक विषमता वादी जहरीले ग्रंथ को आग लगा दी और अछूत लोगों को महाड में पानी पीने का अधिकार दिलवाया। इसके बाद बाबा साहब ने पूरे भारत में घूम घूम कर साइमन कमीशन को मनुस्मृति से प्रभावित शूद्र व अति शूद्र लोगों की वास्तविक स्थिति का परिचय करवाया। 1931-32 में बाबा साहब ने इन 90% लोगों को वोट का अधिकार दिलवाया। सबके लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार, विधिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व और शिक्षा का दरवाजा राष्ट्रीय स्तर पर सबके लिए खुलवाया। जब संविधान लिखने की बात आई तो बाबा साहब ने लीडरशिप दर्शाते हुए सामाजिक विषमता की शिक्षा से भरे तमाम कानूनों और धर्म ग्रंथों को, जो इंसान को इंसान नहीं मानते थे, महज एक लाइन में अवैध घोषित कर दिया। इसी सविधान ने बाबा साहब ने सभी कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए विभिन्न आर्टिकल्स में प्रावधान करके अलग अलग क्षेत्र में विशेषाधिकार दिए जिनकी वजह से कमज़ोर वर्ग के लोगों को सामाजिक क्षेत्र में बराबरी के अधिकार का द्वार खुल गया। आज भी कुछ महास्वार्थी, नासमझ व धूर्त लोग इस बात को बर्दाश्त नहीं कर रहे है और पिछड़े व कमजोर वर्ग के हितों पर डायरेक्ट व इनडायरेक्ट तरीके से चोट पहुंचाने के लिए रात दिन प्रोपेगंडा और धर्म,भ्रम,पाखंड व अंधविश्वास का इस्तेमाल करते है। साथ में कमजोर वर्गों के हितों की बात करने वाले सक्षम लोगों को विभिन्न प्रकार से झूठ का सहारा लेकर प्रताड़ित करवाते है। #आर्टिकल_14 क्या है? आर्टिकल 14 के अनुसार ऐसा कोई भी कानून फिर से लागू नहीं होगा और ना ही बनेगा जो इंसानों के साथ विषमता वादी व्यवहार करें और उनको बद से बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर करें। अर्थात भारत के सभी नागरिक को समान मानते हुए ही विधि या कानून लागू किये या बनाए जाए। व्याख्या - भारत की संसद में चाहे किसी का भी बहुमत हो तो इस बहुमत के आधार पर ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जाएगा जो पूर्व में मौजूद व्यवस्था को मजबूत बनाए और एक कम्यूनिटी को इस कानून के दम पर तानाशाही करने के लिए संरक्षण प्रदान करता हो। इसलिए आर्टिकल 14 सभी भारतीयों के लिए एक समान विधि सहिंता उपलब्ध करवाता है और किसी भी विषमता वादी कानून बनाने के लिए रोकता है चाहे संसद में कितना भी बहुमत क्यों ना हो। #मुख्य_मुद्दा यह है कि हम सत्य को सही रूप में जाने व भूतकाल में कुछ लोगों के स्वार्थ के वशीभूत होकर जो गलतियां की गई उनको दोहराने से बचें। #व्यक्ति_की_सोच उसके पालन-पोषण के माहौल से बनी उसके #मष्तिष्क_की_सोफ्टवेयर पर निर्भर करती है। परन्तु जब व्यक्ति 18 वर्ष से अधिक आयु का हो जाये तो उसे उसकी सोफ्टवेयर में पल रहे विभिन्न वायरसों के बारे में अंदाजा लगाकर सुधारात्मक कार्यवाही कर लेनी चाहिए। (यह पोस्ट वाट्सएप पर प्राप्त हुई, पढ़ने व समझने के पश्चात इसमें कुछ मोडिफिकेशन व एडिशन किये गये है) सादर Raghuveer Prasad Meena

द्रोणाचार्य_की_दुष्टता_की_पराकाष्ठा

rpmwu392 dt.08.06.2021

#द्रोणाचार्य_की_दुष्टता_की_पराकाष्ठा। कैसे धर्म के नाम पर एकलव्य व उसके जैसे अनेकों महान विभूतियों का विनाश किया गया। ऐसे धर्म को में धार्मिक अंधविश्वास का प्रदूषण (DAP) कहता हूं।


आज भी कई द्रोणाचार्य अनेकों एकलव्यों के विभिन्न प्रकार से धोखा करके या छुपे रूप में उनकी अँगूठा रूपी योग्यता का या तो उपयोग नहीं करने देते है अथवा उन्हें हानी पहूँचा देते है।

हर समझदार व्यक्ति को द्रोणाचार्य के इस कृत्य की भर्त्सना करनी चाहिए। द्रोणाचार्य के नाम पर दिये जाने वाले अवार्ड्स को भी बंद करके दूसरे किसी महान व्यक्तित्व के नाम पर अच्छे गूरू /कोच के लिए अवार्ड दिये जाने चाहिए। जब तक द्रोणाचार्य का नाम आता रहेगा तब तब धर्म के नाम पर एकलव्य के साथ किया गया धोखा भी याद आता रहेगा। वीडियो देखने हेतु निम्न लिंक पर क्लिक करें -
 https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4161402833908106&id=100001152913836 (भारत एक खोज के एक एपिसोड में एकलव्य की घटना का वर्णन) सादर Raghuveer Prasad Meena

#saveenvironment : Man can explore alternatives whereas animals & birds cannot.

 



rpmwu391 dt. 08.06.2021

आदमी विभिन्न विकल्पों का प्रयोग करके उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है। परन्तु दूसरे जीव जन्तु केवल प्रकृति पर ही आश्रित रहते है। अतः #saveenvironment.


Regards
Raghuveer Prasad Meena

#saveenvironment How Tissue Paper is a Threat To Our World. | Anuj Ramatri


rpmwu390 dt 08.06.2021

#saveenvironment पेड़ काटने को रोकने में हम सब एक छोटा सा काम करके महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकते है। और वह छोटा सा काम है कि टिश्यू पेपर का कम से कम प्रयोग करें। वीडियो को देखें और अपने आप से वादा करें कि मैं टिश्यू पेपर का कम से कम प्रयोग करूंगा ताकि उनके बनने के लिए लगने वाले पेड़ों की कटाई कम हो सके। सादर Raghuveer Prasad Meena

Behaviour is more important than the Knowledge.

rpmwu389 dt. 08.06.2021

#Behaviour is more important than the knowledge most of the times. In difficult situations, one's behaviour helps him more than the knowledge. Everyone can improve his behaviour like knowledge by introspection and self corrections in the areas of concern.

Ask yourself daily before sleep :

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Monday 7 June 2021

7 जून 1893 : महात्मा गाँधी के जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ से हम क्या सीख सकते है?

rpmwu388 dt 07.06.2021

                    7 जून 1893 के दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में डरबन से प्रीटोरिया रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे। वे उस समय वकालत करते थे। उन्होंने रेल यात्रा हेतु फर्स्ट क्लास का टिकट खरीदा व फर्स्ट क्लास के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान टिकट चैक करने जब टीटी आया तो उसने महात्मा गांधी से कहा कि फर्स्ट क्लास के डिब्बे में केवल वाईट (गौरे) लोग ही यात्रा कर सकते है, आप नहीं। महात्मा गांधी ने रंगभेद की नीति का विरोध किया और टीटी से कहा कि मैं अपनी मर्जी से तो थर्ड क्लास के डिब्बे में नहीं जाऊंगा यदि आपको आपत्ति है तो आप मुझे जबरदस्ती भेज सकते है। शायद उनमें आपस में काफी लंबी बहस हुई होगी। उसके पश्चात अगले स्टेशन पीटरमैरिट्ज़बर्ग पर महात्मा गांधी को जबरन रेलगाड़ी से उतार दिया गया एवं उनके सामान को प्लेटफार्म पर फेंक दिया गया तथा उन्हें वहीं छोड़कर रेलगाड़ी रवाना हो गई। इस प्रकार रंगभेद की नीति की वजह से महात्मा गांधी की जो इंसल्ट हुई वह उनके जीवन का टर्निग पाॅइन्ट था।

                यह घटना सभी ने सुनी है सामान्यतः तो इसमें कोई नई बात नजर नहीं आती है। परंतु यदि गहराई से सोचें तो अनेकों मनुष्यों व समुदायों के जीवनकाल में कई बार इस प्रकार की घटनाएं होती है जिसमें बिना उनकी गलती के उनके साथ भयंकर अत्याचार होते है। ऐसे सभी व्यक्तियों को बेवजह अत्याचार की घटनाओं को टर्निंग प्वाइंट समझते हुए महात्मा गांधी के जीवन से सीख लेते हुए अत्याचार के खिलाफ प्लान करके संघर्ष का बिगुल बजा देना चाहिए। लम्बे समय तक अत्याचार को सहना कोई समझदारी नहीं है। #अन्याय_को_सहना_कायरता_है।


सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 5 June 2021

विश्व पर्यावरण दिवस 2021 : मैं स्वयं क्या कर सकता हूँ ? पर्यावरण संरक्षण हेतु माँ की तरह काम करे ना कि दाई की भांति सलाह दे।

rpmwu386 dt 05. 06. 2021 

            विश्व पर्यावरण दिवस पर बड़ा प्रश्न है कि पर्यावरण संरक्षण में मैं स्वयं क्या कर सकता हूँ ? 

पर्यावरण संरक्षण हेतु माँ की तरह काम करे ना कि दाई की भांति सलाह दे।

            विश्व पर्यावरण दिवस सन 1972 के पश्चात हर वर्ष मनाया जाता है। इस दिन पर्यावरण का महत्त्व व उसका संरक्षण मुख्य फोकस रहता है। पर्यावरण संरक्षण मनुष्य के स्वयं के अस्तित्व की आवश्यकता है। यक्ष प्रश्न है कि आख़िर पर्यावरण ख़राब क्यों होता है? पर्यावरण को बिगाड़ने में जानवरों व पशु पक्षियों का कोई हाथ नहीं है, केवल मनुष्य ही उसकी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्तिओं के लिए अनेकों उत्पादों के उत्पादन व सेवाओं के संचालन हेतु ऊर्जा का उपयोग करता है और इसी क्रम में पर्यावरण ख़राब होता है। हमारे देश में वर्ष 2017 के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 70% ऊर्जा की आवश्यकता की आपूर्ती कोयले एवं पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स से होती है। शेष 30% ऊर्जा की आपूर्ति बायोफुएल, नेचुरल गैस, हाइड्रो, सोलर, विंड, न्यूक्लेयर इत्यादि संसाधनों से होती है। कोयले एवं पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स में अधिकांशतय: कार्बन होता है जो कि एक बहुल लम्बे कालांतर में ज़मीन के अंदर प्राकृतिक कारणों से दफ़ना हुआ है। ऊर्जा के इन स्त्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने हेतु कोयले एवं पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स (डीजल, पेट्रोल एटीफ इत्यादि) को ज़मीन से बाहर निकलकर उनका ट्रांसपोर्टेशन कर उन्हें जलाना होता है ताकि उत्पन्न ऊर्जा से विभिन्न प्रकारों के उत्पाद व सेवाओं उत्पादन/संचालन हो सके। किसी भी भोग विलास या आजकल तो अधिकांश को आवश्यकता कह सकते है, की वस्तुओं में काम आने वाले उत्पादों यथा बिजली, स्टील, सीमेंट, रोड व हाईवे कंस्ट्रक्शन, काम आने की शेप में पत्थर, मोबाइल्स, टेलीविज़न, कम्प्यूटर्स , पेपर, इलेट्रॉनिक आइटम्स, ग्लास, कपड़े, बड़े पैमाने पर खाने की वस्तुएं इत्यादि को बनाने के लिए ऊर्जा अर्थात बिजली या हीट की आवश्यकता होती है जो कि अधिकांशतय कोयले एवं पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के प्रयोग से उत्पादित होती है। परन्तु इसी के साथ यह भी जान लेना आवश्यक है कि 1 लीटर डीजल की खपत से 2.86 किलोग्राम तथा 1000 यूनिट बिजली के उत्पादन में 0.82 टन कार्बनडाइऑक्सइड का क्रमशः वातावरण में विसर्जन होता है जो कि पर्यावरण के प्राकृतिक संतुलन को ख़राब करती है। 

            सयुंक्त राष्ट्र संघ, अन्तर्रष्ट्रीय एवं राष्ट्रिय स्तर पर सभी देश आपस में तय मापदंडों के अनुसार पर्यावरण संरक्षण की दिशा को ध्यान में रखकर विकास कार्य करते रहते है। हमारे देश की भी लगातार कोशिश है कि ऊर्जा के अक्षय स्त्रोतों का अधिकाधिक प्रयोग करें। अक्षय स्त्रोतों जैसे हाइड्रो, सोलर, विंड, न्यूक्लेयर इत्यादि से बिजली उत्पादन को राष्ट्रिय स्तर पर विशेष महत्व दिया जा रहा है ताकि कार्बनडाइऑक्सइड का उत्सर्जन कम हो और पर्यावरण शुद्ध रहें। साथ ही सरकार ऐसे उत्पादों पर विशेष प्रोत्साहन देती है जिनके उत्पादन व प्रयोग में कम ऊर्जा खर्च हो। परन्तु कुछ देश ऐसे है जो पर्यावरण ख़राब होने को महसूस तो करते है परन्तु स्वयं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कम काम करते है, केवल चिंता व्यक्त करते है और दूसरों को पर्यावरण संरक्षण सलाह देते रहते है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए वास्तव में काम करने वालों एवं केवल सलाह देने वालों में बच्चा होते समय माँ के द्वारा की जाने वाली कोशिश और दर्द एवं दाई द्वारा महसूस दर्द व सलाह के सामान अंतर होता है।       

             सयुंक्त राष्ट्र संघ, विभिन्न देश, प्रदेश, शासन, प्रशासन पर्यावरण संरक्षण हेतु अपने अपने स्तर पर कार्य करते है। उन्हें करने दिया जाये, प्रोत्साहित करें और उनका सहयोग करें। हम स्वयं भी अपनी डिमांड सीमित रखकर, रहने के तरीकों को सरल बनाकर पर्यावरण संरक्षण व सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए निम्न प्रकार से अहम रोल अदा कर सकते है। 

               1. आदिवासी अर्थात स्वदेशी लोग (indigenous People) दुनिया की सतह क्षेत्र के एक चौथाई (1/4th , 25%) हिस्से पर रहते है परन्तु वे दुनिया की 80 % बची हुई जैव विविधता की रक्षा करते हैं। उनसे जीवन को कैसे सादा रखा जाये यह सीखा जा सकता है। अपनी आवश्यकताओं को नियंत्रित करके वस्तुओं व सेवाओं के सीमित उपयोग/उपभोग से ऊर्जा की आवश्यकता को परोक्ष रूप से कम कर कोयले एवं पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स की खपत को कम करने में सहयोग कर सकते है।

                2. जरूरत से ज्यादा मैटेरियल लगने वाले समस्त डिजाइन बड़ी मात्रा में अधिक सामग्री के स्तेमाल का कारण बनते है। इसी प्रकार मशीनों व असेटस् के रखरखाव में इनएफीसियेंसी भी अधिक ईधन तेल, ल्यूब आयल व अन्य मदों की बेवजह खपत का कारण होती है। अतः डिजाइन व मेन्टेनेंस से सम्बन्धित व्यक्ति उनके कार्यो को सही निष्पादित करके मदों की खपत कम करने में अहम रोल अदा कर पर्यावरण संरक्षण में विशेष सहयोग कर सकते है। 

               3. चीजों के उपयोग को रेडूस (कम), रीयूज (दुबारा उपयोग), रीसायकल (दूसरी चीज़ बनाने में उपयोग) करें।


                   4. पेपर नैपकिन्स को बनाने में बहुत अधिक संख्यां में पेड़ काटे जाते है। उनका कम से कम उपयोग करें। 

                   5.  बिजली व डीजल/पैट्रोल की खपत में मितव्यता बरते। 

                   6.  प्लास्टिक के कैरी बैग्स का कम से कम उपयोग करें। 

                   7. अधिक से अधिक अधिक संख्यां में पेड़ लगाएँ।  

                 पर्यावरण के संरक्षण के लिए वास्तव में सलाह से ज्यादा काम करें। पर्यावरण संरक्षण हेतु माँ की तरह काम करे ना कि दाई की भांति सलाह दे।

रघुवीर प्रसाद मीना 







            

विश्व पर्यावरण दिवस 2021 : GHGs - Green House Gases (ग्रिन हाउस गैसेज़) व ग्लोबल वार्मिग।

rpmwu387 dt 05.06.2021    

    GHGs - Green House Gases (ग्रिन हाउस गैसेज़) व ग्लोबल वार्मिग।

दिनॉक 21 व 22.03.2016 को इरिसेन, पुणे में Training-cum-Capacity Building for Management of Green House Gases में भाग लिया। बहुत ही महत्व का विषय है। विश्व पर्यावरण दिवस 2021 के अवसर पर सभी की जानकारी के लिए निम्न महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में पुनः अवगत करवाया जाता है -
1. वातावरण में उपस्थित ग्रिन हाउस गैसेज़ (GHGs) अर्थात् CO2, CH4, CFCs, N2O इत्यादि सूरज की किरणें जब धरती से टकराकर बापस ब्रहमॉड में जाती है तो उन्हें रोक लेती है जिसके कारण पृथ्वी के वातावरण का तापमान बढ़ता है।
2. ये गैस ज्यादा मात्रा में होंगी तो धरती से टकराने के बाद वापस जाने वाली सूर्य की ज्यादा किरणों को रोकेंगीं व वातावरण का तापमान ज्यादा बढ़ेगा। इसे ही ग्लोबल वार्मिग कहते है।
3. ग्लोबल वार्मिग के बहुत सारे दुष्परिणाम है जो कि लम्बे समयान्तराल में पृथ्वी पर जीवन को ख़तरा उत्पन्न कर सकता है।
4. कोयला व पेट्रोलियम उत्पाद, जो कि धरती के अन्दर दबे हुए है, को काम में लेने अर्थात् जलाने से इन गैसों (GHGs) की मात्रा वातावरण में बढ़ती है और वह ग्लोबल वार्मिग का कारण बन रही है। इसे माना जा सकता है कि पृथ्वी के अन्दर दबे हुए राक्षस को जगाया जा रहा है।
5. जानकर आश्चर्य होगा कि एक लीटर डीज़ल को जलाने से वज़न के हिसाब से 2.86 किलोग्राम कार्बन डाइआक्साइड (CO2) बनती है। 1 लीटर डीज़ल में 0.78 किलोग्राम कार्बन होता है। कार्बन का एक अणु आॉक्सिजन के दो अणूओं के साथ मिलकर CO2 बनाता है। कार्बन के परमाणु का एटोमिक वेट 12 होता है तथा ऑक्सिजन अणु का 32, इस प्रकार 0.78 x 44/12 = 2.86 आता है।
6. इसी प्रकार 1 मेगावॉट-ऑवर अर्थात् 1000 यूनिट बिजली को बनाने में 0.82 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
7. विश्व स्तर पर United Nations Framework Convention for Climate Change (UNFCCC) संस्था इस बिषय को डील करती है।
8. पिछले दिनों 2015 में पैरिस में हुई अर्थ समिट में विभिन्न देशों ने अपने अपने INDCs ( Intended Nationally Determined Contributions) अर्थात् GHGs के स्तर को कम करने हेतु लिए जाने वाले एक्शन्स के बारे में कमिटमेंट दिया था। हमारा देश सन् 2030 तक 2005 की तुलना में इन गैसों के उत्सर्जन को 33% कम करेगा।
9. इन गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए सरकार अपने स्तर पर रिन्युएबल एनर्जी सोर्सेज अर्थात् सोलर, हाइड्रल, विंड व न्युक्लियर पॉवर प्लान्ट डवलप कर रही है। इसके साथ साथ देश का हर व्यक्ति डीज़ल/पैट्रोल व बिजली की खपत को कम करके ग्रिन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है।
10. हम सभी को विभिन्न रिसोर्सेज़ को बड़े सावधानी व समझदारी से उपयोग में लेना चाहिये ताकि ऊर्जा की आवश्यकता को कम रखा जा सके और ग्रिन हाउस गैसेज़ भी कम ही उत्सर्जित हो । भावी पीढ़ियों हेतु सुरक्षित पृथ्वी देने के लिए यह ज़िम्मेदारी हम सभी को निभानी ही चाहिये।

रघुवीर प्रसाद मीना