Wednesday 27 October 2021

किसान व उपभोक्ता दोनों का दोहन - हम सभी पर बोझ। आखिर कौन करेगा ईलाज?

rpmwu436 dt. 27.10.2021

#UrgentAction देश में किसान या अन्य चीजों के उत्पादकों व उपभोक्ता दोनों के बीच रेटस् का भारी डिफरेंस उत्पन्न करने वाले मुख्य रूप से "ट्रेडर्स" ही है। ट्रेडर्स उत्पाद की वास्तविक गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं करते है। ट्रेडर्स उत्पाद की भिन्न भिन्न मात्राओं में अच्छी पैकेजिंग करते है और जगह जगह उत्पाद को उपलब्ध करवाते है। उनका काम भी महत्वपूर्ण है परन्तु उनके द्वारा किसान या उत्पादक एवं उपभोक्ता के बीच दरों में किया गया अंतर सामान्यतः बहुत भारी हो जाता है।

उक्त कथन को एक साधारण उदाहरण के माध्यम से हम आसानी से समझ सकते है। जब कोई किसान बाजार में टमाटर या भिंडी या मटर या प्याज या आलू या अन्य कोई सब्जी बेचने जाता है तो जैसे ही आढ़तियां उनके सामान पर हाथ लगाते है तो वे उनके केवल उनके प्रॉफिट मार्जिन को किसान को मिली कुल कीमत से ज्यादा कर लेते है। किसान को मिलने वाली कीमत में फसल को तैयार करने अर्थात जोतने, बोने, बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई, रखवाली, मजदूरी, ट्रांसपोर्ट का कुल खर्चा भी शामिल होता है जबकि सामान्यतः आढ़तियों का खर्चा दुकान का बिजली का बिल व स्टाफ की सैलरी रहते है। आढ़तियां के पश्चात सब्जी, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं व कॉलोनियों में ठेले वालों के माध्यम से उपभोक्ताओं को पहुंचती है और हर स्तर पर उसमें रेट का इजाफा होता रहता है। 

दवाईयों के मामले में तो ट्रेडर्स का मार्जिन भयंकर है एवं देश के अनेक नागरिक तो दवाईयों की कृत्रिम रूप से बढ़ी हुई कीमतों के कारण ईलाज ही नहीं करवा पाते है और परेशान होते रहते है व मर भी जाते है। 

अब हम उत्पादक या किसान एवं उपभोक्ता दोनों की नजरों से चीजों को देखें तो हमें पता चलता है कि कमाई तो ट्रेडर्स ही कर रहे है। 

इस स्थिति से निपटने के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक व सरकारी स्तरों पर ठोस कार्यवाही की जरूरत है जैसे -

1. सब्जीमंडियों व कृषिमंड़ियों में आढ़तियों की दादागीरी को कम करने हेतु किये जा रहे प्रयासों का समर्थन करें।

2. किसान परिवारों से आने वाले पढ़े-लिखे युवाओं को समझने की आवश्यकता है कि खेती करने या सब्जी उगाने से ज्यादा प्रॉफिट मार्जिन उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने में है अतः खेत से ग्राहक तक सामान पहुंचाने के समस्त कार्यों में आगे आए।

3. दवाइयों की एमआरपी निर्धारित करते समय और गंभीर नियंत्रण की आवश्यकता है ताकि दवाइयों के एमआरपी सही निर्धारित हो।

4. सब्जी मंडियों में भी आढ़तियों के मार्जिन को निर्धारित कर दिया जाना चाहिए।

5. सरकार की इस सम्बन्ध में बनाई गई नीतियों का लाभ लें। किसान रेल में किराये में 50% की छूट का लाभ ले और उत्पाद को सही दर पर बेचने का प्रयास करें।

सादर 

रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 24 October 2021

व्यक्ति के शरीर व सोच_विचारों पर स्वयं का कितना नियंत्रण होता है? वह क्या बेहतर कर सकता है? सभी को यह समझने की जरूरत है। धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर भेदभाव नहीं करें।

rpmwu435 dt. 24.10.2021

Life_lesson व्यक्ति का किसी धर्म, जाति, समुदाय, रेस, गरीब, अमीर, देश या भौगोलिक स्थिति में जन्म लेना एक नेचुरल प्रक्रिया है। इस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है।

व्यक्ति की हार्डवेयर (शारीरिक बनावट व संरचना) उसके माँ बाप के जीन्स, उनकी हेल्थ, रेस व भौगोलिक स्थिति पर विशेष रूप से निर्भर करती है। 

व्यक्ति की सोफ्टवेयर (सोच व विचार) उसके बचपन के दौरान पालन पोषण के वातावरण, धर्म, जाति, समुदाय की परंपराओं से बेहद प्रभावित होती है। जैसे माहौल में वह बड़ा होता है वैसा ही बन जाता है। इस प्रकार सोच व विचारों के विकसित होने में भी उसका स्वयं का कोई खास योगदान नहीं रहता है।

और बेहतर तरीके से समझने के लिए एक उदाहरण लेते है कि यदि जन्म लेने के पश्चात 2 बच्चे अस्पताल में आपस में बदल जाते है तो क्या होता है? पहला बच्चा मान लीजिए हिंदू दंपत्ति का है और दूसरा बच्चा मुसलमान दंपत्ति का है। जब वे बड़े होते हैं तो उनके #शरीर तो उनके मां-बाप के डीएनए पर निर्भर करेगा परंतु उनके सोच_विचार उनके बड़े होने पर जो पालन-पोषण हुआ है उसके वातावरण पर के अनुसार विकसित होंगे। जो बच्चा बायलॉजी हिंदू दंपत्ति का है वह अल्लाह अल्लाह कहेेगा और जो बच्चा मुस्लिम दंपत्ति है वह राम-राम कहनेे लगेगा।

उक्त से स्पष्ट है कि व्यक्ति का स्वयं का उसकी शारीरिक संरचना एवं सोच विचारों पर बहुत विशेष नियंत्रण नहीं है। हालांकि व्यक्ति बड़े होने पर स्वयं भी कुछ हद तक सही खानपान, संयम, योगा व जिम से हार्डवेयर यानि शरीर की देखभाल कर सकता है। इसी प्रकार शिक्षा व अच्छे लोगों की संगत और आत्ममंथन से व्यक्ति अपनी सोफ्टवेयर यानि सोच व विचारों को तर्कसंगत बना सकता है।

आज आवश्यकता है कि देश का हर नागरिक इस बात को समझे कि साधारणतया व्यक्ति के सोच विचारों पर उसका बहुत ज्यादा नियंत्रण नहीं रहा है वे उसके पालन-पोषण के दौरान जो वातावरण मिला है उससे विकसित हुए है। अतः किसी धर्म, जाति, समुदाय या मान्यताओं को मानने वाले व्यक्ति के विरुद्ध बहुत खराब या अच्छा सोचने का निर्णय करने से पहले उक्त पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जरूरत है कि वयस्क होने पर सभी नागरिक तर्कसंगत सोच (सोफ्टवेयर) विकसित करें और सभी के कल्याण और उन्नति की कामना करें। बेवजह धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर एक दूसरे को ऊंचा नीचा या अच्छा बुरा नहीं समझे।


सादर 

रघुवीर प्रसाद मीना 

Friday 22 October 2021

वैल्यू (Value)

rpmwu434 dt. 22.10.2021

What is the value of a pen? The straight answer is that the pen should be able to write otherwise it is useless. पेन की वैल्यू क्या है? इसका साधारण जबाव है कि पेन लिखने योग्य हो। जो पेन लिख नहीं सके, वह बेकार है चाहे वह कितना भी सुन्दर या महंगा व अन्य गुणों से युक्त हो। 

उक्त छोटी सी बात से जीवन की बड़ी से बड़ी आकांक्षा का सही जवाब मिलने में दिशा मिल सकती है। यदि किसी व्यक्ति से आपको मदद की बहुत उम्मीद है और वह योग्य व सही स्थिति में होने के बावजूद भी आपकी मदद नहीं करता है तो आपके लिए उसकी कोई वैल्यू नहीं है। ऐसा व्यक्ति आपके लिए उस पेन के समान है जो लिख नहीं सकता है। वह आपके लिए असेट नहीं लायबिलिटी है। 

इसी प्रकार जो लोग उनके आर्गनाइजेशन के लिए सकारात्मकता से काम नहीं करें वे भी बिना लिख सकने वाले पेन के समान है। 

जो पेन लिख नहीं सकते है उन्हें ज्यादा संख्या में इकट्ठा करने में कोई समझदारी नहीं है। अत: जो लोग समय पड़ने पर काम नहीं आये उनको नहीं लिख सकने वाला पेन समझे और तदनुसार ही उनसे दूर रहने में भलाई है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

व्यक्ति की पर्सनालिटी को पहचानने का साधारण परन्तु महत्वपूर्ण टेस्ट।

rpmwu433 dt. 22.10.2021

साधारणतया यदि कोई व्यक्ति उसकी ड्यूटी के प्रति कर्तव्यनिष्ठ नहीं है तो उसका व्यक्तित्व सही नहीं हो सकता है। बिना काम किये सैलेरी व भत्ते लेना या अधिनस्थों को लेने देना, इनडायरेक्ट रूप से करप्शन है। ऐसे लोग दूसरे हर क्षेत्र में गलत कार्य कर सकते है। 

इस साधारण टेस्ट के माध्यम से लोगों को आसानी से परखा जा सकता है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Thursday 21 October 2021

सही व्यक्ति : गलत व्यक्ति (RIGHT PERSON : WRONG PERSON)

rpmwu432 dt. 21.10.2021

सामान्यतः व्यक्तियों को धर्म, जाति, समुदाय व रेस इत्यादि के आधार पर विभक्त किया जाता है। जोकि सर्वदा सही नहीं है। क्योंकि किसी भी धर्म, जाति, समुदाय व रेस के सभी व्यक्ति एवं उनकी विचारधारा एक समान नहीं होती है। कुछ लोग स्वयं के धर्म, जाति, समुदाय व रेस के प्रति बहुत कट्टर होते है एवं दूसरे धर्म, जाति, समुदाय व रेस के लोगों को अच्छा नहीं मानते या कुछ लोग तो उन्हें खराब ही मानते है। जबकि अनेक लोग ऐसे भी होते है जो दूसरे धर्म, जाति, समुदाय व रेस के लोगों को सम्मान की नजर से देखते है और उनके प्रति अच्छा भाव रखते है। 

वास्तव में यदि मनुष्यों का विभक्तिकरण किया जाए तो वह दो ही प्रकार के है सही सोच वाले व्यक्ति (PERSONS HAVING RIGHT THINKING) अथवा गलत सोच वाले व्यक्ति (PERSONS HAVING WRONG THINKING)।

सभी को समझना चाहिए कि व्यक्ति विशेष की सोच व विचारधारा (सॉफ्टवेयर) उसके बचपन के पालन पोषण एवं आसपास के वातावरण के अनुसार ही विकसित होती है। जो जैसी परिस्थितियों एवं धर्म, जाति, समुदाय या रेस में पैदा होता है और बड़ा होता है, तदनुसार ही उसकी सोच विकसित हो जाती है। यदि पैदा होते वक्त अस्पताल में बच्चे एक दूसरे से धर्म के आधार पर बदल जाये तो बड़े होने पर उनकी सोच व विचारधारा (सोफ्टवेयर) उनके वास्तविक माँ बाप जैसी नहीं होकर पालन पोषण करने वाले माँ बाप व आसपास के वातावरण और माहौल के अनुसार होगी। बचपन के माहौल व वातावरण के ऊपर व्यक्ति का नियंत्रण लगभग नगण्य होता है। परन्तु बड़े होने पर हर मनुष्य यदि चाहे तो सही समझ विकसित कर सकता है। विचार कर सकता है कि क्या सही है क्या गलत है? सरकार ने वोट देने की आयु 18 वर्ष इसीलिए निर्धारित की हुई है ताकि व्यक्ति सही गलत में फर्क कर सके। 

जो व्यक्ति बड़े होने पर भी सही व गलत में अन्तर नहीं करते है वे लोग या तो मंदबुद्धि होते है या स्वार्थी।

वृहद् रूप में सही व्यक्ति व गलत व्यक्ति की निम्नलिखित परिभाषा हो सकती है  : 

सही व्यक्ति : स्वयं की मान्यताओं के साथ दूसरों की भावनाओं व मान्यताओं का आदर करेेंं। स्वयं के साथ दूूूसरों के कल्याण व सुख शांति की कामना करेें। धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर भेदभाव नहीं करेें। वैज्ञानिक सोच विकसित कर, स्वयं को योग्य बनाये व योग्यता का जनहित में उपयोग करें।

गलत व्यक्ति : धार्मिक रूप से कट्टर हो, धर्म की बातों पर दूसरों को क्षति पहुँचाने में उतारू हो। धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर अपने आप को ऊँचा समझता हो व दूसरों के साथ भेदभाव करेें। रूढ़िवादी दकियानूसी सोच रखता हो। स्वार्थ के लिए जनहित या दूसरों का नुकसान करने की मंशा रखता हो। दूसरों की बिना परवाह किये, स्वयं के कल्याण की ही सोचता हो। 

निर्धारण सभी को स्वयं को ही करना है कि वह सही व्यक्ति है अथवा गलत। यदि गलत है तो अपनी सॉफ्टवेयर को ठीक करके उचित राह पर चलकर सही व्यक्ति बनें। 


सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 










Wednesday 20 October 2021

क्या मनुष्य भगवान का संरक्षक है?

rpmwu431 dt. 20.10.2021

अभी हाल ही में पंजाब व बंग्लादेश में तथाकथित धार्मिक भावनाओं से आहत अनुयायियों ने अपने आप को गुरुग्रंथ साहिब व अल्लाह का संरक्षक बनकर गंभीर हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया है जिसमें लोगों की नृशंस हत्या की गई एवं सम्पत्ति को भारी नुकसान भी पहुंचाया गया है। 

यह समझना जरूरी है कि भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु जिन्हें सर्वशक्तिमान कहा जाता है, अनुयायियों के संरक्षक है या अनुयायी, भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के संरक्षक है? जैसे जब किसी छोटे बच्चे को कोई कुछ कह देता है या पीट देता है या कोई नुकसान कर देता है तो उसके पेरेंट्स या अभिभावक उसके लिए जाकर लड़ने लग जाते है। भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु यदि करूणा और दया का अभिप्राय है एवं सर्वशक्तिमान है तो उसके लिए दूसरों को लड़ने की जरूरत क्या है? क्यों लोग धार्मिक बातों पर दूसरों को जान से तक मार देते है? आखिर माजरा क्या है? 

हर बार बहाना होता है कि किसी व्यक्ति ने भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के बारे में कुछ अप्रिय कह दिया है या धार्मिक रीीतिरिवाजों कीी  निंदा कर दी है या उनके बारे में कुछ ऐसी बात बोल दी जो कि उनको मानने वालों को खराब लगी। ऐसे होने पर अनुयायी जिस व्यक्ति ने इस प्रकार की बात कही उसके विरुद्ध गंभीर दर्दनाक घटना घटित कर देते है। कहीं-कहीं तो व्यक्ति को जान से भी मार दिया जाता है और कुछ केसों में ना केवल उस व्यक्ति को अपितु उसके घरवालोंं एवं जानने वालों को भी जानमाल व संपत्ति का भारी नुकसान पहुंचा दिया जाता है। 

आखिर इसका क्या मतलब है? यदि भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु है और वह बहुत पावरफुल है तो वह खुद ही उसके विरुद्ध कहने वाले पर कार्रवाई कर देगा। परंतु ऐसा लगता है कि जो लोग अनुयायी है उनको उनके भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु पर भरोसा नहीं है और वे स्वयं ही भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के संरक्षक का काम करने लग जाते है और तथाकथित दोषी समझे जाने वाले व्यक्ति को सजा देने का गैरकानूनी कृत्य कर देते है। 

इसे गहराई से समझना होगा कि आखिर संरक्षक है कौन? क्या अनुयायी, भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के संरक्षक है या भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु उन अनुयायियों का संरक्षक है? वास्तव में विचार करें तो पता चलता है कि धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण के कारण जो धार्मिक कट्टरता है उसकी वजह से संसार में जितनी हिंसा हो रही है उससे अधिक और किसी भी वजह से नहीं होती है। अतः आवश्यकता है की लोगों की मानसिकता और विचारधारा को ही सही किया जाए। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर के अलावा सामाजिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ठोस कार्यवाही होनी चाहिए। जिस प्रकार हम क्लाइमेट चेंज को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ तक भी इस विषय में अनेकों कार्यक्रम व विचार संगोष्ठी करवाता है ताकि क्लाइमेट को खराब करने वाले पहलुओं और गतिविधियों पर अंकुश लग सके। उसी तर्ज पर आवश्यकता है कि व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय, सरकारी व गैरसरकारी स्तरों पर कट्टरता फैलाने वाले धार्मिक संगठनों व व्यक्तियों को चिन्हित किया जाए और उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि सामान्य गतिविधियों में से कट्टरता दूर हो जाये और सभी धर्मों के लोग धर्मांधता को समाप्त करके आपस में भाईचारे के साथ अहिंसात्मक तरीके से रह सके और एक दूसरे की उन्नति में सहयोग करें।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 9 October 2021

वित्तीय औचित्य के सिद्धांत

rpmwu430 dt. 09.10.2021
वित्तीय_औचित्य_के_सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सार्वजनिक धन से किए गए व्यय के संबंध में उसी सतर्कता का प्रयोग करेगा जैसा कि एक सामान्य विवेक वाला व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के संबंध में करता है।

सामान्य व्यक्ति जब पेन खरीदने जैसा छोटा खर्चा करता है तब भी वह पेन को खोलकर व चलाकर और उसकी सही सलामती देखता है और यदि एक दो दिन में खराबी आ जाये तो वह उसे बदलवाने का प्रयास करता है। अमूमन साधारण कार्य के लिए वह बहुत मंहगा पेन नहीं खरीदता है।

इसी तर्ज पर हर सरकारी व्यक्ति को चाहिए कि -
1. केवल_आवश्यकता होने पर ही चीजों को खरीदने का प्रस्ताव बनायें।

2. स्पेशिफिकेशन ऐसे बनाये जिसके लिए ज्यादा लोग पार्टीशिपेट कर सके।

3. खरीद या टेंडर फाईनल करते समय रेट_रिजनेबलिटी की सही जांच करें। इंटरनेट के समय यह आसान हो गया है। दूसरी जगह के कितने भी आॅर्डर रिजनेबलिटी के ठोस बैसिस नहीं हो सकते है।

4. CAMC_AMC के आर्डरस् में रेट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। काॅन्ट्रेक्ट के चलने पर पुन : देखते रहे कि फर्म की मेनपावर व मैटेरियल की कोस्ट काॅन्ट्रेक्ट की दर की तुलना में कैसी है? ताकि जरूरत लगने पर सुधारात्मक कार्यवाही की जा सके।

5. जो चीजें जल्दी खराब हो उनके लिए वारंटी क्लेम जरूर करें। ऐसा करने से फर्म उसके प्रोडक्ट की गुणवत्ता में जहां एक ओर सुधार करेगी वहीं बिना लागत का रिप्लेसमेंट मिल जायेगा।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 6 October 2021

Diesel and Electrical Traction

rpmwu429 dt. 06.10.2021

Some important facts about HSD Oil Consumption and Traction Electricity for the understanding of all:

1. Rail technology is 6 times more fuel efficient than the road, our diesel locos consumes 1/6 quantity of HSD Oil as compared to road transport in carrying 1000 GTKM. I have personally calculated these figures. 

2. Railways consume only about 2.25% of HSD Oil of the national consumption of Diesel and Petrol put together. 

3. About 58.42% of our expenditure on HSD Oil goes back to the government in the form of Excise Duty, VAT and Green Cess. In 17 months from April 2020 to August 2021, SWR has paid back to the government ₹1009 Cr in the form of these taxes from the billed amount of ₹1727 Cr on purchase of HSD Oil, only ₹718 Cr (41.58%) has been our real expenditure. 

4. Figures of 2019-20, India had net 13.11 Lakh GWh electricity for supply to consumers. Rail Transport used only 19,577 GWh i.e. merely 1.52%.

5. 64.86% of the coal is used to generate electricity in the nation.

6. Railways monitor efficiency by means of SFC (Specific Fuel Consumption) for diesel traction and SEC (Specific Energy Consumption) for electrical traction. It is quantity of diesel in litres or electricity in units consumed for transportation of 1000 GTKM. 

Over SWR, the SFC for Goods is 2.52 Litres/1000 GTKM which is about ₹ 227.5 in terms of money, if taxes are excluded then this is about ₹ 95.

On the other hand, SEC is about 15 Units per 1000 GTKM which is about ₹120 considering average price of purchase of electricity @ ₹8 per unit. However these figures of SEC and cost of purchase of electricity may further be refined.

Regards
Raghuveer Prasad Meena