Sunday 4 December 2022

अच्छाई के सूचकांक में सुधार करें। Improve the index of goodness.

rpmwu 463 dt. 04.12.2023
व्यक्ति मूलतः अच्छा ही होता है। वह मदद, सहायता व सहयोग लेता है और करता भी है। निम्नलिखित के बारे में विचार करे व सोचे -
1. वे दो अवसर जब आपकी या आपके प्रियजन की किसी दूसरे व्यक्ति ने मदद की हो।
2. वे दो अवसर जब आपने किसी दूसरे व्यक्ति की सहायता की हो।

उक्त दोनों ही प्रकार के पल आपको अच्छा अहसास करवाने वाले है। इसलिए हमें चाहिए कि दूसरो की मदद व सहायता और सहयोग करके ऐसे पलों की संख्या में बढ़ोतरी करे। 

कृपया विचार करके प्रतिक्रिया दे।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

आदिवासियों के कल्याण के लिए आवाज उठायें।

rpmwu 462 dt 04.12.2022

सही_बात_को_डट_कर_बोलें_जो_जहां_है_वहां_से_बोलेसही_व_हक_की_बात_को_कहने_में_संकोच_नहीं_करे
हम_नहीं_कहेंगे_तो_दुसरा_कौन_और_क्यों_कहेगा?
बोलोगे_तो_सभी_सुनेंगे_और_समाधान_होगा

Goodstep सभी जानते है और जो नहीं जानते है उन्हें इतिहास की किताबों, डाक्यूमेंट्री, सत्य पर आधारित फिल्मों इत्यादि से जानकारी हासिल करनी चाहिए कि समस्त संसार में आदिवासियों (Indigenious Peoples) पर कितने जुल्म और एट्रोसिटिज हुई है।

हम भारत की ही बात करे तो यह एकदम तथ्यात्मक है कि आदिवासी जो कि लम्बे अर्से से जंगल व पहाड़ो में रहते आये है, उनका उपयोग करते थे, उन पर हक मानते थे, को जंगल व पहाड़ो के अधिकारी नहीं दिये गये है जबकि देश की आजादी के समय राजा महाराजाओं को उनकी रियायतों की लम्बी चौड़ी जमीन, महल, खजाने इत्यादि दे दिये गये।

आदिवासियों को जंगल के जानवर की तरह माना जाता रहा। जब किसी जंगल या पहाड़ में खदान करनी होती थी तो वहां के आदिवासियों को जंगल के जानवरों की तरह ही खदेड़ दिया जाता था। और उनके विरोध करने पर उन्हें या तो मार दिया जाता है या जेलों में बंद कर दिया जाता है। यह ऐसे है जैसे किसी बच्चे की माँ की आँचल में बहुत अच्छा दूध है परन्तु पियेगा कोई दूसरा ही। 

माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा गरीब आदिवासियों के दुखों को महसूस करके माननीय उच्चतम न्यायालय एवं सरकार से उनको राहत दिलाने के लिए दिशानिर्देश देने के लिए बहुत-बहुत साधुवाद।

आवश्यकता है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 व नियम 2008 एवं संशोधित नियम 2012 की अनुपालना की भी समीक्षा करवाई जाये ताकि पता चल सके कि कितने आदिवासियों को अभी तक भी वनभूमि के अधिकार नहीं दिए गए है।

जितने भी खासकर आदिवासी राजनेता/अधिकारी/कर्मचारी है या जो भी राजनेता/अधिकारी/कर्मचारी आदिवासियों के कल्याण के बारे में सोचते है, उन्हें चाहिए कि वे इन दोनों मुद्दों को प्राथमिकता दे और आदिवासियों के साथ होने वाले अत्याचार व अन्याय और भेदभाव को कम करवाने में सहयोग दे एवं महत्ति भूमिका निभाये।

जोहार
Raghuveer Prasad Meena

Saturday 3 December 2022

विचार करें कि पानी पर चलना सीखने पर कहीं बेवजह समय, ऊर्जा व संसाधन तो नष्ट नहीं कर रहे है?

rpmwu 461 dt 03.12.2022

जो काम वैकल्पिक तरीकों से आसानी से सम्भव हो सकते है उन पर बेवजह बहुत अधिक समय, ऊर्जा व संसाधन खर्च नहीं करने चाहिए।

एक बार दो व्यक्ति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास गये और उनमें से एक ने दूसरे का परिचय करवाया कि महाराज इस महापुरुष ने 20 वर्ष की कड़ी मेहनत, लगन और तपस्या से पानी पर चलना सीख लिया है और अब यह बिना कपड़े गीले किये आसानी से नदी पार कर सकता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा यह काम तो 2 पैसे देकर नाव के माध्यम से आराम से किया जा सकता है। नदी पार करने के लिए पानी पर चलना सीखने में 20 वर्ष का लंबा समय खर्च करने की क्या आवश्यकता थी? वे दोनों व्यक्ति एकदम निरूत्तर हो गये।

हम भी जीवन में बहुत से कामों पर बेवजह असंगत (disproportionate) समय, ऊर्जा व संसाधन खर्च करते है। जो भी चीज हम कर रहे है उनके बारे में विचार करें और परखें कि कहीं हम पानी पर चलना सीखने जैसे कामों पर तो अनावश्यक समय, ऊर्जा व संसाधन खर्च तो नहीं कर रहे है।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Friday 2 December 2022

सहयोग (Cooperation) करना मानवीय गुण है।

rpmwu 460 dt. 02.12.2022

आपस में सहयोग (Cooperation) करने के सकारात्मक गुण की मनुष्य को दूसरे जानवरों से भिन्न बनाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मानव के जीवन को सहज, सुखमय व सुरक्षित बनाने के लिए जितनी भी चीजें ईजाद हुई है उनके बैकग्राउंड में दूसरों को सहयोग करने की भावना रही है।

जीवन में काम आने वाली चीजें यथा खाना, पानी की उपलब्धता, कपड़ा, मकान, जूता, रोड, पानी के जहाज, हवाईजहाज़, राॅकेट, ट्रेन, बस, कार, ट्रेक्टर, अन्य व्हीकलस् ,अस्पताल, टीका, दवाईयां, स्कूल, कॉलेज, शिक्षा, सरकारी सिस्टम, इलेक्ट्रिसिटी, सेटेलाईट, मोबाइल, लेपटॉप, कम्प्यूटर, इंटेरनेट, टीवी, बिजली से चलने वाले उपकरण, कोयला, डीजल, पैट्रोल की उपलब्धता, मशीनें, चश्मा, कैमरा, प्रिटिंग प्रेस या और जो भी आप देखे या समझे वे सभी किसी न किसी की मेहनत के नतीजे से सम्भव हो सकी है।

आसानी से समझा जा सकता है कि हर व्यक्ति व उसके प्रियजन दूसरों द्वारा ईजाद या बनाई गई चीजों से हर दिन हर समय लाभान्वित होते है। अतः हमारी प्रत्येक की भी जिम्मेदारी बनती है कि हम भी दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए #सहयोग की भावना से कुछ न कुछ काम अवश्य करें।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Sunday 20 November 2022

सबोर्डिनेट कल्चर से बचे। वार्तालाप में धर्म, जाति, समुदाय, नौकरी व व्यवसाय के आधार पर व्यक्ति के लेवल का निर्धारण नहीं करे।

rpmwu 459 dt. 20.11.2022

#सबोर्डिनेट_कल्चर हमारे देश में सामान्यतः जब दो व्यक्ति मिलते है तो वे खुलकर बात करने से पहले एक दूसरे के बारे में यह जानने की कोशिश करते है कि सामने वाले का लेवल क्या है? दोनों ही स्वयं की तुलना में दूसरे के लेवल के काॅर्डिनेटस् तय करने का प्रयास करते है। उसके बाद वार्तालाप के व्यवहार में एक दूसरे को ऊंचा या समस्तर या नीचे मानकर आगे बढ़ते है। 

सदियों पुरानी मानसिक बीमारी है कि सामान्य नागरिक, व्यक्ति का लेवल धर्म, जाति व समुदाय के आधार पर निर्धारित करते है। माडर्न व पढ़े-लिखे लोग सामने वाले की नौकरी के प्रकार व स्तर अथवा व्यवसाय के बारे में पता करके लेवल निर्धारित करते है।

लेवल निर्धारित होने के पश्चात वे अपने आप को ऊपर या नीचे (subordinate) मानकर विचार विमर्श व डिस्कशन करते है।

आवश्यकता है कि वार्तालाप व व्यवहार में व्यक्ति के सोचने का तरीका, विचार, अनुभव, ज्ञान, जनसामान्य के कल्याण के लिए दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होने चाहिए ना कि धर्म, जाति, समुदाय, नौकरी, व्यवसाय के आधार पर उसके लेवल के काॅर्डिनेटस्।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Tuesday 1 November 2022

आदिवासियों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव।

rpmwu458 dt. 01.11.2022

आदिवासियों को महत्व देने, उनको मेनस्ट्रीम में लाने व उत्थान तथा कल्याण की विभिन्न योजनाओं के लिए सरकार को बहुत बहुत साधुवाद। आदिवासियों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए निम्नलिखित काम करने की जरूरत है -

1. आदिवासियों को उनके अधिकारों के प्रति जागृत करने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जाये। इसी कड़ी में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर केन्द्र व राज्य सरकार उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित करवायें एवं इस दिन को राजकीय अवकाश घोषित करें।

1.1 आजतक किसी भी आदिवासी महानुभाव को भारतरत्न से सम्मानित नहीं किया गया है। योग्य आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं व अन्य क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वाले व्यक्तियों को भारतरत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। 

2. प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के हक की नीति तय हो। आदिवासी क्षेत्र से निकाली जाने वाली प्राकृतिक सम्पदा में आदिवासियों की हिस्सेदारी हो।

3. विकास के नाम पर आदिवासियों की बेदखली पर नियंत्रण हो। विकास कार्य हेतु सोशल इम्पेक्ट ऑडिट हो एवं उसके पश्चात यदि बेदखली टाली नहीं जा सकती तो मुआवज़े की ठोस नीति बने व उसकी अनुपालना हो।

4. वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन भूमि पर स्वामित्व के अधिकार की अनुपालना एवं उसकी गहन मॉनिटरिंग ज़रुरी है।

5. आदिवासियों के संस्थागत विकास हेतु विशेष पैकेज के साथ कार्ययोजना बने व उसकी क्रियान्विति हो।

6. आदिवासी नेताओं, समाजसेवियों व स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये।

7. महत्वपूर्ण सार्वजनिक सम्पत्ति व रोडस् के नाम आदिवासी नेताओं, समाज सेवियों व महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम पर रखे जाये।

8. देश की राजधानी व समस्त राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में आदिवासी विकास केंद्रों की स्थापना की जाये। इन केंद्रों में आधुनिक सुविधाओं के साथ ऑडिटोरियम, कांफ्रेंस हॉल, पुस्तकालय, शोध केन्द्र, होस्टल्स, गेस्ट हाउसेस एवं थियेटर बनाये जायें ताकि आदिवासियों की संस्कृति, खेल-कूद, परम्पराएँ एवं पुरा महत्व के दस्तावेज़ों का संरक्षण हो ताकि नई पीढ़ी आदिवासी धरोहरों से अवगत हो सके।

9. वर्ष 2011 के जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार देश में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 8.62 % है जबकि आरक्षण 7.5 % ही है। अतः आवश्यकता है कि जनजाति आरक्षण वर्तमान जनसंख्या के अनुरूप 7.5 % से बढ़ाकर 8.62 % किया जाये।

10. राज्य सभा में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण होना चाहिए।

11. सरकार के मंत्रियों में आदिवासियों को जनसंख्या के अनुसार उपयुक्त प्रतिनिधित्व मिले।

12. न्यायिक सेवाओं हेतु भारतीय न्यायिक सेवा का गठन हो ताकि न्यायिक सेवाओं में हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो सके। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायधीशों के चयन में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व हेतु आरक्षण होना चाहिए।

13. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान एवं विश्वविद्यालयों एवं काॅलेजों की फैकल्टी में जनसंख्या के अनुसार आदिवासियों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

14. सरकार के महत्वपूर्ण पदों (की-पोस्टों) पर आदिवासी अधिकारियों को उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिले। ग्रुप ए तक की सभी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान हो एवं आयु सीमा हटाई जाये ताकि सभी स्तरों के पदों पर जनसंख्या के आधार पर समुचित प्रतिनिधित्व हो सके।

15. जिन-जिन विभागों में अनुसूचित जनजाति का बैकलाॅग है, उसे अविलम्ब भरा जाये।

16. व्यवसाय की ओर प्रेरित करने हेतु आदिवासियों को विशेष प्रकार के इंसेंटिव दिये जाये।

17. सरकार की नीतियों की वजह से सरकारी क्षेत्र कम होते जा रहे हैं व निजी क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अतः निजी क्षेत्र में भी आरक्षण का प्रावधान किया जाये।

18. आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व शिक्षा पर विशेष कार्ययोजना होनी चाहिए। इन क्षेत्रों में पदस्थ किये जाने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को विशेष इंसेंटिव दिया जाये ताकि कठिन परिस्थितियों में पदस्थ होने से परहेज नहीं हो।

19. अंधविश्वास व कुरीतियों को दूर करने हेतु विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाये एवं कार्यरत समाजसेवियों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाये।

20. आदिवासियों से संबंधित पुस्तकों, लेखों व साहित्य को बढ़ावा देने हेतु विशेष कार्ययोजना बनाई जाये एवं उसकी क्रियान्विति सुनिश्चित कराएं।

21. आदिवासी क्षेत्रों में पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों की ज्यादतियाँ कम हो एवं आदिवासियों के उत्पीड़न के प्रकरणों पर तत्परता से ठोस कार्यवाही की जाये।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Thursday 22 September 2022

Name & Surname

rpmwu457 dt. 22.09.2022

There is nothing in the Name but in our country there is a lot in Surname.
बड़ा दुर्भाग्य व शर्मसार है कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के बावजूद भी आजादी के अमृत महोत्सव में हमारे देश में आज भी नाम के साथ लगे सरनेम के आधार पर डिस्क्रिमिनेशन होता है। शायद अनेकों नेताओं, अधिकारियों, कर्मचारियों व जनमानस ने इसे महसूस किया होगा। व्यक्ति का सरनेम तय करता है कि उसकी न्यायालयपूर्ण मांग की भी सुनवाई होगी अथवा नहीं। अत्याचार के विरोध में बहुत कम लोग साथ देते है।

देश के सेन्ट्रल विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्ग की टीचिंग फेकल्टी की भारी रिक्तियां है परन्तु उचित कार्यवाही की गति बहुत ही धीमी है। अनेकों प्रकरणों में NOT FOUND SUITABLE (NFS) के आधार पर रिक्तियों को नहीं भरा जाता है जबकि आज के दिनों में ऐसा हो सकना यथार्थ प्रतित नहीं होता है। 

राजस्थान में परीक्षा सम्पन्न होने के बाद आरक्षित वर्ग की रिक्तियों को कम कर दिया गया। अभ्यर्थी दर दर ठोकर खा रहे है परन्तु कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हो रही है।

कृपया प्रण करे कि देश के किसी भी नागरिक के भी साथ सरनेम के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। जिसके भी साथ अन्याय हो रहा हो, उसकी यथासंभव मदद करें।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Wednesday 21 September 2022

Hypocrisy (दोगलापन, कपट, पाखंड)


rpmwu457 dt 21.09.2022
Hypocrisy : डिक्शनरी के मुताबिक हिपाॅक्रसि का अर्थ निम्नलिखित है - 
behaviour in which somebody pretends to have moral standards or opinions that he/she does not really have
(वास्‍तविकता के विपरीत) उच्‍च नैतिक मानदंड और व्‍यवहार का ढोंग रचना; पाखंड, ढोंग, मिथ्‍याचार। 

आमतौर पर हमारे देश में अधिकांशतः व्यक्तियों के व्यवहार में दोगलापन (hypocrisy) बहुत लम्बे अर्से से है। यहां तक कि भगवान मानने वालो ने भगवान को भी नहीं छोड़ा। कहने को कहते है कि कण कण में भगवान है परन्तु वर्ण व्यवस्था के अनुसार शूद्र वर्ण के नागरिकों में उनको कभी भगवान नहीं दिखाई दिया।

व्यक्ति सोचता कुछ है और कहता कुछ और है या कहता कुछ है और करता कुछ और ही है। व्यवहार की ऐसी विषमताएं हिपाॅक्रसि है। 

व्यक्ति के व्यवहार में हिपाॅक्रसि के माध्यम से दूसरों को मुर्ख बनाने के निम्नलिखित कारण हो सकते है - 
1. भय : व्यक्ति सही बात को कहने से विभिन्न कारणों से डरता हो।
2. लालच : कुछ खो नहीं जाये, इस बात का लालच। हो सकता है सही कहने से व्यक्ति नाराज होकर बात मानना बंद कर दे और वह नियंत्रण से निकल जाये।
3. यह भी हो सकता है कि सही बात इसलिए नहीं कह रहा हो कि सामने वाले को खराब महसूस नहीं होने देना चाहता हो।
4. मोरल वैल्यूज् के विरूद्ध बात करने से पब्लिक आॅपिनियन का डर हो।

देश की उन्नति व नागरिकों की आपस में सद्भावना में हिपाॅक्रसि एक प्रमुख प्रतिरोध है। अतः इसे समझना चाहिए और यथासंभव व्यवहार में नहीं अपनाये। जो लोग हिपाॅक्रेट है उनको पहचाने और उनकी बातों पर भरोसा नहीं करे। 

स्वयं ट्रांसपेरेंट रहने का प्रयास करें। सोच, कथनी व करनी में समरूपता रखें।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 17 September 2022

सामाजिक समरसता व सौहार्द

rpmwu456 dt.17.09.2022
विचारणीय सामाजिक समरसता व सौहार्दपूर्ण जीवनशैली अपनायें।

आजकल देखा जा रहा है कि व्यक्ति तार्किक तौर पर व्यक्त किये गये विचारों को जाति, धर्म, समुदाय विशेष के विरूद्ध मानकर बहुत जल्दी नाराज हो जा रहे है और प्रतिक्रिया में सामूहिक विरोध करना प्रारंभ कर देते है। ऐसा होने से सामाजिक समरसता व सौहार्द बिगड़ने लगा है।

कृपया निम्नलिखित पर विचार करें -
1. किसी भी व्यक्ति का जन्म उसके स्वयं के वश में नहीं है। उसका जन्म किसी भी जाति, धर्म या समुदाय में हो सकता है।

2. यदि दो बच्चों की जन्म के समय दूसरे धर्म, जाति या समुदाय में अदला-बदली हो जाये तो जब वे बड़े होंगे तो उनकी विचारधारा परवरिश के माहौल व रीति रिवाजों पर निर्भर करेगी ना कि उनके बायोलॉजिकल माँ बाप के जाति, धर्म या समुदाय के अनुरूप होगी। फिर विचारधारा में कट्टरता का मायना क्या है? 

3. हम सभी अपने-अपने व्यक्तिगत जीवन में सभी जाति, धर्म व समुदाय के लोगों की मदद लेते है और करते भी है। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने दूसरे धर्म, जाति व समुदाय के व्यक्तियों से कभी भी मदद नहीं ली हो, तो इनके आधार पर भेदभाव व दुर्भावना का कितना औचित्य है? 

4. विचार करें कि हमारे जीवन के उपयोग या उपभोग में आने वाली अधिकांश चीजें आखिरकार वैज्ञानिक अनुसंधान की ही देन है। जो भी देश आज अग्रणी श्रेणी में है वे विज्ञान के कारण ही है। 

5. सरसरी नज़र से लगता तो ऐसा है कि धर्म मानवता के हित में है। धार्मिक व्यक्ति शिष्टाचारयुक्त व मानवीय गुणों से ओतप्रोत होगा। परन्तु धर्म के आधार पर एक दूसरे के साथ जो दरिंदगी व भेदभाव किये गये है या किये जाते है, वे बहुत ही अमानवीय है। यूरोप व अमेरिका में रंगभेद व भारत में छूआछूत के आधार पर एक ही धर्म के लोगों ने उनके ही धर्म के लोगों के साथ शारीरिक और मानसिक अत्याचार किये। यहां तक कि लोगों को पढ़ने तक नहीं दिया गया। कुछ लोग आज भी छुपे रूप से भेदभाव व अत्याचार करते है। 

6. जिन लोगों के साथ रंगभेद व छूआछूत के कारण पहले बहुत अधिक भेदभाव व अत्याचार हुआ, अब कालांतर में सामाजिक सोच, जागरूकता, रहन-सहन व तौर तरीके बदलने के कारण वे पढ़ने लिखने लगे गये और तार्किक बाते करने लगे है। ईमानदार सोच वाले समझदार लोग उनका पक्ष लेते है, तत्थात्मक विचार प्रकट करते है और शोषितों का मनोबल बढ़ाते है। परन्तु दकियानूसी सोच वाले एवं जिन लोगों के स्वार्थ पर चोट पडती है वे लोग उनकी बातों का बुरा मानते है और होहल्ला करने लग जाते है। हालांकि जागृति की ज्योति बुझ नहीं पायेगी। उनका विरोध आग में घी का काम करेगा। 

अत: लोगों के साथ लम्बे समय तक हुए अत्याचार की पीड़ा को समझते हुए बेवजह धर्म, जाति और समुदाय के आधार पर सामाजिक समरसता व सौहार्द को खराब नहीं करे।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Sunday 4 September 2022

आदिवासियों को किस दिशा में चलना होगा?

rpmwu455 dt 04.09.2022

आदिवासियो_की_उन्नति_की_दिशा
विचारणीय सामाजिक कार्यकर्ता आदिवासियों व ˈमार्जिनलाइज़्ड नागरिकों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए अथक प्रयास करते है। वे चाहते कि हाशिये पर खड़े देश के नागरिक मुख्य धारा में शामिल हो। ये उनके की प्रयास है जिसके कारण आदिवासियों व उनके समान पिछड़े अन्य नागरिकों के कल्याण के लिए कानून बनते है एवं अग्रणी नागरिकों के मन में उनके उत्थान के लिए सद्भावना विकसित होती है। अतः सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आदिवासियों व पंक्ति के अंतिम छोर पर बैठे नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने का हर प्रयास साधुवाद से औतप्रोत समझा जाये।

दूसरी ओर हम सभी को विचार करना होगा कि डैम इत्यादि बनाकर देश की प्राकृतिक संपदा के सदुपयोग से देश की उन्नति करना भी आवश्यक है। बड़े प्रोजेक्ट्स में आदिवासियों का विस्थापन एक बड़ी चुनौती है। सरकार व आदिवासियों दोनों को ही जीत-जीत (win-win) की स्थिति बनाने का प्रयास करना चाहिए।

सरकार को चाहिए कि प्रथम तो आदिवासियों को न्यूनतम विस्थापित करे और जिनका विस्थापन अपरिहार्य है उन्हें पूरा मुआवजा बिना किसी बाधा के मिल जाये। आदिवासियों के मन में जगह विशेष से लगाव रहता है अतः उनके द्वारा किये गये छोटे मोटे प्रतिरोध को नजरअंदाज कर दिया जाये। नये विस्थापित स्थान पर आवास, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सामाजिक जीवन से जुड़ी यथासंभव बेहतर से बेहतर सुविधाएं निशुल्क मुहैया कराई जाये। आदिवासियों को भूमि व अन्य संसाधनों  के अधिकार दिये जाये।

आदिवासी आदिवासियों को भी उन्नति करने व मुख्य धारा में आने के लिए स्वयं की सोच में बदलाव करने की सख्त जरूरत है। केवल जल_जंगल_जमीन की बाते करने से उन्नति नहीं होने वाली है। मेरे मतानुसार आदिवासियों को निम्नलिखित दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है -

1. आदिवासियों को चाहिए कि वे मन में अपने आप को बड़ा समझे और पहचाने कि वे जहां रह रहे है वह स्थान सदियों से उनके पुर्बजो का रहा है। वर्तमान युग में आर्थिक रूप से पिछड़ जाने से मन में किसी प्रकार की हीन भावना नहीं आने दे। आदिवासी किसी भी तरह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था का हिस्सा नहीं रहे है। आदिवासी संस्कृति में सभी लोग समान है। कोई ऊंच नीच नहीं है। आदिवासी हमेशा खुद्दार, बहादुर, न्यायप्रिय व दूसरों के काम आने वाले लोग रहे है। आदिवासियों ने दुसरों को ज्यादा दिया है लिया बहुत कम है।

2. आदिवासियों को स्वयं जानना होगा कि आखिर वे उनकी ही जमीन पर दूसरों से पीछे कैसे रह गये? क्या कारण व कमियां रही है जिनसे वे अंतिम छोर पर पहुंच गए है? उन्नति का मतलब क्या है? सही मंजिल क्या है? कैसे आगे बढ़े? किसका साथ ले?

3. सबसे प्रथम आदिवासियों को उनकी दुर्दशा के कारणों को पहचानना होगा, जो कि निम्न प्रकार है -
3.1 आदिवासियों का साधा व संतुष्टिपूर्ण जीवन-पद्धति व दूसरों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना।
3.2 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दूर रहना व अंधविश्वासी होना।
3.3 नशे की लत व उसे सामाजिक मान्यता प्रदान करना। 
3.4 अशिक्षा व शिक्षा की सुविधाएं नहीं होना। 
3.5 स्वास्थ्य की सुविधाएं मुहैया नहीं होना।
3.6 जंगलों की भूमि के अधिकार नहीं होना।
3.7 मुख्य धारा में जाने की सोचने की बजाय वर्तमान दुखद स्थिति में संतुष्ट रहना।
3.8 घर से दूर जाने में हिचकना।
3.9 ब्याज व शोषण कर्ताओं के चुंगल में फंसना।
3.10 किसी भी राज, पार्टी, व्यक्ति के लिए जरूरत से ज्यादा निष्ठावान (loyal) होना। निष्ठा छोड़ने में देरी करना।
3.11 रहने के क्षेत्र में यातायात के संसाधनों की कमी होना।
3.12 आदिवासी राजनेताओं की ज्यादा चलती नहीं है। वे उनके समाज के लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की क्रियान्विति नहीं करवा पाते है।
3.13 पढ़े लिखे आदिवासी अधिकारी अपने परिवार तक सीमिट कर रह जाते है। दूसरों के उत्थान के लिए कम लोग ही काम करते है।
3.14 राज में हिस्सेदारी के लिए प्रयास नहीं करना।
3.15 राजनीतिक समझ में कमी। राजनीति की बातों से मुंह मोड़ना। 
3.16 मुख्य रूप से पारम्परिक खेती पर निर्भर होना। बिजनेस में लगभग नगण्य हिस्सेदारी है। सामाजिक तौर पर भी प्रोत्साहन नहीं है।
3.17 विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासियों में आपसी मेलजोल की कमी है। विचारों का आदान-प्रदान नहीं होता है।
3.18 धर्म, संस्कृति, नाचगान व इतिहास की बातों पर जरूरत से ज्यादा समय व संसाधन खर्च करना।
3.19 सरकार की जनजाति कल्याणकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होना।
3.20 संविधान के शैड्यूल 5 व 6 के प्रावधानों का सही रूप में लागू नहीं होना।
3.21 हिल व दूर दराज के कठिन जगहों पर निवास करना।
3.22 जबरन विस्थापन व मुआवजा नहीं मिलना।
3.23 फोरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 की सही तरह से अनुपालना नहीं होना। 

4. उक्त क्रमांक 3 पर सूचि बद्ध बिन्दुओं के अलावा भी कई अनेक कारण है जिनकी वजह से आदिवासी पिछड़े हुए है। अब अहम बात यह है कि समाधान क्या है? उक्त प्रत्येक बिन्दु पर आदिवासियों के युवाओं को स्वयं समझना होगा और सुधारात्मक कदम उठाने होंगे। नाज गान, पुराने रीति-रिवाजों व संस्कृति पर बने रहने से काम नहीं चलने वाला है। उन्हें उनके हित के लिए बदलना होगा। असंतुष्ट बनना होगा। किसी के लिए भी अंधी निष्ठा नहीं होनी चाहिए। तय करें कि एक दिन देश के सभी आदिवासी मुख्य धारा का हिस्सा बने।

#आदिवासियोंकोउनकेसोचनेकेतरीकेमेंबदलावकरनाहोगाऔरमुख्यधारामेंआनाहीचाहिये।

कृपया इस विषय पर आपके विचारों से भी अवगत कराये। 

सादर
Raghuveer Prasad Meena

वैल्यू (Value)

rpmwu454 Dt. 04.09.2022

हर व्यक्ति को वैल्यू को समझना बहुत जरूरी है। आखिर चीजों व जीवन के विभिन्न पहलुओं की वैल्यू का मतलब क्या है? इसे साधारण निम्नलिखित उदाहरणों से आसानी से समझा जा सकता है -

1. पैन की वैल्यू है कि वह लिखे। पेन चाहे कितना भी सुन्दर हो या किसी भी चीज का बना हो या किसी ने भी बनाया हो यदि वह लिख नहीं सकता है तो पेन के रूप में उसकी कोई वैल्यू नहीं है।

2. भैंस की वैल्यू है कि वह दूध दे। परन्तु यदि वह कभी भी दूध ही नहीं दे तो चाहे उसके सींग कितने अच्छे हो या पूंछ लम्बी हो या शरीर सुडोल हो तो उसकी भैंस से अपेक्षित वैल्यू नहीं है।

3. इंटेरनेट कनेक्शन की वैल्यू है कि वह आपके मोबाइल, लैपटॉप या कम्प्यूटर पर डेटा अपलोड या डाउनलोड करें। परन्तु यदि वह ऐसा नहीं करता है तो चाहे किसी भी कम्पनी का हो उसकी कोई वैल्यू नहीं है।

4. राजनेता की वैल्यू है कि वह नागरिकों के कल्याण व उन्नति के मुद्दों की पहल व वकालत करे। यदि पार्टी के टिकट या पद की लालच या किसी डर से ऐसा नहीं करे और चुप रहे तो ऐसे राजनेताओं की कोई वैल्यू नहीं है चाहे वे किसी भी विचारधारा या जाति या धर्म से सम्बंध रखते हो।

5. पुलिस की वैल्यू है कि वह नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराये। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो चाहे पुलिस वाले कितने हष्ट-पुष्ट हो, माडर्न हथियार व संसाधनों से युक्त हो, अच्छी बाते करते हो, उनकी कोई वैल्यू नहीं है।

6. माननीय न्यायालयों की वैल्यू है कि वे नागरिकों को न्याय प्रदान करे ताकि देश में कानून का सम्मान हो, कोई भी नागरिक बेवजह अत्याचार का शिकार नहीं हो। यदि ऐसा नहीं हो तो न्यायालय की वैल्यू कम होना स्वाभाविक है।

7. सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की वैल्यू है कि वे उनकी जिम्मेदारियों का सही निर्वहन करे ताकि नागरिकों को सहुलियत मिले। जो ऐसा नहीं करते है तो उनकी कोई वैल्यू नहीं है। 

8. स्टूडेंट की वैल्यू है कि वह पढ़े और ज्ञानार्जन करें। यदि वह पढ़ने की उम्र में ऐसा नहीं करता है और दूसरी चीजों में व्यस्त रहता है तो ऐसे स्टूडेंट की कोई वैल्यू नहीं है। 

वैल्यू के कांसेप्ट को समझने के लिए उक्त तो कुछ ही उदाहरण है। जिनसे  एकदम स्पष्ट है कि चीजों की वैल्यू का क्या तात्पर्य है। और  अनेक उदाहरण हो सकते है। 

अब विचार करें कि हमारे स्वयं व दूसरों से भी जीवन के विभिन्न पहलुओं में वैल्यू अपेक्षित रहती है। हर सामाजिक सम्बन्ध में वैल्यू अपेक्षित होती है। पिता, माँ, पुत्र, पुत्री, मित्र, पति, पत्नि, भाई, बहन, रिश्तेदार, मित्र, जानकर के रूप में व अनजान के लिए मानवीय गुणों के आधार पर वैल्यू अपेक्षित रहती है। इसी प्रकार इम्प्लोयर व इम्प्लोयी से वैल्यू अपेक्षित होती है। नेता व जनता से एक दूसरे के लिए वैल्यू अपेक्षित होती है।

हर व्यक्ति को उसकी विभिन्न भूमिकाओं  में अपेक्षित वैल्यू का स्वयं को ध्यान रखने की जरूरत है। अपेक्षा करने वालो को भी चाहिए कि बेवजह बिना वैल्यू वाले लोगों या चीजों को अनावश्यक लम्बे समय तक ढोये नहीं। जो पेन लिख नहीं सकते है उन्हें त्यागना बेहतर है। यह तार्किक तथ्य राजनेताओं सहित सभी के लिए लागू है।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Tuesday 12 July 2022

आदिवासियों की दुर्दशा

rpmwu453 dt. 12.07.2022
#आदिवासियोकीदुर्दशा
यह स्पष्ट रूप से विदित है कि आदिवासी देश के मूलनिवासी (indigenous people) है। वे इस देश में 5000 वर्ष से पहले से ही रहते आये है। आदिवासी जहाँ निवास करते आये है वह धरा प्राकृतिक संसाधनों खासकर कोयले व अयस्को (ores) से परिपूर्ण होती है। परन्तु आदिवासियों की आर्थिक व सामाजिक दशा आज भी बहुत दयनीय है। दूसरे लोग ही उस धरा में उपलब्ध कोयले व अयस्को (ores) से धनधान्य होते आये है।

यह ऐसे है जैसे किसी की माँ की आँचल में अच्छा खासा दुध है परन्तु बच्चे भुखे तड़प रहे है। जोर-जबरदस्ती से दूध कोई और ही पी रहा है।

जब देश आजाद हुआ था तो राजा महाराजाओं के महल, धन दौलत व जमीन, जो कि पूर्णरूप से सरकारी थे, को उनके उपभोग के लिए छोड़ दिया गया परन्तु आदिवासियों के पहाड़ व जंगल, जहाँ वे सदियों से रहते आ रहे थे, उनके नाम नहीं किये गये। जबकि देश की आजादी की लड़ाई में आदिवासियों ने अनेकों कुर्बानी दी थी। आदिवासियों के साथ जंगली जानवरों जैसा व्यवहार होता आया है। जहाँ भी खान या फैक्ट्री बनाने के लिए जमीन की जरूरत होती है, उन्हें वहां से बिना कुछ या थोड़ा-बहुत देकर खदेड़िया जाता रहा है। 

समय समय पर हमारी सरकारों व कानूनविदों ने आदिवासियों की दशा सुधारने हेतु कदम उठाए है परन्तु बनाये गये प्रावधानों की क्रियान्वित नहीं होने से अभी भी आदिवासियों की दशा एक विचारणीय पहलू बना हुआ है। देश के पढ़े-लिखे व समझदार नागरिकों को इस पर और अधिक विचार करने की जरूरत है तथा देश के लगभग 12.5 करोड़ (9%) आदिवासियों की दशा सुधारने के लिए तेजगति से और सकारात्मक कदम उठाने हेतु उन्हें इस संदर्भ में पक्ष रखना चाहिए।

जोहार
Raghuveer Prasad Meena

Saturday 2 July 2022

देश और धर्म

rpmwu452 dt. 02.07.2022
देश में रहने वाला प्रत्येक नागरिक केंद्र व राज्य सरकारों के बजट के हर पैसे से मिलने वाली सेवाओं, सुविधाओं तथा विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर से लाभान्वित होता है। मिलिट्री व पुलिस से सुरक्षा की आशा करता है। बेहतर से बेहतर लाॅ एंड आोॅडर की कामना करता है। अच्छी व सस्ती शिक्षा व्यवस्था, अस्पतालों में इलाज, घर में पानी की सप्लाई, अच्छी रोड़, हरवक्त बिजली की आपूर्ति, इंटेरनेट की तेज स्पीड, प्राकृतिक आपदा में सरकार की तत्परता तथा रोजगार मुहैया करवाने इत्यादि के लिए सरकार को जिम्मेदार समझता है और सरकार यथासंभव जिम्मेदारी निभाती भी है। वास्तविकता में देश के नागरिक सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेकर स्वयं व उनके परिवारजनों के जीवन को सुगम व सरल बनाते है। गहन विचार विमर्श व गंभीरता से सभी पहलुओं के मद्देनजर बनाये गये नियम कानूनों की संहिता संविधान के मुताबिक देश की सरकार काम करती है और नागरिकों से अपेक्षा करती है कि वे भी संविधान की भावना व कानूनों के अनुसार व्यवहार करें। धर्म के मामले में भारत का संविधान विनिश्चय करता है कि देश धर्म निरपेक्ष है अर्थात नागरिक अपनी अपनी आस्था के अनुसार किसी भी धर्म को मानने या नहीं मानने के लिए स्वतंत्र है। 

धर्म : व्यक्ति पहले देश का नागरिक है और बाद में उसकी धार्मिक आस्था है ना कि पहले धार्मिक आस्था है और फिर देश। अतः संविधान के कानूनों की प्रथमिकता धार्मिक मान्यताओं से पहले है और नागरिकों को उसे पहले ही रखनी चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (1) में प्रतिष्ठापित है कि भारतीय संविधान के लागू होने से पहले के भारत में प्रचलित सभी विधियां, अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा शून्य होंगी यदि वे संविधान के प्रावधानों के असंगत है। इस प्रकार भारत में रहने वाले हर धर्म के प्रत्येक नागरिक के लिए भारतीय संविधान के कानूनों को मानना जरूरी है। यदि धार्मिक मान्यताओं व संविधान के प्रावधानों में असंगति है तो संविधान के प्रावधान ही मान्य होंगे। 

हिन्दू धर्म : हिन्दू धर्म के प्रभावशाली अनुयायी पहले मनुस्मृति के नियम कानून मानते थे और जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था आधारित मानवता को शर्मसार करने वाली छुआछूत (Untouchability), शूद्रों को धनोपार्जन नहीं करने देना, पढ़ाई नहीं करने देना, धार्मिक स्थलों पर प्रवेश नहीं करने देना, धार्मिक मंत्र व वाणी सुनने पर कानों में गर्म शीशा डाल देना, धर्म की बात कहने पर जीव काट देना, पहले बच्चे को गंगा में फिकवा देना, स्त्रियों के स्तन ढंकने के लिए टैक्स देना, स्त्रियों को पैत्रिक सम्पत्ति में अधिकार नहीं होना, सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि सामाजिक कुरीतियां थी। बाबासाहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने मनुस्मृति को भेदभाव व अन्याय की किताब का करार देते हुए उसका दहन किया था। उनके द्वारा हिन्दू धर्म में सुधार हेतु पार्लियामेंट में हिन्दू कोड बिल पेश किया था, परंतु भारी विरोध के कारण बिल पारित नहीं हो पाया। हालांकि कालांतर में अब बहुत कुछ सुधार हुआ है और हो रहा है और लोग पुराने धार्मिक व दकियानूसी विचारधारा को त्याग रहे है। आवश्यकता है कि हिन्दू धर्म को मानने वाले सभी जातियों व दूसरे धर्म के लोगों के साथ ज्यादा सहिष्णुता से रहे। 

मुस्लिम धर्म पढ़ने व सुनने में आता है कि मान्यता है कि स्लाम के मजहबी साहित्य कुरान शरीफ, हदीस, शरिया कानून इत्यादि अल्लाह के आदेश है। अल्लाह व पैगम्बर को नहीं मानने वाले काफ़िर है और उन्हें मार डालना तक गलत नहीं है। ऐसा करने वालों को जन्नत में जाने और वहां उन्हें हूरें मिलने का उल्लेख है। साथ में यह भी मान्यता है कि इस्लाम को मानने वाले ही दुनिया पर राज करने के काबिल है। यदि यह सही है तो ऐसी विचारधारा भारतीय संविधान के असंगत है और इस्लाम नहीं मानने वाले नागरिकों के लिए बहुत ही खतरनाक है। इस्लाम मानने वाले भारत के सभी नागरिकों को चाहिए कि वे संविधान में विनिर्दिष्ट प्रावधानों के अनुसार अपनी सोच को बदले और दूसरे धर्म के नागरिकों का सम्मान करे और उनके साथ सहिष्णुता से रहे। 

धर्मांधता व दकियानूसी सोच स्वयं व देश दोनों के लिए हानिकारक है। अत: देश के नागरिकों को संविधान के प्रावधानों को धार्मिक मान्यताओं से ऊपर रखना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि धर्म के नाम पर दूसरे नागरिकों के साथ अत्याचार व अन्याय करने की सोच पैदा करने वाली समस्त शिक्षा संस्थानों एवं स्थलों पर प्रतिबंध लगा दे।  वोट देने की आयु (18 वर्ष) तक के बच्चों को धार्मिक संस्थाओं में पढ़ने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, इस उम्र तक केवल स्कूलों में ही सरकार द्वारा तय ब्राॅड बेस्ड सिलेबस के अनुसार पढ़ाई होनी चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Saturday 23 April 2022

रास्तो का चौड़ीकरण

rpmwu452 Dt. 23.04.2022

रास्ता       मंदिर_मस्जिद_चर्च_गुरूद्वारा

रास्ते, आमजन के उपयोग के संसाधन होते है। रास्ते पर अतिक्रमण करने से या जायज़ बिल्डिंग के बनी हुई होने से भी यदि रास्ते की चौड़ाई कम हो जाती है तो यातायात में बाधा उत्पन्न होती है जिससे सभी को असुविधा व परेशानी का लगातार सामना करना पड़ता है। सरकार व स्थानीय निकाय समय समय पर आमजन की सुविधा के लिए रास्तों के चौड़ीकरण के लिए कार्य करती है ताकि रास्तों की चौड़ाई अच्छी हो जाये।

धार्मिक स्थल मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे या अन्य आस्था के केन्द्रों को पहले से ही दूर ऐसी जगह बनाना चाहिए जहाँ शांति से व्यक्ति पूजा अर्चना या ध्यान केन्द्रित कर सके। परन्तु स्वार्थी लोग तो धार्मिक स्थल बनाते ही इसलिए है कि उनकी आड़ में चौड़ीकरण का कार्य करना कठिन हो जाये और अनाधिकृत बिल्डिंग बच जाये।

रास्तों के चौड़ीकरण में घर, दुकानों के अलावा यदि धार्मिक स्थल भी आते है तो उन्हें भी हटाया जाता है। रास्ता आमजन के उपयोग का संसाधन है अत: वह भी धार्मिक स्थल के समान ही है या उनसे अधिक महत्वपूर्ण है।

यदि हम वास्तव में गांवों, कस्बों व शहरों की स्थिति सुधारना चाहते है तो हमें रास्तों के चौड़ीकरण करने वाले अधिकारियों व निकाय के पदाधिकारियों को हतोत्साहित नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 20 April 2022

दहेज़ को हतोत्साहित करने के लिए 3D फार्मूला।

rpmwu451 Dt. 20.04.2022
दहेज मिटाने के लिए 3D_फार्मूला कारगर हो सकता है -

पहली_D :  लड़के वालो के लिए, वे Demand (मांग) नहीं करे। 

दूसरी_D :  लड़की वाले दी जाने वाली चीजों का Display (दिखावा) नहीं करे। 

तीसरी_D : बाराती व आमजनता लेनदेन की बातों पर Discussion (चर्चा) करके दहेज़ को महत्व नहीं दे। 

यदि सभी इस 3D फार्मूला को अपनायेंगे तो दहेज़ पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। 
सादर 
Raghuveer Prasad Meena

स्वतंत्रता सेनानी श्री भैरवलाल 'काला बादल'

 

(4 सितम्बर1918  से 20 अप्रैल 1997)
rpmwu 450 dt. 20.04.2022

श्री कालूलाल मीणा जी के पुत्र स्वतंत्रता सेनानी श्री भैरवलाल 'काला बादल' खानपुर शहर में छठी कक्षा में पढ़ते हुए और श्री तनसुखलाल मित्तल के संपर्क में आने के दौरान 1937 में प्रजा मंडल के सदस्य बने। उन्होंने देशभक्ति गीतों के माध्यम से स्वतंत्रता की भावना को जगाने का एक अनूठा प्रयास किया। 'काला बादल' नामक क्रांतिकारी गीत की रचना के कारण, वह पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए विशेषण 'काला बादल' से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने प्रजामंडल के तत्वावधान में नरसिंह गश्ती पुस्तकालय की स्थापना कर तथा विभिन्न स्थानों पर ऐतिहासिक महत्व के सम्मेलनों का आयोजन कर लोगों को संगठित किया। भारत छोड़ो आंदोलन, 1942 और कोटा की क्रांति में उनकी प्रमुख भागीदारी के कारण वे पुलिस अत्याचारों का शिकार हुए। उन्होंने मीना जाति के लोगों के उत्थान और शिक्षा में विशेष योगदान दिया। उन्होंने वनस्थली से प्रशिक्षण भी प्राप्त किया।

भैरवलाल 'काला बादल' हाड़ौती के स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी रहे है। राजस्थान राज्य अभिलेखागार (2011) द्वारा हाड़ौती के स्वतंत्रता सेनानियों पर प्रकाशन पाकर वे भावुक हो गए। उन्होंने पूछा, क्या लोग अब भी उनके योगदान को याद करते है? उन्होंने आगे कहा, ''देश को आजाद कराने वालों का और कोई मकसद नहीं था, उनके निस्वार्थ बलिदान से हम आजाद है, देश आजाद है और हम खुली हवा में सांस ले पाते है'


स्रोत: राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर


सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 


श्री राम नारायण मीणा हलधर और डा. ओम नागर द्वारा संपादित लेख - 

स्व.श्री भैरवलाल मीणा "कालाबादल" जी की पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।

हिंदी के महान क्रांतिकारी कवि काला बादल, जिनके नाम से कांप जाते थे अंग्रेज आजादी के गीतों की लोकप्रियता के कारण कालाबादल पूरे राजस्थान में आजादी के आंदोलन के दौरान उपस्थित रहते थे। माना जाता है कि हड़ौती क्षेत्र में कोई ऐसा थाना नहीं था जिसमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ राजद्रोह में उनपर मुकदमा दायर न किया गया हो...

 हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों में अधिकतर अपने शुरुआती दिनों में कविता प्रेमी या मौलिक कवि थे। देशप्रेम का यह भाव हिंदी, उर्दू से लेकर क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में भी देखा जा सकता है। राजस्थान में विजय सिंह पथिक, नानक भील, पंडित नयनू राम शर्मा, प्रेम चंद भील, भैरव लाल कालाबादल, गणेशी लाल व्यास, मोतीलाल घड़ीसाज, वीरदास स्वर्णकार सहित अनेकानेक रचनाकारों ने हिंदी और राजस्थानी भाषा में देश प्रेम काव्य के माध्यम से आजादी का बिगुल बजाया।

भैरवलाल कालाबादल ने राजस्थानी भाषा की हाड़ौती बोली में जनजागरण और समाज सुधार के प्रभावशाली गीतों की रचना की। कालाबादल का जन्म 4 सितंबर 1918 में राजस्थान के बारां जिले की छीपाबड़ौद तहसील के तूमड़ा गांव में #मीणा_परिवार में हुआ था। उनके पिता कालूराम मीणा एक गरीब कृषक थे। कालाबादल का बचपन अत्यंत गरीबी और कष्टों में बीता। बचपन में दो भाई-बहन और मां-बाप की मृत्यु हो गई। उन्होंने ग्रामीणों और शिक्षकों की सहानुभूति और सहयोग से मिडिल तक पढ़ाई की और किशोरावस्था से ही क्षेत्र में आजादी के आंदोलनों में भाग लेने लगे।

आजादी के आंदोलन को जन आंदोलन बनाने में लोक भाषा में रचे गए साहित्य का बड़ा योगदान है। भैरवलाल कालाबादल ने हाड़ौती क्षेत्र की स्थानीय बोली 'हाड़ौती' में अपने गीतों की रचना की। पारंपरिक लोकगीतों की तर्ज और गेयता उनकी रचनाओं सबसे बड़ी ताकत थी। अपने गीतों के माध्यम से वे क्रांतिकारियों की सभाओं में भीड़ इकट्ठी करने का महत्वपूर्ण काम करते थे। कालाबादल प्रखर गांधीवादी थे। वह हाड़ौती के प्रमुख क्रांतिकारी पंडित नयनूराम शर्मा के शिष्य और सहायक थे।

आजादी की लड़ाई को गांव कस्बों तक ले जाने में उस समय सक्रिय संगठन प्रजा मंडल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। हाड़ौती में प्रजा मंडल का प्रथम सम्मेलन सन् 1939 में बारां जिले के मांगरोल कस्बे में आयोजित करने का निर्णय लिया गया था। अंग्रेज सरकार किसी भी कीमत पर इस सम्मेलन को सफल नहीं होने चाहती थी। पंडित नयनूराम शर्मा ने कालाबादल को सम्मेलन में अपने गीतों से जनसमुदाय को एकत्रित करने का जिम्मा सौंपा। सरकारी अधिकारियों को इस बात को अंदेशा था कि यदि भैरवलाल कालाबादल इस सम्मेलन में पहुंच जाएंगे तो वहां उन्हें सुनने के लिए असंख्य लोग इकट्ठे हो जाएंगे और वे कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस सम्मेलन से ठीक एक दिन पहले कालाबादल को खानपुर पुलिस ने पकड़कर थाने में बंद कर दिया। ऐसा माना जाता है कि हाड़ौती क्षेत्र में उस समय ऐसा कोई थाना नहीं था जिसमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ साजिश रचने और राजद्रोह के केस में कालाबादल पर मुकदमा दायर न किया गया हो।

कालाबादल के गीतों में ठेठ बोल-चाल की भाषा के सरल शब्द, लयात्मकता और सुरीलापन सुनने वालों पर अभूतपूर्व प्रभाव छोड़ते थे, एक गीत की कुछ पंक्तियां देखिए जिसमें वह जनता को अत्याचारियों का विरोध करने और इसके परिणाम भुगतने के लिए मज़बूत बनने की बात कहते हैं -

आई आजादी आंख्यां खोल दो।

गांवड़ा का खून सूं रे, शहर रंग्या भरपूर,

गढ़ हवेल्यां की नींव तले, सिर फोड़े मजदूर।

अर्थात-हे देश वीरों अब तो नींद से जागो और आंखें खोलकर देखो देश आजाद हो गया है, ये शहर-गांवों के खून से रंगे हुए हैं, इन हवेलियों और अट्टालिकाओं की नीवों में सिर फोड़ रहे हैं।
कालाबादल की यह कविता का एक-एक शब्द किसान, मजदूर और कमजोर वर्ग के अभावों और यातनाओं का प्रामाणिक दस्तावेज है। वे देश की आजादी के पूर्व और आजादी के बाद भी अपने काव्य की मशाल से सदियों के गहन अंधकार में उम्मीद की मशाल जलाते रहे-

अब तो चेतो रे मरदाओं!

काला बादल रे, अब तो बरसा से बलती आग

बादल! राजा कान बिना रे सुणे न्ह म्हाकी बात,

थारा मन तू कर, जद चाले वांका हाथ।

कसाई लोग खींचता रे मरया ढोर की खाल,

खींचे हाकम हत्यारा ये करसाणा की खाल।

छोरा छोरी दूध बिना रे, चूड़ा बिन घर-नार,

नाज नहीं अर तेल नहीं रे, नहीं तेल की धार ।

अर्थात-कवि कालाबादल ने इस गीत के माध्यम से अंग्रेजी शासन में किसान-मजदूर वर्ग का बेहद दयनीय, लेकिन वास्तविक स्वरूप दुनिया के सामने रख दिया था। इस गीत में कवि ने काले बादलों से आग बरसाने का आह्वान किया ताकि फिरंगियों का सम्राज्य जलकर पूरी तरह भस्म हो जाए। वे कहते हैं कि हे काले बादलों राजा तो बहरा है जो हमारी बात बिलकुल नहीं सुनता, कसाई तो मरे हुए जानवरों की खाल खींचते हैं, जबकि ये राजा और हाकिम जीवित लोगों की खाल खींच रहे हैं, घर में न तो बच्चों के लिए दूध है, न अनाज है और न ही घरवाली के हाथों चूड़ा है। कवि का यह अप्रतिम आक्रोश था जो खास तौर से ग्रामीण जनता में अपूर्व साहस और देश पर मर मिटने का भाव जगाता था।

गाढ़ा रीज्यो रे मर्दाओं, थांको सारो दुख मिट जावे

अन्यायी एको कर करसी, थांके ऊपर वार

तोड़ां बेड़ी, गाल्यां घमकी वार

एको कर मल जाज्यो रे मारत मां का पूत

ईश्वर थांकी जीत करेगा रीज्यो थां मजबूत

अर्थात-हे देश के वीरों! यदि तुम मजबूत बनकर अत्याचारियों के विरोध हेतु खड़े हो जाओ तो तुम्हारे सब दुखों का अंत हो जाएगा, इन सभी अन्याय करने वालों ने आपस में एकता करली है, वे अपशब्द कहते हैं, धमकियां देते हुए तुम्हारे ऊपर वार कर रहे हैं, आओ हम सब भी एक हो जाएं और इन परतंत्रता की बेडिय़ों को तोड़ डालें, इसमें ईश्वर भी हमारे साथ है।

अपने लोकभाषा में रचे गए गीतों की लोकप्रियता के कारण कालाबादल पूरे राजस्थान में आजादी के आंदोलन के दौरान होने वाले वाले सभा-सम्मेलनों की अनिवार्यता हो गए थे। सन् 1940 में उन्होंने कोटा जिले के रामगंज मंडी कस्बे में प्रजामंडल का एक विशाल किसान सम्मेलन आयोजित करवाया, इसमें लगभग 10 हजार लोगों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में हजारों नवयुवकों ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लेने का संकल्प लिया। कालाबादल के हाड़ौती भाषा में रचे गए गीत लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गए थे। अब लोग उनके गीतों की पुस्तक प्रकाशित करने की मांग करने लगे थे। सन् 1940 में कालाबादल उस समय के बेहद चर्चित बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रणेता, राजस्थान केसरी क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के घर पुस्तक प्रकाशन के संदर्भ में आगरा गए। उस समय उनके प्रेस पर अंग्रेज सरकार ने पाबंदी लगा रखी थी। पथिक जी ने अत्यंत गोपनीय तरीके से कालाबादल के गीतों की पुस्तक 'आजादी की लहर' प्रकाशित कर आगरा से उन्हें सकुशल रवाना किया। उनकी अन्य पुस्तकें हैं 'गांवों की पुकार' और 'सामाजिक सुधार'।

सन् 1941 के मई महीने में भैरव लाल कालाबादल, प्रभु लाल कल्कि और जीतमल जैन को राजद्रोह के आरोप में 29 दिन की जेल और 200 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई। जेल अवधि में उन्होंने एक नाटक लिखा जिसका नाम था 'दुखी-दुखिया' जो बाद में काफी लोकप्रिय हुआ।

सन् 1946 तक इस महान क्रांतिकारी और लोकभाषा के कवि का नाम भैरव लाल मीणा था। कालाबादल उपनाम इन्हें हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिया था। देश की आजादी से एक वर्ष पूर्व सन् 1946 में उदयपुर राज्य लोक परिषद के सम्मेलन में उन्हें गीत गाने के लिए मंच पर बुलाया, चूंकि नेहरू जी को कवि का नाम याद नहीं था, लेकिन उनके गीत की पंक्तियां-कालाबादल... कालाबादल याद रहीं, उन्हें इन्हीं पंक्तियों के साथ मंच पर आमंत्रित किया गया, इसके बाद से उन्हे कालाबादल के नाम से ही जाना जाने लगा।

तत्कालीन देसी राजाओं और जागीरदारों द्वारा किसानों और मेहनतकश जनता पर बड़े ज़ुल्म किए जा रहे थे। कवि कालाबादल ने अपने अधिकांश गीतों में निडरतापूर्वक उनका पर्दाफाश किया, यह उस जमाने में एक युवा और गरीबी से संघर्ष कर रहे कवि के लिए आसान बात नहीं थी-एक गीत का अंश देखें -

धरम, धन, धरती लूटे रे, जागीरदार,

जागीरी म्ह जीबा सूं तो भलो कुआं म्ह पड़बो

जागीरी का गांव सूं तो भलो नरक म्ह सड़बो

मां-बहण्यां के सामे आवे, दे मूछ्यां के ताव

घर लेले बेदखल करादे, और छुड़ा दे गांव

अर्थात-ये जागीरदार धर्म, धरती और धन सब लूट रहे हैं, जागीरी में जीने से तो कुएं मे डूबकर मर जाना और नरक में सडऩा बेहतर है। ये इतने निरंकुश हैं मां कि बहनों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं है ये जब चाहें किसी को भी बेदखल करदें और गांव छोडऩे पर मजबूर कर सकते हैं।

आजादी के बाद वह सक्रिय राजनीति में आ गए। वह प्रथम राजस्थान विधान सभा में (1952), 1957, 1967 और 1977 विधायक रहे। 1978 -80 में उन्हे आयुर्वेद राज्य मंत्री बनाया गया। इतना यश और पद पाने के बावजूद वह सदैव विनम्र, सहृदय और सादगीपूर्ण जीवन जीवन जीते थे। उनका पूरा जीवन गांधी जी के सिद्धांतो पर आधारित था। 20 अप्रैल 1997 को 79 वर्ष की आयु में हृदय गति रुक जाने के कारण आजादी के गीतों का यह युग चारण सदैव के लिए मौन हो गया। उनकी मृत्यु के 20 साल बाद 2017 में बोधि प्रकाशन से कोटा के मीणा समाज ने उनकी आत्मकथा- 'कालाबादल रे! अब तो बरसादे बळती आग का प्रकाशन करवाया।


श्री बी एल मीना , राष्ट्रीय अध्यक्ष , राष्ट्रीय मीणा महासभा द्वारा लिखा गया लेख - 

काला बादल जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि। मैं हाई स्कूल पास कर सन् 1957 की जुलाई में कालेज शिक्षा के लिए जयपुर आकर महाराजा कालेज में प्रवेश लिया।  विधानसभा के लिए चुनाव ताजा ही हुए थे और काला बादल जी भी चुन कर आये थे। मैं केवल 19 वर्ष का था। मुझे राजस्थान सरकार द्वारा चलाये जा रहे छात्रावास में भी प्रवेश मिल गया था जो उस वक्त त्रिपोलिया गेट के पास स्थित नवाब हाऊस में था। आज का पुलिस कमिश्नर आफिस उस वक्त विधायक निवास था। मुझे जननेताओं से मिलना अच्छा लगता था अतः मैं छात्रावास से पैदल चलकर हर रविवार को इस विधायक निवास पहुंच जाता था और और नेताओं से मिलता रहता था। उस वक्त काला बादल जी से भी मिलता रहता था। उनका नाम मैंने अपने पिताजी से सुन रखा था। वे भी आजादी की लड़ाई में भाग ले रहे थे और सभी नेताओं को जानते थे। काला बादल जी और अन्य विधायक भी मुझे प्यार देते थे। एक लच्छू राम नाम के विधायक जो पता नहीं कहां से विधायक थे ने मुझसे मेरा परिचय पूछ लिया और यह जानने पर की मैं इतनी दूर से हर रविवार पैदल चलकर आता हूं तो कहा " बेटे  रिक्षै से आजाया करो मैं पैसे दे दिया करुंगा।"  मैंने कहा मुझे कोई दूरी अखरती नहीं है, गांव का हूं, बहुत चला हूं।
 एक बात मैं यहां कहना चाहूंगा काला बादल जी का जन्म भले ही हाड़ोती क्षेत्र के बारां जिले में हुआ हो, लेकिन उनकी कर्मस्थली मेरे सीकर जिले का  प्रसिद्ध गांव नयाबास ही रहा है। पुलिस की परेशानी से बचने के लिए  उनको अपना गांव छोड़ना पड़ा था। वहीं नयाबास के अग्रणी नेता हर सहाय जी ने उनकी शादी भी करवा दी थी। बाद में जनता पार्टी के राज में जब वे मंत्री बने तब भी मैं उनसे मिलता रहता था। उस वक्त तो नौकरी में आगया था। बड़े सरल स्वभाव के व्यक्ति थे और अपनी मातृभाषा में ही बात करते थे। उस महान व्यक्तित्व को एक बार फिर नमन।

Saturday 16 April 2022

14 अप्रैल 2022 : भारतरत्न बाबासाहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की जन्म जयंती

rpmwu448 dt. 14.04.2022

14 अप्रैल 2022: गंंभीर विषमताओं में सफलता हासिल करने वाले, शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 131 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है। उन्होंने देश के महत्वपूर्ण मसलों पर अधिकांश राय लिखित में पेश की। पाकिस्तान, कश्मीर व हिन्दू धर्म की कुरूतियों पर स्पष्ट राय दी। Ministry of External Affairs has written on its web page about Dr. BR Ambedkar "Who Tried to to turn the wheel of Law towards social justice for all".

जो लोग कम पढ़े लिखे है या जिनकी समझदारी में कमी है, वे समझते है कि बाबासाहब ने दलितों के लिए ही खासतौर पर काम किया जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश के हर नागरिक के उत्थान व कल्याण के लिए जबरदस्त उदाहरणीय काम किया था। वैसे तो व्यक्ति की सोच (सोफ्टवेयर) उसके परवरिश (nurture) के आधार पर बनती है परन्तु बड़े होने पर हमें तार्किक सोचने की जरूरत है और जो सही है उसकी बात करें व उसी को आगे बढ़ाया जाए। सही सोच के साथ विचार करें तो पता लगेगा कि बाबासाहब ने वास्तव में देश के हर क्षेत्र में नागरिकों के कल्याण हेतु जबरदस्त काम किया। उदाहरणार्थ - 
भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीख सकता है और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करने की आवश्यकता है  -

शिक्षा : से व्यक्ति बहुत सम्मान पा सकता है व आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। शिक्षा की सुविधाओं को महत्व देवे। ऐसी संस्थाओं से जुड़े जो गरीब व कमजोर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करते है। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे। ऊंगलियों के बीच में होकर समाधान ढूंढे ना कि परेशानी। 

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे। देश की उन्नति में बाधक कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को सही करने लिये हिन्दू कोड बिल के प्रकरण पर उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 
 
5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। कश्मीर के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट थी कि कश्मीर को विशेष राज्य का स्टेटस नहीं दिया जाये। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया। धर्म परिवर्तन के समय भी देशहित का ध्यान रखा व  बदले की भावना नहीं रखी। यदि बौद्ध के अलावा किसी और धर्म को ग्रहण करते तो देश की राजनीति ही अलग हो जाती। 

11. आरक्षित वर्ग : आरक्षण देश के नागरिकों के समग्र विकास (inclusive growth) का एक महत्वपूर्ण टूल है। यदि आरक्षण नहीं होता तो देश को बहुत अधिक नुकसान होता। आरक्षण नहीं होने से देश में 3 स्थिति हो सकती थी। प्रथम दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्गों का अलग देश बन जाता, द्वितीय अलग देश नहीं बन पाता तो देश में अत्याचारों के विरूद्ध दलित, आदिवासी व पिछड़ो के अधिकारियों के लिए गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती अथवा तृतीय यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो एक बहुत बड़ी जनसंख्या उनकी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती। 

आरक्षित वर्ग के लोगों के जीवन का उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।

16. दूसरों को गलत करने से रोके : अस्पृश्यता को समाप्त करवा कर उन्होंने दूसरों को और अधिक पाप करने से रोका। यदि कोई गलत या अत्याचार कर रहा है तो उसे गलत करने से रोकना चाहिए। 
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। जरुरत है कि बाबासाहब के महान व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर हम सभी अपने अपने कार्य को सही तरीक़े से पूर्ण क्षमता व एफिसिन्सी के साथ निष्पादित करें। साथ में दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें और यथासंभव सभी देशवासियों को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। इतिहास की ज्यादा खोजबीन करने की बजाय वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाबासाहब के द्वारा लिखे गए दस्तावेजों व किताबों को पढ़े और उनसे प्रेरणा ले। Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. Small minds discuss people, medium minds talk of events and great minds ponder over ideas. Implementation of the provisions of the constitution is extremely important for the welfare of the citizens, we all must individually and collectively strive for the same.

जय भीम
रघुवीर प्रसाद मीना

16 अप्रैल 1853 भारतीय रेल का जन्मदिन



rpmwu449 Dt 16.04.2022

#happybirthdayindianrailways 16 अप्रैल 1853 शनिवार का दिन था, आज फिर 16 अप्रैल 2022 को शनिवार है। 1853 का यह दिन भारतीय रेलव के इतिहास में अविस्मरणीय दिन है। इसी दिन भारत में मुम्बई से ठाणे प्रथम रेलगाड़ी की यात्रा की शुरुआत हुई थी।

16 अप्रैल 1853 को 3:35 बजे ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे की पहली रेलगाड़ी बंबई (अब मुम्बई) के बोरी बंदर से थाने (अब ठाणे) जाने के लिए रवाना हुई। रेलगाड़ी को इस 21 मील (33.8 किमी) के सफर को तय करने में 57 मिनट का समय लगा। 14 डिब्बों वाली इस रेलगाड़ी जिनमें 400 यात्री सवार थे को, तीन लोकोमोटिव जिनका नाम सुल्तानसिंध और साहिब था, खींच रहे थे।

रेलवे में सबसे पहले स्टीम इंजन फिर डीजल इंजन व अब इलेक्ट्रिक इंजन का प्रयोग होता है। वंदे भारत ट्रेन में ट्रेन सेट कांसेप्ट का उपयोग है जिसमें  3 से 4 कोचेज् में ड्राइविंग यूनिट होती है।

कोच पहले चार पहिया के होते थे फिर आई आर एस बोगी के साथ वुडन बाॅडी के बनते थे। बाद में आई सी एफ बोगी के साथ स्टील बाॅडी के कोच लम्बे समय से सर्विस में है। अब एल एच भी डिजाइन के कोच बनाये जा रहे है।

वैगन पहले चार पहिया फिर यू आई सी बोगी के साथ वैक्यूम ब्रेक्ड 8 पहिया के रहे। अब केस्नब बोगी डिजाइन एयर ब्रेक वैगन सर्विस में है। 

रेलवे ट्रेक पहले ब्राॅड गैज के साथ नेरो व मीटर गैज काफी मात्रा में थे। जिनमें लकड़ी व स्टील के स्लीपरस् का उपयोग होता था। अब अधिकतर जगह ब्राॅड गैज ट्रेक 52 व 60 किलोग्राम प्रति मीटर की रेलस् पी आर सी स्लीपरस् के साथ उपलब्ध है।

रेलवे सिगनलस् में भी लोअर क्वाडरेंट टू आॅस्पेक्ट से अपर क्वाडरेंट मल्टीपल आॅस्पेक्ट से होते हुए एल ई डी लिट कलर लाईट व आॅटोमेटिक सिगनलस् तक की गज़ब उन्नति हुई है। सिगनल इंटरलोकिंग भी मैकेनिकल से स्टैंडर्ड वन, टू, थ्री, पीआई व ई आई के रूप में माॅडर्न हो चुकी है।

सोफ्टवेयर व इंफॉर्मेशन के क्षेत्र में भी रेलवे में रिजर्वेशन सिस्टम, कंट्रोल आॅफिस एप्लीकेशन, फोइस, कोइस, मैटेरियल मैनेजमेंट, क्रू मैनेजमेंट, ट्रेक मैनेजमेंट, एचआरएएमएस, अकाउंटिंग इत्यादि में बहुत उन्नति की है।

भारतीय रेलवे में कभी 17 लाख के लगभग अधिकारी व कर्मचारी थे, जो कि अब 13 लाख से कम है। जबकि यात्री गाड़ियां व माल ढुलाई कई गुणा बढ़ चुकी है। ऐसा नई तकनीक के इंटीग्रेशन से ही सम्भव हो पाया है।

रेलवे के लिए आज के दिन भी बहुत चैलेंज है। रोडस् व रोड व्हीकलस् की गुणवत्ता भी जोरदार हो रही है। आम लोग भी लम्बी दूरी में हवाईजहाज़ से यात्रा करने लग गये है। आवश्यकता है कि रेलवे Efficiency व Economy पर और ज्यादा ध्यान दे। गाड़ियों की स्पीड बढ़ाये। हाईस्पीड की गाड़ियां इंट्रोड्यूस करें। देश की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ आम आदमी की आकांक्षाओं की पूर्ति करे।

सादर

रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 14 April 2022

14th अप्रेल 2022 बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की 131 वीं जन्म जयंती।

rpmwu448 dt. 14.04.2022

14 अप्रैल 2022: गंंभीर विषमताओं में सफलता हासिल करने वाले, शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 131 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है।

भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीखें और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करें -
शिक्षा : से व्यक्ति बहुत सम्मान पा सकता है व आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे।

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे।

5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया।

11. आरक्षित वर्ग : जीवन में उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 10 April 2022

रामनवमी और भगवान राम के जीवन से सीख

rpmwu447 dt. 10.04.2022
रामनवमी भगवान राम के जन्मदिन के अवसर पर सभी को शुभकामनाएँ। बचपन में देखते थे कि रामनवमी के दिन सभी के घरों में खीर पूआ (किसानों के पकवान) बनते थे। सभी मिलकर गांव में लहकोड देवी के मंदिर परिसर के पास भरने वाले 2 दिन के मेले के दूसरे दिन बैलगाड़ियों व घोड़ियों की दौड़ तथा कुश्ती दंगल का आनंद लेते थे।

गांवों में पहले लगभग हर वर्ष रामलीला होती थी जिसके माध्यम से भगवान राम के जीवन व उनके चरित्र का नाट्यरूपांतरण होता था। भगवान राम के नाम के आधार पर देश में करोड़ों लोगों के नाम है, जिनमें मेरा नाम भी शामिल है। भगवान राम का चरित्र दूसरों को सुखी करने के लिए स्वयं हेतु दुखद व कठोर जीवन यापन करने का पर्याय है। भगवान राम कभी नहीं चाहते थे कि लोग धार्मिक विश्वास के कारण आपस में लड़े। उनके जीवन से हमेशा नीति पर रहने व त्याग करने की शिक्षा मिलती है।

जो भी व्यक्ति भगवान राम में आस्था रखते है उन्हें चाहिए कि ऐसा जीवन जिये जिससे न केवल दूसरों को अकारण कष्ट नहीं हो बल्कि दूसरो की विपदाओं की समाप्ति हो। दूसरों की प्रसन्नता के लिए त्याग करें। दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें। 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 19 March 2022

सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों की सीधी आर्थिक सहायता, बेवजह रिसोर्सेज की बर्बादी वाले कार्यो से बेहतर है।

rpmwu446 dt. 19.03.2022
#मूलभूतप्रश्न क्या जरूरतमंद लोगों द्वारा सरकार को दी जाने वाली सीधी आर्थिक सहायता (गरीब किसानों की कर्जमाफी, आर्थिक रूप से कमजोर पढ़ने वाले बच्चों को स्कॉलरशिप, आम नागरिकों के लिए निशुल्क मेडिकल जांचे, ईलाज, दवाईयां, कम बिजली खर्च करने वालो को फ्री बिजली, राशन फ्री इत्यादि), उन कामों से अच्छी नहीं है जिनकी आवश्यकता नहीं होने के बावजूद उनमें व्यक्तिगत लाभों तथा रिश्वतखोरी के लिए रिसोर्सेज (स्टील, सीमेंट, बिजली, बिल्डिंग मैटेरियल इत्यादि) की बेवजह बर्बादी कराई जाती है ?

अनेकों ऐसे काम होते है जिनकी उतने बड़े स्केल पर आवश्यकता नहीं होती है परन्तु वे करवाये जाते है। करवाने के कारण व्यक्तिगत हित, किसी को खुश करना या काम में मिलने वाला कमिशन हो सकते है। यहां तक भी होता है कि लोग कमिशन मिलने की उम्मीद में सेफ्टी व खुबसूरती इत्यादि के नाम पर डिजाइन ही ऐसा करते है जिसमें जरूरत से ज्यादा सामान लगे। अच्छी बची हुई लाईफ की चीजों को तोड़कर बेवजह रिप्लेस कर देते है। 

अनेकों लेवल पर रिश्वतखोरी के कारण कई कामों की गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि उनकी यूजफुल लाईफ बहुत कम मिल पाती है। कई बार तो बनते बनते ही क्षतिग्रस्त हो जाते है।

जहां सोफ्टवेयर या उच्च तकनीक के उत्पाद हो उनमें लूट की कोई सीमा ही नहीं रहती है।

सरकारी बैंकों से अनेकों लाख करोड़ों के ऋण लेकर भागने या  बैंकृप्ट होने वाले लोगों की तो बात ही अलग है।

सरकार द्वारा खर्च किये जाना वाला हर रूपया या तो टैक्स या सरकारी उपक्रमों की आमदनी या लोन से लिया हुआ होता है। देश की सुरक्षा, एकता व अखण्डता को बरकरार रखना, भ्रष्टाचार को कम करना, तकनीकी को बढ़ावा देने, देश को आत्मनिर्भर बनाने के साथ सरकार की बैसिक जिम्मेदारी नागरिकों को योग्य व उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाना है। जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर है उनकी सीधी सहायता करना एक अच्छा कदम है।

आपके क्या विचार है?

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना 

Tuesday 8 March 2022

International Women's Day 8th March

rpmwu445 dt. 8th March 2022

Success Mantra for a Woman

A successful woman was asked to share her secret of success. She smiled and said "I started succeeding when I started leaving small fights with small fighters. I stopped fighting those who gossiped about me..I stopped fighting for attention...I stopped fighting to meet public expectations of me...I stopped fighting for my rights with stupid people..I left such fights for those who have nothing else to fight...And I started fighting for my vision, my dreams, my ideas and my destiny. The day I gave up on small fights is the day I started becoming successful.
Some fights are not worth your time.
Choose what you fight for wisely.

Happy women’s day💐💐

Sunday 6 March 2022

We are not Vishvguru (विश्वगुरु), need to understand our reality and act accordingly to improve our position.

This writeup is received on whatsapp however felt sharing with all dear friends. 

Veteran industrialist and Ex President of the Confederation of Indian Industry Mr Naushad Forbes’s recent book is so insightful. Amongst many things  in this book,  I feel like sharing below -

 Forbes is critique of our government’s belief we are ‘VISHWAGURU’. He believes this is the wrong attitude for a country like India. “If we think we are the best why bother to learn from anyone else? … What we do not need is the rhetoric and hubris of tall claims, which keeps us from learning.”

In fact, it’s acceptance of the gap between us and the developed countries that will propel progress. Citing Japan, South Korea and Taiwan as examples, he writes: “The will to develop came out of a sense of backwardness, a sense that one had to catch up.”
So, what is the remedy or antidote Forbes offers? “We must constantly remind ourselves that we are among the world’s poorest one-third of countries, of our abysmal record in child nutrition and stunting which has got worse since 2014, of the fact that Bangladesh overtook us in per capita GDP in 2020 (and) that China is five times richer than we are.”

Perhaps India’s proud politicians might disagree but I doubt its people will. The poor know they’re poor, the uneducated know they need to learn and what frightens the ill is the fact they can’t afford treatment. This is reality for the majority, no matter how hard we avert our eyes. We’re at the ‘shishya’ (student) stage of development and there’s an awful lot still to learn.

Taxpayers करदाताओं को सम्मान मिलना चाहिए।

           rpmwu444 dt 06.03.2022
भारत सरकार के बजट अनुमान 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार कुल खर्च 39.45 हेतु 19.35 लाख करोड़
 रुपये (लगभग 50%) विभिन्न टैक्सों से प्राप्ति अनुमानित है। इसके अलावा कुल टैक्स प्राप्ति 27.58 लाख करोड़ (केंद्र सरकार के बजट का 70%) में से लगभग 8.17 लाख करोड़ रुपये राज्य सरकारों की हिस्सेदारी में चले जायेंगे। राज्य सरकारों के उनके टैक्स, रजिस्ट्रेशन चार्जज व रेवेन्यू जनरेट करने के अलग तरीके इत्यादि भी है। 

आखिरकार विभिन्न प्रकार से लिए जा रहे टैक्स का भार टैक्सपेयर्स पर ही पड़ता है। अगर इनडायरेक्ट टैक्स को देखें तो देश का हर नागरिक जरूरत की चीजें खरीदता है और उन पर एक्साइज ड्यूटी या जीएसटी या कस्टम्स इत्यादि के रूप में टैक्स भुगतान करता है। जो लोग सरकार या अच्छे निजी कंपनियों में जॉब कर रहे है या अच्छा व्यवसाय कर रहे है वे इनडायरेक्ट टैक्स के साथ-साथ इनकम टैक्स भी अदा करते है। जो नागरिक इनकम टैक्स की हायर रेंज में आते है उनकी लगभग 50% से ज्यादा आमदनी विभिन्न प्रकार के इनडायरेक्ट टैक्सेस व इनकम टैक्स के रूप में व्यय हो जाती है। 

वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में 135 करोड़ की आबादी में से केवल 1.46 करोड़ (1.08% मात्र) ने 5 लाख रुपये से ज्यादा इनकम दर्शायी और इनकम टैक्स का भुगतान किया। 

पुराने राजा महाराजाओं व बादशाहों के जमानों में टैक्स की अधिकतम सीमा चौथ यानी 25% होती थी जोकि जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित होती जा रही है, सरकारों को विकास के कार्य करवाने होते है, वैसे वैसे ही इनकम टैक्स की स्लैब व इनडाइरेक्ट टैक्स की राशि बढ़ती जा रही है। 

देश के विकास के लिए टैक्स में भागीदारी करना एक अच्छी बात है। आवश्यकता है कि टैक्स की राशि को खर्च करने वाली अथॉरिटिज् को यह समझना चाहिए कि टैक्स का पैसा नागरिकों का पैसा है और वे उसे मितव्ययिता व समझदारी से खर्च करे, पैसे को बर्बाद ना होने दे।

साथ में यह भी आवश्यकता है कि जो भी नागरिक टैक्स का भुगतान कर रहे है उनका सम्मान व रिकॉग्निशन हो। ताकि अधिक से अधिक लोग टैक्स देने के बारे में सोचने लगे। टैक्स देने वाले नागरिकों के लिए सरकार को विशेष सम्मान करना चाहिए। सबसे साधारण चीज हो सकती है कि जो लोग टैक्स का भुगतान करते है उनके लिए टोल टैक्स फ्री हो जाए, 60 वर्ष की आयु के पश्चात मेडिकल फ्री, बस, रेल व एयर टिकटों में रियायत कर दी जाये। सरकारी कार्यालयों में उन्हें सम्मान मिले। ऐसा होने से टैक्स देने वाले नागरिक के मन में एक अच्छी भावना उत्पन्न होगी और वे खुशी से ज्यादा टैक्स देंगे तथा दूसरे भी प्रेरित होंगे। 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना