Sunday 22 August 2021

रक्षाबंधन व हमारे कर्तव्य।

           rpmwu428 dt. 22.08.2021

#HappyRakshaBandhan
सभी को रक्षा बंधन के पर्व पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहने भाईयों को राखी बांधकर उनके मंगल एवं दीर्घायु की कामना करती है। भाई इस अवसर पर बहनों को उपहार देते है।

हमारी संस्कृति में कहने को तो बहनों को बराबरी का दर्जा था। जबकि वास्तविकता में ऐसा था नहीं। पहले तो लड़कियों पढ़ाया ही नहीं जाता था, अभाव के कारण खानपान में भी भेदभाव हुआ करता था और छोटी उम्र में शादी कर दी जाती थी। परन्तु अब निश्चित रूप से बालिकाओं की पढ़ाई, खानपान में भेदभाव एवं उनके हकों व अधिकारों में सुधार हुआ है। लड़के लड़की में भेद करना समाप्त तो नहीं कम जरुर हुआ है। चीजें लगातार सुधर रही है। यह प्रसन्नता की बात है।

बहनें बड़ी होकर माँ बनती है, बच्चों को जन्म देती है और वे बच्चे हमारे देश के नागरिक बनते है। माँ व बच्चे दोनों का स्वस्थ होना बेहद जरूरी है। परन्तु संलग्न अखबार की रिपोर्ट से देख सकते है कि वास्तविकता क्या है? हमारे देश में महिलाएं की बड़ी संख्या एनेमिक (खून की कमी वाली) है। विटामिन डी की कमी है। कैल्शियम की कमी से ग्रसित रहती है। ऐसे में उन्हें स्वयं व बच्चे दोनों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर हमें निश्चय करना चाहिए कि -
1. अपनी बहन के समान ही दूसरे सभी की बहनें है। उनका सम्मान करें।
2. लड़कियों के शरीर की बनावट लड़कों के शरीर की बनावट से बहुत भिन्न होती है। बड़ी होने पर प्रत्येक माह उनमें खून की क्षति होती है। शादी के पश्चात गर्भ धारण होने के उपरांत बच्चा 9 माह तक गर्भ में ही पलता है। जन्म के बाद माँ बच्चे को स्तनपान करवाती है। अत: बचपन से ही लड़कियों की सेहत पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
3. माँ बाप को लड़के व लड़की में भेदभाव नहीं करना चाहिए। यदि करें को लड़की के पक्ष में ही करें क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर मानवता की कड़ी को आगे बढ़ाने में माँ के रूप में लड़कियों की ही ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
4. धार्मिक विश्वास का दुरुपयोग करके महिलाओं पर प्रतिबंध लगाना जायज नहीं है। यदि गलत रीति रिवाज है तो उनको बदल देने की जरूरत है।
5. लडकियों को स्वयं को भी उनके अस्तित्व व स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। एक दूसरे की मदद करें। नाजुकता की सोच से बाहर आये, अच्छा खायें, स्वास्थ्य पर ध्यान दे। पढ़ाई करें और आगे बढ़े।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Friday 20 August 2021

महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिए सभी को सकारात्मक पहल करने की जरूरत है।

rpmwu427 dt. 20.08.2021

#rightsofwomen 

#Software की जीवन में अति महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। तालिबान के लोगों की हार्डवेयर (शारीरिक बनावट) सामान्यतः जोरदार रहती है। परन्तु उनके दिमाग की सोफ्टवेयर, धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण #DAP के कारण वायरसों से भयंकर रूप से ग्रसित है। #DAP व बचपन के परवरिश के माहौल की वजह से हर धर्म में बहुत सारे लोगों के मष्तिष्क की सोफ्टवेयर अलग तरह की विकसित हो जाती है। उस धर्म विशेष के लोगों की ही ज्यादा जिम्मेदारी बनती है कि वे देखें कि उनकी जनरेशनस् किस दिशा में जा रही है? कब तक पुरानी रुढ़िवादी रीति रिवाजों को ढ़ोते रहना है? समयानुसार बदलाव करना जरूरी है, नहीं तो चीजें जड़ हो जायेगी। 


अनेकों देशों में पहले महिलाओं को वोट देने एवं पढ़ने का अधिकार नहीं होता था, जिसे समय के अनुसार बदल दिया गया और महिलाओं को वोट देने और पढ़ने का बराबर का अधिकार प्रदान कर दिया है। इसी प्रकार महिलाओं के श्रम का वेतन पुरुषों की तुलना में कम होता था, सरकारें इस ओर भी लगातार प्रयासरत है कि महिलाओं को बराबर वेतन मिले। सरकार में बराबर भागीदारी के बारे में भी विचार किया जा रहा है। 


हिन्दू धर्म में महिलाओं के लिए पूर्व में सती प्रथा, विधवाओं के केश मुंडन, विधवाओं द्वारा पुन:विवाह नहीं करना, महिलाओं को पढ़ने नहीं देना, कम उम्र में माँ बनना, देवदासी बनना जैसी विकृतियां थी, जिन्हें समय के साथ बदल दिया गया और रीति रिवाजों को सही कर लिया गया है।


संसार में हर व्यक्ति की माँ महिला ही होती है। वह महिला के गर्भ से ही जन्म लेता है। उसकी बहने, उसकी पत्नी व उसकी बेटियां भी महिलाएं होती है। फिर भी यदि #DAP के कारण महिलाओं के साथ अत्याचार करें तो यह कैसी अमानवीय सोच है? यदि ऐसा धार्मिक मान्यताओं या रूढ़िवादी रीति-रिवाजों की वजह से हो रहा है तो उन मान्यताओं व रीति-रिवाजों को बदल देने की आवश्यकता है। आखिरकार कब तक पुराने ढ़र्रे पर चलकर पुरूष उसके स्वार्थ हेतु महिलाओं के साथ अत्याचार करता रहेगा?


आवश्यकता है कि जिस भी धर्म या समुदाय में महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है उसके प्रबुद्धजनों को आगे आकर  समाज में लोगों की विचारधारा को बदलने हेतु ठोस व बोल्ड पहल करनी होगी।


दूसरे सभी समझदार पुरूषों व महिलाओं और मीडिया तथा सरकारों एवं संगठनों/संस्थाओं को भी इस विषय में महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचारों से निजात दिलाने में हरसंभव  सहयोग करने की आवश्यकता है।


सादर

रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 17 August 2021

सामाजिक तौर पर ईमानदार (Socially Honest) बनने की जरूरत है।

rpmwu427 dt. 17.08.2021
#socialcorruption हमारे देश में आर्थिक भ्रष्टाचार (financial corruption) से कहीं ज्यादा सामाजिक भ्रष्टाचार (social corruption) है। अधिकांश लोग दोगले (hypocrite) है। कहते कुछ है और करते कुछ और ही है। कथनी व करनी में बड़ा अन्तर रहता है। मुंह पर कुछ बात करते है और पीठ पीछे कुछ और। ऐसे लोग समाज व देश की उन्नति में बड़ी बाधा है।

दोगले लोगों के साथ जो लोग जाति, धर्म, समुदाय व विचारधारा के आधार पर भेदभाव करते है, दूसरों को तंग करते है, उन सभी को सामाजिक भ्रष्ट (#socially_corrupt) लोगों की संज्ञा दी जा सकती है। उनके दिमाग के सोफ्टवेयर में वायरस है।

यदि वास्तव में हम देश की उन्नति चाहते है तो हमें #socially_honest होना पड़ेगा। Hypocrisy छोड़नी होगी। सही बात को स्पष्ट कहने का साहस जागृत करना होगा। आवश्यकता है कि जाति, धर्म, समुदाय व विचारधारा के आधार दूसरों के प्रति दुर्भावना नहीं रखें, सभी के प्रति सुविचार एवं सद्भावना रखें।

यह बात विचारणीय है कि एक तो व्यक्ति का जन्म उसके हाथ में नहीं है। और उससे भी बड़ी बात यह है कि जन्म लेने के पश्चात यदि किसी बच्चे की दूसरे धर्म या जाति या समुदाय के बच्चे के साथ अदला-बदली हो जाये तो बड़े होने पर उसके मष्तिष्क की सोफ्टवेयर उसके बचपन के पालन पोषण व सामाजिक माहौल के आधार पर विकसित होती है, उस पर भी उसका कोई नियंत्रण नहीं है। फिर क्यों बेवजह व्यक्ति को दूसरों के विरूध्द जाति, धर्म, समुदाय व विचारधारा के आधार दुर्भावना रखनी चाहिए?

आवश्यकता है कि सभी उक्त वस्तुस्थिति को समझे व #socially_honest बने।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 15 August 2021

75 वां स्वतंत्रता दिवस : 15 अगस्त 2021

rpmwu426 dt. 15.08.2021

आज दिनांक 15 अगस्त 2021 को हम सभी हमारे प्रिय राष्ट का 75 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। इस अवसर पर सभी देश वासियों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

देश की आजादी का इतिहास सभी ने पढ़ा है। उससे हम समझ सकते है कि देश को आजाद कराने में हमारे महापुरुषों ने कितना बलिदान दिया है। देश को आजाद कराने का प्रमुख उद्देश्य, जहां तक मैं समझता हूं, रहा है कि भारत का हर नागरिक स्वतंत्र हो जाए और पराधीनता उसके नजदीक नहीं रहे। वह एक खुशहाल नागरिक का जीवन यापन कर सके। इसी के साथ देश के संसाधनों का दोहन नहीं हो एवं वे हमारे देश के नागरिकों के ही काम आये।

आजादी के बाद देश के हर तबके के नागरिकों की लगभग सभी स्थितियों में वास्तव में सुधार हुआ है। देश में सुविधाएं विकसित हुई है। संसाधन देश के ही काम आये है। जनसंख्या की दृष्टि से हमारा देश संसार में दूसरे स्थान पर है एवं जीडीपी (पर्चेजिंग पावर पैरिटी) के मुताबिक हम तीसरे स्थान पर है। हालांकि जनसंख्या ज्यादा होने के कारण प्रति व्यक्ति आय में हम दूसरे देशों की तुलना में बहुत पीछे है।

अच्छी चीजों के साथ वर्ष 2021 में भी देश में अनेकों नागरिकों की दशा दयनीय बनी हुई है। सरकार के लगातार प्रयासों के साथ हम सभी को भी चाहिए कि व्यक्तिगत एवं सामूहिक तौर पर देश के सभी नागरिकों की स्थिति को बेहतर बनाने में सहयोग करें।

हम सभी को चाहिए कि -
1. राष्ट हित को धर्म, जाति व समुदाय से ऊपर दर्जा दे। देश के संसाधनों की बर्बादी रोके। बड़े पद पर पहुंचकर तो कम से कम दोगलापन (hypocrisy) नहीं रखे। अपने विचार स्पष्ट रखे और अच्छे व्यवहार से दूसरों को प्रभावित करे। स्वयं देश के लिए असेट बने न कि लायबिलिटी। 
2. अपने कार्य को ईमानदारी व अच्छी गुणवत्ता के साथ सम्पादित करें। अपनी स्किलस् को विकसित करते रहे।
3. अपने कार्य को करते समय मन में विचार रखे कि क्या मेरे द्वारा किये जा रहे कार्य से देश में अंतिम पंक्ति के नागरिक को लाभ मिलेगा? अर्थात् अंत्योदय की भावना विकसित करें। 
4. सामाजिक समरसता बहुत महत्वपूर्ण है। देश के हर धर्म, जाति, समुदाय, भाषा, प्रदेश, वर्ग के नागरिकों के साथ समभाव रखने का प्रयास करें। बेवजह दूसरों के विरूध्द पहले से ही खराब भाव नहीं रखे। मन में भावना रखें कि व्यक्ति, है तो हमारे ही देश का, हमारा ही भाई है। व्यक्ति जहाँ जन्म लेता है वहां की परिस्थितियों के अनुसार ही उसकी सोफ्टवेयर विकसित हो जाती है। अतः नकारात्मक भाव आने पर हमेशा अपने आप को दूसरों की स्थिति में रखकर विचार करें। मष्तिष्क में वायरस नहीं पनपने दे। 
5. मानवता तो यह है कि हर ताकतवर, कमजोर की, बुद्धिमान, कम ज्ञानवान की तथा अमीर, गरीब की सहायता करें। उन्हें ऊपर उठायें। उनके जीवन को बेहतर करना ही मनुष्यता है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 12 August 2021

व्यक्तित्व : मधुमक्खी की तरह सकारात्मक या मख्खी की भांति नकारात्मक।

rpmwu425 dt. 12.08.2021

 
Life_lesson      honeybee_or_fly
बहुत ही जोरदार सीख वाला वीडियो है, अवश्य देखें और बताई गई बात को गहराई से समझें। वीडियो में बताया गया है कि व्यक्ति उसकी सोच को मधुमक्खी की तरह अथवा मक्खी की तरह विकसित कर सकता है।

यदि आप मधुमक्खी को देखें तो पता चलता है कि मधुमक्खी हमेशा कैसी भी खराब जगह हो उसमें फूल से शहद बनाने के लिए नेक्टर एकत्रित करती है जबकि मक्खी कितनी भी साफ सुथरी अच्छी जगह हो उसमें भी गंदगी पर ही जाकर बैठती है।

इसी प्रकार से कह सकते हैं कि सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति खराब से खराब जगह/चीज/परिस्थिति/लोगों में भी सकारात्मकता ढूंढ लेते है। जबकि नकारात्मक सोच वाले लोग अच्छी से अच्छी जगह/चीज/परिस्थिति/व्यक्ति में नकारात्मकता पर ध्यान देते है। अतः अपनी सोच को मधुमक्खी की भांति सकारात्मक बनाए ना की मक्खी की तरह नकारात्मक।

अच्छी सोच, व्यक्ति के स्वयं के लिए तथा परिवारजनों, रिश्तेदारों, दोस्तों, समाज, गांव, शहर, प्रदेश व देश सभी के लिए बेहद लाभकारी है।
#focus_on_your_attitude 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 9 August 2021

9 अगस्त 2021 : अंतरराष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस







rpmwu424 dated 09.08.2021

#9_अगस्त_2021 आज अंतरराष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस है। संसार में हर जगह आदिवासी/स्वदेशी लोग (indigenous people) उनके भूभाग पर खुशी से रहते थे परन्तु परन्तु उनके सीधेपन और बाहर से आये लोगों के द्वारा उनके साथ किये गये अमानवीय अत्याचार व शोषण के फलस्वरूप आज उनकी स्थिति अन्य सामान्य जनों से बेहद खराब है।

आज दुनिया भर के 90 देशों में लगभग 476.6 मिलियन (47.66 करोड़) स्वदेशी लोगों के 5000 समुदाय हैं। वर्तमान में बोली जाने वाली कुल 7,000 भाषाओं में से 4,000 से अधिक भाषाएँ स्वदेशी लोगों द्वारा बोली जाती हैं। यद्यपि वे वैश्विक जनसंख्या का 6.2 प्रतिशत हिस्सा हैं, लेकिन वे विश्व की लगभग 15 प्रतिशत से भी ज्यादा अत्यधिक गरीब जनसंख्या हैं। इंडिजेनस लोगों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) दुनिया भर में गैर-स्वदेशी लोगों की जीवन प्रत्याशा की तुलना में 20 वर्ष कम है। स्वदेशी लोग दुनिया की सतह क्षेत्र के एक चौथाई (1/4th , 25%) हिस्से पर रहते हैं परन्तु वे दुनिया की 80 % बची हुई जैव विविधता की रक्षा करते हैं। 

हमारे देश भारत में संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत 705 समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित है जिनकी वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 10.43 करोड़ (8.62 %) है। 

विश्व पटल पर #संयुक्त_राष्ट्र_संघ एवं #वर्ल्ड_बैंक जैसी संस्थाओं के माध्यम से इंडिजेनस पीपुल्स के उत्थान के लिए लगातार प्रयत्न किए जा रहे है। इंडिजेनस पीपुल्स के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रोटेक्शन की समीक्षा एवं विचार विमर्शों के लिए हर वर्ष 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) के रूप में संसार के विभिन्न देशों में सेलिब्रेट किया जाने लगा है। इससे संसार के विभिन्न इंडिजेनस लोगों में एकीकरण एवं एक दूसरे से जुड़ने की भावना तथा आपस में उनके अधिकारों की रक्षा व प्रोटेक्शन के लिए एक प्लेटफॉर्म तैयार हो गया है। आदिवासी अधिकारियों की पंजीकृत संस्था #अरावली_विचार_मंच द्वारा वर्ष 2015 से लगातार इस दिन को जोरदार तरीके से सेलिब्रेट किया जा रहा है और आदिवासियों के अधिकारों एवं उनकी मदद और उन्नति हेतु जनजागृति लाई जा रही है। 

सरकार एवं गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से चलाई जा रही लगातार मुहिम से आदिवासियों की स्थिति में वास्तव में सुधार हुआ है। परंतु सुधार की गति बहुत धीमी है जो कि नीचे टेबल में दिए गए आंकड़ों से स्पष्ट हैं वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों को देखने से स्पष्ट है कि आज भी हमारे देश के आदिवासी समुदाय की स्थिति बहुत ही दयनीय है एवं शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है। उनसे संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण आंकड़े निम्न प्रकार है -

एट्रोसिटीज > 6500 प्रति वर्ष

बीपीएल : ग्रामीण 45.3% श. 24.1%

कोई एसेट नहीं : 37.3%  

खेती की आय के घर : 38%  

मैन्युअल कैज़ुअल लेबर : 51.36%

भूमिहीन घर : 35.62%  

सरकरी सेवा से आय वाले घर : 4.38%  

घर में सबसे ज्यादा कमाने वाले की आय रु. 5000 से कम : 86.57%

सिंचित भूमि वाले घर : 18.10%  

साक्षरता दर : पु. 68.5%     म. 49.4%     

ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो : एलीमेंट्री (6 से 13 वर्ष) : 103.3 उच्च शिक्षा : 15.4       

ड्रॉप  आउट दर : कक्षा 1 से 10 तक : 62.4%  

घर : अच्छे 40.6%, रहने योग्य 53% व ख़राब 6.4%   

पीने का पानी : नल,  केवल 24.4 घरों में, घरों के बाहर 47.7 %, दूर 33.6%  

बिजली : 51.7% घरों में  

नाहने की सुविधा : 31% 

ड्रेन कनेक्टिविटी : 23% 

शौचालय : 23% 

किचन : 53.7%  

खाने पकाने के लिए गैस :  9 % 

स्कूटर/मो.साईकल : 9%  

कार : 1.6%  

साईकल : 36.4%    

रेडियो/ट्रांजिस्टर : 14.2%    

टेलीफोन : 34.8%

टेलीविज़न : 21.9%

कंप्यूटर/लैपटॉप :  5.2%

खून की कमी महिलाएं : 59.8% 

 शिशु मृत्यु दर : 44.4 

5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर : 57.2

5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुपोषण की स्थिति : 43.8% रुकी हुई वृद्धि, कमज़ोर 27.4%, कम वज़न 45.3%  

जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) : इंडिजेनस लोगों की जीवन प्रत्याशा दुनिया भर में गैर-स्वदेशी लोगों की जीवन प्रत्याशा की तुलना में 20 वर्ष कम है।  

कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाएं : आदिवासी क्षेत्रों में अस्पताल, डॉ, नर्स व  स्टॉफ और उपकरणों की भारी कमी और भयंकर अनुशासनहीनता। 


9 अगस्त अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर हर समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह तय करें कि आदिवासियों की शैक्षणिक और आर्थिक स्थिती में सुधार हेतु उसके स्यमं के स्तर पर एवं सामूहिक तौर पर जो भी संभव हो सके वह अवश्य करें।


जोहार
रघुवीर प्रसाद मीना 
महासचिव, अरावली विचार मंच 
ईमेल : rpmeenapdz@gmail.com 
मो. 8209258619

Wednesday 4 August 2021

दो पैसे की चीज के लिए 20 वर्षों के त्याग का कोई औचित्य नहीं है।

rpmwu423 dt. 04.08.2021
एक बार एक व्यक्ति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास आया। वहां बैठे एक सज्जन ने आये हुए उस व्यक्ति के बारे में कहा कि महाराज इन्होंने कमाल की चीज़ से सीख ली है। स्वामी जी ने पूछा कि क्या सीख लिया भाई? तो उस व्यक्ति ने बहुत जोश व गर्व से कहा कि मैंने 20 वर्षों के अथाह कठिन परिश्रम और लगन से पानी पर चलना सीख लिया है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरा कर बोले कि भाई दो पैसे का किराया देकर नाव से नदी को पार कर सकते है। इस छोटे से काम के लिए आपने 20 वर्षों का त्याग कर दिया। 

अमूमन अनेकों महत्वपूर्ण लोग भी जीवन में इसी प्रकार का कार्य करते रहते है और अपने कार्यो पर गर्व भी करते है। जो काम बहुत आसानी से किए जा सकते है, बहुत कम समय व संसाधनों में सम्पन्न हो सकते हैं उनके लिए कठिन राह चुनते है और अपने आप में समझते हैं कि उन्होंने बहुत अधिक मेहनत और लगन के साथ कार्य क्या है।

व्यक्ति को विचार करना चाहिए कि जो कार्य कर रहे है क्या वह सही है? उसकी जरूरत क्या है? उसकी कितनी उपयोगिता है? जिस तरीके को अपना रहे है वह कितना एफिसियेंट है? अनावश्यक रूप से समय, ऊर्जा व संसाधनों को न तो खर्च करना चाहिए और न ही पब्लिक लाईफ में खर्च करवाना चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

THE BHISHMA WAY or THE JATAYU WAY

rpmwu423 dt. 04.08.2021
No two people respond to the same situation in a similar way. 

Here are examples of two legendary personalities who were faced with a very similar situation, but thier responses were poles apart. 

This is a comparitive study between Bhisma and Jatayu.

Both of them, were confronted with character defining asssault situation on womanhood. 

One chose to die protecting the victim while the other chose to be a mute spectator of the crime.

1) *POWERFUL or POWERLESS*
Bhisma was a powerful warrior and if he wanted, he could have stopped the disrobing of Draupadi - the Queen but he chose to be a silent witness of this act

Whereas,

Jatayu was old and invalid and knew that in all probability, Ravana would kill him but still, he chose to try his best to protect Sita - the Queen. 

*Bhisma was powerful yet acted powerless whereas, Jatayu was powerless yet acted powerful*. 
 _
 _"Real power is not about physical strength but about the deep desire to help."__ 

*2) ALIVE or DEAD*

Bhisma lived on, but died everyday to his conscience 

Whereas, 

Jatayu died once but lived eternally true to his conscience. _

" _*Our only constant companion is our concience - better to be true to it."_*_ 

3) *FAME or INFAMY*

Bhisma's name and fame went down in the history because of *this one act of not stopping the disrobing of Draupadi* but Jatayu's name and fame went high in history *because of his act of trying to save Sita.* _

" _*We are all going to be mere names in the history, sooner or later. Will we be equated with the bad or the good - is our choice."_*_ 

4) *CULTURE or VULTURE*

Bhisma was supposed to be a highly cultured human but acted highly insensitive & stooped low in values like a vulture 

Whereas,

Jatayu was supposed to be a lowly uncultured vulture but acted highly sensitive and soared the skies, in values, like an evolved human. Who would you call as a human - Bhisma or Jatayu? _

 _"One doesn't become a human being by being born as a human - *one becomes a human being by being a humane."*__ 

5) *SPOKEN or UNSPOKEN WORDS*

Draupadi begged and pleaded protection from Bhisma because she knew, if someone could protect her, it was only him but still Bhisma didn't protect her 

Whereas,

Sita didn't even ask Jatayu for protection - she just wanted him to inform Rama about her kidnapping by Ravana because she knew Jatayu was not powerful but still...Jatayu tried to protect Sita.

Bhisma, even being a human couldn't understand the spoken words of Draupadi what to speak of understanding her unspoken words,

Whereas,

Jatayu, even though being a mere bird, understood not only the spoken words of Sita but also her unspoken words.
 _
 _*"The language of heart is more powerful than the language of words."__*_ 

6) *CLARITY or CONFUSION*

Bhisma was so much confused about his Royal duty that he forgot his higher duty, a moral duty
 

Whereas,

Jatayu was so clear about his moral duty that no other duty was in consideration for him. _

*" _When caught up in dilemmas, best is to follow the higher principles - to follow our heart because it always knows the truth."_*
7) *GOOD or BAD EXAMPLE*

Bhisma set a very bad precedent for generations to come

Whereas,

Jatayu set the most ideal precedent for generations to come. _

 _"If we can't be a great example atleast let us not be a bad one."__ 

8) *RELATIVE or STRANGER*

Another interesting point is that Bhisma was an elderly relative of Draupadi but acted as a total stranger in this episode.

 Whereas,

Jatayu was not at all related to Sita, he was a stranger but acted more than a dearest relative. _

 _"True relationships is based on heartly connections not just bodily connections."__ 

9) *THE SAINTLY or THE WICKED*

*Both, Bhisma and Jatayu had a few moments to decide what to do*. Life, sometimes puts in situations where in a few moments, we need to take crucial decisions. 
What we decide very much depends on the kind of inner integrity, we have cultivated by the association we keep. 

Bhisma's intelligence was clouded and it failed the test of life because he was associated with the wicked minded, selfish Kauravas,

Whereas,

Jatayu's intelligence was crystal clear and it passed the test of life because he associated himself with the saintly selfless Lakshman and the all-pure Lord Rama and dignity of women. 

_"After all, who we are solely depends on whom we associate with."_

10) *EMBRACE or NEGLECT*

The Supreme Lord as Sri Krishna was not at all happy with the attitude of Bhisma so much so that when He came as a peace messenger to Hastinapur, He didn't even bother to look at Bhisma, what to speak of respecting him.

Whereas, 

The Supreme Lord as Ramachandra was so happy & moved with the attitude of Jatayu that he embraced him and personally did his final rites - an honour that even Dasharath - His own father didn't receive. _
 _
 _The scriptures explain that the ultimate test of any activity is, if the Supreme Lord is pleased with us.___ .It is very clear, Bhisma displeased God whereas, Jatayu pleased Him.

*This recount is not meant to criticize Bhisma*- he is undoubtedly a great warrior and an amazing personality who sacrificed his personal desires for Hastinapur, but *we do impartially critique his inaction*.

The end here is to learn from the choices made, so that we are conscious that history follows us. _

*When we see some injustice, some problem, we have only two options - either close your eyes to it or do something about it - follow "the Bhisma way" or "the Jatayu way"*

 And, whichever way we choose, remember there will be consequences of our choices...

 *~"the Bhisma result" or "the Jatayu result"._*

 *_Brilliant analysis_ !!*.

(Received on whatsapp, thought good for sharing) 

Regards 
Raghuveer Prasad Meena 

Tuesday 3 August 2021

अपनी पोस्ट को स्वयं की उपयोगिता सिद्ध करने तथा दूसरों की मदद करने का मौका समझे। अन्यथा अधिकांशतः सेवानिवृत्ति के पश्चात फ्यूज बल्ब की भांति हो ही जाना है।

rpmwu422 dt. 03.08.2021 
एक बड़े अधिकारी सेवानिवृत्त हुए।‌ वह हैरान परेशान से रोज शाम को पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया - आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे है? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी? बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं। है‌ कि नहीं? फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया तो‌ बुजुर्ग फिर बोले‌ - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रुतबा‌ था,‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌। मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो। कोई रोशनी नहीं‌ तो कोई उपयोगिता नहीं। उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌। कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - रिटायर्ड आइएएस‌/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि। अब ये‌ रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक कौन-सी पोस्ट होती है भाई? माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने‌ रखती है‌ कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे‌ थे...आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ...आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी...समाज को क्या दिया...कितने लोगों की मदद की...पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए कि एक दिन सबको फ्यूज होना है।

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सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Sunday 1 August 2021

हमारा प्रमुख उद्देश्य देश के सभी नागरिकों से जुड़ना एवं देश की उन्नति में महत्वपूर्ण भागीदारी होना चाहिए। आत्मनिरीक्षण (Introspection) : आदिवासी मीना समुदाय

rpmwu421 dt.01.08.2021

कहाँ से कहाँ आ गए है और अब क्या कर रहे है और किस दिशा में जा रहे है हम? इस विषय में समय समय पर विचार करना चाहिए। क्योंकि यदि व्यक्ति लखनऊ की गाड़ी में बैठा है तो लखनऊ अवश्य पहुंचेगा चाहे थोड़ी बहुत देर क्यों नहीं हो जाये। अतः हमें समय निकालकर सोचना चाहिए कि हम सही दिशा में जा रहे है अथवा कहीं अनजाने में गलत दिशा तो नहीं पकड़ रखी है? मीना आदिवासी समुदाय की यदि बात करें तो निम्नलिखित तथ्य विचारणीय है -  
  1. मीना आदिवासी समुदाय का अत्यंत गौरवशाली इतिहास रहा है। महाभारतकाल में विराट नामक राजा मत्स्य महाजनपद का शासक मीना समुदाय का था। आमेर, खोहगंग, मांच (जमवारामगढ़), गैटोर, झोटवाड़ा, नायला, नाहण,नॉढला (आमागढ़),मातासुला,नरेठका,झांकड़ी अंगारी,रणथम्भोर व बूंदी अनेकों दूसरे भूभागों पर मीना समुदाय के राजाओं और वीर महापुरुषों ने राज किया था। कछवाहा लोगों को मीनाओं ने शरण दी और बाद में उन्होंने ही धोखा देकर मीनाओं का राज छीन लिया और मीना समुदाय राजा से प्रजा बन गया।
  2. मत्स्य महाजनपद के राजा विराट व खोहगंग के राजा आलन सिंह ने क्रमशः पांडवों व कछवाहा रानी को शरण दी थी। सोचिये उनकी ताकत व दयालुता कितनी महान रही होगी।
  3. विदेशी आक्रांताओं से दोस्ती और रिश्तेदारी नहीं की। हर विदेशी आक्रांता चाहे वह मुग़ल हो या अंग्रेज हो या कोई राजा महाराजा ही क्यों नहीं हो मीना समुदाय हमेशा देश की जनता के साथ खड़ा रहा और आक्रांताओं के विरुद्ध मीना समुदाय के अनेकों बहादुरों ने पुरे जोश के साथ युद्ध किया। महाराणा प्रताप, राणा सांगा व  शिवाजी के साथ जी जान से लड़े और उन्हें सम्मान दिलवाया।
  4. कछवाहों से समझौता होने के बाद मीना सरदार इतने ईमानदार व वफादार थे कि वे राज्य के खजाने के मुख्य प्रहरी होते थे। बेईमानी करने पर वे किसी पर भी रहम नहीं करते थे।
  5. राज जाने के पश्चात भी मीना समुदाय के लोग छापामार तरीक़े से लगातार लड़ते रहते थे और राजकाज में बाधा डालते थे। तत्कालीन शासकों द्वारा मीना समुदाय के लोगों को नियंत्रित करने और उनका दमन करने के लिए अंग्रेजों से मिलकर उनके विरुद्ध जरायमपेशा कानून एंव दादरसी कानून लागु किये गए जो कि आजादी के बाद 1952 में समाज सेवकों के अथक प्रयासों व कड़ी मेहनत से समाप्त हो पाये।
  6. देश की आजादी के पश्चात सन 1950 में राजस्थान में केवल अकेले भील समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में सम्मलित किया गया था। समाज सेवकों एवं महापुरुषों के अथक प्रयासो से राजस्थान का मीना समुदाय सन 1956 में अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल हुआ। भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में दी गई परिभाषा के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ है ऐसी जनजातियां या जनजातीय समुदाय या ऐसे के कुछ हिस्से या समूह जो कि जनजातियों या आदिवासी समुदायों के रूप में अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित है। अनुच्छेद 342 के तहत मीना समुदाय राजस्थान राज्य के 12 अनुसूचित जनजाति समूहों में क्रमांक 9 पर अंकित है। अनुच्छेद 25 व  26 के अनुसार सभी नागरिकों को कोई भी धर्म मानने की स्वतंत्रता प्रदान की हुई है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 (2) के अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड 25 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों पर यह अधिनियम लागु नहीं है।
  7. वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 121 करोड़ जनसँख्या में 10.43 करोड़ (8. 62 %) अनुसूचित जनजाति है। राजस्थान राज्य में 6.85 करोड़ जनसँख्या में 92.39 लाख (13.48 %) अनुसूचित जनजाति है, जिनमें से 43.46 लाख (47 %) मीना समुदाय के नागरिक है।
  8. भारत की  जनगणना  2011  के  आंकड़ों के  मुताबिक राजस्थान राज्य में अनुसूचित जनजातियां एवं उनके द्वारा माने जाने वाले धर्मों की स्थिति निम्न प्रकार है। इसके अनुसार लगभग समस्त अनुसूचित जनजाति मीना समुदाय के लोग हिन्दू धर्म में विश्वास करते है। 

  9. समान्यतः मीना समुदाय के लोग कृषि से जुड़े व्यवसाय करते आये है। अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के बाद मीना समुदाय के लोगों ने पढ़ना लिखना प्रारम्भ किया। शुरू में 1980 तक गति बहुत धीमी थी, किसी गांव क्या क्षेत्र विशेष में केवल गिने चुने लोग ही उच्च सरकारी सेवा में आ पाए थे।
  10. 1980 के पश्चात खासकर सरसों की फसल की पैदावार शुरू करने के बाद मीना समुदाय के लोगों की आर्थिक दशा सुधरने लगी और सम्पूर्ण समुदाय में शिक्षा के प्रति एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा हो गई। समाजसेवकों के प्रयासों से कई सामाजिक कुरुतियां दूर की गई और उनमें व्यय होने वाले धन को शिक्षा की ओर मोड़ा गया। लोग कर्ज लेकर भी बच्चों को पढ़ाने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि मीना समुदाय के छात्र शिक्षा के क्षेत्र में जोरदार प्रदर्शन करने लग गए। प्रशासनिक व इंजीनियरिंग सेवाओं के क्षेत्र में उनकी उपस्थिति दिखने लगी। इसके बाद सबोर्डिनेट सेवाओं में भी अनेकों छात्र जाने लगे।छात्रों के साथ माँ बाप की मेहनत का परिणाम है कि आज सरकार के हर विभाग में मीना समुदाय के व्यक्तियों की उपस्थिति मिलेगी।
  11. राजनीती के क्षेत्र में भी मीना समुदाय ने उपस्थिति बढ़ाई है। राजस्थान राज्य में लगभग हर बार समुदाय के विधायक व मंत्री होते है। तीन बार केंद्र सरकार में भी समुदाय के राजनेताओं को मंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ है। हालाँकि इस क्षेत्र में प्रदर्शन और अधिक बेहतर होना चाहिए था। लम्बे राजनितिक कर्रिएर के बावज़ूद हमारे वरिष्ठ राजनेताओं को उनकी मांग मंगवाने के लिए आयेदिन धरनों इत्यादि पर बैठना पड़ता है। उन्हें ज्यादा प्रभावशाली होना चाहिए ताकि उनके साधारण कार्य फ़ोन करने या पत्र लिखने मात्र से ही हो जाये। पाँचना की नहरों में पानी खुलवाने जैसे जनहितैषी मुद्दे पर भी वे एकजुटता से संघर्ष नहीं करते है। एक राजनेता कहता है कि नहर में पानी खोलो तो दूसरा अनावश्यक तौर पर कहने लग गया कि नदी में खोलना चाहिए। समाज के अधिकांश राजनेता आपस में टिका टिप्पणी करने में ही वे उनकी ऊर्जा व समय नष्ट करते है।   
  12. प्राइवेट क्षेत्र में नौकरियों व स्वयं के व्यवसाय दोनों में ही मीना समुदाय के लोगों की उपस्थिति बहुत ही कम है।
  13. मीना समुदाय के लोग सामान्यतया धार्मिक होते है और प्रकृति की पूजा करते आये है। सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, जीवात्मा, वनस्पति जगत, पशुपतिनाथ के रूप में शिवजी व जननी के रूप में पार्वती माँ तथा स्थानीय देवी-देवताओं को कृतज्ञता प्रदर्शित करने व सम्मान देने के रूप में पूजते रहे है। कालांतर में हिन्दू संस्कृति मानने वाले जनमानस के साथ रहकर उनकी रीति रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानने लग गये।
  14. पहले की अपेक्षा समाज के लोग धार्मिक अंधविश्वास के प्रदुषण (DAP) से बहार आने लगे है। अपने आप को आदिवासी मानने और कहने में गर्व महसूस करने लगे है और आदिवासियों के अधिकारों की जनजागृति हेतु अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस मानाने में सक्रीय हुए है। 
  15. सामाजिक तौर पर ज्यादा लोग अच्छे घरों में रहने लग गए है। उनके पास कृषि के संसाधनों में वृद्धि हुई है। आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है और अधिक संख्यां में लोग शराब व नॉनवेज का सेवन करने लग गए है।
  16. बालिकाओं की शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति हुई है। बालिकाओं की पढाई पर माँ बाप ध्यान देने लगे है। सामाजिक स्तर पर भी छात्रावास इत्यादि की सुविधाएं विकसित की जाने लगी है। बालिकाओं के पढ़ने को समाज प्रोत्साहित करता है।   
  17. आर्थिक सम्पन्नता बढ़ने के बावजूद एक दूसरे की मदद करने की भावना में कमी आयी है। राजनीती में भी समाज का रुतवा कमजोर हुआ है। लोग धन व शराब इत्यादि की लालच में आकर वोट देने लग गए है। वोट देने में जोश काम हो गया है, जिसके कारण समाज के राजनेताओं की हार होती है जिसका कि अंततोगत्वा समाज की उन्नति पर ही विपरीत असर पड़ता है।
  18. प्रेस व मीडिया में मीना समुदाय के लोगों की लगभग नगण्य उपस्थिति है। सोचसमझकर हमारे युवाओं को इन क्षेत्रों में जाने की आवश्यकता है। 
  19. न्यायपालिका एवं डिफेन्स सर्विसेज में भी हमारे लोगों की भागीदारी काफी कम है। ये दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्र है, इनमें भी उपस्थिति जरूरी है।
  20. मीना समुदाय में काफी पढ़े लिखे लोग होने के बावजूद दूसरे आदिवासी समुदायों के साथ समन्वय की कमी है। यदि सभी जनजातियों को एकजुट किया जा सके तो सभी की उन्नति तीव्र गति से हो सकती है। 
  21. मीना समुदाय में बहुत से अधिकारी होने के बावजूद आदिवासियों के कल्याण हेतु सरकारी फण्डस् के खर्च की मोनिटरिंग नहीं करते है। लोग अपने आप में सिमटते जा रहे है और स्वयं के बच्चों व रिश्तेदारों तक ही ध्यान देने लगे है।
  22. वर्ष 2005 के पश्चात से लगता कि दूसरे लोग मीना समुदाय की उन्नति से ईर्ष्या या द्वेष की भावना के कारण उनके युवाओं, समाजसेवकों और राजनेताओं का विभिन्न प्रकार से समय व संसाधन नष्ट करने वाली अड़चने पैदा करने लग गए है। उदाहरणार्थ (i) गुर्जरों द्वारा अनुसूचित जनजाति में सम्मलित होने की मांग से उपजे विवाद के कारण राजनेताओं, समाजसेवकों व युवाओं का बहुत समय और ऊर्जा नष्ट हुई, पाँचना डैम की नहरों में पिछले 15 वर्षों से अभी तक भी पानी बंद है। (ii) मीना-मीणा विवाद : एकदम बेमतलब का विवाद खड़ा किया गया, जिसके कारण अनेकों युवाओं को सरकारी नौकरी लगने और सरकार की योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह गए और समाज के हर जागरूक नागरिक का समय, ऊर्जा व  संसाधन नष्ट हुए। (iii) पदोनत्ति में आरक्षण से छेड़छाड़ और 13/200 पॉइंट रोस्टर में भी युवाओं का समय नष्ट हुआ और नुकसान हुआ। (iv) आमागढ़ पर ध्वज लगाने के मसले पर मीना समाज को बदनाम किया गया और समाज में फूट डालने का प्रयास किया गया।

मोटे तौर पर हम अभी तक के घटना क्रम को उक्त प्रकार से संक्षिप्त में मान सकते है। समुदाय व दूसरे आदिवासियों की स्थिति में सुधार हेतु समुदाय के लोगों को स्वयं निम्नलिखित दिशा में सकारात्मक कार्य करने चाहिए -

  1. अपने अतीत के गौरव को याद करें और भारत माँ के सच्चे सपूत बने। देश की एकता और अखंडता में योगदान दे। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सकारात्मक भूमिका निभाए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करें और नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए तत्पर रहें। संविधान का अध्यन करें। संविधान में प्रदत्त मूल कर्तव्यों का पालन करें और साथ में मूल अधिकारों के प्रति जागरूक बने। हमेशा देश की उन्नति के हित को सर्वोपरि रखें और उसमें महत्वपूर्ण योगदान दें।
  2. सभी का साथ : आजकल देखने में आ रहा है कि कई युवा अनजाने में आदिवासियत के नाम पर समुदाय को अलग थलग कर रहे है। कट्टर बनने से नुकसान होगा। अपने आप से प्रश्न करें कि क्या मैंने दूसरे समुदाय के लोगो से कभी कोई मदद नहीं ली या कभी नहीं लूंगा? अधिकांशतया इसका उत्तर मिलेगा कि सभी का आपस में काम पड़ता है। एक दूसरे की मदद लेते है और मदद करते भी है। तब फिर अलग थलग पड़ने से क्या लाभ? अतः सभी समाजों के लोगों के साथ रहे और सब का साथ सब का विकास में विश्वास रखें।
  3. हर व्यक्ति कमाई को घर में ही खर्च करता है। परन्तु ऐसा करते समय पुब्लिक में दिखावा नहीं करता है। सोचो यदि कोई व्यक्ति चौहराये पर जाकर पब्लिक के सामने दिखा दिखा कर अपने बच्चों को रूपये दे तो दूसरे लोग कैसा सोचेंगे? समाज भी एक बड़े परिवार की तरह होता है। आपस में मदद करें परन्तु अनावश्यक दिखावा करने से बचें।
  4. स्वयं अस्पृश्यता नहीं करें और दूसरों को भी छुआछूत नहीं करने के लिए प्रेरित करें। देश निर्माण के लिए कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए सरकार, विभिन्न संस्थाओं या व्यक्तिगत स्तर पर किये जाने वाले हर कार्य का समर्थन करे।
  5. जागरूक नागरिक बनें और आदिवासियों के कल्याण के लिए अलग से निर्धारित फंड्स के उपयोग के बारे में जानकारी रखें। समय समय पर इस सम्बन्ध में राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच संवाद व समन्वय किया जाये।
  6. ब्रांड एम्बेसडर : 1. अच्छा कार्य व व्यवहार करके समाज की ब्रांड वैल्यू बढ़ाई जाये। 2. एक दूसरे की मदद करें और भाईचारा बढ़ाएं व अपना काम सही से करें
  7. अपने मन व मष्तिक को तिज़ोरी समझे न कि डस्टबिन। दूसरों के बारे में सकारात्मक भाव रखें, नकारात्मक भाव जल्दी हटा दे। प्रतिदिन आत्मवलोकन करें और एक बेहतर व्यक्ति और नागरिक बनाने का प्रयास करें।
  8. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के संगठन : दूसरे आदिवासी समाजों से जानकारी करें व उनके साथ रहें। आदिवासी एकता के कार्य करें। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं व ऑथॉरिटीज़ से 3 माह में एक बार मिलने का प्रोग्राम रखे। संस्थागत इस्टैब्लिशमेंट होने चाहिए, मिलने, बात करने की जगह व संस्थाएं हो।
  9. दूरस्थ पैदा हुए समाजसेवियों व राजनेताओं के साथ अपने स्थानीय समाजसेवियों व राजनेताओं का सम्मान करें। सोच के विचार करो कि जरायमपेशा कानून एंव दादरसी कानून हटवाने में या आरक्षण दिलाने में किन किन समाजसेवियों और राजनेताओं का सर्वाधिक योगदान रहा? उनका आदर व सम्मान सबसे पहले करें।
  10. राजनितिक रूप से बहुत कमजोर है। राजनीति : 1. खुले दिमाग से राजनितिक बातें करें। 2. समाज की बैठकों में भाग लें और पार्टी की विचारधारा को गौण रखें।
  11. शिक्षा पर विशेष ध्यान दें : 1. गांव में अध्ययन केन्द्र खुलवाएं व स्कूलों पर ध्यान दें। 2. ट्राइबल हेल्पिंग हैंड्स जैसी शिक्षा में सहयोग करने वाली संस्थाओं की आर्थिक मदद करें। 3. एकलव्य स्कूलों के संचालन पर निगरानी रखे।
  12. भूमि के स्वामित्व जैसे वन भूमि अधिकार अधिनियम की अनुपालना व आदिवासियों के लिए बनाई गई अन्य कल्याणकारी योजनाओं की मॉनिटरिंग करें।
  13. सेवानिवृत्त आदिवासी अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्यां काफी होती जा रही है। उनके पास समय, संपर्क व धन भी होता है। वे समाज की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है। अतः उनका सम्मान करें और उनकी सुनें। उन्हें भी सामाजिक दायित्व के भाव से काम करना चाहिए।
  14. मीना समुदाय के लोग धार्मिक होते है और प्रकृति की पूजा करते आये है। कालांतर में हिन्दू धर्म के रीती रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानने लगे है। परन्तु धर्म के मसले में ज्यादा नहीं डूबने से लाभ नहीं है। व्यक्ति को अच्छे आचरण और नैतिकता पर ध्यान देना चाहिए। अपने कर्तव्य को ही सबसे बड़ी पूजा समझे। संविधान के मुताबिक राजस्थान का मीना समुदाय अनुसूचित जनजाति है एवं जनगणना के आंकड़ों मुताबिक समस्त मीना समुदाय हिन्दू धर्म में विश्वास करता है।
  15. धार्मिक अन्धविश्वास के प्रदूषण (DAP) का दुरूपयोग बहादुर आदिवासी समुदायों को नियंत्रण में करने के लिए किया गया है। हमें सोचना और समझना होगा कि कौन क्या कर रहा है? हमें हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था से दूर ही रहना है। उसे मानने से आर्थिक रूप से लूटने के साथ नीचता का बोध कराया जाता है।
  16. नशाखोरी व खैनी, गुटका इत्यादि से दूर रहना होगा। इनके सेवन से इज्जत के साथ आर्थिक नुकसान भी होता है। व्यक्ति स्वयं की वैल्यू खुद ही ख़राब कर लेता है।
  17. सामाजिक कुरीतियों से दूरी : बाल विवाह एवं मृत्यु भोज जैसी सामाजिक कुरीतियां बड़ी मुश्किल से दूर हुई है। दहेज़ अभी भी बड़ी कुरीति है। लगन टीका व सेवानिवृति पर बड़े आयोजन अभीहाल में कुरीति का रूप धारण करने लगे है।
  18. स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है। पौष्टिक भोजन नहीं मिलने के कारण आदिवासियों की महिलाओं में खून की कमी रहती है। इसी प्रकार बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है।
  19. प्रेस व मीडिया तथा न्यायपालिका एवं डिफेन्स सर्विसेज में भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। युवाओं को इन क्षेत्रों में जाना चहिये।
  20. महिला शिक्षा व महिला सम्मान : आदिवासिओं में महिलाओं की शिक्षा पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरुरत है। साथ ही महिलाओं का सम्मान भी जरुरी है।
  21. लिंग समानता : लड़के व लड़की में भेद करना बंद करना होगा। कई लोग लड़के की चाहत में अनेकों लड़कियों को जन्म दे देते है और समस्त परिवार व लड़का जीवन भर परेशान रहते है।
  22. एंट्रेप्रेन्योरशिप व बिज़नेस : 1. प्राईवेट बिजनेस की सोच विकसित करनी होगी। 2. स्किल बढ़ाने के लिए स्किल का खेलों की तरह कंपटीशन किया जाना चाहिए।
  23. गलत करने वालों को टोके। समाज के हित की बात करने में हिचके नहीं।
  24. बड़ों का सम्मान व छोटों का प्रोत्साहन : 1. युवा संस्कार शिविर आयोजित किये जाये। 2. दूसरों का सम्मान करने साथ अपने लोगों का सम्मान भी करें।
  25. राजनेताओं को अधिकारिओं को सरकार की ‘की-पोस्टों’ पर पदस्थ करने में मदद करनी चाहिए ताकि वे समाज के ज्यादा काम आ सके।
  26. अपनी पोजीशन को सेवा का मौका समझें। जब व्यक्ति पद पर नहीं रहता है तो दूसरे से अनुरोध ही करना पड़ता है।
  27. इतिहास को पहचाने और सीख लें। परन्तु इतिहास पर आवश्यकता से अधिक समय नहीं दें। व्यक्ति को वर्तमान व भविष्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
  28. सामाजिक कार्यकर्ताओं की वीडियो क्लिपिंग्स : वयोवृध्द व प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं की वीडियो क्लिपिंग्स बना लेनी चाहिए ताकि उनके कार्यों एवं विचारों से अधिकतम लोग आसानी से परिचित हो सके।
  29. लिखना प्रारम्भ करें और सोशल मीडिया का प्रयोग करें। दूर रहकर भी हर चीज में विचारों से रोल अदा कर सकते है।
  30. बेवजह की वहसों में नहीं फसे। समाज की ओर से प्रतिक्रिया नपी तुली होनी चाहिए। आमागढ़ प्रकरण में दो लोगों के कुछ कहने पर समुदाय के बहुत लोगों द्वारा प्रतिक्रिया देने की जरुरत नहीं थी। मीना-मीणा मसले पर भी जरुरत से ज्यादा प्रतिक्रिया की गई जबकि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा बहुत ही आसान हल दे दिया था।

सरकार से उचित स्तर पर आदिवासियों के कल्याण व उनकी उन्नति हेतु की निम्नलिखित महत्पूर्ण मांगे होनी चाहिए -

  1. आदिवासियों में एकता और उनमें उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जाये। इसी कड़ी में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर केन्द्र व राज्य सरकार उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित करवायें एवं अन्य धर्मों के अनुयाइयों के लिए जब इतनी सारी अवकाशें निर्धारित है तो देश की लगभग 10 प्रतिशत आबादी के लिए 9 अगस्त के दिन राजकीय अवकाश घोषित करें।
  2. प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के हक की नीति तय हो। आदिवासी क्षेत्र से निकाली जाने वाली प्राकृतिक सम्पदा में आदिवासियों की हिस्सेदारी हो।
  3. विकास के नाम पर आदिवासियों की बेदखली पर नियंत्रण हो। विकास कार्य हेतु सोशल इम्पेक्ट ऑडिट हो एवं उसके पश्चात यदि बेदखली टाली नहीं जा सकती तो मुआवज़े की ठोस नीति बने व उसकी अनुपालना हो।
  4. वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन भूमि पर स्वामित्व के अधिकार की अनुपालना एवं उसकी गहन मॉनिटरिंग ज़रुरी है।
  5. आदिवासियों के संस्थागत विकास हेतु विशेष पैकेज के साथ कार्ययोजना बने व उसकी क्रियान्विति हो।
  6. आदिवासी नेताओं, समाजसेवियों व स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये।
  7. महत्वपूर्ण सार्वजनिक सम्पत्ति व रोडस् के नाम आदिवासी नेताओं, समाज सेवियों व महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम पर रखे जाये।
  8. देश की राजधानी व समस्त राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में आदिवासी विकास केंद्रों की स्थापना की जाये। इन केंद्रों में आधुनिक सुविधाओं के साथ ऑडिटोरियम, कांफ्रेंस हॉल, पुस्तकालय, शोध केन्द्र, होस्टल्स, गेस्ट हाउसेस एवं थियेटर बनाये जायें ताकि आदिवासियों की संस्कृति, खेल-कूद, परम्पराएँ एवं पुरा महत्व के दस्तावेज़ों का संरक्षण हो ताकि नई पीढ़ी आदिवासी धरोहरों से अवगत हो सके।
  9. वर्ष 2011 के जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार देश में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 8.62 % है जबकि आरक्षण 7.5 % ही है। अतः आवश्यकता है कि जनजाति आरक्षण वर्तमान जनसंख्या के अनुरूप 7.5 % से बढ़ाकर 8.62 % किया जाये।
  10. राज्य सभा में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण होना चाहिए।
  11. सरकार के मंत्रियों में आदिवासियों को जनसंख्या के अनुसार उपयुक्त प्रतिनिधित्व मिले।
  12. न्यायिक सेवाओं हेतु भारतीय न्यायिक सेवा का गठन हो ताकि न्यायिक सेवाओं में हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो सके। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायधीशों के चयन में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व हेतु आरक्षण होना चाहिए।
  13. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान एवं विश्वविद्यालयों एवं काॅलेजों की फैकल्टी में जनसंख्या के अनुसार आदिवासियों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
  14. सरकार के महत्वपूर्ण पदों (की-पोस्टों) पर आदिवासी अधिकारियों को उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिले। ग्रुप ए तक की सभी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान हो एवं आयु सीमा हटाई जाये ताकि सभी स्तरों के पदों पर जनसंख्या के आधार पर समुचित प्रतिनिधित्व हो सके।
  15. जिन-जिन विभागों में अनुसूचित जनजाति का बैकलाॅग है, उसे अविलम्ब भरा जाये।
  16. व्यवसाय की ओर प्रेरित करने हेतु आदिवासियों को विशेष प्रकार के इंसेंटिव दिये जाये।
  17. सरकार की नीतियों की वजह से सरकारी क्षेत्र कम होते जा रहे हैं व निजी क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अतः निजी क्षेत्र में भी आरक्षण का प्रावधान किया जाये।
  18. आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व शिक्षा पर विशेष कार्ययोजना होनी चाहिए। इन क्षेत्रों में पदस्थ किये जाने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को विशेष इंसेंटिव दिया जाये ताकि कठिन परिस्थितियों में पदस्थ होने से परहेज नहीं हो।
  19. अंधविश्वास व कुरीतियों को दूर करने हेतु विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाये एवं कार्यरत समाजसेवियों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाये।
  20. आदिवासियों से संबंधित पुस्तकों, लेखों व साहित्य को बढ़ावा देने हेतु विशेष कार्ययोजना बनाई जाये एवं उसकी क्रियान्विति सुनिश्चित कराएं।
  21. आदिवासी क्षेत्रों में पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों की ज्यादतियाँ कम हो एवं आदिवासियों के उत्पीड़न के प्रकरणों पर तत्परता से ठोस कार्यवाही की जाये।
  22. आदिवासी खिलाड़ियों को सही प्रोत्साहन मिले।
  23. आदिवासियों के गौरव की ऐतिहासिक धरोहरों एवं मोनुमेंट्स जो कि सामान्यतया वन विभाग या पुरातत्त्व विभाग के अधीन होते है, उनको चिन्हित करके गज़ट में नोटिफाई करवाएं एवं उनका उचित संरक्षण किया जाये।
उपरोक्त मांगों में समय की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन किये जाते रहने चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना