Sunday 21 March 2021

आज्ञाकारिता (Obedience) सकारात्मक व जनहितैषी होती है जबकि अंधी आज्ञाकारिता (Blind Obedience) नकारात्मक व जनविरोधी होती है। मिलग्राम प्रयोग के बारे में अवश्य जाने व उसे समझे और अंधी आज्ञाकारिता से बचे तथा आवश्यकता पड़ने पर अथॉरिटिज् के गलत आदेशों के विरूध्द जाकर भी जनहित में अपने पक्ष रखने से डरे नहीं।

      rpmwu383 dated 31.03.2021
मिलग्राम एक्सपेेरिमेंट
अकेले हिटलर ने 60 लाख यहुदियों को नहीं मारा था। यदि माने कि हिटलर के मन में विचार आया कि यहुदी खराब है और उन्हें मारना ही देश हित है तो क्या वह अकेला इतनी बड़ी संख्या में लोगों की निर्मम हत्या कर सकता था? कदापि नहीं। उसके निर्देशों की पालना करने वाले अनेकों सैन्य अधिकारी, सैनिक, गैस चैंबर बनाने वाले इंजीनियरस्, गैस खोलने वाले लोग, यहुदियों के पुरूष, स्त्री व बच्चों को पकड़कर लाने वाले अनेकों अनेक लोग हिटलर के आदेशों की अंधी आज्ञाकारिता (Blind Obedience) करते रहे और गलत कार्य संपन्न होता रहा।
 
बड़ी स्केल पर होने वाले सभी गलत कार्यों को कोई अकेला व्यक्ति कर ही नहीं सकता है। वास्तव में बड़े पैमाने पर होने वाले गलत कार्यों के निष्पादित होने में बहुत सारे लोगों की अथॉरिटी के प्रति अंधी आज्ञाकारिता आवश्यक रूप से शामिल होती है।

जैसा कि हम सभी समझते हैं कि मां बाप, शिक्षक, अपने से बड़े लोगों की बात अधिकांशतः व्यक्ति मानते ही है क्योंकि बचपन से हमारा मष्तिष्क उसी प्रकार से प्रशिक्षित किया हुआ होता है। अंधी आज्ञाकारिता के वशीभूत होकर एकलव्य ने तो तथाकथित गुरु के कहने पर अपने दायें हाथ का अंगूठा तक काट कर गुरू दक्षिणा में दान कर दिया था। 

अंधी आज्ञाकारिता व अथॉरिटी के प्रति समर्पण को समझने के लिए 1960 के दशक में स्टेनली मिलग्राम नामक मनोवैज्ञानिक ने एक सामाजिक प्रयोग किया जोकि मिलग्राम एक्सपेरिमेंट के नाम से प्रसिद्ध है। उनके इस प्रयोग में कुल 3 लोग होते हैं एक एक्सपेरिमेंट कराने वाला (अथॉरिटी), दूसरा टीचर (शिक्षक) और तीसरा स्टूडेंट (शिक्षार्थी)। एक्सपेरिमेंट में तय किया गया कि स्टूडेंट से प्रश्न पूछे जाएंगे और यदि वह गलत उत्तर देता है तो पहले गलत उत्तर पर 15 वोल्ट का शाॅक दिया जाएगा, दूसरे गलत उत्तर पर 30 वोल्ट का शाॅक दिया जाएगा, तीसरे गलत उत्तर पर 45 वोल्ट का शाॅक दिया जाएगा। इसी प्रकार से 30 गलत उत्तर देने पर शाॅक के वोल्टेज का लेवल 450 वोल्ट तक पहुंचेगा। किसी भी व्यक्ति के लिए 300 वोल्ट का शाॅक ही बहुत भारी शाॅक होता है जिस पर आदमी बुरी तरह घायल और परेशान हो जाता है और 450 वोल्ट के शॉक पर तो व्यक्ति लगभग मर ही जाता है व गिर पड़ता है। 

शाॅक देने के लिए स्टूडेंट को अलग कमरे में बंद कर दिया गया एवं इस प्रकार का सिस्टम बनाया गया कि टीचर स्टूडेंट को देख तो नहीं सकता था परन्तु उसकी आवाज़ सुन सकता था। एक्सपेरिमेंट में शाॅक देने के अरेंजमेंटस्, टीचर व एक्सपेरिमेंट करवाने वाली अथॉरिटी एक दूसरे कमरे में थे। वास्तव में तो शॉक स्टूडेंट को नहीं लगने थे परन्तु प्रत्येक वोल्ट के अनुरूप प्री रिकार्डेड आवाजो़ से टीचर को महसूस हो रहा था कि शाॅकस् के कारण स्टूडेंट बेहद परेशान व भयंकर कष्टमय हो रहा है। टीचर को इस प्रकार के अरेंजमेंटस् का पता नहीं था और वह हकीकत में सोचता था कि शाॅक वास्तविक है।

अब एक्सपेरिमेंट शुरू होता है। जैसे ही स्टूडेंट गलत उत्तर देता है वैसे ही टीचर ने 15 वोल्ट का प्रारंभिक शाॅक दिया। तत्पश्चात हर गलत उत्तर पर शाॅक की इंटेंसिटी 15-15 वोल्टस् बढ़ाई गई और 450 वोल्ट के दिल दहलाने तक के शाॅक स्टूडेंट्स को दिए गए। 300 से 450 वोल्ट के भयावह शाॅक में व्यक्ति जोर से चीखता था और धड़ाम से गिरने तक की आवाज़ आती थी। कुल 40 में से 26 टीचरस् (65%) ने स्टूडेंट्स् को 450 वोल्ट तक के शाॅक दे डाले। भयावह व दर्दनाक आवाजों से टीचर्स भी दुखी हो रहे थे, उनको पसीना आ रहा था, उनकी हार्टबीट बढ़ जाती थी, हावभाव से लग रहा था कि उन्हें बहुत ही खराब लग रहा था परंतु फिर भी वे एक्सपेरिमेंट करवाने वाले व्यक्ति की अथॉरिटी की अंधी अनुपालना कर रहे थे। 

वास्तविक जीवन में भी ऐसा ही होता है जब कोई अथॉरिटी की पोजिशन पर बैठा व्यक्ति सबोर्डिनेट पोजीशन वाले व्यक्ति से किसी कार्य के लिए कहता है तो सामान्यतः सबोर्डिनेट व्यक्ति उस कार्य को करने के लिए राजी हो जाता है जबकि वह मन में भले ही समझ रहा हो कि किया जा रहा कार्य सही नहीं है, उसे नहीं करना चाहिए इत्यादि। 

यदि लोग हिटलर को उसके गलत कार्य में अंधी आज्ञाकारिता नहीं करते तो 60 लाख यहुदियों की निर्मम हत्या नहीं होती। बड़े स्तर के हर गलत कार्यों के पीछे अंधी आज्ञाकारिता का गंभीर रोल रहता है। 

मिलग्राम एक्सपेरिमेंट से हमें समझना चाहिए कि यदि अथॉरिटी की पोजीशन के बल पर कोई व्यक्ति गलत काम करवाना चाहे तो हमें उस पर गहन विचार करना चाहिए और अपने मन मष्तिष्क की बात को सुनें तथा अथॉरिटी द्वारा गलत कार्य हेतु दिये गये आदेशों की अंधी आज्ञाकारिता नहीं करें।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना