Saturday 23 April 2022

रास्तो का चौड़ीकरण

rpmwu452 Dt. 23.04.2022

रास्ता       मंदिर_मस्जिद_चर्च_गुरूद्वारा

रास्ते, आमजन के उपयोग के संसाधन होते है। रास्ते पर अतिक्रमण करने से या जायज़ बिल्डिंग के बनी हुई होने से भी यदि रास्ते की चौड़ाई कम हो जाती है तो यातायात में बाधा उत्पन्न होती है जिससे सभी को असुविधा व परेशानी का लगातार सामना करना पड़ता है। सरकार व स्थानीय निकाय समय समय पर आमजन की सुविधा के लिए रास्तों के चौड़ीकरण के लिए कार्य करती है ताकि रास्तों की चौड़ाई अच्छी हो जाये।

धार्मिक स्थल मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे या अन्य आस्था के केन्द्रों को पहले से ही दूर ऐसी जगह बनाना चाहिए जहाँ शांति से व्यक्ति पूजा अर्चना या ध्यान केन्द्रित कर सके। परन्तु स्वार्थी लोग तो धार्मिक स्थल बनाते ही इसलिए है कि उनकी आड़ में चौड़ीकरण का कार्य करना कठिन हो जाये और अनाधिकृत बिल्डिंग बच जाये।

रास्तों के चौड़ीकरण में घर, दुकानों के अलावा यदि धार्मिक स्थल भी आते है तो उन्हें भी हटाया जाता है। रास्ता आमजन के उपयोग का संसाधन है अत: वह भी धार्मिक स्थल के समान ही है या उनसे अधिक महत्वपूर्ण है।

यदि हम वास्तव में गांवों, कस्बों व शहरों की स्थिति सुधारना चाहते है तो हमें रास्तों के चौड़ीकरण करने वाले अधिकारियों व निकाय के पदाधिकारियों को हतोत्साहित नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 20 April 2022

दहेज़ को हतोत्साहित करने के लिए 3D फार्मूला।

rpmwu451 Dt. 20.04.2022
दहेज मिटाने के लिए 3D_फार्मूला कारगर हो सकता है -

पहली_D :  लड़के वालो के लिए, वे Demand (मांग) नहीं करे। 

दूसरी_D :  लड़की वाले दी जाने वाली चीजों का Display (दिखावा) नहीं करे। 

तीसरी_D : बाराती व आमजनता लेनदेन की बातों पर Discussion (चर्चा) करके दहेज़ को महत्व नहीं दे। 

यदि सभी इस 3D फार्मूला को अपनायेंगे तो दहेज़ पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। 
सादर 
Raghuveer Prasad Meena

स्वतंत्रता सेनानी श्री भैरवलाल 'काला बादल'

 

(4 सितम्बर1918  से 20 अप्रैल 1997)
rpmwu 450 dt. 20.04.2022

श्री कालूलाल मीणा जी के पुत्र स्वतंत्रता सेनानी श्री भैरवलाल 'काला बादल' खानपुर शहर में छठी कक्षा में पढ़ते हुए और श्री तनसुखलाल मित्तल के संपर्क में आने के दौरान 1937 में प्रजा मंडल के सदस्य बने। उन्होंने देशभक्ति गीतों के माध्यम से स्वतंत्रता की भावना को जगाने का एक अनूठा प्रयास किया। 'काला बादल' नामक क्रांतिकारी गीत की रचना के कारण, वह पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए विशेषण 'काला बादल' से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने प्रजामंडल के तत्वावधान में नरसिंह गश्ती पुस्तकालय की स्थापना कर तथा विभिन्न स्थानों पर ऐतिहासिक महत्व के सम्मेलनों का आयोजन कर लोगों को संगठित किया। भारत छोड़ो आंदोलन, 1942 और कोटा की क्रांति में उनकी प्रमुख भागीदारी के कारण वे पुलिस अत्याचारों का शिकार हुए। उन्होंने मीना जाति के लोगों के उत्थान और शिक्षा में विशेष योगदान दिया। उन्होंने वनस्थली से प्रशिक्षण भी प्राप्त किया।

भैरवलाल 'काला बादल' हाड़ौती के स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी रहे है। राजस्थान राज्य अभिलेखागार (2011) द्वारा हाड़ौती के स्वतंत्रता सेनानियों पर प्रकाशन पाकर वे भावुक हो गए। उन्होंने पूछा, क्या लोग अब भी उनके योगदान को याद करते है? उन्होंने आगे कहा, ''देश को आजाद कराने वालों का और कोई मकसद नहीं था, उनके निस्वार्थ बलिदान से हम आजाद है, देश आजाद है और हम खुली हवा में सांस ले पाते है'


स्रोत: राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर


सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 


श्री राम नारायण मीणा हलधर और डा. ओम नागर द्वारा संपादित लेख - 

स्व.श्री भैरवलाल मीणा "कालाबादल" जी की पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।

हिंदी के महान क्रांतिकारी कवि काला बादल, जिनके नाम से कांप जाते थे अंग्रेज आजादी के गीतों की लोकप्रियता के कारण कालाबादल पूरे राजस्थान में आजादी के आंदोलन के दौरान उपस्थित रहते थे। माना जाता है कि हड़ौती क्षेत्र में कोई ऐसा थाना नहीं था जिसमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ राजद्रोह में उनपर मुकदमा दायर न किया गया हो...

 हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों में अधिकतर अपने शुरुआती दिनों में कविता प्रेमी या मौलिक कवि थे। देशप्रेम का यह भाव हिंदी, उर्दू से लेकर क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में भी देखा जा सकता है। राजस्थान में विजय सिंह पथिक, नानक भील, पंडित नयनू राम शर्मा, प्रेम चंद भील, भैरव लाल कालाबादल, गणेशी लाल व्यास, मोतीलाल घड़ीसाज, वीरदास स्वर्णकार सहित अनेकानेक रचनाकारों ने हिंदी और राजस्थानी भाषा में देश प्रेम काव्य के माध्यम से आजादी का बिगुल बजाया।

भैरवलाल कालाबादल ने राजस्थानी भाषा की हाड़ौती बोली में जनजागरण और समाज सुधार के प्रभावशाली गीतों की रचना की। कालाबादल का जन्म 4 सितंबर 1918 में राजस्थान के बारां जिले की छीपाबड़ौद तहसील के तूमड़ा गांव में #मीणा_परिवार में हुआ था। उनके पिता कालूराम मीणा एक गरीब कृषक थे। कालाबादल का बचपन अत्यंत गरीबी और कष्टों में बीता। बचपन में दो भाई-बहन और मां-बाप की मृत्यु हो गई। उन्होंने ग्रामीणों और शिक्षकों की सहानुभूति और सहयोग से मिडिल तक पढ़ाई की और किशोरावस्था से ही क्षेत्र में आजादी के आंदोलनों में भाग लेने लगे।

आजादी के आंदोलन को जन आंदोलन बनाने में लोक भाषा में रचे गए साहित्य का बड़ा योगदान है। भैरवलाल कालाबादल ने हाड़ौती क्षेत्र की स्थानीय बोली 'हाड़ौती' में अपने गीतों की रचना की। पारंपरिक लोकगीतों की तर्ज और गेयता उनकी रचनाओं सबसे बड़ी ताकत थी। अपने गीतों के माध्यम से वे क्रांतिकारियों की सभाओं में भीड़ इकट्ठी करने का महत्वपूर्ण काम करते थे। कालाबादल प्रखर गांधीवादी थे। वह हाड़ौती के प्रमुख क्रांतिकारी पंडित नयनूराम शर्मा के शिष्य और सहायक थे।

आजादी की लड़ाई को गांव कस्बों तक ले जाने में उस समय सक्रिय संगठन प्रजा मंडल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। हाड़ौती में प्रजा मंडल का प्रथम सम्मेलन सन् 1939 में बारां जिले के मांगरोल कस्बे में आयोजित करने का निर्णय लिया गया था। अंग्रेज सरकार किसी भी कीमत पर इस सम्मेलन को सफल नहीं होने चाहती थी। पंडित नयनूराम शर्मा ने कालाबादल को सम्मेलन में अपने गीतों से जनसमुदाय को एकत्रित करने का जिम्मा सौंपा। सरकारी अधिकारियों को इस बात को अंदेशा था कि यदि भैरवलाल कालाबादल इस सम्मेलन में पहुंच जाएंगे तो वहां उन्हें सुनने के लिए असंख्य लोग इकट्ठे हो जाएंगे और वे कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस सम्मेलन से ठीक एक दिन पहले कालाबादल को खानपुर पुलिस ने पकड़कर थाने में बंद कर दिया। ऐसा माना जाता है कि हाड़ौती क्षेत्र में उस समय ऐसा कोई थाना नहीं था जिसमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ साजिश रचने और राजद्रोह के केस में कालाबादल पर मुकदमा दायर न किया गया हो।

कालाबादल के गीतों में ठेठ बोल-चाल की भाषा के सरल शब्द, लयात्मकता और सुरीलापन सुनने वालों पर अभूतपूर्व प्रभाव छोड़ते थे, एक गीत की कुछ पंक्तियां देखिए जिसमें वह जनता को अत्याचारियों का विरोध करने और इसके परिणाम भुगतने के लिए मज़बूत बनने की बात कहते हैं -

आई आजादी आंख्यां खोल दो।

गांवड़ा का खून सूं रे, शहर रंग्या भरपूर,

गढ़ हवेल्यां की नींव तले, सिर फोड़े मजदूर।

अर्थात-हे देश वीरों अब तो नींद से जागो और आंखें खोलकर देखो देश आजाद हो गया है, ये शहर-गांवों के खून से रंगे हुए हैं, इन हवेलियों और अट्टालिकाओं की नीवों में सिर फोड़ रहे हैं।
कालाबादल की यह कविता का एक-एक शब्द किसान, मजदूर और कमजोर वर्ग के अभावों और यातनाओं का प्रामाणिक दस्तावेज है। वे देश की आजादी के पूर्व और आजादी के बाद भी अपने काव्य की मशाल से सदियों के गहन अंधकार में उम्मीद की मशाल जलाते रहे-

अब तो चेतो रे मरदाओं!

काला बादल रे, अब तो बरसा से बलती आग

बादल! राजा कान बिना रे सुणे न्ह म्हाकी बात,

थारा मन तू कर, जद चाले वांका हाथ।

कसाई लोग खींचता रे मरया ढोर की खाल,

खींचे हाकम हत्यारा ये करसाणा की खाल।

छोरा छोरी दूध बिना रे, चूड़ा बिन घर-नार,

नाज नहीं अर तेल नहीं रे, नहीं तेल की धार ।

अर्थात-कवि कालाबादल ने इस गीत के माध्यम से अंग्रेजी शासन में किसान-मजदूर वर्ग का बेहद दयनीय, लेकिन वास्तविक स्वरूप दुनिया के सामने रख दिया था। इस गीत में कवि ने काले बादलों से आग बरसाने का आह्वान किया ताकि फिरंगियों का सम्राज्य जलकर पूरी तरह भस्म हो जाए। वे कहते हैं कि हे काले बादलों राजा तो बहरा है जो हमारी बात बिलकुल नहीं सुनता, कसाई तो मरे हुए जानवरों की खाल खींचते हैं, जबकि ये राजा और हाकिम जीवित लोगों की खाल खींच रहे हैं, घर में न तो बच्चों के लिए दूध है, न अनाज है और न ही घरवाली के हाथों चूड़ा है। कवि का यह अप्रतिम आक्रोश था जो खास तौर से ग्रामीण जनता में अपूर्व साहस और देश पर मर मिटने का भाव जगाता था।

गाढ़ा रीज्यो रे मर्दाओं, थांको सारो दुख मिट जावे

अन्यायी एको कर करसी, थांके ऊपर वार

तोड़ां बेड़ी, गाल्यां घमकी वार

एको कर मल जाज्यो रे मारत मां का पूत

ईश्वर थांकी जीत करेगा रीज्यो थां मजबूत

अर्थात-हे देश के वीरों! यदि तुम मजबूत बनकर अत्याचारियों के विरोध हेतु खड़े हो जाओ तो तुम्हारे सब दुखों का अंत हो जाएगा, इन सभी अन्याय करने वालों ने आपस में एकता करली है, वे अपशब्द कहते हैं, धमकियां देते हुए तुम्हारे ऊपर वार कर रहे हैं, आओ हम सब भी एक हो जाएं और इन परतंत्रता की बेडिय़ों को तोड़ डालें, इसमें ईश्वर भी हमारे साथ है।

अपने लोकभाषा में रचे गए गीतों की लोकप्रियता के कारण कालाबादल पूरे राजस्थान में आजादी के आंदोलन के दौरान होने वाले वाले सभा-सम्मेलनों की अनिवार्यता हो गए थे। सन् 1940 में उन्होंने कोटा जिले के रामगंज मंडी कस्बे में प्रजामंडल का एक विशाल किसान सम्मेलन आयोजित करवाया, इसमें लगभग 10 हजार लोगों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में हजारों नवयुवकों ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लेने का संकल्प लिया। कालाबादल के हाड़ौती भाषा में रचे गए गीत लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गए थे। अब लोग उनके गीतों की पुस्तक प्रकाशित करने की मांग करने लगे थे। सन् 1940 में कालाबादल उस समय के बेहद चर्चित बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रणेता, राजस्थान केसरी क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के घर पुस्तक प्रकाशन के संदर्भ में आगरा गए। उस समय उनके प्रेस पर अंग्रेज सरकार ने पाबंदी लगा रखी थी। पथिक जी ने अत्यंत गोपनीय तरीके से कालाबादल के गीतों की पुस्तक 'आजादी की लहर' प्रकाशित कर आगरा से उन्हें सकुशल रवाना किया। उनकी अन्य पुस्तकें हैं 'गांवों की पुकार' और 'सामाजिक सुधार'।

सन् 1941 के मई महीने में भैरव लाल कालाबादल, प्रभु लाल कल्कि और जीतमल जैन को राजद्रोह के आरोप में 29 दिन की जेल और 200 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई। जेल अवधि में उन्होंने एक नाटक लिखा जिसका नाम था 'दुखी-दुखिया' जो बाद में काफी लोकप्रिय हुआ।

सन् 1946 तक इस महान क्रांतिकारी और लोकभाषा के कवि का नाम भैरव लाल मीणा था। कालाबादल उपनाम इन्हें हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिया था। देश की आजादी से एक वर्ष पूर्व सन् 1946 में उदयपुर राज्य लोक परिषद के सम्मेलन में उन्हें गीत गाने के लिए मंच पर बुलाया, चूंकि नेहरू जी को कवि का नाम याद नहीं था, लेकिन उनके गीत की पंक्तियां-कालाबादल... कालाबादल याद रहीं, उन्हें इन्हीं पंक्तियों के साथ मंच पर आमंत्रित किया गया, इसके बाद से उन्हे कालाबादल के नाम से ही जाना जाने लगा।

तत्कालीन देसी राजाओं और जागीरदारों द्वारा किसानों और मेहनतकश जनता पर बड़े ज़ुल्म किए जा रहे थे। कवि कालाबादल ने अपने अधिकांश गीतों में निडरतापूर्वक उनका पर्दाफाश किया, यह उस जमाने में एक युवा और गरीबी से संघर्ष कर रहे कवि के लिए आसान बात नहीं थी-एक गीत का अंश देखें -

धरम, धन, धरती लूटे रे, जागीरदार,

जागीरी म्ह जीबा सूं तो भलो कुआं म्ह पड़बो

जागीरी का गांव सूं तो भलो नरक म्ह सड़बो

मां-बहण्यां के सामे आवे, दे मूछ्यां के ताव

घर लेले बेदखल करादे, और छुड़ा दे गांव

अर्थात-ये जागीरदार धर्म, धरती और धन सब लूट रहे हैं, जागीरी में जीने से तो कुएं मे डूबकर मर जाना और नरक में सडऩा बेहतर है। ये इतने निरंकुश हैं मां कि बहनों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं है ये जब चाहें किसी को भी बेदखल करदें और गांव छोडऩे पर मजबूर कर सकते हैं।

आजादी के बाद वह सक्रिय राजनीति में आ गए। वह प्रथम राजस्थान विधान सभा में (1952), 1957, 1967 और 1977 विधायक रहे। 1978 -80 में उन्हे आयुर्वेद राज्य मंत्री बनाया गया। इतना यश और पद पाने के बावजूद वह सदैव विनम्र, सहृदय और सादगीपूर्ण जीवन जीवन जीते थे। उनका पूरा जीवन गांधी जी के सिद्धांतो पर आधारित था। 20 अप्रैल 1997 को 79 वर्ष की आयु में हृदय गति रुक जाने के कारण आजादी के गीतों का यह युग चारण सदैव के लिए मौन हो गया। उनकी मृत्यु के 20 साल बाद 2017 में बोधि प्रकाशन से कोटा के मीणा समाज ने उनकी आत्मकथा- 'कालाबादल रे! अब तो बरसादे बळती आग का प्रकाशन करवाया।


श्री बी एल मीना , राष्ट्रीय अध्यक्ष , राष्ट्रीय मीणा महासभा द्वारा लिखा गया लेख - 

काला बादल जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि। मैं हाई स्कूल पास कर सन् 1957 की जुलाई में कालेज शिक्षा के लिए जयपुर आकर महाराजा कालेज में प्रवेश लिया।  विधानसभा के लिए चुनाव ताजा ही हुए थे और काला बादल जी भी चुन कर आये थे। मैं केवल 19 वर्ष का था। मुझे राजस्थान सरकार द्वारा चलाये जा रहे छात्रावास में भी प्रवेश मिल गया था जो उस वक्त त्रिपोलिया गेट के पास स्थित नवाब हाऊस में था। आज का पुलिस कमिश्नर आफिस उस वक्त विधायक निवास था। मुझे जननेताओं से मिलना अच्छा लगता था अतः मैं छात्रावास से पैदल चलकर हर रविवार को इस विधायक निवास पहुंच जाता था और और नेताओं से मिलता रहता था। उस वक्त काला बादल जी से भी मिलता रहता था। उनका नाम मैंने अपने पिताजी से सुन रखा था। वे भी आजादी की लड़ाई में भाग ले रहे थे और सभी नेताओं को जानते थे। काला बादल जी और अन्य विधायक भी मुझे प्यार देते थे। एक लच्छू राम नाम के विधायक जो पता नहीं कहां से विधायक थे ने मुझसे मेरा परिचय पूछ लिया और यह जानने पर की मैं इतनी दूर से हर रविवार पैदल चलकर आता हूं तो कहा " बेटे  रिक्षै से आजाया करो मैं पैसे दे दिया करुंगा।"  मैंने कहा मुझे कोई दूरी अखरती नहीं है, गांव का हूं, बहुत चला हूं।
 एक बात मैं यहां कहना चाहूंगा काला बादल जी का जन्म भले ही हाड़ोती क्षेत्र के बारां जिले में हुआ हो, लेकिन उनकी कर्मस्थली मेरे सीकर जिले का  प्रसिद्ध गांव नयाबास ही रहा है। पुलिस की परेशानी से बचने के लिए  उनको अपना गांव छोड़ना पड़ा था। वहीं नयाबास के अग्रणी नेता हर सहाय जी ने उनकी शादी भी करवा दी थी। बाद में जनता पार्टी के राज में जब वे मंत्री बने तब भी मैं उनसे मिलता रहता था। उस वक्त तो नौकरी में आगया था। बड़े सरल स्वभाव के व्यक्ति थे और अपनी मातृभाषा में ही बात करते थे। उस महान व्यक्तित्व को एक बार फिर नमन।

Saturday 16 April 2022

14 अप्रैल 2022 : भारतरत्न बाबासाहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की जन्म जयंती

rpmwu448 dt. 14.04.2022

14 अप्रैल 2022: गंंभीर विषमताओं में सफलता हासिल करने वाले, शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 131 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है। उन्होंने देश के महत्वपूर्ण मसलों पर अधिकांश राय लिखित में पेश की। पाकिस्तान, कश्मीर व हिन्दू धर्म की कुरूतियों पर स्पष्ट राय दी। Ministry of External Affairs has written on its web page about Dr. BR Ambedkar "Who Tried to to turn the wheel of Law towards social justice for all".

जो लोग कम पढ़े लिखे है या जिनकी समझदारी में कमी है, वे समझते है कि बाबासाहब ने दलितों के लिए ही खासतौर पर काम किया जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश के हर नागरिक के उत्थान व कल्याण के लिए जबरदस्त उदाहरणीय काम किया था। वैसे तो व्यक्ति की सोच (सोफ्टवेयर) उसके परवरिश (nurture) के आधार पर बनती है परन्तु बड़े होने पर हमें तार्किक सोचने की जरूरत है और जो सही है उसकी बात करें व उसी को आगे बढ़ाया जाए। सही सोच के साथ विचार करें तो पता लगेगा कि बाबासाहब ने वास्तव में देश के हर क्षेत्र में नागरिकों के कल्याण हेतु जबरदस्त काम किया। उदाहरणार्थ - 
भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीख सकता है और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करने की आवश्यकता है  -

शिक्षा : से व्यक्ति बहुत सम्मान पा सकता है व आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। शिक्षा की सुविधाओं को महत्व देवे। ऐसी संस्थाओं से जुड़े जो गरीब व कमजोर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करते है। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे। ऊंगलियों के बीच में होकर समाधान ढूंढे ना कि परेशानी। 

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे। देश की उन्नति में बाधक कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को सही करने लिये हिन्दू कोड बिल के प्रकरण पर उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 
 
5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। कश्मीर के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट थी कि कश्मीर को विशेष राज्य का स्टेटस नहीं दिया जाये। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया। धर्म परिवर्तन के समय भी देशहित का ध्यान रखा व  बदले की भावना नहीं रखी। यदि बौद्ध के अलावा किसी और धर्म को ग्रहण करते तो देश की राजनीति ही अलग हो जाती। 

11. आरक्षित वर्ग : आरक्षण देश के नागरिकों के समग्र विकास (inclusive growth) का एक महत्वपूर्ण टूल है। यदि आरक्षण नहीं होता तो देश को बहुत अधिक नुकसान होता। आरक्षण नहीं होने से देश में 3 स्थिति हो सकती थी। प्रथम दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्गों का अलग देश बन जाता, द्वितीय अलग देश नहीं बन पाता तो देश में अत्याचारों के विरूद्ध दलित, आदिवासी व पिछड़ो के अधिकारियों के लिए गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती अथवा तृतीय यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो एक बहुत बड़ी जनसंख्या उनकी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती। 

आरक्षित वर्ग के लोगों के जीवन का उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।

16. दूसरों को गलत करने से रोके : अस्पृश्यता को समाप्त करवा कर उन्होंने दूसरों को और अधिक पाप करने से रोका। यदि कोई गलत या अत्याचार कर रहा है तो उसे गलत करने से रोकना चाहिए। 
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। जरुरत है कि बाबासाहब के महान व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर हम सभी अपने अपने कार्य को सही तरीक़े से पूर्ण क्षमता व एफिसिन्सी के साथ निष्पादित करें। साथ में दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें और यथासंभव सभी देशवासियों को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। इतिहास की ज्यादा खोजबीन करने की बजाय वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाबासाहब के द्वारा लिखे गए दस्तावेजों व किताबों को पढ़े और उनसे प्रेरणा ले। Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. Small minds discuss people, medium minds talk of events and great minds ponder over ideas. Implementation of the provisions of the constitution is extremely important for the welfare of the citizens, we all must individually and collectively strive for the same.

जय भीम
रघुवीर प्रसाद मीना

16 अप्रैल 1853 भारतीय रेल का जन्मदिन



rpmwu449 Dt 16.04.2022

#happybirthdayindianrailways 16 अप्रैल 1853 शनिवार का दिन था, आज फिर 16 अप्रैल 2022 को शनिवार है। 1853 का यह दिन भारतीय रेलव के इतिहास में अविस्मरणीय दिन है। इसी दिन भारत में मुम्बई से ठाणे प्रथम रेलगाड़ी की यात्रा की शुरुआत हुई थी।

16 अप्रैल 1853 को 3:35 बजे ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे की पहली रेलगाड़ी बंबई (अब मुम्बई) के बोरी बंदर से थाने (अब ठाणे) जाने के लिए रवाना हुई। रेलगाड़ी को इस 21 मील (33.8 किमी) के सफर को तय करने में 57 मिनट का समय लगा। 14 डिब्बों वाली इस रेलगाड़ी जिनमें 400 यात्री सवार थे को, तीन लोकोमोटिव जिनका नाम सुल्तानसिंध और साहिब था, खींच रहे थे।

रेलवे में सबसे पहले स्टीम इंजन फिर डीजल इंजन व अब इलेक्ट्रिक इंजन का प्रयोग होता है। वंदे भारत ट्रेन में ट्रेन सेट कांसेप्ट का उपयोग है जिसमें  3 से 4 कोचेज् में ड्राइविंग यूनिट होती है।

कोच पहले चार पहिया के होते थे फिर आई आर एस बोगी के साथ वुडन बाॅडी के बनते थे। बाद में आई सी एफ बोगी के साथ स्टील बाॅडी के कोच लम्बे समय से सर्विस में है। अब एल एच भी डिजाइन के कोच बनाये जा रहे है।

वैगन पहले चार पहिया फिर यू आई सी बोगी के साथ वैक्यूम ब्रेक्ड 8 पहिया के रहे। अब केस्नब बोगी डिजाइन एयर ब्रेक वैगन सर्विस में है। 

रेलवे ट्रेक पहले ब्राॅड गैज के साथ नेरो व मीटर गैज काफी मात्रा में थे। जिनमें लकड़ी व स्टील के स्लीपरस् का उपयोग होता था। अब अधिकतर जगह ब्राॅड गैज ट्रेक 52 व 60 किलोग्राम प्रति मीटर की रेलस् पी आर सी स्लीपरस् के साथ उपलब्ध है।

रेलवे सिगनलस् में भी लोअर क्वाडरेंट टू आॅस्पेक्ट से अपर क्वाडरेंट मल्टीपल आॅस्पेक्ट से होते हुए एल ई डी लिट कलर लाईट व आॅटोमेटिक सिगनलस् तक की गज़ब उन्नति हुई है। सिगनल इंटरलोकिंग भी मैकेनिकल से स्टैंडर्ड वन, टू, थ्री, पीआई व ई आई के रूप में माॅडर्न हो चुकी है।

सोफ्टवेयर व इंफॉर्मेशन के क्षेत्र में भी रेलवे में रिजर्वेशन सिस्टम, कंट्रोल आॅफिस एप्लीकेशन, फोइस, कोइस, मैटेरियल मैनेजमेंट, क्रू मैनेजमेंट, ट्रेक मैनेजमेंट, एचआरएएमएस, अकाउंटिंग इत्यादि में बहुत उन्नति की है।

भारतीय रेलवे में कभी 17 लाख के लगभग अधिकारी व कर्मचारी थे, जो कि अब 13 लाख से कम है। जबकि यात्री गाड़ियां व माल ढुलाई कई गुणा बढ़ चुकी है। ऐसा नई तकनीक के इंटीग्रेशन से ही सम्भव हो पाया है।

रेलवे के लिए आज के दिन भी बहुत चैलेंज है। रोडस् व रोड व्हीकलस् की गुणवत्ता भी जोरदार हो रही है। आम लोग भी लम्बी दूरी में हवाईजहाज़ से यात्रा करने लग गये है। आवश्यकता है कि रेलवे Efficiency व Economy पर और ज्यादा ध्यान दे। गाड़ियों की स्पीड बढ़ाये। हाईस्पीड की गाड़ियां इंट्रोड्यूस करें। देश की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ आम आदमी की आकांक्षाओं की पूर्ति करे।

सादर

रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 14 April 2022

14th अप्रेल 2022 बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की 131 वीं जन्म जयंती।

rpmwu448 dt. 14.04.2022

14 अप्रैल 2022: गंंभीर विषमताओं में सफलता हासिल करने वाले, शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 131 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है।

भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीखें और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करें -
शिक्षा : से व्यक्ति बहुत सम्मान पा सकता है व आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे।

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे।

5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया।

11. आरक्षित वर्ग : जीवन में उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 10 April 2022

रामनवमी और भगवान राम के जीवन से सीख

rpmwu447 dt. 10.04.2022
रामनवमी भगवान राम के जन्मदिन के अवसर पर सभी को शुभकामनाएँ। बचपन में देखते थे कि रामनवमी के दिन सभी के घरों में खीर पूआ (किसानों के पकवान) बनते थे। सभी मिलकर गांव में लहकोड देवी के मंदिर परिसर के पास भरने वाले 2 दिन के मेले के दूसरे दिन बैलगाड़ियों व घोड़ियों की दौड़ तथा कुश्ती दंगल का आनंद लेते थे।

गांवों में पहले लगभग हर वर्ष रामलीला होती थी जिसके माध्यम से भगवान राम के जीवन व उनके चरित्र का नाट्यरूपांतरण होता था। भगवान राम के नाम के आधार पर देश में करोड़ों लोगों के नाम है, जिनमें मेरा नाम भी शामिल है। भगवान राम का चरित्र दूसरों को सुखी करने के लिए स्वयं हेतु दुखद व कठोर जीवन यापन करने का पर्याय है। भगवान राम कभी नहीं चाहते थे कि लोग धार्मिक विश्वास के कारण आपस में लड़े। उनके जीवन से हमेशा नीति पर रहने व त्याग करने की शिक्षा मिलती है।

जो भी व्यक्ति भगवान राम में आस्था रखते है उन्हें चाहिए कि ऐसा जीवन जिये जिससे न केवल दूसरों को अकारण कष्ट नहीं हो बल्कि दूसरो की विपदाओं की समाप्ति हो। दूसरों की प्रसन्नता के लिए त्याग करें। दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें। 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना