Saturday 18 December 2021

बच्चे बोलते समय बातें व विचारों को फिल्टर नहीं करते है। परन्तु बड़े होने पर हम फिल्टर करना सीख जाते है और कई लोगों की सोफ्टवेयर के फिल्टर में ज्यादा अवांछनीय अवयवों के जमा हो जाने से वे परेशान हो जाते है। अत: बैलेंस करें।

rpmwu442 dt 18.12.2021

आज ट्रेन में यात्रा के दौरान मेरे कूपे में 2 यात्री अलग-अलग समय पर आये, जिनके साथ छोटे बच्चे थे। एक महत्वपूर्ण बात देखी कि बच्चों के मन में जो भी आ रहा था वे बेझिझक बोल रहे थे। तभी मेरे मन में विचार आया कि देखो जब व्यक्ति बच्चा होता है तो वह बिना कुछ सोचे समझे जो मन में आ रहा है उसे आसानी से बोलता है अपनी बात या विचारों को व्यक्त करते समय किसी प्रकार का फिल्टर नहीं लगाता। उसे जैसी भी भाषा में बात करना आता है धड़ल्ले से करता है और प्रसन्न रहता है। परंतु व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वह विचार व्यक्त करते समय अनेक प्रकार के फिल्टर लगाने के कारण बातों को बहुत ही नपे तुले तरीके से बोलता है और फिर भी उसे डर लगता है कि दूसरों को खराब तो नहीं लग जाएगा। 

जब भी हम किसी भी फिल्टर का उपयोग करते हैं एक वह कुछ अवयवों को रोक लेता है और कुछ पास होने देता है। यही बात हमारे विचारों की सॉफ्टवेयर पर भी लागू होती है। जब हम विचार करके बातों को कहने से रोक लेते है तो उनके कई सारे पहलू हमारे मस्तिष्क के फिल्टर में जमा हो जाते है। कई बार व्यक्ति कुंठा से ग्रसित हो जाता है। दूसरों को खुश करने की मंशा में वह खुद दुखी हो जाता है।  आवश्यकता से अधिक फिल्टर करने से हमारी खुद की सॉफ्टवेयर के फिल्टर में अवांछनीय अवयवों की मात्रा ज्यादा हो जाने से मानसिक तनाव व अशांति हो सकती है। अतः आवश्यकता है कि हमको चीजें कितनी फिल्टर करनी चाहिए उसका बैलेंस करें।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

परेशानियां व्यक्ति की सोच का हीट ट्रीटमेंट करती है और नुकसान होने को एमबीए की फीस समझने से व्यक्ति खराब समय में भी प्रसन्न रह सकता है।

rpmwu441 dt. 18.12.2021

परेशानियां व्यक्ति की सोच का हीट ट्रीटमेंट करती है और वह पहले से बेहतर बन जाता है। वास्तविक मददगार, जो बहुत कम होते है व अधिकांश लोग जिनकी आप बेवजह परवाह करते रहते है, का पता चल जाता है। नुकसान को एमबीए करने की फीस समझ लेना चाहिए और गलतियों से सबक लेकर उन्हें दौहराया नहीं जाये।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 14 December 2021

फूल के पेड़ों से सीखें - थोड़ा बहुत ही अनुकूलित वातावरण मिलने पर तुरंत सुंदरता बिखेकर कर मन मोहने लग जाते है।

rpmwu440 dt. 14.12.2021 

हम सभी ने देखा है की फूल के पेड़ को जैसे ही थोड़ा बहुत अनुकूल वातावरण मिलता है वे तुरंत उगकर फूल देने लग जाते है। चाहे उगने की जगह कोई उबड़ खाबड़ खेत हो, नाली हो, बिल्डिंग हो, टूटा गमला हो अथवा अच्छे खेत व गमले हो। मौका मिलत ही अच्छाईयां बिखरने लग जाते है। 

इसी से हमें सीख लेनी चाहिए कि जब भी थोड़ा बहुत अनुकूल वातावरण मिले तो हमें तुरंत अच्छे कार्य करने में समय व ऊर्जा लगानी चाहिए ताकि योग्यता व इˈफ़िश्‌न्‌सि का सभी को लाभ मिल सके।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Friday 3 December 2021

संसाधन के एफिशियेंट उपयोग के लिए ईंधन (फ्यूल) की मात्रा को बैलेंस करना आवश्यक है। रिन्यूएबल एनर्जी का ज्यादा उपयोग हो न कि पेट्रोलियम ईंधन का।

rpmwu439 dt. 03.12.2021

यातायात के हर संसाधन जैसे रोकेट, एरोप्लेन, ट्रेन, ट्रक, बस, कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर, स्कूटी इत्यादि को चलने के लिए उनमें ईंधन अर्थात फ्यूल का होना बहुत आवश्यक है। संसाधनों में ईंधन की मात्रा एक निर्धारित स्तर की तय की जाती है ताकि यातायात के साधन का एफिशियेंट उपयोग हो सके। यदि ईंधन का टेंक बहुत बड़ा बना दिया जाए तो संसाधन ज्यादा देर तक तो चल सकेगा परंतु उसमें उपयोगी स्थान को कम करना पड़ेगा। यह बात बहुत ही विचारणीय व शिक्षाप्रद है। 

जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में भी यह एकदम सटीक उतरती है। व्यक्ति का जीवन सार्थक व अर्थपुर्ण होना चाहिए। यदि वह खाने, पीने, सोने, सजने, संभरने इत्यादि में जरूरत से ज्यादा समय गंवा दे तो क्या होगा? 

विभिन्न राजनीतिक पार्टियां रिन्यूएबल एनर्जी के तौर पर विकास, समानता, अधिकार व वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने के अलावा त्वरित परिणाम देने वाले पेट्रोलियम ईंधनों की भांति धर्म, जाति, समुदाय, सम्प्रदाय, रेस, धन, शराब, डर इत्यादि का भी चुनावों के दौरान प्रयोग करती है। पेट्रोलियम ईंधनों का यदि ज्यादा उपयोग किया जाएगा तो वे तात्कालिक परिणाम तो दे देंगे परन्तु दीर्घावधि में नागरिकों की सोच में प्रदुषण के कारण देश को नुकसान ही होगा।

उपरोक्त के मद्देनजर हर समझदार नागरिक को चाहिए कि वह समझे कि कौन पेट्रोलियम ईंधनों का सोच को प्रदुषित करने के लिए सबसे ज्यादा प्रयोग कर रहा है? उनसे सावधान रहे। इसी में मानवता की भलाई है। 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 13 November 2021

फिल्टर से सीख : प्रभावी बनें

rpmwu438 dt.13.11.2021

प्रत्येक इंजन से पूर्व एयर, डीज़ल व ल्यूब ऑयल सिस्टमस्, जिनसे इंजन चलता है, में फिल्टर लगे रहते है। उनका प्रमुख कार्य क्रमशः एयर, डीज़ल व ल्यूब ऑयल में उपस्थित अवांछनीय अवयवों की इंजन में एन्ट्री को रोकना होता है। यदि फिल्टरस् ऐसा नहीं कर पाते है तो इंजन गम्भीर रूप से क्षतिग्रस्त होकर खराब हो सकता है।

इंजन के लिए जिस प्रकार फिल्टरस् का बहुत महत्व रहता है उसी तरह हर आर्गनाइजेशन के हेड के लिए विभिन्न क्षेत्रों की जिम्मेदारी निभा रहे प्राधिकारियों (अधिकारियों, मैनेजरस्, निरीक्षकों व पर्यवेक्षकों) का महत्व होता है। आर्गनाइजेशन में यदि प्राधिकारी उनके स्तर के कार्यों नहीं करें एवं उन्हें ऊपर की अथॉरिटिज् को भेजते रहे तो यह ऐसा होगा जैसे फिल्टरस् काम करना बंद कर दे। ऐसी स्थिति में ऊपर की अथॉरिटिज् के पास बेवजह कार्यभार बढ़ जायेगा और वे कम महत्व की चीजों में व्यस्त रहेंगे, जिससे आर्गनाइजेशन की एफिशियेंसी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। 

वास्तव में जरूरत है कि आर्गनाइजेशन में हर प्राधिकारी उसके रोल को सही रूप में समझे एवं उनकी जिम्मेदारियों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करें ताकि सिस्टम एफिशियेंटली काम करें। अपने स्तर पर हैंडल कर सकने वाली चीजों को आगे भेजने वाले लोग उन फिल्टरस् की तरह है जो प्रभावहीन हो चुके है। अत: अपने आप की वैल्यू करते हुए जो निर्णय हमारे स्वयं के स्तर पर हो सकते है उन्हें हमें स्वयं ही करने चाहिए। अपने आप को प्रभावी बनायें। 

Value the self and handle the things that are to be dealt at our own level. Do not create impression that people brand you as "unloadable". 

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 9 November 2021

योग्यताओं का उपयोग करें अन्यथा आप ऐसा नहीं करने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।

rpmwu437 dt 09.11.2021

व्यक्ति को स्वयं की योग्यताओं को भरपूर उपयोग में लेना चाहिए अन्यथा उनका कोई महत्व नहीं है। जो लोग योग्यताओं का सही चीजों में उपयोग नहीं करते है वे स्वयं, समाज, देश व संसार सभी का नुकसान करते है।

आज अनेकों महत्वपूर्ण चीजें जैसे बिजली, पेट्रोलियम तेल, मोटर वाहन, कम्प्यूटर, मोबाइल, सेटेलाईट, इंटेरनेट, वैक्सीनस्, मैडिकल इक्यूपमेंटस् इत्यादि की खोज विदेशों में हुई है और हम उनका उपभोग कर रहे है। हमें भी चाहिए कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करें और नई तकनीक ईजाद करे। 

व्यक्ति उसकी योग्यताओं व कौशल को बढ़ा भी सकता है। परन्तु लोग नासमझी व अंधविश्वासों के कारण ऐसा नहीं करते है और अपने आप को जीवन भर अयोग्य मान बैठते है। विचार करके व मेहनत से हर कोई अपने आप को योग्य बना सकता है और योग्यता का उपयोग कर सकता है।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 27 October 2021

किसान व उपभोक्ता दोनों का दोहन - हम सभी पर बोझ। आखिर कौन करेगा ईलाज?

rpmwu436 dt. 27.10.2021

#UrgentAction देश में किसान या अन्य चीजों के उत्पादकों व उपभोक्ता दोनों के बीच रेटस् का भारी डिफरेंस उत्पन्न करने वाले मुख्य रूप से "ट्रेडर्स" ही है। ट्रेडर्स उत्पाद की वास्तविक गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं करते है। ट्रेडर्स उत्पाद की भिन्न भिन्न मात्राओं में अच्छी पैकेजिंग करते है और जगह जगह उत्पाद को उपलब्ध करवाते है। उनका काम भी महत्वपूर्ण है परन्तु उनके द्वारा किसान या उत्पादक एवं उपभोक्ता के बीच दरों में किया गया अंतर सामान्यतः बहुत भारी हो जाता है।

उक्त कथन को एक साधारण उदाहरण के माध्यम से हम आसानी से समझ सकते है। जब कोई किसान बाजार में टमाटर या भिंडी या मटर या प्याज या आलू या अन्य कोई सब्जी बेचने जाता है तो जैसे ही आढ़तियां उनके सामान पर हाथ लगाते है तो वे उनके केवल उनके प्रॉफिट मार्जिन को किसान को मिली कुल कीमत से ज्यादा कर लेते है। किसान को मिलने वाली कीमत में फसल को तैयार करने अर्थात जोतने, बोने, बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई, रखवाली, मजदूरी, ट्रांसपोर्ट का कुल खर्चा भी शामिल होता है जबकि सामान्यतः आढ़तियों का खर्चा दुकान का बिजली का बिल व स्टाफ की सैलरी रहते है। आढ़तियां के पश्चात सब्जी, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं व कॉलोनियों में ठेले वालों के माध्यम से उपभोक्ताओं को पहुंचती है और हर स्तर पर उसमें रेट का इजाफा होता रहता है। 

दवाईयों के मामले में तो ट्रेडर्स का मार्जिन भयंकर है एवं देश के अनेक नागरिक तो दवाईयों की कृत्रिम रूप से बढ़ी हुई कीमतों के कारण ईलाज ही नहीं करवा पाते है और परेशान होते रहते है व मर भी जाते है। 

अब हम उत्पादक या किसान एवं उपभोक्ता दोनों की नजरों से चीजों को देखें तो हमें पता चलता है कि कमाई तो ट्रेडर्स ही कर रहे है। 

इस स्थिति से निपटने के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक व सरकारी स्तरों पर ठोस कार्यवाही की जरूरत है जैसे -

1. सब्जीमंडियों व कृषिमंड़ियों में आढ़तियों की दादागीरी को कम करने हेतु किये जा रहे प्रयासों का समर्थन करें।

2. किसान परिवारों से आने वाले पढ़े-लिखे युवाओं को समझने की आवश्यकता है कि खेती करने या सब्जी उगाने से ज्यादा प्रॉफिट मार्जिन उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने में है अतः खेत से ग्राहक तक सामान पहुंचाने के समस्त कार्यों में आगे आए।

3. दवाइयों की एमआरपी निर्धारित करते समय और गंभीर नियंत्रण की आवश्यकता है ताकि दवाइयों के एमआरपी सही निर्धारित हो।

4. सब्जी मंडियों में भी आढ़तियों के मार्जिन को निर्धारित कर दिया जाना चाहिए।

5. सरकार की इस सम्बन्ध में बनाई गई नीतियों का लाभ लें। किसान रेल में किराये में 50% की छूट का लाभ ले और उत्पाद को सही दर पर बेचने का प्रयास करें।

सादर 

रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 24 October 2021

व्यक्ति के शरीर व सोच_विचारों पर स्वयं का कितना नियंत्रण होता है? वह क्या बेहतर कर सकता है? सभी को यह समझने की जरूरत है। धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर भेदभाव नहीं करें।

rpmwu435 dt. 24.10.2021

Life_lesson व्यक्ति का किसी धर्म, जाति, समुदाय, रेस, गरीब, अमीर, देश या भौगोलिक स्थिति में जन्म लेना एक नेचुरल प्रक्रिया है। इस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है।

व्यक्ति की हार्डवेयर (शारीरिक बनावट व संरचना) उसके माँ बाप के जीन्स, उनकी हेल्थ, रेस व भौगोलिक स्थिति पर विशेष रूप से निर्भर करती है। 

व्यक्ति की सोफ्टवेयर (सोच व विचार) उसके बचपन के दौरान पालन पोषण के वातावरण, धर्म, जाति, समुदाय की परंपराओं से बेहद प्रभावित होती है। जैसे माहौल में वह बड़ा होता है वैसा ही बन जाता है। इस प्रकार सोच व विचारों के विकसित होने में भी उसका स्वयं का कोई खास योगदान नहीं रहता है।

और बेहतर तरीके से समझने के लिए एक उदाहरण लेते है कि यदि जन्म लेने के पश्चात 2 बच्चे अस्पताल में आपस में बदल जाते है तो क्या होता है? पहला बच्चा मान लीजिए हिंदू दंपत्ति का है और दूसरा बच्चा मुसलमान दंपत्ति का है। जब वे बड़े होते हैं तो उनके #शरीर तो उनके मां-बाप के डीएनए पर निर्भर करेगा परंतु उनके सोच_विचार उनके बड़े होने पर जो पालन-पोषण हुआ है उसके वातावरण पर के अनुसार विकसित होंगे। जो बच्चा बायलॉजी हिंदू दंपत्ति का है वह अल्लाह अल्लाह कहेेगा और जो बच्चा मुस्लिम दंपत्ति है वह राम-राम कहनेे लगेगा।

उक्त से स्पष्ट है कि व्यक्ति का स्वयं का उसकी शारीरिक संरचना एवं सोच विचारों पर बहुत विशेष नियंत्रण नहीं है। हालांकि व्यक्ति बड़े होने पर स्वयं भी कुछ हद तक सही खानपान, संयम, योगा व जिम से हार्डवेयर यानि शरीर की देखभाल कर सकता है। इसी प्रकार शिक्षा व अच्छे लोगों की संगत और आत्ममंथन से व्यक्ति अपनी सोफ्टवेयर यानि सोच व विचारों को तर्कसंगत बना सकता है।

आज आवश्यकता है कि देश का हर नागरिक इस बात को समझे कि साधारणतया व्यक्ति के सोच विचारों पर उसका बहुत ज्यादा नियंत्रण नहीं रहा है वे उसके पालन-पोषण के दौरान जो वातावरण मिला है उससे विकसित हुए है। अतः किसी धर्म, जाति, समुदाय या मान्यताओं को मानने वाले व्यक्ति के विरुद्ध बहुत खराब या अच्छा सोचने का निर्णय करने से पहले उक्त पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जरूरत है कि वयस्क होने पर सभी नागरिक तर्कसंगत सोच (सोफ्टवेयर) विकसित करें और सभी के कल्याण और उन्नति की कामना करें। बेवजह धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर एक दूसरे को ऊंचा नीचा या अच्छा बुरा नहीं समझे।


सादर 

रघुवीर प्रसाद मीना 

Friday 22 October 2021

वैल्यू (Value)

rpmwu434 dt. 22.10.2021

What is the value of a pen? The straight answer is that the pen should be able to write otherwise it is useless. पेन की वैल्यू क्या है? इसका साधारण जबाव है कि पेन लिखने योग्य हो। जो पेन लिख नहीं सके, वह बेकार है चाहे वह कितना भी सुन्दर या महंगा व अन्य गुणों से युक्त हो। 

उक्त छोटी सी बात से जीवन की बड़ी से बड़ी आकांक्षा का सही जवाब मिलने में दिशा मिल सकती है। यदि किसी व्यक्ति से आपको मदद की बहुत उम्मीद है और वह योग्य व सही स्थिति में होने के बावजूद भी आपकी मदद नहीं करता है तो आपके लिए उसकी कोई वैल्यू नहीं है। ऐसा व्यक्ति आपके लिए उस पेन के समान है जो लिख नहीं सकता है। वह आपके लिए असेट नहीं लायबिलिटी है। 

इसी प्रकार जो लोग उनके आर्गनाइजेशन के लिए सकारात्मकता से काम नहीं करें वे भी बिना लिख सकने वाले पेन के समान है। 

जो पेन लिख नहीं सकते है उन्हें ज्यादा संख्या में इकट्ठा करने में कोई समझदारी नहीं है। अत: जो लोग समय पड़ने पर काम नहीं आये उनको नहीं लिख सकने वाला पेन समझे और तदनुसार ही उनसे दूर रहने में भलाई है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

व्यक्ति की पर्सनालिटी को पहचानने का साधारण परन्तु महत्वपूर्ण टेस्ट।

rpmwu433 dt. 22.10.2021

साधारणतया यदि कोई व्यक्ति उसकी ड्यूटी के प्रति कर्तव्यनिष्ठ नहीं है तो उसका व्यक्तित्व सही नहीं हो सकता है। बिना काम किये सैलेरी व भत्ते लेना या अधिनस्थों को लेने देना, इनडायरेक्ट रूप से करप्शन है। ऐसे लोग दूसरे हर क्षेत्र में गलत कार्य कर सकते है। 

इस साधारण टेस्ट के माध्यम से लोगों को आसानी से परखा जा सकता है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Thursday 21 October 2021

सही व्यक्ति : गलत व्यक्ति (RIGHT PERSON : WRONG PERSON)

rpmwu432 dt. 21.10.2021

सामान्यतः व्यक्तियों को धर्म, जाति, समुदाय व रेस इत्यादि के आधार पर विभक्त किया जाता है। जोकि सर्वदा सही नहीं है। क्योंकि किसी भी धर्म, जाति, समुदाय व रेस के सभी व्यक्ति एवं उनकी विचारधारा एक समान नहीं होती है। कुछ लोग स्वयं के धर्म, जाति, समुदाय व रेस के प्रति बहुत कट्टर होते है एवं दूसरे धर्म, जाति, समुदाय व रेस के लोगों को अच्छा नहीं मानते या कुछ लोग तो उन्हें खराब ही मानते है। जबकि अनेक लोग ऐसे भी होते है जो दूसरे धर्म, जाति, समुदाय व रेस के लोगों को सम्मान की नजर से देखते है और उनके प्रति अच्छा भाव रखते है। 

वास्तव में यदि मनुष्यों का विभक्तिकरण किया जाए तो वह दो ही प्रकार के है सही सोच वाले व्यक्ति (PERSONS HAVING RIGHT THINKING) अथवा गलत सोच वाले व्यक्ति (PERSONS HAVING WRONG THINKING)।

सभी को समझना चाहिए कि व्यक्ति विशेष की सोच व विचारधारा (सॉफ्टवेयर) उसके बचपन के पालन पोषण एवं आसपास के वातावरण के अनुसार ही विकसित होती है। जो जैसी परिस्थितियों एवं धर्म, जाति, समुदाय या रेस में पैदा होता है और बड़ा होता है, तदनुसार ही उसकी सोच विकसित हो जाती है। यदि पैदा होते वक्त अस्पताल में बच्चे एक दूसरे से धर्म के आधार पर बदल जाये तो बड़े होने पर उनकी सोच व विचारधारा (सोफ्टवेयर) उनके वास्तविक माँ बाप जैसी नहीं होकर पालन पोषण करने वाले माँ बाप व आसपास के वातावरण और माहौल के अनुसार होगी। बचपन के माहौल व वातावरण के ऊपर व्यक्ति का नियंत्रण लगभग नगण्य होता है। परन्तु बड़े होने पर हर मनुष्य यदि चाहे तो सही समझ विकसित कर सकता है। विचार कर सकता है कि क्या सही है क्या गलत है? सरकार ने वोट देने की आयु 18 वर्ष इसीलिए निर्धारित की हुई है ताकि व्यक्ति सही गलत में फर्क कर सके। 

जो व्यक्ति बड़े होने पर भी सही व गलत में अन्तर नहीं करते है वे लोग या तो मंदबुद्धि होते है या स्वार्थी।

वृहद् रूप में सही व्यक्ति व गलत व्यक्ति की निम्नलिखित परिभाषा हो सकती है  : 

सही व्यक्ति : स्वयं की मान्यताओं के साथ दूसरों की भावनाओं व मान्यताओं का आदर करेेंं। स्वयं के साथ दूूूसरों के कल्याण व सुख शांति की कामना करेें। धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर भेदभाव नहीं करेें। वैज्ञानिक सोच विकसित कर, स्वयं को योग्य बनाये व योग्यता का जनहित में उपयोग करें।

गलत व्यक्ति : धार्मिक रूप से कट्टर हो, धर्म की बातों पर दूसरों को क्षति पहुँचाने में उतारू हो। धर्म, जाति, समुदाय या रेस के आधार पर अपने आप को ऊँचा समझता हो व दूसरों के साथ भेदभाव करेें। रूढ़िवादी दकियानूसी सोच रखता हो। स्वार्थ के लिए जनहित या दूसरों का नुकसान करने की मंशा रखता हो। दूसरों की बिना परवाह किये, स्वयं के कल्याण की ही सोचता हो। 

निर्धारण सभी को स्वयं को ही करना है कि वह सही व्यक्ति है अथवा गलत। यदि गलत है तो अपनी सॉफ्टवेयर को ठीक करके उचित राह पर चलकर सही व्यक्ति बनें। 


सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 










Wednesday 20 October 2021

क्या मनुष्य भगवान का संरक्षक है?

rpmwu431 dt. 20.10.2021

अभी हाल ही में पंजाब व बंग्लादेश में तथाकथित धार्मिक भावनाओं से आहत अनुयायियों ने अपने आप को गुरुग्रंथ साहिब व अल्लाह का संरक्षक बनकर गंभीर हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया है जिसमें लोगों की नृशंस हत्या की गई एवं सम्पत्ति को भारी नुकसान भी पहुंचाया गया है। 

यह समझना जरूरी है कि भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु जिन्हें सर्वशक्तिमान कहा जाता है, अनुयायियों के संरक्षक है या अनुयायी, भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के संरक्षक है? जैसे जब किसी छोटे बच्चे को कोई कुछ कह देता है या पीट देता है या कोई नुकसान कर देता है तो उसके पेरेंट्स या अभिभावक उसके लिए जाकर लड़ने लग जाते है। भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु यदि करूणा और दया का अभिप्राय है एवं सर्वशक्तिमान है तो उसके लिए दूसरों को लड़ने की जरूरत क्या है? क्यों लोग धार्मिक बातों पर दूसरों को जान से तक मार देते है? आखिर माजरा क्या है? 

हर बार बहाना होता है कि किसी व्यक्ति ने भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के बारे में कुछ अप्रिय कह दिया है या धार्मिक रीीतिरिवाजों कीी  निंदा कर दी है या उनके बारे में कुछ ऐसी बात बोल दी जो कि उनको मानने वालों को खराब लगी। ऐसे होने पर अनुयायी जिस व्यक्ति ने इस प्रकार की बात कही उसके विरुद्ध गंभीर दर्दनाक घटना घटित कर देते है। कहीं-कहीं तो व्यक्ति को जान से भी मार दिया जाता है और कुछ केसों में ना केवल उस व्यक्ति को अपितु उसके घरवालोंं एवं जानने वालों को भी जानमाल व संपत्ति का भारी नुकसान पहुंचा दिया जाता है। 

आखिर इसका क्या मतलब है? यदि भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु है और वह बहुत पावरफुल है तो वह खुद ही उसके विरुद्ध कहने वाले पर कार्रवाई कर देगा। परंतु ऐसा लगता है कि जो लोग अनुयायी है उनको उनके भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु पर भरोसा नहीं है और वे स्वयं ही भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के संरक्षक का काम करने लग जाते है और तथाकथित दोषी समझे जाने वाले व्यक्ति को सजा देने का गैरकानूनी कृत्य कर देते है। 

इसे गहराई से समझना होगा कि आखिर संरक्षक है कौन? क्या अनुयायी, भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु के संरक्षक है या भगवान/अल्लाह/गाॅड/गुरु उन अनुयायियों का संरक्षक है? वास्तव में विचार करें तो पता चलता है कि धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण के कारण जो धार्मिक कट्टरता है उसकी वजह से संसार में जितनी हिंसा हो रही है उससे अधिक और किसी भी वजह से नहीं होती है। अतः आवश्यकता है की लोगों की मानसिकता और विचारधारा को ही सही किया जाए। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर के अलावा सामाजिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ठोस कार्यवाही होनी चाहिए। जिस प्रकार हम क्लाइमेट चेंज को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ तक भी इस विषय में अनेकों कार्यक्रम व विचार संगोष्ठी करवाता है ताकि क्लाइमेट को खराब करने वाले पहलुओं और गतिविधियों पर अंकुश लग सके। उसी तर्ज पर आवश्यकता है कि व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय, सरकारी व गैरसरकारी स्तरों पर कट्टरता फैलाने वाले धार्मिक संगठनों व व्यक्तियों को चिन्हित किया जाए और उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि सामान्य गतिविधियों में से कट्टरता दूर हो जाये और सभी धर्मों के लोग धर्मांधता को समाप्त करके आपस में भाईचारे के साथ अहिंसात्मक तरीके से रह सके और एक दूसरे की उन्नति में सहयोग करें।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 9 October 2021

वित्तीय औचित्य के सिद्धांत

rpmwu430 dt. 09.10.2021
वित्तीय_औचित्य_के_सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सार्वजनिक धन से किए गए व्यय के संबंध में उसी सतर्कता का प्रयोग करेगा जैसा कि एक सामान्य विवेक वाला व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के संबंध में करता है।

सामान्य व्यक्ति जब पेन खरीदने जैसा छोटा खर्चा करता है तब भी वह पेन को खोलकर व चलाकर और उसकी सही सलामती देखता है और यदि एक दो दिन में खराबी आ जाये तो वह उसे बदलवाने का प्रयास करता है। अमूमन साधारण कार्य के लिए वह बहुत मंहगा पेन नहीं खरीदता है।

इसी तर्ज पर हर सरकारी व्यक्ति को चाहिए कि -
1. केवल_आवश्यकता होने पर ही चीजों को खरीदने का प्रस्ताव बनायें।

2. स्पेशिफिकेशन ऐसे बनाये जिसके लिए ज्यादा लोग पार्टीशिपेट कर सके।

3. खरीद या टेंडर फाईनल करते समय रेट_रिजनेबलिटी की सही जांच करें। इंटरनेट के समय यह आसान हो गया है। दूसरी जगह के कितने भी आॅर्डर रिजनेबलिटी के ठोस बैसिस नहीं हो सकते है।

4. CAMC_AMC के आर्डरस् में रेट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। काॅन्ट्रेक्ट के चलने पर पुन : देखते रहे कि फर्म की मेनपावर व मैटेरियल की कोस्ट काॅन्ट्रेक्ट की दर की तुलना में कैसी है? ताकि जरूरत लगने पर सुधारात्मक कार्यवाही की जा सके।

5. जो चीजें जल्दी खराब हो उनके लिए वारंटी क्लेम जरूर करें। ऐसा करने से फर्म उसके प्रोडक्ट की गुणवत्ता में जहां एक ओर सुधार करेगी वहीं बिना लागत का रिप्लेसमेंट मिल जायेगा।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 6 October 2021

Diesel and Electrical Traction

rpmwu429 dt. 06.10.2021

Some important facts about HSD Oil Consumption and Traction Electricity for the understanding of all:

1. Rail technology is 6 times more fuel efficient than the road, our diesel locos consumes 1/6 quantity of HSD Oil as compared to road transport in carrying 1000 GTKM. I have personally calculated these figures. 

2. Railways consume only about 2.25% of HSD Oil of the national consumption of Diesel and Petrol put together. 

3. About 58.42% of our expenditure on HSD Oil goes back to the government in the form of Excise Duty, VAT and Green Cess. In 17 months from April 2020 to August 2021, SWR has paid back to the government ₹1009 Cr in the form of these taxes from the billed amount of ₹1727 Cr on purchase of HSD Oil, only ₹718 Cr (41.58%) has been our real expenditure. 

4. Figures of 2019-20, India had net 13.11 Lakh GWh electricity for supply to consumers. Rail Transport used only 19,577 GWh i.e. merely 1.52%.

5. 64.86% of the coal is used to generate electricity in the nation.

6. Railways monitor efficiency by means of SFC (Specific Fuel Consumption) for diesel traction and SEC (Specific Energy Consumption) for electrical traction. It is quantity of diesel in litres or electricity in units consumed for transportation of 1000 GTKM. 

Over SWR, the SFC for Goods is 2.52 Litres/1000 GTKM which is about ₹ 227.5 in terms of money, if taxes are excluded then this is about ₹ 95.

On the other hand, SEC is about 15 Units per 1000 GTKM which is about ₹120 considering average price of purchase of electricity @ ₹8 per unit. However these figures of SEC and cost of purchase of electricity may further be refined.

Regards
Raghuveer Prasad Meena 

Sunday 22 August 2021

रक्षाबंधन व हमारे कर्तव्य।

           rpmwu428 dt. 22.08.2021

#HappyRakshaBandhan
सभी को रक्षा बंधन के पर्व पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहने भाईयों को राखी बांधकर उनके मंगल एवं दीर्घायु की कामना करती है। भाई इस अवसर पर बहनों को उपहार देते है।

हमारी संस्कृति में कहने को तो बहनों को बराबरी का दर्जा था। जबकि वास्तविकता में ऐसा था नहीं। पहले तो लड़कियों पढ़ाया ही नहीं जाता था, अभाव के कारण खानपान में भी भेदभाव हुआ करता था और छोटी उम्र में शादी कर दी जाती थी। परन्तु अब निश्चित रूप से बालिकाओं की पढ़ाई, खानपान में भेदभाव एवं उनके हकों व अधिकारों में सुधार हुआ है। लड़के लड़की में भेद करना समाप्त तो नहीं कम जरुर हुआ है। चीजें लगातार सुधर रही है। यह प्रसन्नता की बात है।

बहनें बड़ी होकर माँ बनती है, बच्चों को जन्म देती है और वे बच्चे हमारे देश के नागरिक बनते है। माँ व बच्चे दोनों का स्वस्थ होना बेहद जरूरी है। परन्तु संलग्न अखबार की रिपोर्ट से देख सकते है कि वास्तविकता क्या है? हमारे देश में महिलाएं की बड़ी संख्या एनेमिक (खून की कमी वाली) है। विटामिन डी की कमी है। कैल्शियम की कमी से ग्रसित रहती है। ऐसे में उन्हें स्वयं व बच्चे दोनों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर हमें निश्चय करना चाहिए कि -
1. अपनी बहन के समान ही दूसरे सभी की बहनें है। उनका सम्मान करें।
2. लड़कियों के शरीर की बनावट लड़कों के शरीर की बनावट से बहुत भिन्न होती है। बड़ी होने पर प्रत्येक माह उनमें खून की क्षति होती है। शादी के पश्चात गर्भ धारण होने के उपरांत बच्चा 9 माह तक गर्भ में ही पलता है। जन्म के बाद माँ बच्चे को स्तनपान करवाती है। अत: बचपन से ही लड़कियों की सेहत पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
3. माँ बाप को लड़के व लड़की में भेदभाव नहीं करना चाहिए। यदि करें को लड़की के पक्ष में ही करें क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर मानवता की कड़ी को आगे बढ़ाने में माँ के रूप में लड़कियों की ही ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
4. धार्मिक विश्वास का दुरुपयोग करके महिलाओं पर प्रतिबंध लगाना जायज नहीं है। यदि गलत रीति रिवाज है तो उनको बदल देने की जरूरत है।
5. लडकियों को स्वयं को भी उनके अस्तित्व व स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। एक दूसरे की मदद करें। नाजुकता की सोच से बाहर आये, अच्छा खायें, स्वास्थ्य पर ध्यान दे। पढ़ाई करें और आगे बढ़े।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Friday 20 August 2021

महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिए सभी को सकारात्मक पहल करने की जरूरत है।

rpmwu427 dt. 20.08.2021

#rightsofwomen 

#Software की जीवन में अति महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। तालिबान के लोगों की हार्डवेयर (शारीरिक बनावट) सामान्यतः जोरदार रहती है। परन्तु उनके दिमाग की सोफ्टवेयर, धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण #DAP के कारण वायरसों से भयंकर रूप से ग्रसित है। #DAP व बचपन के परवरिश के माहौल की वजह से हर धर्म में बहुत सारे लोगों के मष्तिष्क की सोफ्टवेयर अलग तरह की विकसित हो जाती है। उस धर्म विशेष के लोगों की ही ज्यादा जिम्मेदारी बनती है कि वे देखें कि उनकी जनरेशनस् किस दिशा में जा रही है? कब तक पुरानी रुढ़िवादी रीति रिवाजों को ढ़ोते रहना है? समयानुसार बदलाव करना जरूरी है, नहीं तो चीजें जड़ हो जायेगी। 


अनेकों देशों में पहले महिलाओं को वोट देने एवं पढ़ने का अधिकार नहीं होता था, जिसे समय के अनुसार बदल दिया गया और महिलाओं को वोट देने और पढ़ने का बराबर का अधिकार प्रदान कर दिया है। इसी प्रकार महिलाओं के श्रम का वेतन पुरुषों की तुलना में कम होता था, सरकारें इस ओर भी लगातार प्रयासरत है कि महिलाओं को बराबर वेतन मिले। सरकार में बराबर भागीदारी के बारे में भी विचार किया जा रहा है। 


हिन्दू धर्म में महिलाओं के लिए पूर्व में सती प्रथा, विधवाओं के केश मुंडन, विधवाओं द्वारा पुन:विवाह नहीं करना, महिलाओं को पढ़ने नहीं देना, कम उम्र में माँ बनना, देवदासी बनना जैसी विकृतियां थी, जिन्हें समय के साथ बदल दिया गया और रीति रिवाजों को सही कर लिया गया है।


संसार में हर व्यक्ति की माँ महिला ही होती है। वह महिला के गर्भ से ही जन्म लेता है। उसकी बहने, उसकी पत्नी व उसकी बेटियां भी महिलाएं होती है। फिर भी यदि #DAP के कारण महिलाओं के साथ अत्याचार करें तो यह कैसी अमानवीय सोच है? यदि ऐसा धार्मिक मान्यताओं या रूढ़िवादी रीति-रिवाजों की वजह से हो रहा है तो उन मान्यताओं व रीति-रिवाजों को बदल देने की आवश्यकता है। आखिरकार कब तक पुराने ढ़र्रे पर चलकर पुरूष उसके स्वार्थ हेतु महिलाओं के साथ अत्याचार करता रहेगा?


आवश्यकता है कि जिस भी धर्म या समुदाय में महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है उसके प्रबुद्धजनों को आगे आकर  समाज में लोगों की विचारधारा को बदलने हेतु ठोस व बोल्ड पहल करनी होगी।


दूसरे सभी समझदार पुरूषों व महिलाओं और मीडिया तथा सरकारों एवं संगठनों/संस्थाओं को भी इस विषय में महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचारों से निजात दिलाने में हरसंभव  सहयोग करने की आवश्यकता है।


सादर

रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 17 August 2021

सामाजिक तौर पर ईमानदार (Socially Honest) बनने की जरूरत है।

rpmwu427 dt. 17.08.2021
#socialcorruption हमारे देश में आर्थिक भ्रष्टाचार (financial corruption) से कहीं ज्यादा सामाजिक भ्रष्टाचार (social corruption) है। अधिकांश लोग दोगले (hypocrite) है। कहते कुछ है और करते कुछ और ही है। कथनी व करनी में बड़ा अन्तर रहता है। मुंह पर कुछ बात करते है और पीठ पीछे कुछ और। ऐसे लोग समाज व देश की उन्नति में बड़ी बाधा है।

दोगले लोगों के साथ जो लोग जाति, धर्म, समुदाय व विचारधारा के आधार पर भेदभाव करते है, दूसरों को तंग करते है, उन सभी को सामाजिक भ्रष्ट (#socially_corrupt) लोगों की संज्ञा दी जा सकती है। उनके दिमाग के सोफ्टवेयर में वायरस है।

यदि वास्तव में हम देश की उन्नति चाहते है तो हमें #socially_honest होना पड़ेगा। Hypocrisy छोड़नी होगी। सही बात को स्पष्ट कहने का साहस जागृत करना होगा। आवश्यकता है कि जाति, धर्म, समुदाय व विचारधारा के आधार दूसरों के प्रति दुर्भावना नहीं रखें, सभी के प्रति सुविचार एवं सद्भावना रखें।

यह बात विचारणीय है कि एक तो व्यक्ति का जन्म उसके हाथ में नहीं है। और उससे भी बड़ी बात यह है कि जन्म लेने के पश्चात यदि किसी बच्चे की दूसरे धर्म या जाति या समुदाय के बच्चे के साथ अदला-बदली हो जाये तो बड़े होने पर उसके मष्तिष्क की सोफ्टवेयर उसके बचपन के पालन पोषण व सामाजिक माहौल के आधार पर विकसित होती है, उस पर भी उसका कोई नियंत्रण नहीं है। फिर क्यों बेवजह व्यक्ति को दूसरों के विरूध्द जाति, धर्म, समुदाय व विचारधारा के आधार दुर्भावना रखनी चाहिए?

आवश्यकता है कि सभी उक्त वस्तुस्थिति को समझे व #socially_honest बने।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 15 August 2021

75 वां स्वतंत्रता दिवस : 15 अगस्त 2021

rpmwu426 dt. 15.08.2021

आज दिनांक 15 अगस्त 2021 को हम सभी हमारे प्रिय राष्ट का 75 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। इस अवसर पर सभी देश वासियों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

देश की आजादी का इतिहास सभी ने पढ़ा है। उससे हम समझ सकते है कि देश को आजाद कराने में हमारे महापुरुषों ने कितना बलिदान दिया है। देश को आजाद कराने का प्रमुख उद्देश्य, जहां तक मैं समझता हूं, रहा है कि भारत का हर नागरिक स्वतंत्र हो जाए और पराधीनता उसके नजदीक नहीं रहे। वह एक खुशहाल नागरिक का जीवन यापन कर सके। इसी के साथ देश के संसाधनों का दोहन नहीं हो एवं वे हमारे देश के नागरिकों के ही काम आये।

आजादी के बाद देश के हर तबके के नागरिकों की लगभग सभी स्थितियों में वास्तव में सुधार हुआ है। देश में सुविधाएं विकसित हुई है। संसाधन देश के ही काम आये है। जनसंख्या की दृष्टि से हमारा देश संसार में दूसरे स्थान पर है एवं जीडीपी (पर्चेजिंग पावर पैरिटी) के मुताबिक हम तीसरे स्थान पर है। हालांकि जनसंख्या ज्यादा होने के कारण प्रति व्यक्ति आय में हम दूसरे देशों की तुलना में बहुत पीछे है।

अच्छी चीजों के साथ वर्ष 2021 में भी देश में अनेकों नागरिकों की दशा दयनीय बनी हुई है। सरकार के लगातार प्रयासों के साथ हम सभी को भी चाहिए कि व्यक्तिगत एवं सामूहिक तौर पर देश के सभी नागरिकों की स्थिति को बेहतर बनाने में सहयोग करें।

हम सभी को चाहिए कि -
1. राष्ट हित को धर्म, जाति व समुदाय से ऊपर दर्जा दे। देश के संसाधनों की बर्बादी रोके। बड़े पद पर पहुंचकर तो कम से कम दोगलापन (hypocrisy) नहीं रखे। अपने विचार स्पष्ट रखे और अच्छे व्यवहार से दूसरों को प्रभावित करे। स्वयं देश के लिए असेट बने न कि लायबिलिटी। 
2. अपने कार्य को ईमानदारी व अच्छी गुणवत्ता के साथ सम्पादित करें। अपनी स्किलस् को विकसित करते रहे।
3. अपने कार्य को करते समय मन में विचार रखे कि क्या मेरे द्वारा किये जा रहे कार्य से देश में अंतिम पंक्ति के नागरिक को लाभ मिलेगा? अर्थात् अंत्योदय की भावना विकसित करें। 
4. सामाजिक समरसता बहुत महत्वपूर्ण है। देश के हर धर्म, जाति, समुदाय, भाषा, प्रदेश, वर्ग के नागरिकों के साथ समभाव रखने का प्रयास करें। बेवजह दूसरों के विरूध्द पहले से ही खराब भाव नहीं रखे। मन में भावना रखें कि व्यक्ति, है तो हमारे ही देश का, हमारा ही भाई है। व्यक्ति जहाँ जन्म लेता है वहां की परिस्थितियों के अनुसार ही उसकी सोफ्टवेयर विकसित हो जाती है। अतः नकारात्मक भाव आने पर हमेशा अपने आप को दूसरों की स्थिति में रखकर विचार करें। मष्तिष्क में वायरस नहीं पनपने दे। 
5. मानवता तो यह है कि हर ताकतवर, कमजोर की, बुद्धिमान, कम ज्ञानवान की तथा अमीर, गरीब की सहायता करें। उन्हें ऊपर उठायें। उनके जीवन को बेहतर करना ही मनुष्यता है।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Thursday 12 August 2021

व्यक्तित्व : मधुमक्खी की तरह सकारात्मक या मख्खी की भांति नकारात्मक।

rpmwu425 dt. 12.08.2021

 
Life_lesson      honeybee_or_fly
बहुत ही जोरदार सीख वाला वीडियो है, अवश्य देखें और बताई गई बात को गहराई से समझें। वीडियो में बताया गया है कि व्यक्ति उसकी सोच को मधुमक्खी की तरह अथवा मक्खी की तरह विकसित कर सकता है।

यदि आप मधुमक्खी को देखें तो पता चलता है कि मधुमक्खी हमेशा कैसी भी खराब जगह हो उसमें फूल से शहद बनाने के लिए नेक्टर एकत्रित करती है जबकि मक्खी कितनी भी साफ सुथरी अच्छी जगह हो उसमें भी गंदगी पर ही जाकर बैठती है।

इसी प्रकार से कह सकते हैं कि सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति खराब से खराब जगह/चीज/परिस्थिति/लोगों में भी सकारात्मकता ढूंढ लेते है। जबकि नकारात्मक सोच वाले लोग अच्छी से अच्छी जगह/चीज/परिस्थिति/व्यक्ति में नकारात्मकता पर ध्यान देते है। अतः अपनी सोच को मधुमक्खी की भांति सकारात्मक बनाए ना की मक्खी की तरह नकारात्मक।

अच्छी सोच, व्यक्ति के स्वयं के लिए तथा परिवारजनों, रिश्तेदारों, दोस्तों, समाज, गांव, शहर, प्रदेश व देश सभी के लिए बेहद लाभकारी है।
#focus_on_your_attitude 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 9 August 2021

9 अगस्त 2021 : अंतरराष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस







rpmwu424 dated 09.08.2021

#9_अगस्त_2021 आज अंतरराष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस है। संसार में हर जगह आदिवासी/स्वदेशी लोग (indigenous people) उनके भूभाग पर खुशी से रहते थे परन्तु परन्तु उनके सीधेपन और बाहर से आये लोगों के द्वारा उनके साथ किये गये अमानवीय अत्याचार व शोषण के फलस्वरूप आज उनकी स्थिति अन्य सामान्य जनों से बेहद खराब है।

आज दुनिया भर के 90 देशों में लगभग 476.6 मिलियन (47.66 करोड़) स्वदेशी लोगों के 5000 समुदाय हैं। वर्तमान में बोली जाने वाली कुल 7,000 भाषाओं में से 4,000 से अधिक भाषाएँ स्वदेशी लोगों द्वारा बोली जाती हैं। यद्यपि वे वैश्विक जनसंख्या का 6.2 प्रतिशत हिस्सा हैं, लेकिन वे विश्व की लगभग 15 प्रतिशत से भी ज्यादा अत्यधिक गरीब जनसंख्या हैं। इंडिजेनस लोगों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) दुनिया भर में गैर-स्वदेशी लोगों की जीवन प्रत्याशा की तुलना में 20 वर्ष कम है। स्वदेशी लोग दुनिया की सतह क्षेत्र के एक चौथाई (1/4th , 25%) हिस्से पर रहते हैं परन्तु वे दुनिया की 80 % बची हुई जैव विविधता की रक्षा करते हैं। 

हमारे देश भारत में संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत 705 समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित है जिनकी वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 10.43 करोड़ (8.62 %) है। 

विश्व पटल पर #संयुक्त_राष्ट्र_संघ एवं #वर्ल्ड_बैंक जैसी संस्थाओं के माध्यम से इंडिजेनस पीपुल्स के उत्थान के लिए लगातार प्रयत्न किए जा रहे है। इंडिजेनस पीपुल्स के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रोटेक्शन की समीक्षा एवं विचार विमर्शों के लिए हर वर्ष 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) के रूप में संसार के विभिन्न देशों में सेलिब्रेट किया जाने लगा है। इससे संसार के विभिन्न इंडिजेनस लोगों में एकीकरण एवं एक दूसरे से जुड़ने की भावना तथा आपस में उनके अधिकारों की रक्षा व प्रोटेक्शन के लिए एक प्लेटफॉर्म तैयार हो गया है। आदिवासी अधिकारियों की पंजीकृत संस्था #अरावली_विचार_मंच द्वारा वर्ष 2015 से लगातार इस दिन को जोरदार तरीके से सेलिब्रेट किया जा रहा है और आदिवासियों के अधिकारों एवं उनकी मदद और उन्नति हेतु जनजागृति लाई जा रही है। 

सरकार एवं गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से चलाई जा रही लगातार मुहिम से आदिवासियों की स्थिति में वास्तव में सुधार हुआ है। परंतु सुधार की गति बहुत धीमी है जो कि नीचे टेबल में दिए गए आंकड़ों से स्पष्ट हैं वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों को देखने से स्पष्ट है कि आज भी हमारे देश के आदिवासी समुदाय की स्थिति बहुत ही दयनीय है एवं शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है। उनसे संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण आंकड़े निम्न प्रकार है -

एट्रोसिटीज > 6500 प्रति वर्ष

बीपीएल : ग्रामीण 45.3% श. 24.1%

कोई एसेट नहीं : 37.3%  

खेती की आय के घर : 38%  

मैन्युअल कैज़ुअल लेबर : 51.36%

भूमिहीन घर : 35.62%  

सरकरी सेवा से आय वाले घर : 4.38%  

घर में सबसे ज्यादा कमाने वाले की आय रु. 5000 से कम : 86.57%

सिंचित भूमि वाले घर : 18.10%  

साक्षरता दर : पु. 68.5%     म. 49.4%     

ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो : एलीमेंट्री (6 से 13 वर्ष) : 103.3 उच्च शिक्षा : 15.4       

ड्रॉप  आउट दर : कक्षा 1 से 10 तक : 62.4%  

घर : अच्छे 40.6%, रहने योग्य 53% व ख़राब 6.4%   

पीने का पानी : नल,  केवल 24.4 घरों में, घरों के बाहर 47.7 %, दूर 33.6%  

बिजली : 51.7% घरों में  

नाहने की सुविधा : 31% 

ड्रेन कनेक्टिविटी : 23% 

शौचालय : 23% 

किचन : 53.7%  

खाने पकाने के लिए गैस :  9 % 

स्कूटर/मो.साईकल : 9%  

कार : 1.6%  

साईकल : 36.4%    

रेडियो/ट्रांजिस्टर : 14.2%    

टेलीफोन : 34.8%

टेलीविज़न : 21.9%

कंप्यूटर/लैपटॉप :  5.2%

खून की कमी महिलाएं : 59.8% 

 शिशु मृत्यु दर : 44.4 

5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर : 57.2

5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुपोषण की स्थिति : 43.8% रुकी हुई वृद्धि, कमज़ोर 27.4%, कम वज़न 45.3%  

जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) : इंडिजेनस लोगों की जीवन प्रत्याशा दुनिया भर में गैर-स्वदेशी लोगों की जीवन प्रत्याशा की तुलना में 20 वर्ष कम है।  

कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाएं : आदिवासी क्षेत्रों में अस्पताल, डॉ, नर्स व  स्टॉफ और उपकरणों की भारी कमी और भयंकर अनुशासनहीनता। 


9 अगस्त अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर हर समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह तय करें कि आदिवासियों की शैक्षणिक और आर्थिक स्थिती में सुधार हेतु उसके स्यमं के स्तर पर एवं सामूहिक तौर पर जो भी संभव हो सके वह अवश्य करें।


जोहार
रघुवीर प्रसाद मीना 
महासचिव, अरावली विचार मंच 
ईमेल : rpmeenapdz@gmail.com 
मो. 8209258619

Wednesday 4 August 2021

दो पैसे की चीज के लिए 20 वर्षों के त्याग का कोई औचित्य नहीं है।

rpmwu423 dt. 04.08.2021
एक बार एक व्यक्ति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास आया। वहां बैठे एक सज्जन ने आये हुए उस व्यक्ति के बारे में कहा कि महाराज इन्होंने कमाल की चीज़ से सीख ली है। स्वामी जी ने पूछा कि क्या सीख लिया भाई? तो उस व्यक्ति ने बहुत जोश व गर्व से कहा कि मैंने 20 वर्षों के अथाह कठिन परिश्रम और लगन से पानी पर चलना सीख लिया है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरा कर बोले कि भाई दो पैसे का किराया देकर नाव से नदी को पार कर सकते है। इस छोटे से काम के लिए आपने 20 वर्षों का त्याग कर दिया। 

अमूमन अनेकों महत्वपूर्ण लोग भी जीवन में इसी प्रकार का कार्य करते रहते है और अपने कार्यो पर गर्व भी करते है। जो काम बहुत आसानी से किए जा सकते है, बहुत कम समय व संसाधनों में सम्पन्न हो सकते हैं उनके लिए कठिन राह चुनते है और अपने आप में समझते हैं कि उन्होंने बहुत अधिक मेहनत और लगन के साथ कार्य क्या है।

व्यक्ति को विचार करना चाहिए कि जो कार्य कर रहे है क्या वह सही है? उसकी जरूरत क्या है? उसकी कितनी उपयोगिता है? जिस तरीके को अपना रहे है वह कितना एफिसियेंट है? अनावश्यक रूप से समय, ऊर्जा व संसाधनों को न तो खर्च करना चाहिए और न ही पब्लिक लाईफ में खर्च करवाना चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

THE BHISHMA WAY or THE JATAYU WAY

rpmwu423 dt. 04.08.2021
No two people respond to the same situation in a similar way. 

Here are examples of two legendary personalities who were faced with a very similar situation, but thier responses were poles apart. 

This is a comparitive study between Bhisma and Jatayu.

Both of them, were confronted with character defining asssault situation on womanhood. 

One chose to die protecting the victim while the other chose to be a mute spectator of the crime.

1) *POWERFUL or POWERLESS*
Bhisma was a powerful warrior and if he wanted, he could have stopped the disrobing of Draupadi - the Queen but he chose to be a silent witness of this act

Whereas,

Jatayu was old and invalid and knew that in all probability, Ravana would kill him but still, he chose to try his best to protect Sita - the Queen. 

*Bhisma was powerful yet acted powerless whereas, Jatayu was powerless yet acted powerful*. 
 _
 _"Real power is not about physical strength but about the deep desire to help."__ 

*2) ALIVE or DEAD*

Bhisma lived on, but died everyday to his conscience 

Whereas, 

Jatayu died once but lived eternally true to his conscience. _

" _*Our only constant companion is our concience - better to be true to it."_*_ 

3) *FAME or INFAMY*

Bhisma's name and fame went down in the history because of *this one act of not stopping the disrobing of Draupadi* but Jatayu's name and fame went high in history *because of his act of trying to save Sita.* _

" _*We are all going to be mere names in the history, sooner or later. Will we be equated with the bad or the good - is our choice."_*_ 

4) *CULTURE or VULTURE*

Bhisma was supposed to be a highly cultured human but acted highly insensitive & stooped low in values like a vulture 

Whereas,

Jatayu was supposed to be a lowly uncultured vulture but acted highly sensitive and soared the skies, in values, like an evolved human. Who would you call as a human - Bhisma or Jatayu? _

 _"One doesn't become a human being by being born as a human - *one becomes a human being by being a humane."*__ 

5) *SPOKEN or UNSPOKEN WORDS*

Draupadi begged and pleaded protection from Bhisma because she knew, if someone could protect her, it was only him but still Bhisma didn't protect her 

Whereas,

Sita didn't even ask Jatayu for protection - she just wanted him to inform Rama about her kidnapping by Ravana because she knew Jatayu was not powerful but still...Jatayu tried to protect Sita.

Bhisma, even being a human couldn't understand the spoken words of Draupadi what to speak of understanding her unspoken words,

Whereas,

Jatayu, even though being a mere bird, understood not only the spoken words of Sita but also her unspoken words.
 _
 _*"The language of heart is more powerful than the language of words."__*_ 

6) *CLARITY or CONFUSION*

Bhisma was so much confused about his Royal duty that he forgot his higher duty, a moral duty
 

Whereas,

Jatayu was so clear about his moral duty that no other duty was in consideration for him. _

*" _When caught up in dilemmas, best is to follow the higher principles - to follow our heart because it always knows the truth."_*
7) *GOOD or BAD EXAMPLE*

Bhisma set a very bad precedent for generations to come

Whereas,

Jatayu set the most ideal precedent for generations to come. _

 _"If we can't be a great example atleast let us not be a bad one."__ 

8) *RELATIVE or STRANGER*

Another interesting point is that Bhisma was an elderly relative of Draupadi but acted as a total stranger in this episode.

 Whereas,

Jatayu was not at all related to Sita, he was a stranger but acted more than a dearest relative. _

 _"True relationships is based on heartly connections not just bodily connections."__ 

9) *THE SAINTLY or THE WICKED*

*Both, Bhisma and Jatayu had a few moments to decide what to do*. Life, sometimes puts in situations where in a few moments, we need to take crucial decisions. 
What we decide very much depends on the kind of inner integrity, we have cultivated by the association we keep. 

Bhisma's intelligence was clouded and it failed the test of life because he was associated with the wicked minded, selfish Kauravas,

Whereas,

Jatayu's intelligence was crystal clear and it passed the test of life because he associated himself with the saintly selfless Lakshman and the all-pure Lord Rama and dignity of women. 

_"After all, who we are solely depends on whom we associate with."_

10) *EMBRACE or NEGLECT*

The Supreme Lord as Sri Krishna was not at all happy with the attitude of Bhisma so much so that when He came as a peace messenger to Hastinapur, He didn't even bother to look at Bhisma, what to speak of respecting him.

Whereas, 

The Supreme Lord as Ramachandra was so happy & moved with the attitude of Jatayu that he embraced him and personally did his final rites - an honour that even Dasharath - His own father didn't receive. _
 _
 _The scriptures explain that the ultimate test of any activity is, if the Supreme Lord is pleased with us.___ .It is very clear, Bhisma displeased God whereas, Jatayu pleased Him.

*This recount is not meant to criticize Bhisma*- he is undoubtedly a great warrior and an amazing personality who sacrificed his personal desires for Hastinapur, but *we do impartially critique his inaction*.

The end here is to learn from the choices made, so that we are conscious that history follows us. _

*When we see some injustice, some problem, we have only two options - either close your eyes to it or do something about it - follow "the Bhisma way" or "the Jatayu way"*

 And, whichever way we choose, remember there will be consequences of our choices...

 *~"the Bhisma result" or "the Jatayu result"._*

 *_Brilliant analysis_ !!*.

(Received on whatsapp, thought good for sharing) 

Regards 
Raghuveer Prasad Meena