Thursday 29 November 2018

स्किल बढ़ाने के लिए स्किल का खेलों की तरह कंपटीशन किया जाना चाहिए।

rpmwu159
29.11.2018

हमारे देश की जो सबसे बड़ी समस्याएं है उसमें से लोगों में स्किल की कमी एक प्रमुख समस्या है। कार्य करने के प्रत्येक क्षेत्र में अच्छी स्किल वाले लोगों की भारी कमी होने के कारण भारत में बनने वाले उत्पादों की गुणवत्ता उतनी बेहतर नहीं होती जितनी की विदेशों के उत्पादों की होती है।
देश में स्किल की कमी व्यक्तिगत न होकर एक सामुहिक व सामाजिक समस्या है। क्योंकि चिरकाल से देश में जो लोग हाथ से कार्य करते थे उनको समाज में नीचा दर्जा मिला और जो लोग हाथ से कार्य नहीं करते थे, केवल बातें करते थे, पूजा करते थे, लड़ाई कर सकते थे, मैनेज करते थे और फाइनेंस अरेंज करते थे उन्हें समाजिक तौर पर ऊपर रखा गया और उन्हें ज्यादा महत्व दिया गया। जिसके कारण कालांतर में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ गई जो हाथ से काम नहीं करके, बातें या भाषण देने में माहिर थे या चीजों को मैनेज करते थे। आज भी यदि देखें तो देश में लगभग 80% धन सम्पदा उन लोगों के पास है जो स्वयं कार्य नहीं करते हैं उनमें कोई स्किल नहीं है।
देश की अपेक्षित उन्नति नहीं होने का एक मुख्य कारण देश के उत्पादों व सेवाओं की गुणवत्ता में कमी है। यदि हम वास्तव में देश की त्वरित तरक्की चाहते हैं तो हमें हमारे  उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना होगा और वह तभी संभव है जब काम करने वाले लोगों की स्किल उच्च स्तर की हो।
हमें अच्छी स्किल वाले लोगों का सम्मान करना होगा, उन्हें महत्व देना होगा, लोगों के मन में उनके प्रति आदर जागृत करना होगा। जैसे हम खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेलों के विभिन्न प्रकार के कंपटीशन कराते हैं उसी प्रकार यदि स्किल से संबंधित कंपटीशन करवाएं जाएं तो स्किल डेवलपमेंट में मील का पत्थर साबित हो सकते है और देश में बनने वाले उत्पादों की गुणवत्ता में उत्तरोत्तर सुधार होगा। देश के जल्दी विकसित होने व लोगों को रोजगार मिलने में यह ठोस कदम साबित हो सकता है।
समाज व सरकार दोनों को अपने अपने स्तर पर स्किल से सम्बन्धित कंपटीशन करवा कर, अच्छी स्किल वाले लोगों को गौरवान्वित करना चाहिए ताकि और लोग भी उनसे प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन सके और अच्छी स्किल होने में गर्व महसूस कर सके।
रघुवीर प्रसाद मीना

जनता की नासमझी और नेताओं की चाल।

rpmwu158
29.11.2018

जनता की कमजोर समझ को नेताओं ने अच्छी तरह पहचान रखा है और विभिन्न प्रकार की बहकावे वाली बातें करके जनता को मूर्ख बनाते रहते हैं। हिंदू मुस्लिम, गाय, मंदिर, हरा भगवा रंग, जाति, धर्म, वर्ण व आरक्षण इत्यादि इत्यादि पर लोगों का ध्यान भटकाया जाता है। जबकि विधालयों में शिक्षा हेतु अच्छी सुविधा ना होना, शिक्षा की फीस का बढ़ना,  किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाना, उर्वरकों की आपूर्ति में ब्लैक मेलिंग होना, पीने योग्य पानी की उपलब्धता नहीं होना,  दूरदराज के क्षेत्रों में अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी होना,  गरीबों के पास बचत करने के तरीकों का नहीं होना, बेरोजगारी, स्वास्थ्य की सुविधाओं में कमी, महँगाई, भ्रष्टाचार इत्यादि जो वास्तविक मुद्दे हैं, जिनके हल से देश की गरीब जनता का भला होने वाला है, उन पर बिल्कुल या बहुत ही न्यूनतम ध्यान दिया जाता है।
इस बात को एक उदाहरण के माध्यम से बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। गांव में जब चोर एक ग्रुप में जानवरों की चोरी करते हैं तो वे सबसे पहले उस जानवर के गले में बंधी हुई घंटी को खोलते हैं और उनमें से एक व्यक्ति उस घंटी को एक दिशा में गांव वालों को दिग्भ्रमित करने के लिए ले जाता है। और दूसरे लोग जानवरों को दूसरी दिशा में ले जाते हैं। घंटी की आवाज सुनकर गांव वालों को लगता है कि जानवर घंटी की आवाज आने वाली दिशा में जा रहा है परंतु वास्तव में जानवर किसी दूसरी दिशा में जा रहा होता है। गांव के लोग झूठी घंटी की आवाज से दिग्भ्रमित हो जाते हैं और वे घंटी की दिशा में चेज करते हैं। बाद में उन्हें पता लगता है कि उन्हें मूर्ख बनाया गया है और उनके जानवरों की चोरी हो हो गई है
इसी बात को यदि हम गहराई से देखें तो पता चलता है कि मंदिर, मस्जिद, हरा-भगवा, अतीत की बातें, धर्म, दिखावा, जातिपांती, क्षेत्र इत्यादि लोगों को भावनाओं के माध्यम से घंटी से जोड़ना है। जबकि मूलभूत मुद्दे जैसे गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, पीने योग्य पानी, फसल का मूल्य, उर्वरक की समय व सही दर पर सप्लाई, महंगाई इत्यादि की ओर उनके ध्यान को जाने ही नहीं दिया जाता है। जनता को बहुत सोच समझ कर तय करना चाहिए कि घंटी पर ध्यान भटकाएँ या मुद्दों पर ध्यान दें।
वोट करते समय महत्वपूर्ण मुद्दों को ध्यान में रखें और समझदारी से योग्य व अच्छे उम्मीदवार को वोट दें ताकि देश का विकास हो सके और झूठी घंटी बजाने वालों से देश को बचाया जा सके।
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 21 November 2018

जो लोग अधिकारियों से सहायता चाहते है, उन्हें सलाह।

rpmwu156
20.11.2018

जो लोग #अधिकारियों_से_सहायता चाहते है, उन्हें #सलाह।
1. सोमवार को अवोईड़ (avoid) करें क्योंकि अधिकारी मिटिंगस् में व्यस्त रहते है।
2. आॅफिस के खुलते ही नहीं जाये क्योंकि सुबह सुबह अधिकारी कार्य की प्लानिंग करते है। सामान्यतः 12:00 से 1:30 बजे या 3:00 से 5:00 बजे का समय उपयुक्त हो सकता है।
3. बार बार लगातार फोन नहीं करें, क्योंकि व्यक्ति विशेष कार्य में व्यस्त हो सकता है। अच्छा रहेगा अपने परिचय के साथ मैसेज करें।
4. बेहतर होगा अधिकारियों से कार्यालय के काम के सम्बन्ध में कार्यालय के समय में ही बात करें। ऐसा करने से आपके कार्य पर तुरंत कार्यवाही का प्रारंभ होना संभव है।
5. जब भी मिलने जाये तो सम्बंधित अधिकारी का नाम व कार्यालय का फोन नंबर व मोबाइल नंबर अवश्य रखें।
6. संबंधित मुख्य मुख्य दस्तावेजों को ही वाट्सऐप पर भेजें। अनावश्यक दस्तावेजों को बल्क में नहीं भेजें।
7. यदि कोई अधिकारी आपकी बात सुन रहा हो तो अनावश्यक दूसरों का रिफरेंस नहीं दे।
8. अधिकारियों से मदद मांगने से पूर्व पहले नीचे स्तर पर जानकार स्टाफ या पर्यवेक्षकों से अवश्य मदद लेने की कोशिश करे।
9. फोन पर या कार्यालय में अनावश्यक वार्ता/ऑफ़र जैसे मिठाई , खर्चा पानी, पैसे के लेन देन की बात नही करें। इन बातों को सुनकर ईमानदार प्रवृत्ति के अधिकारियों का मन खराब होता है।
10. जिसको सम्पूर्ण मामले की जानकारी हो यदि वही व्यक्ति बात करें तो बेहतर होगा।
रघुवीर प्रसाद मीना

Tuesday 13 November 2018

समझदारी के साथ चुनाव में योग्य नेता चुने।

rpmwu154
12.11.2018

राजनीतिक पार्टियां उनकी विभिन्न मजबूरियों एवं सोची समझी चाल के कारण ऐसे लोगों को टिकट दे देती है जो कि किसी भी तरह से नेता बनने के योग्य नहीं है। न तो वे कोई पॉलिसी फॉर्मूलेशन में सहायक हो सकते हैं और ना ही उनके इंप्लीमेंटेशन में। ऐसे लोग 5 वर्ष के लिए विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र का नाम मात्र का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं उस क्षेत्र विशेष का कोई विकास नहीं करवाते हैं और न हीं करवा सकते हैं।
हो सकता है कोई व्यक्ति आप की जाति, धर्म, समुदाय का हो या आपका जानकार हो या आपका रिश्तेदार हो हो सकता है वह आपका चाचा, बाबा, भतीजा, मामा या फिर बुहा, बहन, भतीजी, दादी इत्यादि लगते हो तो उनका पूरा आदर व सम्मान करें परंतु यदि वह योग्य नेता नहीं है तो उसे नहीं चुनना चाहिए।
केन्द्र व राज्य सरकार के बजट के आंकड़ों के अनुसार हर व्यक्ति के हिस्से में 5 वर्षो लगभग ₹5 लाख की भागीदारी आती है अत: वोट का उपयोग महत्वपूर्ण मानते हुए पूर्ण समझदारी व बुद्धिमत्ता से करने की जरूरत है।
संविधान बनाते समय यदि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के स्थान पर किसी जानकार या रिश्तेदार अयोग्य व्यक्ति को कन्टिट्यूयेन्ट असेम्बली का सदस्य बना दिया जाता तो वह संविधान बनते समय केवल तमाशबीन ही बना रहता और बने हुए दस्तावेज पर दस्तखत कर देता। उसमें कमजोर वर्ग के हितों की रक्षा के लिए जो प्रावधान बनाए गए हैं वे कभी नहीं होते। हमें सोचना होगा कि हम क्या चाहते हैं अच्छे नेता या केवल जानकार, रिश्तेदार, बहन, बुआ, भतीजी, दादी, नानी, काका, बाबा, दादा, नाना इत्यादि।
रिश्तेदारी निभाना एक सामाजिक दायित्व है और अच्छे नेता का चुनाव करना एक गंभीर बुद्धिमता का द्योतक है। यदि हम स्वयं और देश व समाज की वास्तव में भलाई चाहते हैं तो हमें अच्छे नेताओं को चुनना होगा ना कि जानकार या रिश्तेदार या जाति या धर्म या समुदाय के आधार पर अयोग्य व्यक्तियों को।
यह भी देखा गया है कि कई नेता हर बार अपने क्षेत्रों को बदल लेते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण यह होता है कि उन्होंने पिछले कार्यकाल में उनके क्षेत्र में कोई विशेष विकास कार्य नहीं करवाया होता है जिसके कारण वहां के वोटर उससे नाराज रहते हैं और वह हर चुनाव में नए-नए क्षेत्रों में जाकर अपने भाग्य को  अजमते रहते हैं। कई बार यह भी दिखाई देता है कि बाहरी व्यक्ति क्षेत्र विशेष में जाकर चुनाव जीतने के बाद वहां की गतिविधियों में बहुत कम रुचि लेते हैं और वह क्षेत्र अपने आप ही पिछड़ा रह जाता है।
उपरोक्त सभी के मद्देनजर विचारणीय बिंदु है कि अपने वोट के महत्व को पहचाने और योग्य नेता चुने ना कि अयोग्य व्यक्ति।
रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 12 November 2018

धर्म या अधर्म के लिए कौन है जिम्मेदार? व्यक्ति क्या करें?

rpmwu153
12.11.2018

हमेशा कहा जाता रहा है कि धर्म से जनमानस की भलाई होती और अधर्म से विनाश। जबकि वास्तव में अगर बहुत सरसरी तौर पर भी देखा जाएँ तो पता चलता हैं कि क्रिश्चियन धर्म में काले लोगों पर गोरे लोगों ने बहुत अधिक अत्याचार किया था। महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति को ट्रेन के डिब्बे से सामान के साथ बाहर फेंक दिया गया, केवल और केवल रंगभेद के कारण। इसी प्रकार हिंदू धर्म मानने वाले लोगों ने दूसरे हिंदू धर्म मानने वाले अछूतों के साथ बहुत ज्यादा अत्याचार किया जिससे सभी भली-भांति परिचित है। यहां तक की अछूतों को पढ़ने, ज्ञान की बातें सुनने व बोलने इत्यादि इत्यादि पर प्रतिबंध था। मुस्लिम धर्म में भी यदि देखें तो दूसरे धर्म के लोगों का कोई सम्मान नहीं है। वे तो कहते हैं  कि या तो व्यक्ति मुस्लिम हो अन्यथा वह काफिर है, वे चाहते हैं कि सभी लोग मुस्लिम बन जाएँ। इसी प्रकार अन्य धर्मों में भी धर्म के नाम पर अधर्म की नीति चलती आ रही है। निम्न प्रश्नों का उत्तर ढूंढने की जरूरत है-
धर्म के नाम पर मनुष्य का मनुष्य द्वारा शोषण एवं मूर्ख बनाना कैसा धर्म है? यह अधर्म क्यों नहीं है? उस धर्म विशेष के लोग इस प्रकार अधर्म गतिविधियों को क्यों नहीं रोकते हैं? क्यों नहीं गलत करने वालों को दंडित किया जाता है? जो चीजें पहले धर्म के नाम पर सही ठहराई जाती थी वे अब धीरे धीरे क्यों खराब सिद्ध होने लगी है? सदियों तक जो गलत चीज सही मानकर चल रही थी उसके लिए कौन जिम्मेदार था? और जो जिम्मेदार थे उन लोगों को क्या सजा मिल रही है?  भूतकाल में जो हो चुका है उसको यदि भूल भी जाए तो वर्तमान में धर्म के नाम पर छुआछूत, भेदभाव, दमनकारी गतिविधियों के लिए क्यों नहीं रोक लगाई जा रही है? क्यों नहीं कड़े कानून के माध्यम से इस प्रकार के दमनकारी लोगों पर अंकुश लगाया जा रहा है?
अभी भी कुछ कुटिल लोग जो अपने आप को ज्यादा समझदार होने की बातें करते हैं वे, जिनका भूतकाल में शोषण हो चुका है और अब ऊपर उठ रहे हैं, को पचा नहीं पा रहे हैं। और आये दिन विभिन्न प्रकार के प्रपंच रचने में लगे रहते है। ऐसे लोगों को आईडेंटिफाई करने की आवश्यकता है और उनसे सजग रहकर दूरी बनाने एवं उनके बहकावे में नहीं आने की जरूरत है। उचित मौके पर उनको स्पष्ट जबाव देने की भी जरूरत है। कोई भी ऐसी गतिविधि नहीं की जानी चाहिए जिससे शोषण करने वाले लोगों को लाभ हो।
अत: आवश्यकता है कि धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) से व्यक्ति अपने आप को दूर रखें और दूसरों को भी दूर रहने की सलाह दें, साथ ही धर्म के नाम पर चल रही लूट को रोके।  हर व्यक्ति को उसके जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की जरूरत है साथ ही उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य को पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी के साथ संपादित करें, यही सबसे बड़ा धर्म है।

Wednesday 7 November 2018

सेवानिवृत्त लोगों को पुन: नौकरी देना बेरोजगार युवाओं के साथ न्याय नहीं है।

rpmwu151
07.11.2018

पिछले कुछ दिनों में सरकार में सेवानिवृत्त लोगों को पुनः जॉब देना एक ट्रेंड सा बन गया है। सेवानिवृत्त व्यक्ति को उसके सेवाकाल में प्राप्त सैलेरी से की गई बचत के साथ साथ पेंशन भी मिलती और वह सामान्यतः उसकी सभी जिम्मेदारियां से मुक्त रहता है जिसकी वजह से उसे आर्थिक रूप से और धन की उतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी की एक बेरोजगार युवा को होती है। साथ ही साथ सेवानिवृत्त व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता भी कम हो जाती है। वे उतने स्फूर्तिमान व एफिशिएंट नहीं हो सकते जितने की नए युवा।
सेवानिवृत्त व्यक्तियों को पुनः रोजगार देना और युवाओं को नये रोजगार से वंचित रखना किसी प्रकार से समझदारी नहीं लगती है। आर्थिक पैमाने पर भी यदि देखें तो जब व्यक्ति नया भर्ती होता है तो उसकी पे स्केल इत्यादि काफी कम रहती है जिसके कारण उनको दिए जाने वाले वेतन न्यूनतम स्तर का ही रहता है। वैसे भी सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार मुहैया कराएं।
परंतु आजकल देखा जा रहा है कि सरकार में पदों की रिक्तियों को समय पर नहीं भरा जाता है  और या तो अधिकतर कार्य संविदा पर करवाए जा रहे हैं और या सेवानिवृत्त लोगों को पुनः रखा जा रहा है। ऐसा करने से युवा वर्ग रोजगार से वंचित हो रहा है। दूसरी ओर अधिकतर सेवानिवृत्त व्यक्ति पद को तो आॅक्यूपाई कर लेते हैं परंतु वांछित गुणवत्ता का कार्य नहीं कर पाते है।
इस पहलू को सभी प्राधिकारियों को गहराई से समझने की आवश्यकता है कि किस प्रकार सेवानिवृत्त व्यक्तियों को दिए जाने वाले पुन: रोजगार को रोका जाए और उनके स्थान पर नए युवाओं को रोजगार मुहैया कराया जाये।
कृपया इस विषय पर अपने अपने विचार व्यक्त करें।

Tuesday 6 November 2018

जयपुर मंडल का रिनोवेटेड कंट्रोल ऑफिस।

rpmwu150
06.11.2018

जयपुर मंडल का रिनोवेटेड कंट्रोल ऑफिस।
जयपुर मंडल के कंट्रोल ऑफिस को अभी हाल में पूर्ण रूप से रिनोवेट किया गया है, जिसमें निम्नलिखित कार्य मुख्य रूप से किए गए -
1. संपूर्ण ऑफिस की फॉलस् सीलिंग की हाईट जोकि एक पुरानी अनुपयोगी एयर डक्ट के कारण बहुत कम थी उसको हटाकर, हाईट बढ़ाई गई। बड़ी हुई हाइट में ग्लास पार्टीशन लगाया गया, जिसके कारण गैलरी जिसमें साधारणत: अंधेरा रहता था उसमें बगल के कमरों से लाईट आने के कारण अपने आप प्रकाशमान हो गई।
2. संपूर्ण ऑफिस में टाइल्स बहुत पुरानी हो चुकी थी एवं उनका कलर भी डल था, उन्हें ब्राईट शेड़ की बडी़ विट्रीफाईड़ टाईलों से बदलवाया गया। टाईलस् के नीचे फ्लोर में विधुत व टेलिफ़ोन/इंटरनेट के वायरस् व केबलस् प्लानिंग से डाले गये।
3. कंट्रोल ऑफिस में वायरस् एवं केबलस् भलीभांति नहीं लगे हुए थे, एक जगह से दूसरी जगह फाॅलस् सीलिंग के ऊपर से जाने के कारण उनका लोड़ उस पर आ रहा था। इन्हें अच्छे तरीके से केबल ट्रे में डाला गया। कौन सा वायर या केवल किधर जा रही है, अासानी से मालूम किया जा सकता है। साथ ही इनका लोड फॉलस्  सीलिंग पर नहीं आएगा।
4. कंट्रोल ऑफिस का फर्नीचर अलग अलग तरह का और काफी पुराना था उसके स्थान पर कस्टमाईजड़ मॉड्यूलर फर्नीचर बनवाया गया और साथ ही में सभी स्टाॅफ को अच्छी मूवेबल कुर्सियां उपलब्ध करवाई गई।
5. कई स्थानों पर  दीवारें थी उन्हें हटाकर  ग्लास पार्टीशन बनवाए गए जिसके कारण  कार्य करने  का एक जोरदार माहौल तैयार हो गया है।
6. मुख्य दरवाजों पर एक्सेस कंट्रोल सिस्टम लगाया गया है  जिससे केवल अधिकृत व्यक्ति ही कंट्रोल में फिंगर प्रिंट्स  के माध्यम  से प्रवेश कर सकते हैं।
जो लोग रेलवे के कंट्रोल से परिचित है वे समझ सकते हैं कि एक वर्किंग रेलवे कंट्रोल में इतना कार्य करवाना कितना मुश्किल है, परंतु हमारे अधिकारियों और स्टाॅफ सभी ने मिलकर इस चैलेंज को स्वीकारा और कंट्रोल के रिनोवेशन के कार्य को सम्पूर्ण करने में पूर्ण सहयोग दिया।
जयपुर मंडल की मंडल रेल प्रबंधक श्रीमती सौम्या माथुर की पहल एवं अपर मंडल रेल प्रबंधक/इंफ्रा श्री आर एस मीना, वरिष्ठ मंडल परिचालन प्रबंधक श्री केके मीना, वरिष्ठ मंडल सिग्नल एवं दूरसंचार इंजीनियर श्री आरके गुडेश्वर, वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजीनियर श्री आरके शर्मा, वरिष्ठ मंडल इंजीनियर एस्टेट श्री डीएल गर्ग, वरिष्ठ मंडल सामग्री प्रबंधक श्री राजकुमार, वरिष्ठ मंडल फाइनेंस मैनेजर श्रीमती अभिलाषा झां मिश्र,, मंडल सिग्नल एवं दूरसंचार इंजीनियर श्री नरेंद्र सेहरा, सहायक मंडल परिचालन प्रबंधक श्री दिलीप सिंह, सहायक अभियंता श्री के के शर्मा, सहायक विधुत इंजीनियर एमएल गुप्ता व उनके डिपार्टमेंट के अधिकारियों और पर्यवेक्षकों का बहुत योगदान रहा है। कंट्रोल में कार्यरत पर्यवेक्षक श्री मदन सिंह चौहान, श्री हनुमान सिंह, अखिल गुप्ता, महेश शर्मा व एसके शर्मा की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही है। इनके साथ साथ जितने भी लोग कंट्रोल में कार्यरत हैं उन्होंने करीब 2 माह कार्य चलने के दौरान धूल मिट्टी भरे वातावरण में कार्य किया और परेशानी का सामना उठाया। सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद।
रघुवीर प्रसाद मीना
अपर मंडल रेल प्रबंधक (आॅपरेशंस)
जयपुर मंड़ल, उत्तर पश्चिम रेलवे।

Sunday 4 November 2018

स्वमं पर ध्यान नहीं देकर दूसरे को सुधारने में ऊर्जा नष्ट करना हमारे देश की एक गंभीर समस्या है।

rpmwu149
04.11.2018

देश में हिंदुओं के धर्मगुरुओं व नेताओं को मुसलमानों के रीति रिवाजों जैसे तीन तलाक को ठीक करना बहुत जरूरी लग रहा है जबकि हिंदू धर्म स्वयं में जो अंधविश्वास है, दलितों के लिए छूआछूत व अपमान है एवं अन्य कई ऐसे रीति रिवाज जिनसे हिंदू धर्म शर्मसार होता है उन्हें दूर करने के लिए उनके पास समय नहीं है। इसी प्रकार जिन लोगों को आरक्षण नहीं मिला हुआ है उनको आरक्षण के अंतर्गत जो जातियां या जनजातियां उन्नति कर रही है उनकी ज्यादा चिंता है।
मैं इस बात में विश्वास रखता हूं कि व्यक्ति सोच समझकर व दृढ़ निश्चय से स्वयं को तो बदल सकता है परन्तु दूसरे को केवल उसके आचरण एवं चाल चलन से प्रभावित ही कर सकता है। दूसरे को बदलना उसके वश में है। यह बात समाज के परिपेक्ष में भी  लागू होती है। यदि कोई व्यक्ति या समाज वास्तव में सुधार हेतु बदलाव चाहता है तो उसे समय में बदलाव करना चाहिए, दूसरा व्यक्ति या समाज देखकर अच्छे गुणधर्म व आचरण को अपना लेगा।
परंतु देखा जा रहा है कि व्यक्ति स्वयं बीमार है परंतु दवाई दूसरे को देने की कोशिश करता है जब तक ऐसा होता रहेगा तो बीमार व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो पायेगा। अतः यदि वास्तव में सुधार करना ही है तो पहले शुरुआत स्वयं से करें, दूसरे लोग स्वत: देखकर खुद ही उनमें बदलाव कर लेंगे। ऐसा करने से ही व्यक्ति स्वयं, समाज व देश की भलाई संभव है।
सुधार की हर कड़ी के लिए पहले स्वयं से शुरू करें , दूसरे अपने आप ही अच्छाई के लिए देखकर उनमें बदलाव कर लेगें।
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 3 November 2018

राम मंदिर पर अचानक मिडिया अटेंशन व बेवजह बहस।

rpmwu148
03.11.2018

राम मंदिर पर जोरदार बहस व मिडिया अटेंशन आजकल पुन: प्रारंभ हो गया है। देश के साधारण नागरिक को राम मंदिर बनने या नहीं बनने से बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता है। परंतु जो लोग राजनीतिज्ञ है उनमें से कुछ मंदिर निर्माण की बात का फायदा उठाना चाहते हैं और अयोध्या में मंदिर निर्माण की बात को राजनीति से प्रेरित कर लोगों में हिंदुत्व के नाम पर यूनिटी बनाना चाहते हैं ताकि चुनाव में उनको लाभ हो सके।
मंदिर निर्माण पर इतना ज्यादा मीडिया का समय व महत्व तथा लोगों का ध्यान न्यायोचित नहीं है। यदि देश के नागरिक मंदिर की बात को छोड़ कर सम्पूर्ण देश के महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे अशिक्षा, गरीबों की दशा, पीने के पानी की समस्या, चलने योग्य सड़को का अभाव, बिजली की आपूर्ति, सिंचाई व्यवस्था, किसानों का ऋण, मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलना, रू. का अवमूल्यन, डीजल/पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें, बेरोजगारी, अंधविश्वास, जातिवाद व धर्म के दंश इत्यादि इत्यादि बेसिक चीजों पर ध्यान दें तो देश के लोगों की दशा में बहुत जल्दी अधिक सुधार हो सकता है।
हिन्दूओं के लिए राम मंदिर बनवाने के पीछे पागल होना धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) का असर है। वास्तव में जो हिन्दू धर्म के प्रति समर्पित है उन्हें चाहिए कि DAP को कम करवायें, देश में  धार्मिक आधार पर जो कट्टरता पनपती जा रही है उसे कम करवाएं और धर्म के नाम पर दलितों को लगातार तंग किए जाने के प्रकरण को रुकवाएं।
मुसलमानों के नेताओं व धर्म गुरुओं की सोच में समझदारी की कमी झलकती है, वे अनावश्यक मंदिर निर्माण के स्थान को तूल दे रहे है। जब देश की मेजॉरिटी जो कि हिंदू है और यह मानती है कि उनके भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में उस विशेष स्थान पर हुआ था तो मुसलमानों को मंदिर बनाने देने में किसी प्रकार की आपत्ति नहीं करनी चाहिए। यदि उस स्थान पर मस्जिद रही भी है तो सबको पता है कि देश में 1000 ईसवीं के बाद ही मस्जिदें बनी है जबकि भगवान राम का जन्म मस्जिदें बनने से बहुत कहीं पहले का है। मुसलमानों को समझदारी दिखाते हुए खुशी से उस स्थान को  राम मंदिर  बनाने के लिए  छोड़ देना चाहिए और  मस्जिद दूसरे स्थान पर  बनाई जा सकती है। यदि मुसलमान ऐसा करते हैं तो उनके लोगों के हित के लिए यह बहुत  बड़ी बात होगी। मुसलमानों को उनके लोगों के पिछड़ेपन, अशिक्षा, गरीबी  व अंधविश्वास को दूर करने की ओर बहुत ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्हें अपने लोगों का ध्यान इन चीजों पर आकर्षित करवाना चाहिए ना कि मंदिर और मस्जिद की लड़ाई में।
रघुवीर प्रसाद मीना

Friday 2 November 2018

DAP का दुष्परिणाम।

rpmwu147
02.11.2018

वीडियो में देखें कि किस प्रकार धर्म के नाम पर दलितों का अभी भी बहिष्कार किया जा रहा है, एक दलित दूल्हा व उसकी माँ को हनुमानजी के मंदिर पर चढ़ने के लिए पब्लिकली मारापीटा व बेइज्जत किया। दूसरी तरफ लोग बोलते हैं की जातिगत आधार पर आरक्षण व अन्य लाभ नहीं होने चाहिए। जब जाति देख कर यदि किसी व्यक्ति का अपमान किया जाता है तो उस समय यह बात क्यों नहीं समझ में आती है?
यदि देश को आगे बढ़ाना है तो पहले जाति के आधार पर होने वाले डिस्क्रिमिनेशन को समाप्त करना होगा। साथ ही में दलितों को भी धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से दूर रहने की जरूरत है। ये लोग अनावश्यक रूप से धार्मिक गतिविधियों में बहुत ज्यादा लिप्त रहते हैं, इनके पीछे रहने का यह भी एक मुख्य कारण है।
यदि कोई व्यक्ति जातिगत भेदभाव को जानने हेतु लिटमस टेस्ट करना चाहे तो उसे शांत भाव में आंखें बंद करके अपने आप से निम्न प्रश्न का उत्तर पूछना चाहिये -
"क्या वह अगले जन्म में किसी दलित के घर जन्म लेना चाहेगा?"
जब तक इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक आता रहेगा तो लोगों को कोई हक नहीं है कि वह जाति के आधार पर दिए जाने वाले प्रोत्साहनों की भर्त्सना करें।
आवश्यकता है कि सभी लोग खासकर दलित धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण में विश्वास कम करें व जाति के आधार पर यदि कोई किसी को परेशान या तंग करें तो सरकार को उसके विरूद्ध उदाहरण पेश करने लायक कड़ी कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।