Monday 16 March 2020

सम्पूर्ण विश्व में मूलनिवासियों के पीछे रहने के क्या कारण रहे एवं अब उन्नति का कौनसा रास्ता उचित है?

rpmwu189
04.02.2019

संपूर्ण संसार में आदिवासियों या कहिए वहां के मूल निवासियों या इंडीजीनस पीपल का बाहर से आने वाले व्यक्तियों ने हर प्रकार से दमन किया और उन्हें उन्हीं के घर में किराएदार की स्थिति में ला दिया। यह एकदम तय बात है परंतु हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि हर देश में वहां के लोकल या इंडीजीनस लोगों पर बाहर से आने वाले व्यक्ति भारी पड़ गए?
मुझे जो मुख्य कारण लगता है वह यह है कि इंडीजीनस लोगों के पास जो तकनीकी थी वह पुरानी थी और बाहर से आने वाले व्यक्तियों के पास जो तकनीकी थी वह उनकी तकनीकी की अपेक्षा उन्नत या नई थी जिसके आधार पर इंडीजीनस लोगों को बाहर से आने वाले लोगों ने पराजित कर दिया और उन्हें उन्हीं की जमीन पर मार्जिनलाईज़ कर दिया। उदाहरणार्थ आदिवासियों के पास तीर कमान थे और बाहर से आने वाले लोगों के पास बंदूके व बारुद थी, तीर कमान बंदूक व बारूद के सामने टिक नहीं पाए। दूसरा कारण यह भी रहा कि इंडीजीनस लोग सरल स्वभाव के थे एवं बाहर से आने वाले लोग क्योंकि बहुत सारी विपदा को पार करके आए होंगे तो वह क्रूर व चालाक किस्म के बन गए होंगे।
अब मूलनिवासियों आगे बढ़ने के लिए उन कमजोरियों को दूर करने की आवश्यकता है कि जिनकी वजह से बाहरी व्यक्तियों ने उन्हें पराजित किया। बाहरी लोगों में जो अच्छाइयां हैं उन्हें ग्रहण करें एवं उनकी जो बुराईयां हैं उनसे दूर रहे। बाहरी व्यक्तियों ने इंडीजीनस लोगों को मूर्ख बनाने के लिए धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण का जाल बिछाया और वे लोग उसी जाल में अभी भी फंसे हुए हैं और उन्हीं लोगों को बहुत अधिक समझदार व आशीर्वाद देने वाले मानते हैं। जब तक ऐसा होता रहेगा तब तक मूलनिवासी लोग कभी भी वांछित उन्नति नहीं कर सकते हैं।
आवश्यकता है कि मूलनिवासी धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से मुक्त हो और अपनी जीवनशैली में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाएं ताकि वे भी जो विकसित या अग्रणी लोग हैं उनके समकक्ष खड़े हो सके। मूलनिवासी समाज के कई लोग इस बात की वकालत करते हैं कि आदिवासियों को पूराने जमाने की तरह ही रहना चाहिए, संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए और पहनावे का भी ध्यान रखना चाहिए। परंतु मैं यह कहना चाहूंगा कि हमें वही करना चाहिए जिससे दूसरे लोगों की उन्नति हो रही है। हम व्यक्तिगत तौर पर तो चाहते हैं कि हमारे स्वयं के बच्चे अच्छे स्कूलों में जाएं, अच्छे कपड़े पहने और संस्कृति के जो पुराने पहलू है उनमें नहीं फंसे परंतु जब हम समाज की बात करते हैं तो हम दूसरी तरह सोचते हैं और विपरीत सलाह देते हैं।
मूलनिवासियों को यह सोचने की जरूरत है कि उनके लोग किस दिशा में जा रहे हैं? और कौनसे कार्यो को करने से उन्नति होगी? मुझे तो लगता है शिक्षित होने,  वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने, निति निर्धारण में रोल अदा करने, न्यायपालिका में हिस्सेदार बनने, पत्रकारिता में जाने, व्यवसाय की ओर जाने, राजनीतिक समझ विकसित करने व धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से दूर रहने में ही विकास की राह है।
रघुवीर प्रसाद मीना

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