Monday 16 March 2020

हिन्दु धर्म की मान्यताओं ने बनाया है आदिवासियों को मानसिक रूप से गुलाम। हमें धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण से दूर होना ही पड़ेगा।

rpmwu180
25.12.2018

हिन्दु धर्म की मान्यताओं ने बनाया है आदिवासियों को मानसिक रूप से गुलाम। हमें धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण व प्रपंचों से दूर होना ही पड़ेगा।
मोटे तौर पर आदिवासियों की परिभाषा के अनुसार आदिवासी वे लोग हैं जो 5000 वर्ष से पहले से व आर्यों के आने से पूर्व भारत देश में रहते थे। हिंदू धर्म आर्यों के द्वारा  बनाया गया धार्मिक प्रपंच है तो आदिवासियों  के लिए हिंदू धर्म का क्या मतलब है? यदि आदिवासी हिंदू धर्म को मानते हैं तो वे आर्य वर्ण व्यवस्था का हिस्सा है और ऐसा होने पर उन्हें अपने आप को शूद्र की श्रेणी में ही रखना तय है जो कि मानसिक रूप से समुदाय विशेषों को दमन करने के एक तरीका आर्यों ने प्रतिपादित किया था
आदिवासी मुख्य रूप से हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है। जिसके कारण हमारे ऊपर हिंदू एक्ट लागू नहीं होता है। और हिन्दु धर्म व्यवस्था भी हमारे ऊपर लागू नहीं होती है। परंतु हम जबरदस्ती अपने आप को हिंदू डिक्लेअर करते हैं, और उनकी परम्पराओं को मानते हैं तो वर्ण व्यवस्था को भी मानना पड़ेगा और अपने आप को शूद्र की श्रेणी में ही रखना होगा।
यदि हमने अपने आप को मन में शूद्र मान लिया तो आपको मानसिक गुलामी से छुटकारा बहुत ही मुश्किल से कई पीढ़ियों बाद मिलेगा। जिसके लिए जो लोग ज्यादा हिंदुत्व की बातें करते हैं वे जिम्मेदार होंगे। उनकी आगामी पीढ़ियों की मानसिक गुलामी कितने लम्बे समय तक चलेगी, उन्हें भी इसका अंदाज नहीं है।
मीना अनुसूचित जनजाति की उन्नति का एक प्रमुख कारण है कि हम मन में अपने आप को शुद्र वर्ण में नहीं मानते है। जब अभी तक नहीं माना गया तो अब क्यों मानना प्रारंभ किया जा रहा है? रही आरक्षण की बात, आरक्षण का वर्ण से आदिवासियों के लिए कोई मतलब नहीं है। उन्हें आरक्षण इसलिए मिला है कि भी इस भूभाग के आदिवासी हैं और विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं।
आज के दिन मुसलमान एससी और एसटी के ज्यादा नजदीक है उन्हें साथ लेने में किसी प्रकार की कोई परेशानी हमें नहीं होनी चाहिए और दूसरी बात यह भी है कि मुसलमानों की जनसंख्या भारत में जितनी है उसे आज भारत से बाहर भेजना संभव नहीं है। अतः मुसलमानों को साथ लेकर उनको उन्नति करवाने में ही देश की भलाई निहित है।
आज हर व्यक्ति जानता है कि ब्राह्मण लगभग 3% होने के बावजूद देश के अधिकतर बड़े कार्यालयों व बड़ी राजनीतिक पार्टियों में अहम भूमिका निभाते चले आए हैं और उन्होंने इसी हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एससी-एसटी को समाज के निचले स्तर पर रखकर बहुत दमन किया है और यदि अब हम उनका साथ ही देते चले जाएंगे तो पढ़े-लिखे होने का कोई लाभ नहीं होगा।
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर से ज्यादा ज्ञानी आदमी मुझे कोई नजर नहीं आ रहा है हमें ज्यादा विश्लेषण नहीं करके उनके दिखाए गए रास्ते पर चलना चाहिए उसी में समाज की भलाई होगी। धर्म को यदि नहीं छोड़ सकते है तो उसके प्रपंचों की मान्यताओं को तो कम किया ही जा सकता है।
सारांश यह है कि अपने आप को मन में बड़ा आदमी समझे, अपना स्वयं व अपने समुदाय का सम्मान करें और हिंदू धर्म को दिमाग में ज्यादा नहीं बिठाये क्योंकि हिंदू धर्म के प्रपंच व वर्ण व्यवस्था के अनुसार हमें वर्णों की श्रेणी में एकलव्य के समय से ही नीचा दर्जा दिया गया है। जबकि वास्तव में हम इस वर्ण व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं है अतः अपने आप को मन में ऊँचा समझे और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को वर्ण से बिलकुल लिंक नहीं करते हुए उसे अपना अधिकार माने।
रघुवीर प्रसाद मीना

No comments:

Post a Comment

Thank you for reading and commenting.