rpmwu263
16.08.2019
प्रतापनगर बालिका छात्रावास और संस्था
यह एकदम सही बात है की प्रताप नगर बालिका छात्रावास "अखिल भारतीय श्री मीना सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्था" की प्रॉपर्टी है। परंतु इसके साथ साथ यह भी उतना ही सही है कि समाज का हर व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन सकता है और संस्था के संचालन में भागीदारी निभा सकता है। संस्था की प्रॉपर्टी की बात को गलत तरीके से इतना उछालना मेरे हिसाब से कोई समझदारी नहीं है।
अब बात आती है की हॉस्टल निर्माण में इतना खर्च नहीं करके पैसे बचाने चाहिए थे और उनसे संचालन में मदद करना चाहिए थी। मैं आपको बताऊं कि यह हॉस्टल केवल दो ही मंजिल का बनाया जा रहा था और संस्था के अधिकतर सदस्य नहीं चाह रहे थे कि हॉस्टल में और तीसरी मंजिल बने क्योंकि फंड की कमी थी। परंतु मैंने और श्री कुंजीलाल मीना जी ने इस विषय में यह सोचा कि जब हॉस्टल बन ही रहा है जिसकी नींव जी+4 मंजिल हेतु उपयुक्त है तो उसमें कम से कम तीन मंजिल तो बनाई जाए ताकि एक अच्छी कैपेसिटी विकसित हो जाये क्योंकि जो पैसे नींव में लगने थे वे तो लग ही चुके थे। इसी भावना से इस हॉस्टल की तीसरी मंजिल बनाई गई ताकि हॉस्टल की कैपेसिटी ठीक-ठाक बन जाए। हॉस्टल में किसी भी प्रकार से अनावश्यक खर्चा नहीं किया गया है। जितना संभव हो सकता था अच्छे से अच्छे प्रयत्नों के साथ कम से कम खर्चे में हाॅस्टल का निर्माण करवाया गया। जहां से भी बचत संभव हो सकती थी जानकारियों के लाभ के माध्यम से कम से कम कीमत में बिल्डिंग मटेरियल लिया गया एवं अच्छे कंम्पटिशन के बाद बनाने वाले लोगों को ठेका दिया गया ताकि कम से कम लागत में हॉस्टल का निर्माण हो और उसकी कैपेसिटी बढ़ जाए। बिना तथ्यों को समझें इस प्रकार पब्लिक में टिप्पणी करना मुझे लगता है ठीक नहीं है।
अब बात रही कि इस हॉस्टल में केवल आदिवासी छात्राएं ही रहनी चाहिए एवं फीस भी कम है और वार्डन भी हमारे समाज की होनी चाहिए। मैं और समिति के सदस्य व्यक्तिगत रूप से इन तीनों चीजों से सहमत रहे है। परन्तु जब वार्डन सिलेक्शन की बात थी तो मैं भी उस समय वहां मौजूद था और सिलेक्शन कमिटी का पार्ट था परंतु देखा गया कि हमारे समाज की महिलाएं वार्डन का काम करने के लिए या तो आगे नहीं आई और जो आगे आई थी वे वास्तव में वार्डन के काम को सम्भालने के लिए योग्य नहीं थी। हॉस्टल के संचालन के लिए सैलरी को देखते हुए जो भी सबसे अच्छा ऑप्शन लगा उसका निर्णय भी काफी दिनों तक इंतजार करने के बाद लिया गया। बीच में मैंने स्वयं ने सोशल मीडिया पर भी लिखा था कि यदि हमारे समाज की कोई महिला वार्डन का कार्य देखना चाहे तो वह अवश्य आगे आये लेकिन उस समय कोई आगे नहीं आयी।
फीस की अगर बात की जाए तो हॉस्टल में वार्डन, सपोर्ट स्टाफ, चौकीदार, गार्डन रखरखाव, बिजली का बिल, साफ सफाई व सामान्य मरम्मत इत्यादि पर प्रतिमाह लगभग 1,18, 500/- रुपए का खर्च है। जिसमें वार्डन की सैलरी मात्र 10500/- प्रति माह ही है। यह खर्चा तो हर माह करना ही होगा, इसके लिए मासिक फीस 1500/- रुपए प्रति छात्रा रखी गई है जो कि अधिक नहीं है। इसी प्रकार मेस के चार्जेस यदि देखें जाए तो प्रतिदिन के हिसाब से ₹83 आते हैं जोकि चार वक्त के खाने व नास्ते/स्नेक्स के लिए अधिक नहीं है।
उक्त सभी के मद्देनजर फीस को कम करने के लिए क्या तरीके हो सकते हैं आप बताएं?
मेरे अनुसार तो यदि हॉस्टल के संचालन का स्टैंडर्ड अच्छा रखना है तो हमें सक्षम लोगों से आर्थिक सहयोग लेने और बच्चियों की फीस को सब्सिडाइज करने के अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आता है। फिर भी आप देखें और सोचें की क्या बेहतर हो सकता है जिससे कि हॉस्टल अच्छी तरह से संचालित हो सके और उसमें आर्थिक रूप से कमजोर बच्चियों का एडमिशन हो सके व वहां रहने वाली छात्राएं आगे बढ़े और समाज का नाम रोशन करें।
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