Sunday 22 March 2020

केवल जातिवाद की बातें करना व कट्टरता रखना समाज हित में नहीं है।

rpmwu261
16.08.2019

#केवल_जातिवाद_की_बातें_करना_व_कट्टरता_रखना_समाज_हित_में_नहीं_है

जब मैं हमारे गांव पीलोदा में 8 वीं कक्षा तक पढ़ता था तो समझता था की पूरी दुनिया में #मीना सबसे #शक्तिशाली जाती है। और दूसरी जातियों को हम कुछ भी नहीं समझते थे क्योंकि वहां रहने वाले दूसरे लोगों की जीवनचर्या मीनाओं के ऊपर ही निर्भर होती थी। उसके बाद जब गंगापुर सिटी में आए तो दूसरे के घर में किराए से कमरे लेकर रहना पड़ता था तब पता चला कि बनिया बामणों की स्थिति मीनाओं की स्थिति से ज्यादा अच्छी है। फिर उसके पश्चात जयपुर में पढ़ने आए तब लगने लगा कि जाट और राजपूत की मीनाओं से भी अधिक चलती है। उसके बाद इलाहाबाद, दिल्ली व जमालपुर पढ़ने गए तो पता चला कि लोग मीनाओं के बारे में ज्यादा नहीं जानते है। उसके बाद जब ट्रेनिंग व पोस्टिंग इत्यादि में मुंबई, बेंगलुरु, चैन्नई इत्यादि गए तो पता चला कि कई लोग पूछते थे कि मीना लड़का होता है या लड़की? और जब मैं सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया व  रूस गया तो पता चला कि वहां लोग मीनाओं को जानते ही नहीं है।
उक्त संपूर्ण #वृतांत से मैं केवल यह बताना चाहता हूं कि व्यक्ति जिस वातावरण में रह रहा है वह उसके हिसाब से ही चीजों को सही समझता है। जो व्यक्ति गांव में रहता है वह सोचता है कि मीना ही सबसे शक्तिशाली जाति है और व्यक्ति जैसे जैसे आगे बढ़ता, विकसित होता है उसको लगने लगता है की दूसरे लोग भी है जो मीनाओं से विकसित व ताकतवर है एवं उनके बिना हमारा काम नहीं चलता है। लेकिन जो व्यक्ति गांव में रहता है हो सकता है उसका काम दूसरी जाति व समाज के लोगों के बिना चल जाए, हालाँकि मुश्किल है। परन्तु जो लोग नौकरी व बिजनेस करते हैं और शहरों में रहते हैं वे अपने आप से पूछे कि क्या उन्होंने कभी जिंदगी में दूसरी जाति के लोगों से सहायता नहीं ली या आने वाले समय में पूरे जीवन में दूसरे समाज के लोगों से सहायता नहीं लेंगे? मुझे लगता है कि हर समझदार व्यक्ति का इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक ही होगा। यथार्थ में वह स्वयं दूसरे समाज के लोगों को सहायता देता है और #दूसरों_से_सहायता लेता भी है, ऐसा करने के बिना काम ही नहीं चल सकता है।
जो लोग कहते हैं कि हमें केवल मीनाओं की बात करनी चाहिए, उनका भी बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि हो सकता है उनके जीवन का अनुभव उसी प्रकार का रहा हो। परंतु यथार्थ यह है कि हमें दूसरे लोगों से भी काम पड़ता है और हम दूसरे लोगों के भी काम आते हैं। मेरे पास हर रोज अक्सर लोग अनुरोध करते है कि फलां जगह फलां अधिकारी है आप उसको कह दो वह मेरे बेटे या बेटी का काम कर देगा। और हम दूसरी जाति या समाज के अधिकारियों से #सहायता करने के लिए कहते भी है व अक्सर काम होता भी है। और सभी लोगों का ऐसा ही अनुभव होगा।
अतः सभी मित्रों से कहना चाहता हूं कि हमें जातिवाद को कट्टरता जो कि नकारात्मक पहलू है कि ओर नहीं ले जाना चाहिये। #जाति_उत्थान की बात करनी चाहिए जो कि दूसरे समाजों के साथ #मिलने_जुलने से ही संभव है। दूसरों से घृणा से नहीं। यदि कोई व्यक्ति सोचे कि वह केवल अपने समाज के बलबूते विकसित हो जाएगा तो यह उसकी भूल है और ऐसा करने से समाज को केवल और केवल नुकसान ही होगा।
हमें आवश्यकता है कि हम #अच्छा_काम करें और #अच्छा_व्यवहार रखें और दूसरे समाज के लोगों की बेवजह इंसल्ट नहीं करें और हम भी दूसरों के काम आए और दूसरे भी हमारे काम आए ऐसी विचारधारा विकसित करते हुए समाज की #ब्रांड_वैल्यू को ऊंचा करने के हर संभव प्रयास किए जाएं। 
एक और महत्वपूर्ण पहलू है कि अमर्यादित व असंसदीय भाषा का प्रयोग व्यक्ति के स्वयं की पर्सनैलिटी को नकारात्मक प्रदर्शित करती है। अतः ऐसी भाषा से बचें और यदि अापके विचार नहीं मिल रहे हो और आप विरोध प्रकट करना चा रहे हैं तो अवश्य प्रकट करें परंतु भाषा को #संयमित रखें, यही आपके #सभ्य होने की निशानी है।
रघुवीर प्रसाद मीना

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