Thursday 28 September 2017

Know Your Parents (KYP)


rpmwu123
28.09.2017

One who loves till her eyes close, is a *Mother*.
One who loves without an expression in the eyes, is a *Father*.
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*Mother* - Introduces you to the world.
*Father* - Introduces the world to you.
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*Mother* : Gives you life
*Father*   : Gives you living
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*Mother* : Makes sure you are not starving.
*Father*  : Makes sure you know the value of starving
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*Mother* : Personifies Care
*Father*: Personifies Responsibility
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*Mother* : Protects you from a fall
*Father* : Teaches you to get up from a fall.
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*Mother* : Teaches you walking.
*Father* : Teaches you walk of life
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*Mother* : Teaches from her own experiences.
*Father* : Teaches you to learn from your own experiences.
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*Mother* :  Reflects Ideology
*Father* :  Reflects Reality
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*Mother's* love is known to you since birth.
*Father's* love is known when you become a Father.
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Dedicated to all parents.
Taken from whatsapp messages.

Thursday 21 September 2017

Pin drop silence, worth reading! तीसरी घटना, साहस के साथ बोलने के लिए प्रोत्साहित करती है।

rpmwu122
21.09.2017

Can you hear a pin drop?
What is the meaning of pin drop silence?
Following are some instances when silence could speak louder than voice.
Take 1:
Field Marshal Sam Bahadur Maneckshaw once started addressing a public meeting at Ahmedabad in English.
The crowd started chanting, "Speak in Gujarati.  
We will hear you only if you speak in Gujarati."
Field Marshal Sam Bahadur Maneckshaw stopped.
Swept the audience with a hard stare and replied,
"Friends, I have fought many a battle in my long career. 
I have learned Punjabi from men of the Sikh Regiment;
Marathi from the Maratha Regiment;
Tamil from the men of the Madras Sappers;
Bengali from the men of the Bengal Sappers,
Hindi from the Bihar Regiment; and
Even Nepali from the Gurkha Regiment.  
Unfortunately there was no soldier from Gujarat from whom I could have learned Gujarati."...
You could have heard a pin drop
Take 2:
Robert Whiting,
an elderly US gentleman of 83, arrived in Paris by plane.
At French Customs, he took a few minutes to locate his passport in his carry on.
"You have been to France before, Monsieur ?", the Customs officer asked sarcastically.
Mr. Whiting admitted that he had been to France previously.
"Then you should know enough to have your passport ready."
The American said,
"The last time I was here,
I didn't have to show it."
"Impossible. 
Americans always have to show their passports on arrival in France !", the Customs officer sneered.
The American senior gave the Frenchman a long, hard look.
Then he quietly explained
"Well, when I came ashore at Omaha Beach,
at 4:40am, on D-Day in 1944, to help liberate your country, I couldn't find a single Frenchman to show a passport to.... "
You could have heard a pin drop
Take 3:
Soon after getting freedom from British rule in 1947, the de-facto prime minister of India, Jawahar Lal Nehru called a meeting of senior Army Officers to select the first General of the Indian army.
Nehru proposed, "I think we should appoint a British officer as a General of The Indian Army, as we don't have enough experience to lead the same."
Having learned under the British, only to serve and rarely to lead, all the civilians and men in uniform present nodded their heads in agreement.
However one senior officer, Nathu Singh Rathore, asked for permission to speak.
Nehru was a bit taken aback by the independent streak of the officer, though, he asked him to speak freely.
Rathore said, "You see, sir, we don't have enough experience to lead a nation too, so shouldn't we appoint a British person as the first Prime Minister of India?"
You could hear a pin drop.
After a pregnant pause, Nehru asked Rathore,
"Are you ready to be the first General of The Indian Army?"..
Rathore declined the offer saying "Sir, we have a very talented army officer, my senior, Gen. Cariappa, who is the most deserving among us."
This is how the brilliant Gen. Cariappa became the first General and Rathore the first ever Lt. General of the Indian Army.
(Many thanks to Lt. Gen Niranjan Malik PVSM (Retd) for this article.)

Monday 18 September 2017

बच्चों पर अनावश्यक दवाब नहीं बनायें, उन्हें हौसला देने की जरूरत है।

rpmwu121
18.09.2017

सिंगापुर में परीक्षा से पहले प्रिंसिपल ने बच्चों के पैरेंट्स को एक लेटर भेजा, जिसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है :-
"डियर पैरेंट्स,
मैं जानता हूं कि आप इसको लेकर बहुत बेचैन हैं कि आपका बेटा इम्तिहान में अच्छा प्रदर्शन करे।
लेकिन ध्यान रखें कि ये बच्चे जो इम्तिहान दे रहे हैं, इनमें भविष्य के अच्छे कलाकार भी हैं जिन्हें गणित समझने की बिल्कुल जरूरत नहीं।
इनमें बड़ी बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि भी बैठे हैं, जिन्हें इंग्लिश लिटरेचर और इतिहास समझने की जरूरत नहीं है।
इन बच्चों में भविष्य के बड़े-बड़े संगीतकार भी हैं, जिनकी नजर में केमिस्ट्री के कम अंकों का कोई महत्व नहीं।
इन बच्चों में भविष्य के एथलीट्स भी हैं जिनकी नजर में उनके मार्क्स से ज्यादा उन की फ़िटनेस जरूरी है|
लिहाजा अगर आपका बच्चा ज्यादा नंबर लाता है तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन अगर वह ज्यादा नंबर नहीं ला सका तो आप बच्चे से उसका आत्मविश्वास और उसका स्वाभिमान ना छीन लें।
अगर वह अच्छे नंबर ना ला सके तो आप उन्हें हौसला दीजिएगा कि कोई बात नहीं, यह एक छोटा सा इम्तिहान हैl
वे तो जिंदगी में इससे भी कुछ बड़ा करने के लिए बनाए गए हैं l
अगर वे कम मार्क्स लाते हैं तो आप उन्हें बता दें कि आप फिर भी इनसे प्यार करते हैं, और आप उन्हें उन के कम अंकों की वजह से जज नहीं करेंगे l
ईश्वर के लिए ऐसा ही कीजिएगा, और जब आप ऐसा करेंगे फिर देखिएगा कि आपका बच्चा दुनिया भी जीत लेगा l
एक इम्तिहान और कम नंबर आपके बच्चे से उसके सपने और उसका टैलेंट नहीं छीन सकते।
और हां...प्लीज़ ऐसा मत सोचिएगा कि इस दुनिया में सिर्फ डॉक्टर और इंजीनियर ही खुश रहते हैं।
"अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनने की शिक्षा दीजिये!
केवल अंक ही बच्चों की योग्यता का मापदंड नही हैं।
- आपका प्रिंसिपल

Friday 15 September 2017

भेदभाव करके मनुष्य बड़ा नहीं बन सकता है - बिना भेदभाव के जीवन जीने की पद्धति अपनाना ही श्रेष्ठ है।

rpmwu120
15.09.2017

सुर्य हम सभी के जीवन व प्रकृति संचालन में बहुत ही अहम् भूमिका निभाता है। सोच कर विचार करने पर पता चलता है कि सूरज सभी के साथ एक जैसा ही व्यवहार करता है। सुर्य अच्छी से अच्छी व खराब से खराब चीज, मनुष्य व अन्य जीवजंतु, अमीर व गरीब सभी पर एक जैसा प्रकाश डालता है। कीचड़ व पवित्र जल को एक ही भाव से सुखाता है। ऐसे ही जल, अग्नि व वायु सभी के साथ समान व्यवहार करते है। अर्थात यदि किसी को बड़ा होने का गौरव प्राप्त करना है तो वह भेदभाव नहीं कर सकता है।
उक्त से प्रेरणा लेते हुए हम सभी को चाहिये कि हमारे जीवन में हम बिना भेदभाव बरते हुए कार्य करे। भेदभाव से दूर रहकर, हम ना केवल सभी की मदद कर सकेगें बल्कि एक ऐसा संदेश भी दे पायेंगे जिससे दूसरे प्रेरित होकर भेदभाव छोड़ देगें।
रघुवीर प्रसाद मीना

भारत में आम आदमी के दुखों का मु्ख्य कारण भ्रष्टाचार है जिसका मूल धर्मिक अंधविश्वास के प्रदुषण, जातिगत भेदभाव व चरित्र के दौगलेपन में समाहित है।

rpmwu119
15.09.2017

दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। मैं भी इसे सही, महत्वपूर्ण व उपयोगी समझकर आपको प्रेषित कर रहा हूँ–
  *न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।*
*भारतीय लोग  होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)*
भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती
*ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये।*
भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।
*जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है।*
*जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।*
*भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।*
*भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि*
1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते ।
2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है
भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था।  कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था।
प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये  सौदेबाजी का कल्चर नही है
3- *भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता।  उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते।  भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।*
लेखक-ब्रायन,
गाडजोन न्यूजीलैंड
http://www.madhyamarg.com/mudde/article-of-brian-on-corruption/
आवश्यकता है कि हम सभी समझे और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदुषण, जातिगत भेदभाव की भावना व दौहरे चरित्र से अपने आप रखें व दूसरों को भी दूर रहने हेतु प्रेरित करें।

Tuesday 5 September 2017

रेलवे में यदि सफाई के स्तर को वास्तव में सुधारना है तो सफाई कर्मियों की दशा सुधारना जरूरी है।

rpmwu118
04.09.2017

रेलवे पिछले कई वर्षों से लगातार हरसम्भव प्रयास कर रही है परंतु फिर भी रेलवे स्टेशनों व रेलगाड़ियों के सफाई के स्तर में वांछित सुधार नहीं आ पाया है। इसका मुख्य कारण यह है कि सफाई कार्य करने वाले ठेकेदार के कर्मी असंतुष्ट एवं उदासीन भाव से कार्य करते हैं क्योंकि उनको दी जाने वाली मेहनताना राशि, जोकि सफाई पर होने वाले खर्च का लगभग 70% भाग से अधिक है, का रेलवे तो न्यूनतम मजदूरी के अनुसार भुगतान करती है परन्तु ठेकेदार इन कर्मियों को विभिन्न तरीके अपनाकर बहुत कम, तय न्यूनतम मजदूरी के 1/2 से भी कम एवं 8 घंटे के स्थान पर 12 घंटे काम करवा कर, भुगतान करते है। साथ में उनको भविष्य में भी कोई उन्नति का रास्ता नजर नहीं आता है। यही वजह है जिससे वे असंतुष्ट व उदासीन भाव से गुणवत्ता पर बिना ध्यान दिये कार्य को केवल निपटाते है। यह भी नोट किया है कि ठेकेदार कर्मियों की संख्या को पूर्ण करने के लिए बिना प्रशिक्षण दिये कैसे भी अक्षम लोगो को कार्य करने हेतु लगा देते है एवं अच्छी गुणवत्ता के कार्य के लिए आवश्यक कंज्यूमेबलस्, टूल्स, उपकरण, ड्यूरेबल आईटमस् व मशीनें इत्यादि भी मुहैया नहीं कराते है। कार्य की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु योग्य पर्यवेक्षक भी नहीं लगाये जाते है। ठेकेदारों का प्रयास केवल बचत करना मात्र रहता है।
उक्त कार्यशैली अपनाकर सफाई के स्तर में कभी भी वांछित सुधार सुनिश्चित नहीं हो पायेगा। हमें चाहिये कि सफाई कर्मी संतुष्ट व खुश रहे और उनमें भविष्य में उन्नति की आशा भी रहे। अतः स्थिति में सुधार हेतु निम्न सुझाव है-
1. सफाई कार्यों को ठेके पर सम्पादित करवाना बंद करवाया दिया जाये। इसके स्थान पर कर्मियों को पूर्ववर्ती कैज्यूअल लेबरस् की तर्ज पर डायरेक्ट इनगेज किया जाये एवं रेल्वे बैंक पेमेंट के माध्यम से उनको तय न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करें। यह कार्य कार्मिक विभाग की मदद से आसानी से किया जा सकता है।
2. अच्छे भविष्य की आशा जागृत रखने हेतु  लगातार तीन बर्ष अच्छा कार्य करने वालों के लिए "ग्रुप-डी" की भर्ती में 10% प्रतिशत या उपयुक्त कोटा निर्धारित किया जाये। तीन बर्ष की कार्य अवधि के बाद भी यदि व्यक्ति चाहे तो उसे कार्य करने देना चाहिये ताकि रेलवे को अनुभवी व प्रशिक्षित कर्मी मिलते रहे।
3. समय पर प्लान किए हुए टूल्स, उपकरण, मटेरियल, केमिकल्स व अन्य कंज्यूमेबलस् स्टोर विभाग के माध्यम से रेट कॉन्ट्रैक्ट या फेज्ड़ डिलेवरी बनवाकर नियमित रूप से खरीदे जा सकते हैं। एवं खास परिस्थितियों में कैश इम्प्रेस्ट के माध्यम से इनकी व्यवस्था की जा सकती है। मदों को सीधे मैन्यूफैक्चरर या उनके अधिकृत डीलर से ही खरीदा जाये।
4. मशीनों की खरीद हेतु वरिष्ठ मंडल यांत्रिक इंजीनियरस् एवं वरिष्ठ कोचिंग डिपो अधिकारियों को पावर दी जाएँ कि सफाई के कार्य में आने वाली मशीनों की स्वीकृति स्वयं कर सके एवं उन्हें खरीदने हेतु मंडल स्तर पर नॉर्मल या स्पॉट परचेज के तहत त्वरित प्रक्रिया अपनाकर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। मशीनों के रखरखाब हेतु सीएएमसी दी जाये।
उक्त प्रक्रिया को अपनाने मैं जो ऊर्जा लगेगी वह ठेके देने, उन्हें लगातार मॉनिटर करने, उनके बिल फाइनल करने, ठेकेदार को चैज करने, उन पर पैनल्टी लगाने और गुणवत्ता सुधारने हेतु बार-बार में लिखने इत्यादि में लगने वाली ऊर्जा से कम होगी। ऐसा करने से न केवल सफाई की गुणवत्ता के स्तर में वांछित सुधार होगा बल्कि गरीब मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिलने से उनके जीवन स्तर में सुधार होगा और उनके बच्चे भी पढ़ लिखकर देश के अच्छे नागरिक बन सकेंगे।
रघुवीर प्रसाद मीना
मुख्य चल स्टाक इंजीनियर
पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर।