Thursday 22 September 2022

Name & Surname

rpmwu457 dt. 22.09.2022

There is nothing in the Name but in our country there is a lot in Surname.
बड़ा दुर्भाग्य व शर्मसार है कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के बावजूद भी आजादी के अमृत महोत्सव में हमारे देश में आज भी नाम के साथ लगे सरनेम के आधार पर डिस्क्रिमिनेशन होता है। शायद अनेकों नेताओं, अधिकारियों, कर्मचारियों व जनमानस ने इसे महसूस किया होगा। व्यक्ति का सरनेम तय करता है कि उसकी न्यायालयपूर्ण मांग की भी सुनवाई होगी अथवा नहीं। अत्याचार के विरोध में बहुत कम लोग साथ देते है।

देश के सेन्ट्रल विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्ग की टीचिंग फेकल्टी की भारी रिक्तियां है परन्तु उचित कार्यवाही की गति बहुत ही धीमी है। अनेकों प्रकरणों में NOT FOUND SUITABLE (NFS) के आधार पर रिक्तियों को नहीं भरा जाता है जबकि आज के दिनों में ऐसा हो सकना यथार्थ प्रतित नहीं होता है। 

राजस्थान में परीक्षा सम्पन्न होने के बाद आरक्षित वर्ग की रिक्तियों को कम कर दिया गया। अभ्यर्थी दर दर ठोकर खा रहे है परन्तु कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हो रही है।

कृपया प्रण करे कि देश के किसी भी नागरिक के भी साथ सरनेम के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। जिसके भी साथ अन्याय हो रहा हो, उसकी यथासंभव मदद करें।

सादर
Raghuveer Prasad Meena

Wednesday 21 September 2022

Hypocrisy (दोगलापन, कपट, पाखंड)


rpmwu457 dt 21.09.2022
Hypocrisy : डिक्शनरी के मुताबिक हिपाॅक्रसि का अर्थ निम्नलिखित है - 
behaviour in which somebody pretends to have moral standards or opinions that he/she does not really have
(वास्‍तविकता के विपरीत) उच्‍च नैतिक मानदंड और व्‍यवहार का ढोंग रचना; पाखंड, ढोंग, मिथ्‍याचार। 

आमतौर पर हमारे देश में अधिकांशतः व्यक्तियों के व्यवहार में दोगलापन (hypocrisy) बहुत लम्बे अर्से से है। यहां तक कि भगवान मानने वालो ने भगवान को भी नहीं छोड़ा। कहने को कहते है कि कण कण में भगवान है परन्तु वर्ण व्यवस्था के अनुसार शूद्र वर्ण के नागरिकों में उनको कभी भगवान नहीं दिखाई दिया।

व्यक्ति सोचता कुछ है और कहता कुछ और है या कहता कुछ है और करता कुछ और ही है। व्यवहार की ऐसी विषमताएं हिपाॅक्रसि है। 

व्यक्ति के व्यवहार में हिपाॅक्रसि के माध्यम से दूसरों को मुर्ख बनाने के निम्नलिखित कारण हो सकते है - 
1. भय : व्यक्ति सही बात को कहने से विभिन्न कारणों से डरता हो।
2. लालच : कुछ खो नहीं जाये, इस बात का लालच। हो सकता है सही कहने से व्यक्ति नाराज होकर बात मानना बंद कर दे और वह नियंत्रण से निकल जाये।
3. यह भी हो सकता है कि सही बात इसलिए नहीं कह रहा हो कि सामने वाले को खराब महसूस नहीं होने देना चाहता हो।
4. मोरल वैल्यूज् के विरूद्ध बात करने से पब्लिक आॅपिनियन का डर हो।

देश की उन्नति व नागरिकों की आपस में सद्भावना में हिपाॅक्रसि एक प्रमुख प्रतिरोध है। अतः इसे समझना चाहिए और यथासंभव व्यवहार में नहीं अपनाये। जो लोग हिपाॅक्रेट है उनको पहचाने और उनकी बातों पर भरोसा नहीं करे। 

स्वयं ट्रांसपेरेंट रहने का प्रयास करें। सोच, कथनी व करनी में समरूपता रखें।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Saturday 17 September 2022

सामाजिक समरसता व सौहार्द

rpmwu456 dt.17.09.2022
विचारणीय सामाजिक समरसता व सौहार्दपूर्ण जीवनशैली अपनायें।

आजकल देखा जा रहा है कि व्यक्ति तार्किक तौर पर व्यक्त किये गये विचारों को जाति, धर्म, समुदाय विशेष के विरूद्ध मानकर बहुत जल्दी नाराज हो जा रहे है और प्रतिक्रिया में सामूहिक विरोध करना प्रारंभ कर देते है। ऐसा होने से सामाजिक समरसता व सौहार्द बिगड़ने लगा है।

कृपया निम्नलिखित पर विचार करें -
1. किसी भी व्यक्ति का जन्म उसके स्वयं के वश में नहीं है। उसका जन्म किसी भी जाति, धर्म या समुदाय में हो सकता है।

2. यदि दो बच्चों की जन्म के समय दूसरे धर्म, जाति या समुदाय में अदला-बदली हो जाये तो जब वे बड़े होंगे तो उनकी विचारधारा परवरिश के माहौल व रीति रिवाजों पर निर्भर करेगी ना कि उनके बायोलॉजिकल माँ बाप के जाति, धर्म या समुदाय के अनुरूप होगी। फिर विचारधारा में कट्टरता का मायना क्या है? 

3. हम सभी अपने-अपने व्यक्तिगत जीवन में सभी जाति, धर्म व समुदाय के लोगों की मदद लेते है और करते भी है। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने दूसरे धर्म, जाति व समुदाय के व्यक्तियों से कभी भी मदद नहीं ली हो, तो इनके आधार पर भेदभाव व दुर्भावना का कितना औचित्य है? 

4. विचार करें कि हमारे जीवन के उपयोग या उपभोग में आने वाली अधिकांश चीजें आखिरकार वैज्ञानिक अनुसंधान की ही देन है। जो भी देश आज अग्रणी श्रेणी में है वे विज्ञान के कारण ही है। 

5. सरसरी नज़र से लगता तो ऐसा है कि धर्म मानवता के हित में है। धार्मिक व्यक्ति शिष्टाचारयुक्त व मानवीय गुणों से ओतप्रोत होगा। परन्तु धर्म के आधार पर एक दूसरे के साथ जो दरिंदगी व भेदभाव किये गये है या किये जाते है, वे बहुत ही अमानवीय है। यूरोप व अमेरिका में रंगभेद व भारत में छूआछूत के आधार पर एक ही धर्म के लोगों ने उनके ही धर्म के लोगों के साथ शारीरिक और मानसिक अत्याचार किये। यहां तक कि लोगों को पढ़ने तक नहीं दिया गया। कुछ लोग आज भी छुपे रूप से भेदभाव व अत्याचार करते है। 

6. जिन लोगों के साथ रंगभेद व छूआछूत के कारण पहले बहुत अधिक भेदभाव व अत्याचार हुआ, अब कालांतर में सामाजिक सोच, जागरूकता, रहन-सहन व तौर तरीके बदलने के कारण वे पढ़ने लिखने लगे गये और तार्किक बाते करने लगे है। ईमानदार सोच वाले समझदार लोग उनका पक्ष लेते है, तत्थात्मक विचार प्रकट करते है और शोषितों का मनोबल बढ़ाते है। परन्तु दकियानूसी सोच वाले एवं जिन लोगों के स्वार्थ पर चोट पडती है वे लोग उनकी बातों का बुरा मानते है और होहल्ला करने लग जाते है। हालांकि जागृति की ज्योति बुझ नहीं पायेगी। उनका विरोध आग में घी का काम करेगा। 

अत: लोगों के साथ लम्बे समय तक हुए अत्याचार की पीड़ा को समझते हुए बेवजह धर्म, जाति और समुदाय के आधार पर सामाजिक समरसता व सौहार्द को खराब नहीं करे।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Sunday 4 September 2022

आदिवासियों को किस दिशा में चलना होगा?

rpmwu455 dt 04.09.2022

आदिवासियो_की_उन्नति_की_दिशा
विचारणीय सामाजिक कार्यकर्ता आदिवासियों व ˈमार्जिनलाइज़्ड नागरिकों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए अथक प्रयास करते है। वे चाहते कि हाशिये पर खड़े देश के नागरिक मुख्य धारा में शामिल हो। ये उनके की प्रयास है जिसके कारण आदिवासियों व उनके समान पिछड़े अन्य नागरिकों के कल्याण के लिए कानून बनते है एवं अग्रणी नागरिकों के मन में उनके उत्थान के लिए सद्भावना विकसित होती है। अतः सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आदिवासियों व पंक्ति के अंतिम छोर पर बैठे नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने का हर प्रयास साधुवाद से औतप्रोत समझा जाये।

दूसरी ओर हम सभी को विचार करना होगा कि डैम इत्यादि बनाकर देश की प्राकृतिक संपदा के सदुपयोग से देश की उन्नति करना भी आवश्यक है। बड़े प्रोजेक्ट्स में आदिवासियों का विस्थापन एक बड़ी चुनौती है। सरकार व आदिवासियों दोनों को ही जीत-जीत (win-win) की स्थिति बनाने का प्रयास करना चाहिए।

सरकार को चाहिए कि प्रथम तो आदिवासियों को न्यूनतम विस्थापित करे और जिनका विस्थापन अपरिहार्य है उन्हें पूरा मुआवजा बिना किसी बाधा के मिल जाये। आदिवासियों के मन में जगह विशेष से लगाव रहता है अतः उनके द्वारा किये गये छोटे मोटे प्रतिरोध को नजरअंदाज कर दिया जाये। नये विस्थापित स्थान पर आवास, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सामाजिक जीवन से जुड़ी यथासंभव बेहतर से बेहतर सुविधाएं निशुल्क मुहैया कराई जाये। आदिवासियों को भूमि व अन्य संसाधनों  के अधिकार दिये जाये।

आदिवासी आदिवासियों को भी उन्नति करने व मुख्य धारा में आने के लिए स्वयं की सोच में बदलाव करने की सख्त जरूरत है। केवल जल_जंगल_जमीन की बाते करने से उन्नति नहीं होने वाली है। मेरे मतानुसार आदिवासियों को निम्नलिखित दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है -

1. आदिवासियों को चाहिए कि वे मन में अपने आप को बड़ा समझे और पहचाने कि वे जहां रह रहे है वह स्थान सदियों से उनके पुर्बजो का रहा है। वर्तमान युग में आर्थिक रूप से पिछड़ जाने से मन में किसी प्रकार की हीन भावना नहीं आने दे। आदिवासी किसी भी तरह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था का हिस्सा नहीं रहे है। आदिवासी संस्कृति में सभी लोग समान है। कोई ऊंच नीच नहीं है। आदिवासी हमेशा खुद्दार, बहादुर, न्यायप्रिय व दूसरों के काम आने वाले लोग रहे है। आदिवासियों ने दुसरों को ज्यादा दिया है लिया बहुत कम है।

2. आदिवासियों को स्वयं जानना होगा कि आखिर वे उनकी ही जमीन पर दूसरों से पीछे कैसे रह गये? क्या कारण व कमियां रही है जिनसे वे अंतिम छोर पर पहुंच गए है? उन्नति का मतलब क्या है? सही मंजिल क्या है? कैसे आगे बढ़े? किसका साथ ले?

3. सबसे प्रथम आदिवासियों को उनकी दुर्दशा के कारणों को पहचानना होगा, जो कि निम्न प्रकार है -
3.1 आदिवासियों का साधा व संतुष्टिपूर्ण जीवन-पद्धति व दूसरों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना।
3.2 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दूर रहना व अंधविश्वासी होना।
3.3 नशे की लत व उसे सामाजिक मान्यता प्रदान करना। 
3.4 अशिक्षा व शिक्षा की सुविधाएं नहीं होना। 
3.5 स्वास्थ्य की सुविधाएं मुहैया नहीं होना।
3.6 जंगलों की भूमि के अधिकार नहीं होना।
3.7 मुख्य धारा में जाने की सोचने की बजाय वर्तमान दुखद स्थिति में संतुष्ट रहना।
3.8 घर से दूर जाने में हिचकना।
3.9 ब्याज व शोषण कर्ताओं के चुंगल में फंसना।
3.10 किसी भी राज, पार्टी, व्यक्ति के लिए जरूरत से ज्यादा निष्ठावान (loyal) होना। निष्ठा छोड़ने में देरी करना।
3.11 रहने के क्षेत्र में यातायात के संसाधनों की कमी होना।
3.12 आदिवासी राजनेताओं की ज्यादा चलती नहीं है। वे उनके समाज के लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की क्रियान्विति नहीं करवा पाते है।
3.13 पढ़े लिखे आदिवासी अधिकारी अपने परिवार तक सीमिट कर रह जाते है। दूसरों के उत्थान के लिए कम लोग ही काम करते है।
3.14 राज में हिस्सेदारी के लिए प्रयास नहीं करना।
3.15 राजनीतिक समझ में कमी। राजनीति की बातों से मुंह मोड़ना। 
3.16 मुख्य रूप से पारम्परिक खेती पर निर्भर होना। बिजनेस में लगभग नगण्य हिस्सेदारी है। सामाजिक तौर पर भी प्रोत्साहन नहीं है।
3.17 विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासियों में आपसी मेलजोल की कमी है। विचारों का आदान-प्रदान नहीं होता है।
3.18 धर्म, संस्कृति, नाचगान व इतिहास की बातों पर जरूरत से ज्यादा समय व संसाधन खर्च करना।
3.19 सरकार की जनजाति कल्याणकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होना।
3.20 संविधान के शैड्यूल 5 व 6 के प्रावधानों का सही रूप में लागू नहीं होना।
3.21 हिल व दूर दराज के कठिन जगहों पर निवास करना।
3.22 जबरन विस्थापन व मुआवजा नहीं मिलना।
3.23 फोरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 की सही तरह से अनुपालना नहीं होना। 

4. उक्त क्रमांक 3 पर सूचि बद्ध बिन्दुओं के अलावा भी कई अनेक कारण है जिनकी वजह से आदिवासी पिछड़े हुए है। अब अहम बात यह है कि समाधान क्या है? उक्त प्रत्येक बिन्दु पर आदिवासियों के युवाओं को स्वयं समझना होगा और सुधारात्मक कदम उठाने होंगे। नाज गान, पुराने रीति-रिवाजों व संस्कृति पर बने रहने से काम नहीं चलने वाला है। उन्हें उनके हित के लिए बदलना होगा। असंतुष्ट बनना होगा। किसी के लिए भी अंधी निष्ठा नहीं होनी चाहिए। तय करें कि एक दिन देश के सभी आदिवासी मुख्य धारा का हिस्सा बने।

#आदिवासियोंकोउनकेसोचनेकेतरीकेमेंबदलावकरनाहोगाऔरमुख्यधारामेंआनाहीचाहिये।

कृपया इस विषय पर आपके विचारों से भी अवगत कराये। 

सादर
Raghuveer Prasad Meena

वैल्यू (Value)

rpmwu454 Dt. 04.09.2022

हर व्यक्ति को वैल्यू को समझना बहुत जरूरी है। आखिर चीजों व जीवन के विभिन्न पहलुओं की वैल्यू का मतलब क्या है? इसे साधारण निम्नलिखित उदाहरणों से आसानी से समझा जा सकता है -

1. पैन की वैल्यू है कि वह लिखे। पेन चाहे कितना भी सुन्दर हो या किसी भी चीज का बना हो या किसी ने भी बनाया हो यदि वह लिख नहीं सकता है तो पेन के रूप में उसकी कोई वैल्यू नहीं है।

2. भैंस की वैल्यू है कि वह दूध दे। परन्तु यदि वह कभी भी दूध ही नहीं दे तो चाहे उसके सींग कितने अच्छे हो या पूंछ लम्बी हो या शरीर सुडोल हो तो उसकी भैंस से अपेक्षित वैल्यू नहीं है।

3. इंटेरनेट कनेक्शन की वैल्यू है कि वह आपके मोबाइल, लैपटॉप या कम्प्यूटर पर डेटा अपलोड या डाउनलोड करें। परन्तु यदि वह ऐसा नहीं करता है तो चाहे किसी भी कम्पनी का हो उसकी कोई वैल्यू नहीं है।

4. राजनेता की वैल्यू है कि वह नागरिकों के कल्याण व उन्नति के मुद्दों की पहल व वकालत करे। यदि पार्टी के टिकट या पद की लालच या किसी डर से ऐसा नहीं करे और चुप रहे तो ऐसे राजनेताओं की कोई वैल्यू नहीं है चाहे वे किसी भी विचारधारा या जाति या धर्म से सम्बंध रखते हो।

5. पुलिस की वैल्यू है कि वह नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराये। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो चाहे पुलिस वाले कितने हष्ट-पुष्ट हो, माडर्न हथियार व संसाधनों से युक्त हो, अच्छी बाते करते हो, उनकी कोई वैल्यू नहीं है।

6. माननीय न्यायालयों की वैल्यू है कि वे नागरिकों को न्याय प्रदान करे ताकि देश में कानून का सम्मान हो, कोई भी नागरिक बेवजह अत्याचार का शिकार नहीं हो। यदि ऐसा नहीं हो तो न्यायालय की वैल्यू कम होना स्वाभाविक है।

7. सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की वैल्यू है कि वे उनकी जिम्मेदारियों का सही निर्वहन करे ताकि नागरिकों को सहुलियत मिले। जो ऐसा नहीं करते है तो उनकी कोई वैल्यू नहीं है। 

8. स्टूडेंट की वैल्यू है कि वह पढ़े और ज्ञानार्जन करें। यदि वह पढ़ने की उम्र में ऐसा नहीं करता है और दूसरी चीजों में व्यस्त रहता है तो ऐसे स्टूडेंट की कोई वैल्यू नहीं है। 

वैल्यू के कांसेप्ट को समझने के लिए उक्त तो कुछ ही उदाहरण है। जिनसे  एकदम स्पष्ट है कि चीजों की वैल्यू का क्या तात्पर्य है। और  अनेक उदाहरण हो सकते है। 

अब विचार करें कि हमारे स्वयं व दूसरों से भी जीवन के विभिन्न पहलुओं में वैल्यू अपेक्षित रहती है। हर सामाजिक सम्बन्ध में वैल्यू अपेक्षित होती है। पिता, माँ, पुत्र, पुत्री, मित्र, पति, पत्नि, भाई, बहन, रिश्तेदार, मित्र, जानकर के रूप में व अनजान के लिए मानवीय गुणों के आधार पर वैल्यू अपेक्षित रहती है। इसी प्रकार इम्प्लोयर व इम्प्लोयी से वैल्यू अपेक्षित होती है। नेता व जनता से एक दूसरे के लिए वैल्यू अपेक्षित होती है।

हर व्यक्ति को उसकी विभिन्न भूमिकाओं  में अपेक्षित वैल्यू का स्वयं को ध्यान रखने की जरूरत है। अपेक्षा करने वालो को भी चाहिए कि बेवजह बिना वैल्यू वाले लोगों या चीजों को अनावश्यक लम्बे समय तक ढोये नहीं। जो पेन लिख नहीं सकते है उन्हें त्यागना बेहतर है। यह तार्किक तथ्य राजनेताओं सहित सभी के लिए लागू है।

सादर
Raghuveer Prasad Meena