rpmwu457 dt. 22.09.2022
There is nothing in the Name but in our country there is a lot in Surname.
बड़ा दुर्भाग्य व शर्मसार है कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के बावजूद भी आजादी के अमृत महोत्सव में हमारे देश में आज भी नाम के साथ लगे सरनेम के आधार पर डिस्क्रिमिनेशन होता है। शायद अनेकों नेताओं, अधिकारियों, कर्मचारियों व जनमानस ने इसे महसूस किया होगा। व्यक्ति का सरनेम तय करता है कि उसकी न्यायालयपूर्ण मांग की भी सुनवाई होगी अथवा नहीं। अत्याचार के विरोध में बहुत कम लोग साथ देते है।
देश के सेन्ट्रल विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्ग की टीचिंग फेकल्टी की भारी रिक्तियां है परन्तु उचित कार्यवाही की गति बहुत ही धीमी है। अनेकों प्रकरणों में NOT FOUND SUITABLE (NFS) के आधार पर रिक्तियों को नहीं भरा जाता है जबकि आज के दिनों में ऐसा हो सकना यथार्थ प्रतित नहीं होता है।
राजस्थान में परीक्षा सम्पन्न होने के बाद आरक्षित वर्ग की रिक्तियों को कम कर दिया गया। अभ्यर्थी दर दर ठोकर खा रहे है परन्तु कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हो रही है।
कृपया प्रण करे कि देश के किसी भी नागरिक के भी साथ सरनेम के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। जिसके भी साथ अन्याय हो रहा हो, उसकी यथासंभव मदद करें।
सादर
Raghuveer Prasad Meena
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