rpmwu 459 dt. 20.11.2022
#सबोर्डिनेट_कल्चर हमारे देश में सामान्यतः जब दो व्यक्ति मिलते है तो वे खुलकर बात करने से पहले एक दूसरे के बारे में यह जानने की कोशिश करते है कि सामने वाले का लेवल क्या है? दोनों ही स्वयं की तुलना में दूसरे के लेवल के काॅर्डिनेटस् तय करने का प्रयास करते है। उसके बाद वार्तालाप के व्यवहार में एक दूसरे को ऊंचा या समस्तर या नीचे मानकर आगे बढ़ते है।
सदियों पुरानी मानसिक बीमारी है कि सामान्य नागरिक, व्यक्ति का लेवल धर्म, जाति व समुदाय के आधार पर निर्धारित करते है। माडर्न व पढ़े-लिखे लोग सामने वाले की नौकरी के प्रकार व स्तर अथवा व्यवसाय के बारे में पता करके लेवल निर्धारित करते है।
लेवल निर्धारित होने के पश्चात वे अपने आप को ऊपर या नीचे (subordinate) मानकर विचार विमर्श व डिस्कशन करते है।
आवश्यकता है कि वार्तालाप व व्यवहार में व्यक्ति के सोचने का तरीका, विचार, अनुभव, ज्ञान, जनसामान्य के कल्याण के लिए दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होने चाहिए ना कि धर्म, जाति, समुदाय, नौकरी, व्यवसाय के आधार पर उसके लेवल के काॅर्डिनेटस्।
सादर
Raghuveer Prasad Meena
No comments:
Post a Comment
Thank you for reading and commenting.