Sunday 4 December 2022

आदिवासियों के कल्याण के लिए आवाज उठायें।

rpmwu 462 dt 04.12.2022

सही_बात_को_डट_कर_बोलें_जो_जहां_है_वहां_से_बोलेसही_व_हक_की_बात_को_कहने_में_संकोच_नहीं_करे
हम_नहीं_कहेंगे_तो_दुसरा_कौन_और_क्यों_कहेगा?
बोलोगे_तो_सभी_सुनेंगे_और_समाधान_होगा

Goodstep सभी जानते है और जो नहीं जानते है उन्हें इतिहास की किताबों, डाक्यूमेंट्री, सत्य पर आधारित फिल्मों इत्यादि से जानकारी हासिल करनी चाहिए कि समस्त संसार में आदिवासियों (Indigenious Peoples) पर कितने जुल्म और एट्रोसिटिज हुई है।

हम भारत की ही बात करे तो यह एकदम तथ्यात्मक है कि आदिवासी जो कि लम्बे अर्से से जंगल व पहाड़ो में रहते आये है, उनका उपयोग करते थे, उन पर हक मानते थे, को जंगल व पहाड़ो के अधिकारी नहीं दिये गये है जबकि देश की आजादी के समय राजा महाराजाओं को उनकी रियायतों की लम्बी चौड़ी जमीन, महल, खजाने इत्यादि दे दिये गये।

आदिवासियों को जंगल के जानवर की तरह माना जाता रहा। जब किसी जंगल या पहाड़ में खदान करनी होती थी तो वहां के आदिवासियों को जंगल के जानवरों की तरह ही खदेड़ दिया जाता था। और उनके विरोध करने पर उन्हें या तो मार दिया जाता है या जेलों में बंद कर दिया जाता है। यह ऐसे है जैसे किसी बच्चे की माँ की आँचल में बहुत अच्छा दूध है परन्तु पियेगा कोई दूसरा ही। 

माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा गरीब आदिवासियों के दुखों को महसूस करके माननीय उच्चतम न्यायालय एवं सरकार से उनको राहत दिलाने के लिए दिशानिर्देश देने के लिए बहुत-बहुत साधुवाद।

आवश्यकता है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 व नियम 2008 एवं संशोधित नियम 2012 की अनुपालना की भी समीक्षा करवाई जाये ताकि पता चल सके कि कितने आदिवासियों को अभी तक भी वनभूमि के अधिकार नहीं दिए गए है।

जितने भी खासकर आदिवासी राजनेता/अधिकारी/कर्मचारी है या जो भी राजनेता/अधिकारी/कर्मचारी आदिवासियों के कल्याण के बारे में सोचते है, उन्हें चाहिए कि वे इन दोनों मुद्दों को प्राथमिकता दे और आदिवासियों के साथ होने वाले अत्याचार व अन्याय और भेदभाव को कम करवाने में सहयोग दे एवं महत्ति भूमिका निभाये।

जोहार
Raghuveer Prasad Meena

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