Tuesday 12 July 2022

आदिवासियों की दुर्दशा

rpmwu453 dt. 12.07.2022
#आदिवासियोकीदुर्दशा
यह स्पष्ट रूप से विदित है कि आदिवासी देश के मूलनिवासी (indigenous people) है। वे इस देश में 5000 वर्ष से पहले से ही रहते आये है। आदिवासी जहाँ निवास करते आये है वह धरा प्राकृतिक संसाधनों खासकर कोयले व अयस्को (ores) से परिपूर्ण होती है। परन्तु आदिवासियों की आर्थिक व सामाजिक दशा आज भी बहुत दयनीय है। दूसरे लोग ही उस धरा में उपलब्ध कोयले व अयस्को (ores) से धनधान्य होते आये है।

यह ऐसे है जैसे किसी की माँ की आँचल में अच्छा खासा दुध है परन्तु बच्चे भुखे तड़प रहे है। जोर-जबरदस्ती से दूध कोई और ही पी रहा है।

जब देश आजाद हुआ था तो राजा महाराजाओं के महल, धन दौलत व जमीन, जो कि पूर्णरूप से सरकारी थे, को उनके उपभोग के लिए छोड़ दिया गया परन्तु आदिवासियों के पहाड़ व जंगल, जहाँ वे सदियों से रहते आ रहे थे, उनके नाम नहीं किये गये। जबकि देश की आजादी की लड़ाई में आदिवासियों ने अनेकों कुर्बानी दी थी। आदिवासियों के साथ जंगली जानवरों जैसा व्यवहार होता आया है। जहाँ भी खान या फैक्ट्री बनाने के लिए जमीन की जरूरत होती है, उन्हें वहां से बिना कुछ या थोड़ा-बहुत देकर खदेड़िया जाता रहा है। 

समय समय पर हमारी सरकारों व कानूनविदों ने आदिवासियों की दशा सुधारने हेतु कदम उठाए है परन्तु बनाये गये प्रावधानों की क्रियान्वित नहीं होने से अभी भी आदिवासियों की दशा एक विचारणीय पहलू बना हुआ है। देश के पढ़े-लिखे व समझदार नागरिकों को इस पर और अधिक विचार करने की जरूरत है तथा देश के लगभग 12.5 करोड़ (9%) आदिवासियों की दशा सुधारने के लिए तेजगति से और सकारात्मक कदम उठाने हेतु उन्हें इस संदर्भ में पक्ष रखना चाहिए।

जोहार
Raghuveer Prasad Meena

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