rpmwu393 dt. 08.06.2021
#संविधान_का_आर्टिकल_13 क्या है?
आर्टिकल 13 के अनुसार साविधान लागू होने की दिनांक से पहले जीतने भी धार्मिक ग्रन्थ, विधि कानून जो विषमता पर आधारित थे उन्हें *शून्य घोषित किया गया।* व्याख्या - इस कानून के अनुसार भारत रत्न बाबा साहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर ने सिर्फ एक लाइन में ढाई हजार सालों की उस व्यवस्था और उस कानून की किताबों को शून्य घोषित कर दिया जो इंसानों को गुलाम बनाने के लिए इस्तेमाल की जा रही थी जैसे संविधान लागू होने से पहले भारत में मनुस्मृति का कानून लागू था। मनुस्मृति के अनुसार भारत के शूद्र व अति शूद्र और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था एवं संपत्ति का अधिकार भी नहीं था।। इसके अलावा मनुस्मृति के कानून के अनुसार शुद्र वर्ण को सिर्फ कुछ वर्णो की निस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था और अति शूद्र लोगों को पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। यह विषमता वादी कानून इतनी कठोरता से लागू था जिसे पढ़कर बाबा साहब का हृदय कांप उठा था। बाबा साहब ने इस मनुस्मृति के कानून का अध्ययन किया तो पाया कि भारत की #महिलाएं_दोहरी_गुलाम है ,उन्हें तो सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु ही समझा जाता था। इसके अलावा सती प्रथा, बाल विवाह,बेमेल विवाह,वैधन्य जीवन,मुंडन प्रथा आदि क्रूर प्रथाएं लागू थी।। यह प्रथा इसलिए लागू की गई ताकि चालाक लोगों द्वारा निर्मित जाति व्यवस्था मजबूत बनी रहे और शूद्र व अति शूद्र लोग उनकी गुलामी व बेगारी करते रहे। 19वीं सदी में ज्योतिराव फुले, सावित्री बाई फुले, विलियम बैटिंग, लार्ड मैकाले आदि विद्वानों ने अपने अपने स्तर पर बहुत कोशिश की इस व्यवस्था को खतम करने की। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी विद्वता के दम पर 25 दिसंबर 1927 को इस मनुस्मृति नामक विषमता वादी जहरीले ग्रंथ को आग लगा दी और अछूत लोगों को महाड में पानी पीने का अधिकार दिलवाया। इसके बाद बाबा साहब ने पूरे भारत में घूम घूम कर साइमन कमीशन को मनुस्मृति से प्रभावित शूद्र व अति शूद्र लोगों की वास्तविक स्थिति का परिचय करवाया। 1931-32 में बाबा साहब ने इन 90% लोगों को वोट का अधिकार दिलवाया। सबके लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार, विधिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व और शिक्षा का दरवाजा राष्ट्रीय स्तर पर सबके लिए खुलवाया। जब संविधान लिखने की बात आई तो बाबा साहब ने लीडरशिप दर्शाते हुए सामाजिक विषमता की शिक्षा से भरे तमाम कानूनों और धर्म ग्रंथों को, जो इंसान को इंसान नहीं मानते थे, महज एक लाइन में अवैध घोषित कर दिया। इसी सविधान ने बाबा साहब ने सभी कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए विभिन्न आर्टिकल्स में प्रावधान करके अलग अलग क्षेत्र में विशेषाधिकार दिए जिनकी वजह से कमज़ोर वर्ग के लोगों को सामाजिक क्षेत्र में बराबरी के अधिकार का द्वार खुल गया। आज भी कुछ महास्वार्थी, नासमझ व धूर्त लोग इस बात को बर्दाश्त नहीं कर रहे है और पिछड़े व कमजोर वर्ग के हितों पर डायरेक्ट व इनडायरेक्ट तरीके से चोट पहुंचाने के लिए रात दिन प्रोपेगंडा और धर्म,भ्रम,पाखंड व अंधविश्वास का इस्तेमाल करते है। साथ में कमजोर वर्गों के हितों की बात करने वाले सक्षम लोगों को विभिन्न प्रकार से झूठ का सहारा लेकर प्रताड़ित करवाते है। #आर्टिकल_14 क्या है? आर्टिकल 14 के अनुसार ऐसा कोई भी कानून फिर से लागू नहीं होगा और ना ही बनेगा जो इंसानों के साथ विषमता वादी व्यवहार करें और उनको बद से बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर करें। अर्थात भारत के सभी नागरिक को समान मानते हुए ही विधि या कानून लागू किये या बनाए जाए। व्याख्या - भारत की संसद में चाहे किसी का भी बहुमत हो तो इस बहुमत के आधार पर ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जाएगा जो पूर्व में मौजूद व्यवस्था को मजबूत बनाए और एक कम्यूनिटी को इस कानून के दम पर तानाशाही करने के लिए संरक्षण प्रदान करता हो। इसलिए आर्टिकल 14 सभी भारतीयों के लिए एक समान विधि सहिंता उपलब्ध करवाता है और किसी भी विषमता वादी कानून बनाने के लिए रोकता है चाहे संसद में कितना भी बहुमत क्यों ना हो। #मुख्य_मुद्दा यह है कि हम सत्य को सही रूप में जाने व भूतकाल में कुछ लोगों के स्वार्थ के वशीभूत होकर जो गलतियां की गई उनको दोहराने से बचें। #व्यक्ति_की_सोच उसके पालन-पोषण के माहौल से बनी उसके #मष्तिष्क_की_सोफ्टवेयर पर निर्भर करती है। परन्तु जब व्यक्ति 18 वर्ष से अधिक आयु का हो जाये तो उसे उसकी सोफ्टवेयर में पल रहे विभिन्न वायरसों के बारे में अंदाजा लगाकर सुधारात्मक कार्यवाही कर लेनी चाहिए। (यह पोस्ट वाट्सएप पर प्राप्त हुई, पढ़ने व समझने के पश्चात इसमें कुछ मोडिफिकेशन व एडिशन किये गये है) सादर Raghuveer Prasad Meena
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