उपरोक्त लेख में बहुत ही जोरदार सीख लिखी है। किसी व्यक्ति को अपने आप को उसके मन में अच्छा समझने से दूसरा कोई भी नहीं रोक सकता है। व्यक्ति अपने भाव में उच्च विचार रखें व दूसरों की मदद करने की भावना विकसित करे। ऐसा हरेक व्यक्ति को स्वयं ही करना है। हालांकि आसपास के वातावरण से फर्क पड़ता है, उदाहरणार्थ यदि कोई बाग बगीचों व फूलों में घूम रहा हो तो उसके मन में अच्छे भाव आयेंगे और यदि वह गंदे नाले या सड़ी गली चीजों के आसपास है तो वह खराब ही सोचेगा। व्यक्ति की कड़ी मेहनत व अनेकों जतनो के पश्चात भी यदि वह आसपास के वातावरण में बदलाव नहीं कर सके तो उसे जगह बदल लेना ही श्रेष्ठतम है। संगत का भी व्यक्ति की सोच बनने में अतिमहत्वपूर्ण रोल होता है, अतः संगत सोच समझकर ही तय करें एवं यदि सही नहीं है तो ज्यादा समय तक उसमे नहीं रहे, बदल लेने में ही समझदारी है।
बिना धन के ही कोई भी व्यक्ति दूसरों के मिलने पर मुस्कुरा सकता है, मीठी वाणी में बात कर सकता है, प्रशंसा कर सकता है, शुभकामनाएं दे सकता है एवं अपने हाथों से मदद कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार अपनाए तो वह जीवन में स्वयं के प्रयत्नों व दूसरों की मदद एवं आशिर्वाद से जरूर ही सफल हो जाएगा।
सादर
रघुवीर प्रसाद मीना
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