Wednesday 4 August 2021

दो पैसे की चीज के लिए 20 वर्षों के त्याग का कोई औचित्य नहीं है।

rpmwu423 dt. 04.08.2021
एक बार एक व्यक्ति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास आया। वहां बैठे एक सज्जन ने आये हुए उस व्यक्ति के बारे में कहा कि महाराज इन्होंने कमाल की चीज़ से सीख ली है। स्वामी जी ने पूछा कि क्या सीख लिया भाई? तो उस व्यक्ति ने बहुत जोश व गर्व से कहा कि मैंने 20 वर्षों के अथाह कठिन परिश्रम और लगन से पानी पर चलना सीख लिया है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरा कर बोले कि भाई दो पैसे का किराया देकर नाव से नदी को पार कर सकते है। इस छोटे से काम के लिए आपने 20 वर्षों का त्याग कर दिया। 

अमूमन अनेकों महत्वपूर्ण लोग भी जीवन में इसी प्रकार का कार्य करते रहते है और अपने कार्यो पर गर्व भी करते है। जो काम बहुत आसानी से किए जा सकते है, बहुत कम समय व संसाधनों में सम्पन्न हो सकते हैं उनके लिए कठिन राह चुनते है और अपने आप में समझते हैं कि उन्होंने बहुत अधिक मेहनत और लगन के साथ कार्य क्या है।

व्यक्ति को विचार करना चाहिए कि जो कार्य कर रहे है क्या वह सही है? उसकी जरूरत क्या है? उसकी कितनी उपयोगिता है? जिस तरीके को अपना रहे है वह कितना एफिसियेंट है? अनावश्यक रूप से समय, ऊर्जा व संसाधनों को न तो खर्च करना चाहिए और न ही पब्लिक लाईफ में खर्च करवाना चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

1 comment:

  1. उस व्यक्ति ने बहुत जोश व गर्व से कहा कि मैंने 20 वर्षों के अथाह कठिन परिश्रम और लगन से पानी पर चलना सीख लिया है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरा कर बोले कि भाई दो पैसे का किराया देकर नाव से नदी को पार कर सकते है। इस छोटे से काम के लिए आपने 20 वर्षों का त्याग कर दिया। thanks sir

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