rpmwu342 dt. 30.04.2020
हमारे देश में आज भी राजस्थान पत्रिका के मालिक व मुख्य संपादक गुलाब कोठारी जैसे अपने आप को विद्वान समझने वाले दकियानूसी सोच के लोग वर्ण व्यवस्था को प्रकृतिदत्त व संस्कृति की रक्षा के लिए अहम् समझते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि वर्ण व्यवस्था ने देश में बहुुुत गंंभीर नुुकसान किये हैं जिनका खामियााज आज भी भुगतना पड़ रहा है।
प्रारंभ में कर्म के विभाजन के आधार पर उत्पन्न सकारात्मक व पारगम्य वर्ण व्यवस्था को स्वार्थी व चालाक तबके ने कालान्तर में सोची समझी चाल से विभिन्न वर्णो के बीच अभेद्य दीवार बनाकर उसे अस्पृश्यता की जननी बना दिया। रामायण काल मे शंबूक ऋषि की हत्या, महाभारत काल में एकलव्य एवं कर्ण जैसे योद्धाओं को न केवल शिक्षा प्रदान करने से मना करना अपितु एकलव्य का अंगूठा कटवाना व कर्ण को श्राप देना अपारगम्य वर्ण व्यवस्था के उस दौरान उपस्थिति के साक्ष्य है। इतिहास से पता चलता है कि वर्ण व्यवस्था ने मानव गरिमा को तार तार किया हैै, अस्पृश्यता के कारण मानव द्वारा मानव के साथ जानवर से भी खराब व्यवहार किया गया, बड़ी जनसंख्या को शिक्षा से वंचित रखा और यह मानव के साथ घोर अत्यायाचार व शोषण का कारण रही है। राजा जब युद्ध हारते थे तो शूद्रों को दास के रूप में भेंट करने लगे।
विदेशी आक्रांता जिन्होंने अनेकों बार भारत में लूटपाट व अत्याचार किये, वे क्यों सफल हो पाये? इस पहेली के उत्तर ढूंढने के लिए हमें बहुत पीछे इतिहास में जाना होगा। महाभारत के समय से कर्ण व एकलव्य जैसे महान योद्धाओं को युद्ध में भाग लेने से वर्ण व्यवस्था के आधार पर यह कहते हुए रोक दिया गया कि वे क्षत्रिय वंश के नहीं थे। कालांतर में धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) की आड़ में स्वार्थी तत्व वर्ण व्यवस्था को और गहरा करते चले गये एवं यह धार्मिक व शासकीय मान्यता बनवा दी कि क्षत्रियों के अलावा दूसरे कोई भी युद्ध कला को नहीं सीखेंगे। वर्ण व्यवस्था के मजबूत होने पर क्षत्रियों के अलावा दूसरे किसी को युुद्ध कला की शिक्षा लेना व हथियार रखना पाप करार दे दिया गया।
जब विदेशी आक्रांताओ ने भारत पर आक्रमण किया तो उस समय के तत्कालीन राजा महाराजा प्रमुखत: सेना में सैनिकों की सीमित संख्या की वजह से हारते गये। सेना में सीमित सैनिकों की खास वजह थी वर्ण व्यवस्था। क्योंकि वर्ण व्यवस्था के प्रचलन के कारण क्षत्रियों के अलावा दूसरे लोगों को युद्ध में भाग लेना अनुज्ञेय नहीं था। अधिकतर जनसंख्या के जहन में यह बात बिठा दी गई कि क्षत्रियों को छोड़कर दूूसरे लोग लड़ने के काबिल नहीं है और उन्हें कभी भी लड़ने का प्रशिक्षण ही नहीं दिया जाता था।
गहराई से यदि विचार करें तो पता चलेगा कि भारत में वर्ण व्यवस्था की आड़ में एक बड़ी आबादी को शिक्षा से वंचित रखा गया, उन्हें युद्ध कला और कौशल बिलकुल नहीं सिखाये जाते थे। केवल बहुत ही निम्न स्तर के छोटे-छोटे सेवा कार्यों में बड़ी जनसंख्या को उलझाकर रखा जिसकी वजह से विदेशी आक्रांता को भारत में हराया जाना असंभव रहा। वर्ण व्यवस्था की वजह से कुछ लोगों का जीवन एकदम सुखमय व आसान हो गया और बड़ी जनसंख्या उनके असम्मान के कारण हतोत्साहित रही जिसकी वजह से विज्ञान व अनुसंधान पर कम ध्यान दिया गया और विदेशी आक्रांताओ के पास तकनीकी व आधुनिक हथियार होने की वजह से वे हमेशा जीतते गये।
आज के समय में वर्ण जैसी दकियानूसी व सिद्ध हानिकारक व्यवस्थाओं को महत्व देने की बात करने वाले लोगों की समझ वास्तव में प्रश्नवाचक है। ऐसे लोग संविधान की मूल भावना समानता के विरोधी है।
उक्तानुसार भारत में विदेशी आक्रांताओ के आगमन के लिए मुख्य रूप से वर्ण व्यवस्था ही जिम्मेदार रही है और जो लोग अभी भी एक ओर तो वर्ण व्यवस्था की वकालत करते हैं एवं दूसरी ओर जो लोग बाहर से आकर यहां बस गये है, उनका विरोध करते है, ऐसे लोगों की समझ के बारे में क्या कहा जाये? ऐसे लोग स्वयं के स्वार्थ में अंधे होकर देश को पीछे धकेलने से आज भी वाज नहीं आ रहे हैं। वे वर्ण के आधार पर अपने आप को समाज की तथाकथित हाइआर्की में शिखर पर एवं बहुत बड़ी जनसंख्या को नीचा दिखाने के प्रयास करते रहते हैं। देेश के सभी समझदार नागरिकों को ऐसे दकियानूसी व रूढिवादी लोगों के विचारों का खुले में जोरदार तरीकों से विरोध करने की जरूरत है।
रघुवीर प्रसाद मीना
सर आज भी दूषित और दकियानूसी सोच के गुलाब कोठरी जैसे लोग वर्णव्यवस्था को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का प्रयास करते हैं इनका हर स्तर पर विरोध करना आवश्यक है
ReplyDeleteआप के विचारों से मैं सहमत हूँ । मगर प्राचीन काल मे हमारी स्थिति भिन्न थी । वर्तमान में हमारे लोग शिक्षित है ,सम्पन्न है तथा परित्थितिओ को समझते भी है फिर भी अपने अधिकारो के लिए आवाज नहीं ऊठाते हैं । हम सब को मिलकर लोगों को जागरूक करना चाहिए जैसे अफ्रीका मे नेसनल मंडेला ने ऊठाई थी ।
ReplyDeleteGood afternoon
ReplyDeleteसर, आपने जो गुलाब कोठारी की मानवता व सभी मानव के विकास के विरुद्ध व कमजोर वर्ग के लिए नारकीय वर्ण व्यवस्था पर विशेष लेख लिखा है वो बहुत ही सटीक और अतीत, वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखते हुए लिखा है और साक्ष्य के साथ इसके दुष्परिणामों को भी अच्छी तरह से रेखांकित किया है जो बहुत ही प्रशंसनीय है l
आपका
लखन लाल मीना
Senior section Engineer of Railway Electrification unit, Jaipur
सर।
ReplyDeleteवर्ण व्यवस्था का लोग प्रत्यक्ष रूप से विरोध करने लगे है समस्या एक है उस विरोध को आवाज नही मिलती जिसका मुख्य कारण चुनें खासकर आरक्षित वर्ग के चुने हुए जनप्रतिनिधियों द्वारा खुद को सिर्फ सरकार का सदस्य बने रहने तक सीमित रहना है।
सर आपने बेहतरीन लेख के जरीये मामले को उठाने का प्रयास किया है इसके लिए आपको बहुत-2 धन्यवाद । पर हमारे समाज के उस आरक्षण प्राप्त व्यक्तियो का उक्त मामले मे चुपी साधे रहना कहा तक उचित है? क्या तक वो वो समाज को गर्त मे ले जाने तक जिमेम्दार होगे । हमे हमारे अधिकारो पर प्रहार करने वाले पर जोरदार तरीके से प्रहार करना होगा ताकी वो फिर से वो हिमाकत नही करे । तथा समाज को कमजोर करने का कुत्सित प्रयास न करे @जय हिंद,जयभीम
ReplyDeleteकूटनीति का सहारा लेकर आप इतिहास को विकृत कर सकते हैं,
ReplyDelete' वर्णाश्रम ' के प्रति विद्वेष फैलाने में तो सफल हो सकते हैं,
पर
शिक्षा,
रक्षा,
अर्थ,
सेवा,
भोजन,
वस्त्र,
आवास,
न्याय,
चिकित्सा,
कृषि,
यातायात,
उत्सत्व ,
त्योहार व
विवाहादि के प्रकल्प सबको समुचित रूप से समुपलब्ध हों, व एक ऐसा अर्थशास्त्र हो जिसमें जन्म से जीविका निर्धारित हो ;
इसके लिए कोई कितना भी बड़ा अर्थशास्त्री हो या पूरा अर्थजगत दम लगा ले,
नाक रगड़ थक जाएंगे और अंततः उन्हें उलट-पुलटकर सनातन वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था का ही आश्रय
लेना पड़ेगा।
वर्णाश्रम व्यवस्था का कोई विकल्प नहीं है ...
ReplyDeleteसामाजिक व्यवस्था चलाने के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है
यदि कोई वैकल्पिक समाधान है तो बताएं ...