यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति मन में खराब भाव रखता है तो दूसरे के मन में स्वत: ही पहले वाले के प्रति खराब विचार व भाव आ जाते है। यह बिलकुल ओटो ट्रांसमिट होता है। अत: स्वयं की भलाई के लिए अपने #मन में #दूसरों के प्रति #अच्छा #भाव रखने का प्रयास करें।
प्रत्येक मनुष्य की बनावट, स्वभाव व सोचने और व्यवहार करने के तरीकें में नेचर (प्रकृति, nature) और नर्चर (पालन-पोषण, nurture) दो चीजों का बहुत बड़ा रोल होता है। नेचर का अर्थ नेचुरल चीजों है जो उसे मां-बाप के डीएनए, जन्म के स्थान व आसपास की प्रकृति से प्रदत्त होते हैं उदाहरणार्थ व्यक्ति की शारिरिक बनावट व रंगरूप माँ बाप व आसपास की प्रकृति पर निर्भर है। नर्चर का मतलब उसके बचपन से बड़े होने तक के पालन पोषण व मनुष्य द्वारा उत्पन्न अप्राकृतिक वातावरण (धर्म, जाति, समुदाय, दूसरों के प्रति व्यवहार की सोच) है। व्यक्ति जैसे वातावरण व माहौल अपने आस पास देखता है वह उसी के अनुसार ढ़ल जाता है। यदि संक्षेप में कहा जाए तो नेचर व्यक्ति की हार्डवेयर तैयार करती है एवं नर्चर सॉफ्टवेयर। छोटी उम्र में, इन दोनों चीजों पर व्यक्ति का कोई कंट्रोल नहीं होता है। परंतु जब व्यक्ति बड़ा हो जाता है तो उसे विचार करना चाहिए कि कहीं नेचर और नर्चर के कारण उसकी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर मेंं कोई कमी तो नहीं है? यदि हार्डवेयर अर्थात् बाॅड़ी की बनावट मेंं कमी है तो संतुलित खानपान व योगा, प्रणायाम, कसरत, जिम इत्यादि से सुधार किया जा सकता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति को लगता है कि उसकी सॉफ्टवेयर (सोच, विचारधारा) संकुचित है तो वह अच्छी पुस्तकों व महापुरुषों की जीवनी के अध्ययन, समाज-सुधार व मानवीय पहलूओं पर आधारित फिल्मों के अवलोकन, अच्छे लोगों की संगत व स्वयं के मनन से उसकी सोच व व्यवहार को व्यापक बनाकर उनमें सुधार कर सकता है और धर्म, जाति, समुदाय इत्यादि द्वारा प्रदत्त भेदभावों से ऊपर उठकर दूसरों के बारे में स्वयं के मन में न्यायपूर्ण व कल्याण की सोच विकसित कर स्वयं केे साथ साथ सम्पूर्ण मानवता का भला कर सकता है।
रघुवीर प्रसाद मीना
आप की बात से सहमत हूँ । यह सत्य है कि संगत का असर आदमी की जिंदगी में बहुत बडा बदलाव लाता हैं ।
ReplyDeleteSalute sir
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