Sunday 17 November 2019

17 नवम्बर 1913 : मानगढ़ आदिवासी नृशंस हत्याकांड।

rpmwu287
16.11.2019

17 नवम्बर 1913 : मानगढ़ आदिवासी नृशंस हत्याकांड।

अंग्रेजो द्वारा राजस्थान राज्य के बांसवाड़ा जिले में #मानगढ़_धाम_नृशंस_हत्याकांड जालियाँवाला_बाग_नृशंस_गोलीकांड से 6 वर्ष पहले 17 नवम्बर, 1913 को हुआ था।

13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में घटित जालियाँवाला बाग़ गोलिकांड में ब्रिटिश सरकार के अनुसार 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए। लेकिन तत्कालीन अख़बारों के अनुसार मरने वालों का आंकड़ा 1000 के आसपास था। जबकि #मानगढ_धाम_नृशंस_हत्याकांड़ में 1500 से अधिक आदिवासियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई और 900 लोगों की गिरफ्तारी हुई।

#मानगढ़_धाम_के_आदिवासी_बलिदान_की_कहानी
गोविन्द गुरु, एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थे। 

वे आदिवासियों में अलख जगाने का काम करते थे। उन्होंने 1890 में एक आन्दोलन शुरू किया था जिसका कि मूल उद्देश्य आदिवासी-भील समाज को शाकाहार के प्रति जागरूक करना और आदिवासियों में फैल रही नशे की लत को दूर करना था। इस आन्दोलन को ‘भगत आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इस दौरान भगत आन्दोलन को मजबूती प्रदान करने के लिए गुजरात से संप-सभा जो एक धार्मिक संगठन था, उसने भी सहयोग देना शुरू कर दिया। संप-सभा भीलों से करवाई जा रही बेगारी के ख़िलाफ़ काम करती थी। इस आन्दोलन में अलग-अलग गाँवों से लगभग #पांच_लाख आदिवासी-भील जुड़ गए थे।

1903 में गोविन्द गुरु ने मानगढ़ को अपना ठिकाना चुना और वहाँ से अपना सामाजिक कार्य जारी रखा। 1910 तक आते-आते भीलों ने अंग्रेजों के सामने 33 मांगें रखी। जिनमें मुख्य रूप से अंग्रेजों और रजवाड़ों द्वारा करवाई जा रही #बंधुआ_मज़दूरी और #लगान से जुड़ी मांगें थी। अंग्रेजों के आलावा वहां के स्थानीय जमींदार, सामंत भी इनका शोषण करने में पीछे नहीं थे। इसी के विरोध में गोविन्द गुरु ने भगत आन्दोलन शुरू किया था। जब जमींदारो, सामंतों और रजवाड़ों को लगा की भगत आन्दोलन दिन प्रति दिन बड़ा होता जा रहा है तो उन्होंने अंग्रेजों को इस बात की जानकारी दी। अंगेजों ने गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन आदिवासियों के भयंकर विरोध के चलते अंग्रेजों ने गोविन्द गुरु को रिहा करना पड़ा। इसका असर यह हुआ कि हुक्मरानों का जुल्म आदिवासियों पर और बढ़ गया। यहाँ तक कि उन पाठशालाओं को भी बंद करवाना शुरू कर दिया जहाँ आदिवासी बेगारी के विरोध की शिक्षा ले रहे थे।

मांगें ठुकराए जाने, खासकर बंधुआ मज़दूरी पर कुछ भी एक्शन न लेने की वजह से आदिवासी गुस्सा हो गए और घटना से एक महीने पहले मानगढ़ की इस पहाड़ी पर एकत्रित होना शुरू हो गए। ये लोग नारे के रूप में सामूहिक-रूप से एक गाना गाते थे,
''#ओ_भुरेतिया_नइं_मानुं_रे_नइं_मानुं''

इस दौरान बेगारी के स्थान पर अंग्रेजों ने जुताई के बदले साल के सवा रुपये देने का वादा किया जिसे आदिवासियों ने ठुकरा दिया। तब अंग्रेजों ने 15 नवम्बर, 1913 तक पहाड़ी को खाली करने का आदेश दे डाला।
इन्हीं दिनों एक घटना और घटी कि गठरा और संतरामपुर गाँव के लोग गुजरात के थानेदार गुल मोहम्मद के अत्याचारों से परेशान थे। उससे निपटने के लिए गोविन्द गुरु के सबसे नज़दीकी सहयोगी पूंजा धीरजी पारघी ने कुछ लोगों के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। एक ही समय इन दो घटनाओं, पहाड़ी पर जमा होना और गुल मोहम्मद की हत्या, से अंग्रेजों को बहाना मिल गया।

17 नवम्बर, 1913 को मेजर हैमिल्टन ने अपने तीन अधिकारियों और रजवाड़ों व उनकी सेनाओं के साथ मिलकर मानगढ़ पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया और अंधाधुंध गोलीबारी करके 1500 से भी अधिक लोग मार दिये गए, गोविन्द गुरु को जेल में डाल दिया गया व उनके सहयोगी पूंजा धीरजी को काले-पानी की सजा दी गई। इसके अलावा 900 अन्य लोगों की भी गिरफ़्तारी हुई।

भील आदिवासीयों के इस नृशंस हत्याकांड का इतिहास में बहुत कम उल्लेख हैं, जो कि विचारणीय पहलू है। भील आदिवासियों को आज भी देश में वह स्थान नहीं मिला है जिसके वे हक़दार हैं जबकि सभी को ज्ञात है कि भील वही जनजाति है जिसके कि वीर योद्धा महाराणा प्रताप के सम्मान के लिये मर मिटे व शहीद हो गए।
मानगढ़ धाम में शहीद हुए आदिवासी गणवीरों की शहादत को शत् शत् नमन।

जोहार

रघुवीर प्रसाद मीना

No comments:

Post a Comment

Thank you for reading and commenting.