rpmwu278
07.11.2019
प्रकृति को नुकसान करने वाले या तो धूर्त है या स्वार्थी है।
सर्वविदित है कि #श्वास(वायु) के बिना मनुष्य का एक दो मिनट भी जीवित रहना भी मुश्किल है। इसी प्रकार #पानी, #पृथ्वी, #सूर्य से मिलने वाला प्रकाश, जो कि एनर्जी का अल्टीमेट साॅर्स है व जिनकी वजह से समस्त वनस्पतिजगत व जीव जंतुओं का पोषण होता है और वनस्पति व जीव जंतुओं के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही संभव नहीं है, का प्रत्येक मनुष्य के जीवन में #जीवनदायी अहम् रोल है।
व्यक्ति वायु जिसे हुए सांस के रूप में ग्रहण करता है निशुल्क मिल रही है और जिस पानी के बिना उसका काम नहीं चल सकता वह भी लगभग निशुल्क में मिल रहा है जिस पृथ्वी पर रह रहा है वह भी निशुल्क मिल रही है और सूरत से जो प्रकाश मिल रहा है वह भी फ्री में ही मिल रहा है।
वायु, जल, पृथ्वी, सूर्य का प्रकाश जैसी बड़ी बड़ी व जीवनदायी चीजें #फ्री मिलने के बावजूद वह इन चीजों को ही बेतरतीब तरीके से #नुकसान पहुंचाता जा रहा है। और कोई बिना परवाह किए हुए उन्हें उनका दुरुपयोग भी कर रहा है। ऐसे लोगों के बारे में हम क्या कहेंगे? क्या ये लोग वास्तव में धूर्त हैं? अथवा अपने स्वार्थ के वशीभूत जिन चीजों से उनका जीवन चल रहा है उनको ही नुकसान करते वक्त लम्बी सोच नहीं रख रहा है?
हम सभी को चाहिए कि स्वयं पर्यावरण को कम से कम नुकसान करें व दूसरों को भी बताएं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना कितनी धूर्तता का काम है।
रघुवीर प्रसाद मीना
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