rpmwu277
05.11.2019
निर्माण कार्यों की धीमी गति से नुकसान।
कहते हैं कि भ्रष्टाचार विभिन्न समस्याओं की जड़ है और यह बात काफी हद तक सही है। परंतु निर्माण कार्यों की धीमी गति से जितना नुकसान देश में होता है वह भ्रष्टाचार की तुलना में बहुत अधिक है। कार्यों के निर्माण की गति यदि सही नहीं है तो जो पैसा निर्माण करने के प्रोसेस में लॉक होता रहता है उसका उतने समय तक कोई लाभ नहीं होता है जितने समय तक कि कार्य संपन्न होकर उस असेट का उपयोग होना प्रारंभ नहीं हो जाये।
उदाहरण के तौर पर एक बहुत ही साधारण तरीके से समझने के लिए बताना चाहूंगा कि यदि पानी की सप्लाई के एक कार्य में ट्यूबेल लगाना, टंकी बनाना व पाइप लाइन लगाना सम्मिलित है और यदि इनमें से कोई भी कार्य समय पर संपन्न नहीं हो तो पानी की सप्लाई नहीं हो सकती है। यदि पाइपलाइन जैसा छोटा कार्य समय पर पूरा नहीं हो और टंकी बनाने में भारी पैसा खर्च कर दिया जाए तो उस खर्च किए हुए पैसे का क्या लाभ क्योंकि बिना पाईपलाईन के पानी की सप्लाई नहीं की जा सकती है।
इसी प्रकार यदि किसी पानी की परियोजना मैं पूरी पाइपलाइन बिछा दी गई हो, टंकियां बना दी गई हो परंतु जहां से पानी की सप्लाई होनी है वहां से सप्लाई प्रारंभ नहीं हो तो इतने भारी भरकम पैसे को पाइपलाइन व टंकी बनाने में खर्च करने का क्या लाभ?
ऐसे ही कहीं पर डैम के माध्यम से सिंचाई परियोजना बनानी हो और डैम बनाने में बहुत धन खर्च कर दिया जाए और नहर नहीं बनाई जाए, तो डैम में लगे हुए पैसे का क्या लाभ?
इस प्रकार के अनेकों उदाहरण हमारे जीवन में देखने को मिल सकते हैं। अतः आवश्यकता है कि जो भी कार्य करने हैं उनकी गति को तेज किया जाए ताकि जो पैसा उन पर खर्च किया जा रहा है उसका लाभ देश और जनता को समय पर मिल सके।
यदि कार्यों में विलंब होता है तो उसकी जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिए और प्रयत्न करने चाहिए कि उस प्रकार की देरी की पुनरावृत्ति दूसरे स्थानों पर नहीं हो।
रघुवीर प्रसाद मीना
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