Thursday 14 November 2019

बिरसा मुंडा को नवाजा जाना चाहिए भारत रत्न से।


rpmwu285 dt. 14.11.2019

#बिरसा_मुंडा को नवाजा जाना चाहिए भारत रत्न से। 

महान् आदिवासी देशभक्त व स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के माता पिता का नाम सुगना मुंडा और करमी हातू थे। उनका जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड प्रदेश में राँची के उलीहातू गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढ़ने गये। वे हमेशा ब्रिटिश शासकों द्वारा देश वासियों पर उस समय किये जा रहे अत्याचारों के बारे में मन में सोचते रहतेे थे। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये नेतृत्व प्रदान किया। 

1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से वहां के लोगों की सेवा की। 1अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर उन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी। त्याग व दूसरों की मदद की भावना के कारण आम आदमी द्वारा उन्हें उनके जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा मिल चुका था। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती आबा" के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव व समझाईस से पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागृत हुई। 
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 मार्च 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये।
बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में ली। माना जाता है कि अंग्रेजो द्वारा उन्हें एक धीमा जहर दिये जाने के कारण उनकी मौत हुई। आज भी बिहारउड़ीसाझारखंडछत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है। मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है। 
महान् देश भक्त व स्वतंत्रता सेनानी वीर शहीद बिरसा मुंडा को उनकी देश भक्ति व आदिवासियों में आजादी के लिए सामाजिक जागृति लाने के लिए उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाना चाहिये। 
रघुवीर प्रसाद मीना 


2 comments:

  1. बहुत सराहनीय पहल है और यही प्रयास सफल बनाना ही हमारे द्वारा क्रांतिकारी बिरसा मुंडा के लिए सच्ची श्रद्धांजलि है l
    Thnx sir
    लखन लाल मीना

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  2. सर बहुत ही सटीक जानकारी और भगवान बिरसा के बारे में सघंर्षो की कहानी !सरकार से उन्हें भारत रत्न दिये जाने की मांग करता हूँ! बिरसा मुंडा की शहादत पर शत् शत् नमन् एवं श्रध्दांजलि अर्पित करता हूँ!

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Thank you for reading and commenting.