rpmwu174
18.12.2018
मनु द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आजकल सतीप्रथा जैसी क्रूर कुरीति की भांति नजर आते हैं, जिसमें अधिकतर महिलाओं को पति की मृत्यु उपरांत सामाजिक बहिष्कार के डर से या जबरदस्ती पति के साथ चिता में जिंदा जला दिया जाता था। वह जलने के डर से भागने की कोशिश करती थी तो उसे डण्डो से पीट कर बेहोश कर दिया जाता था और वह जल जाती थी।
मनुस्मृति में महिलाओं व शूद्रों को केवल उपयोग की वस्तुओं की तरह माना गया। उनके अधिकारों से उन्हें वंचित रखने हेतु तरह तरह के ढकोसलेपूर्ण व दकियानूसी बातें लिखी गई। ऐसा लगता है कि मनुस्मृति अन्य वर्णों खासकर ब्राह्मणों के कल्याण एवं अधिकारों के लिए स्वार्थपरता से लिखी गई किताब है।
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने 1927 में इस किताब की होली जलाकर समाज को संदेश दिया कि इसमें प्रतिपादित सिद्धांत सामाज के किसी भी व्यक्ति को मान्य नहीं होने चाहिये। यदि कोई व्यक्ति मनुस्मृति के सिद्धांतों को आज भी मानने की कोशिश करता है तो ऐसे हर व्यक्ति का खुले में विरोध करने की आवश्यकता है। मैं तो कहूंगा कि सरकार को इस ग्रंथ कही जाने वाली किताब की बिक्री पर बैन लगा देना चाहिए और जहां भी मनु की प्रतिमाएं लगी है उन्हें उखाड़ फेंकने की जरूरत है ताकि समाज में सामंजस्य व सम्मान की स्थापना हो और ऊंच-नीच का भेद समाप्त हो सके।
कुछ लोग बेवजह आज के ब्राह्मणों से इस मनुस्मृति को लेकर दुर्भावना रखते हैं जबकि इसे लिखने में उनकी कोई गलती नहीं है। अतः ऐसा नहीं करना चाहिए। परन्तु जो भी व्यक्ति चाहे वह ब्राह्मण हो या कोई और, यदि वह मनुस्मृति में प्रतिपादित सिद्धांतों की वकालत करें तो पहले उसे लाॅजिकली समझाएं और यदि नहीं समझे तो उसका बहिष्कार करें।
रघुवीर प्रसाद मीना
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