rpmwu78
31.08.2016
कल सुबह मॉर्निंग वॉक के समय मैंने देखा कि एक धर्म विशेष का व्यक्ति उसके बेटे के साथ उछल-कूद एवं व्यायाम कर रहा था। तभी मेरे मन में एक ख्याल आया की वह व्यक्ति एवं उसका बेटा और अन्य लोगों मैं किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है सभी का शरीर एक जैसा ही है। सभी लोग आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे को खून और बॉडी पार्ट डोनेट कर सकते हैं।
रेस,धर्म,समुदाय,वर्ण,जाति और वर्ग इत्यदि संसार के लोगों को विभिन्न ग्रुप्स में बांटते हैं। छोटे बच्चे के मस्तिष्क पर परवरिश का भारी प्रभाव पड़ता है। उसकी सोच पर सबसे ज्यादा इम्पैक्ट उसके माँ-बाप के धर्म, समाज में रेस, वर्ण,जाति या वर्ग के भेद के कारण उनके सामाजिक स्तर, आसपास के माहौल, बोली भाषा व रहन-सहन का होता है।सभी मनुष्यों के शारीरिक रूप से समान होने के बाबजूद इन्ही सब अंतरों के कारण विभिन्न धर्म, रेस, जाति, समुदाय या वर्ग के लोग अलग अलग तरीके से सोचने लग जाते है। धर्म, रेस और जाति के नाम पर तो कुछ लोग एक दूसरे से बहुत नजदीक या फिर एकदम अलग मानने लगते है।
अब एक स्तिथि के बारे में विचार करो कि यदि जन्म के समय अस्पताल में एक मुस्लिम बच्चा एक ब्रामण बच्चे से बदल जाये तो क्या होगा ? जो बच्चा मुस्लिम धर्म में पल कर बड़ा होगा वह सामान्य मुस्लिम की तरह व्यव्हार करेगा एवम जो बच्चा ब्राह्मण के घर बड़ा होगा वह ब्राह्मण की तरह रहेगा । ऐसे और कुछ भी उदहारण हो सकते है। कुलमिलाकर तात्पर्य यह है कि परवरिश मनुष्य के माइंड पर भारी असर करती है। यह कंप्यूटर्स की सॉफ्टवेर की भांति है।
आवश्यकता है कि हम सभी इस बात को मन से समझे की मनुष्य सभी एक है, उनकी सोच में अंतर उनकी परवरिश व् बचपन में देखे गए माहौल, सामाजिक तथा शिक्षा के स्तर से आता है। किसी व्यक्ति को यदि अच्छा माहौल नहीं मिला होता तो वह भी ख़राब लोगों की गिनती में आता। हम सभी को ख़राब सॉफ्टवेयर्स को बहार निकलने व अच्छी सॉफरवर्स को मस्तिष्क में इंसटाल करने की जरूरत है ताकि सभी एक दूसरे के साथ प्यार मोहब्बत व सहिष्णुता से रह कर उन्नति करे, आगे बढ़ें और देश के लिए असेट बने।
रघुवीर प्रसाद मीना ।
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