Monday 29 August 2016

राजस्थान में आदिवासी व भविष्य की राजनिति।

राजस्थान में आदिवासी व भविष्य की राजनिति।

सर्व विदित है कि लगभग 1000 ई. से पूर्व आदिवासी समुदायों का राजस्थान के कई इलाकों पर राज था। कालान्तर में धोखे से हमारा राज छिन गया एवं आज लगभग 1000 वर्ष बाद भी आदिवासियो की राज में अहम् भूमिका नहीं है। 

आरक्षण के लाभ से आदिवासी समुदाय के लोग बड़ी संख्यॉ में सरकारी अधिकारी व कर्मचारी बने है। जिससे लोगो की आर्थिक हालात में सुधार हुआ है। परन्तु राजनिति जैसे अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र में हमारे समुदाय का कोई बडा रोल नहीं रह पाया है। आज भी समाज को राजनैतिक रूप से पिछड़ा हुआ ही कहा जा सकता है। 

राजस्थान के आदिवासी समुदाय सामान्यत: कॉंग्रेस पार्टी के साथ रहे है। बाद में डॉ किरोड़ी लाल जी, नंदलाल मीणा जी व कुछ अन्य राजनीतिज्ञों की बजह़ से बी जे पी को भी समर्थन देने लगे। श्रीमति जसकौर मीना जी व नमोनारायण मीना जी केन्द्र में मंत्री रह चुके है। एक प्रमुख जनाधार वाले राजनीतिज्ञ डॉ किरोड़ी जी एम.पी. रहे है, राज्य में मंत्री रहे है एवं राज्य की राजनिति में उनका बडा नाम रहा है। डॉ सहाब ने 2008 में बीजेपी को भारी क्षति पहुँचाई जिसके कारण बी जे पी को सरकार से हाथ धोना पड़ा। 2013 में डॉ सहाब ने नई पार्टी का गठन कर चुनाव लड़ा परन्तु परिणाम वाँछित नहीं रहे। जनरल सीट्स पर आदिवासी समुदाय के वोट बँट जाने के कारण समुदाय को भारी नुकसान हुआ।

पूर्व की भॉति अब राजा महाराजाओं का राज नहीं है। देश में प्रजातंत्र है, हर व्यक्ति के वोट की क़ीमत समान है। राजस्थान राज्य आदिवासी समुदायों की जनसंख्यॉ क़रीब 1 करोड़ है, जो कि प्रदेश की जनसंख्यॉ का लगभग 13.5 % है।  इसी प्रकार एस सी की जनसंख्यॉ भी लगभग 18 % है। 200 सीटों की विधानसभा में एस टी व एस सी के लिए क्रमश: 25 व 34  (कुल 59) सीटेंआरक्षित है। और कई अन्य सामान्य सीटों पर इन दोनों कैटेगरिज़ के लोग परिणाम को काफ़ी हद तक प्रभावित करते है। 

डॉ सहाब के राजपा के प्रयोग के दौरान व लोगो के सामान्य व्यवहार  व बातों से स्पष्ट आभास होता है कि लोग आदिवासी समुदाय का कितना विरोध करते है। राज्य सरकार तक जातिप्रमाणपत्रों के बनने में बेमतलब अड़चनें पैदा कर रही है। संवैधानिक संस्था राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा स्पष्ट करने के बाबजूद राज्य सरकार मीना समुदाय के लोगो को जातिप्रमाणपत्र जारी करने के प्रकरण में बेबजह परेशान कर रही है। 

आज सभी प्रमुख जाति व समुदाय के लोगो में शिक्षा का स्तर काफ़ी अच्छा हो चुका है। जिसके कारण लोग भेड़ चाल नहीं चलते है। अधिकतर लोग स्व: विवेक से काम करते है। इस पहलू का एक परिणाम यह है कि लोगो के युनाईटेड रहने की सम्भावना कम हो गई है। अत: हर जाति व समुदाय आन्तरिक रूप से एक साथ नहीं रहकर कुछ भागो में अवश्य विभक्त हो गये है। अतएव राजस्थान जैसे राज्य में कोई भी एक जाति या समुदाय अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकते है। दूसरी जातियों व समुदायों का सपोर्ट अवश्य ही  लेना होगा। 

हमें सभी राजनीतिक पार्टियों में अपनी दख़लंदाज़ी रखनी चाहिये। हमारे नेता सभी दलों में हो, इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है। आवश्कता यह है कि सामुदायिक व सामाजिक मुद्दों पर सभी राजनितिज्ञ एकमत से संदेश दे। हम यदि हमारे समुदाय के राजनीतिज्ञ को मुख्यमंत्री पद हेतु प्रोजेक्ट कर सके तो सबसे अच्छी बात है। यदि ऐसा नहीं कर पाएं तो हमें हमारे राजनीतिज्ञों की सलाह से समझदारी अपनाते हुए अन्य योग्य तथा हमारे समुदाय के लिए अच्छी सोच रखने वाले राजनीतिज्ञ को सहयोग करना समाज हित में लाभदायक होगा। हमें बेमतलब में दूसरे समाज के राजनीतिज्ञों को नाराज या अपमानित करने से बचना चाहिए। यदि हम अच्छा व्यव्हार करेंगें तो दूसरे लोग  भी हमारे साथ अच्छा ही व्यव्हार करेंगे । 


रघुवीर प्रसाद मीना 

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