Wednesday 31 August 2016

दाना माझी का मृत पत्नी के शव को कंधे पर लेकर 10 किलोमीटर तक पैदल रास्ता तय करना व्यवस्था के गाल पर थप्पड़ है। |

rpmwu76
31.08.2016
दिनांक 25.08.2016 को सोशल मीडिया, इलेक्ट्राॅनिक व प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से पता चला की उड़ीसा के कालाहाड़ी जिले का एक गरीब आदिवासी दाना माझी को खराब आर्थिक हालात एंव सरकारी तंत्र से सहायता नहीं मिलाने के कारण उसकी मृत पत्नी के शव को कंधे पर रखकर 60 किलोमीटर दूर स्थित उसके गाँव के लिए जाने हेतु मजबूर होना पड़ा। दाना माझी ने उसके जीवन के भयंकर त्रासदीपूर्ण समय में मृत पत्नी के शव को कंधे पर लेकर 10 किलोमीटर तक का रास्ता तय भी कर लिया। साथ ही 12 वर्ष की उसकी छोटी बेटी सामान के साथ पैदल चलकर उसका साथ दे रही थी। 10 किलोमीटर की इस यात्रा में रोड पर कई लोगों ने इस घटना को देखा होगा परन्तु किसी के द्वारा उसे सहयोग न करना हमारे देश के नागरिको में नैतिकता के पतन को इंगित करता है। उड़ीसा में शायद इस प्रकार की घटनाएं पहले भी हुई होंगी, जिसके कारण मुख्यमंत्री ने सरकारी अस्पतालों से घर तक शव भेजने हेतु मुफ्त वाहन उपलब्ध कराने की योजना भी घोषित की हुई है। परन्तु सिस्टम की उदासीनता को देखो कि अस्पताल प्रशासन ने दाना माझी की मदद नहीं की और यहाँ तक कि प्रशासनिक जाँच में अस्पताल के प्रशासन को प्रथमदृष्ट्या क्लीन चिट दे दी और कह दिया कि दाना माझी ने मदद ही नहीं माँगी।

यह घटना देश में चल रहे शासन व्यवस्था के गाल पर तमाचा है। गरीब आदिवासियों की आर्थिक दुर्दशा क्यों  है?   उनमें उनके अधिकारों हेतु माँग करने का साहस क्यों नहीं है ?   आदिवासियों के मन में सरकार की व्यवस्था पर भरोसा क्यों नहीं बन पाया है ?  क्या दाना माझी जिस गाँव में निवास करता है, वहाँ कोई जागरूक, समाजसेवाभावी, पढे़-लिखे व शिक्षित व्यक्ति नहीं है ? यदि हैं तो दाना माझी ने उनसे समय पर सहायता लेने के बारे में क्यों नहीं सोचा होगा? ये सभी विचारणीय बिन्दु है। 

ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो इसके लिए सरकार को उसकी नीतियों में आवश्यक बदलाव करके गरीब, असहाय और कमजोर लोगों के कल्याण व उनके आर्थिक उत्थान हेतु ठोस योजनाएँ बनाकर उनकी क्रियांविति करवानी होगी। सिस्टम को प्रभवी बनाने एवम दूसरों के लिए उदाहरण पेश करने के लिए दोषियों को कठोर दंड देना होगा । व्यक्तिगत तौर पर अपने आपको इन्सान समझने वाले सरकार व निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले देश के हर नागरिक को चाहिए कि वह गरीब, असहाय और कमजोर लोगों की तत्परता से मदद करे। व्यकित जिस क्षेत्र में रहता है, वहाँ पर गरीब, असहाय और कमजोर लोगों में जागरूकता लाये कि उनके क्या-क्या अधिकार हैं एवं समस्या होने पर उनमें इतना साहस होने की भावना पैदा करे कि वे सरकार द्वारा संचालित योजनाओं की क्रियान्वित नहीं होने के प्रकरणों को क्षेत्र के जागरूक, समाजसेवाभावी, पढे़-लिखे व शिक्षित लोगों के संज्ञान में लायें और ये लोग घटना पर तत्परता से सक्रिय होकर मदद करे।

रघुवीर प्रसाद मीना

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