Thursday 25 August 2016

उन्नति व सफलता के लिए बदलनी होगी सोच

अमूमन कई लोगों को कहते हुए सुना होगा कि आॅफिस में कोई काम ही नहीं है। थोड़ा बहुत ही काम है, गपशप कर व घूम-फिर कर आ जाते हैं इत्यादि इत्यादि। यहाँ तक कि बच्चों के माँ - बाप भी इस बात को रिश्ते इत्यादि तय करते समय बड़े गर्व से कहते हैं। लोगों की इस प्रकार की सोच बड़ी विचित्र एवं गैरजिम्मेदारीपूर्ण है। ऐसी सोच उन्नति नहीं होने का मुख्य कारण भी है। ऐसे लोग अपनी ड्यूटी के कार्य को नहीं करके अनेको प्रकार के धर्मिक अंधविश्वास व कुरीतियों को बढ़ावा देने में भी लिप्त रहते हैं।

जो भी व्यक्ति सरकारी कार्यालयों में कार्य करते हैं, वे भली-भाँति परिचित हैं कि कार्यालयों में उन्हीं लोगों को कार्य नहीं मिलता है, जिनकी कौशलता व काम करने की योग्यता कमजोर होती है। यदि कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करने योग्य होता है, तो उसे जरूरत से ज्यादा कार्य आबंटित किया जाता है। सामान्यतः यदि व्यक्ति के पास कार्य नहीं है तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसे उसकी कौशलता में सुधार की आवश्यकता  है। व्यक्ति का उसके पास काम न होने की सोच का रवैया न केवल सरकारी बल्कि व्यक्तिगत जीवन पर भी कुप्रभाव डालता है। ऐसे व्यक्तियों के परिवारजन व बच्चे भी उन्हें बहुत उपयोगी नहीं समझ कर आदर के भाव से नहीं देखते हैं और न ही ऐसे लोग किसी के आदर्श  बनने के पात्र होते हैं।

आवश्यकता है कि उक्त प्रकार की सोच को एकदम बदला जाये। यह कहते हुए दुःख होना चाहिए कि मेरे पास कार्य नहीं है, मैं आॅफिस में ऐसे ही जाकर आ जाता हूँ। हर व्यक्ति अपनी कौशलता में सुधार करके जिस संस्था में कार्य कर रहा है, उसमें एक असैट होने की छवि विकसित करे ताकि साथ कार्य करने वाले, परिवारजन व बच्चे सभी सम्मान करें और उसे अपना आदर्श  मानें। 

रघुवीर प्रसाद  मीना

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