Wednesday 31 August 2016

अन्धविश्वास त्याग कर प्रकृति एवम अपने माँ-बाप, भाई-बहन, बच्चे, रिश्तेदार, मित्र, समाज, जानकार व अन्य अच्छे लोगों के प्रति कृत्यज्ञ होने में समझदारी है।

rpmwu77
31.08.2016
अक्सर लोग बड़े-बड़े मंदिरों में जाकर भगवान की मूर्ति की पूजा करते हैं या विभिन्न स्वामियों के दरबार में जातें है तथा भारी-भरकम चढ़ावा भेंट करते हैं और ऐसे लोगों को लाभ पहुँचाते है, जिनके पेट पहले से ही भरे हुए है। ऐसे लोगों के साथ विभिन्न प्रकार के धोखे एवं बत्तमिजियाँ भी होती हैं। इसी प्रकार कई लोग आये दिन कथा, भागवत, यज्ञ, पदयात्रा में अपना समय, धन तथा ऊर्जा नष्ट करते रहते हैं और आशा करते हैं कि भगवान उनके लिए कुछ अच्छा कर देगा। सोचने का विषय है कि इस प्रकार के अन्धविश्वासों से क्या तो मिला है और क्या मिल सकता है? इस प्रकार की अंधी चाल केवल व्यक्ति में डर की भावना तथा अवैज्ञानिक सोच को प्रदर्शित करती है। लोगों के इस प्रकार के क्रिया कलापों को देख कर ऐसा लगता है कि ये लोग बिना मेहनत किये जीवन में  अन्धविश्वास के माध्यम से उन्नति व सफलता चाहते हैं।

यदि पूजा एवम कृतज्ञता व्यक्त करनी ही है तो धरती माँ की करें, जिसका कि हर जीव पर इतने एहसान हैं जिन्हें वह कभी चुका नहीं सकता। हर व्यक्ति धरती माँ पर पला, बड़ा हुआ व निवास करता है, उसमें पैदा होने वाली फसल से जीविकोपार्जन करता है। इसी प्रकार सूरज जो कि ऊर्जा का अल्टीमेट स्रोत है का कृतज्ञ होना चाहिए और कृतज्ञ होना चाहिए वायु मण्डल का जिसके बिना हम जिन्दा ही नहीं रह सकते हैं। कृतज्ञ होना चाहिए पेड़ों का जो वातावरण से अशुद्ध हवा लेकर हमें जीने के लिए शुद्ध हवा देता है तथा उस प्राकृतिक सिस्टम के जिससे वर्षा होती है। इनके अलावा व्यक्ति को अपने माँ-बाप, भाई-बहन, बच्चे, रिश्तेदार, मित्र, समाज व जानकार लोग जो कि जीवन में एक दूसरे के काम आते हैं, के प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिए। प्रकर्ति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए हमें प्राकर्तिक सिस्टम से खिलवाड़ नहीं करके उसे और समृद्ध करने का भरसक प्रयास करना चाहिए तथा अपने माँ-बाप, भाई-बहन, बच्चे, रिश्तेदार, मित्र, समाज व जानकार लोगों के काम आने लिए यथा सम्भव कोशिश करनी चाहिए।

रघुवीर प्रसाद मीना

  

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