सामान्यतः व्यक्ति उसके बच्चों के पालन-पोषण के माध्यम से वंषानुगत पारम्परिक विचारधारा को आगे बढ़ाता है। परन्तु निजी लाभ लेने वाले लोगों ने उनके बच्चों को तो उनके संस्कार दिये ही है, इसके साथ-साथ उन्होंने एससी, एसटी, ओबीसी तथा सामान्य वर्ग के गरीब लोगों के दिमाग में ऐसे विचार उत्पन्न कर दिये है कि इन वर्गों के अधिकतर लोग अंधविष्वासयुक्त धार्मिक कर्मकाण्ड जैसे पूजा-पाठ, कथा, भागवत, यज्ञ व पदयात्रा इत्यादि को अप्रत्याषित रूप से आगे बढ़ा रहे हैं एवं दिग्भ्रमित करने वाले लोगों के हितों के लिए बनाई गई व्यवस्था को सुदृढ़ कर रहे हैं तथा उसका प्रचार व प्रसार करने में बहुत अधिक समय व धन खर्च कर रहेे हैं। इसके पीछे एक छुपा हुआ उद्देष्य यह है कि ये लोग ऐसा समझते हैं कि धार्मिक कर्मकाण्ड करने से उनके द्वारा किये गये पाप कम हो जायेंगे।
धर्मांधता फैलाने वाले लोगों के स्वयं के बच्चे तो आज विज्ञान, इंजीनियरिंग, मेडिकल की उच्च स्तर की पढ़ाई करके वैज्ञानिक, इंजीनियर, सफल डाॅक्टर इत्यादि बन रहे हैं एवं आधुनिक जीवनषैली अपना रहे हैं एवं विदेषों में जाकर न केवल उच्च षिक्षा प्राप्त करते हैं बल्कि वहीं जाॅब ढूढ़ लेते हैं एवं सैटल हो जाते हैं। दूसरी ओर एससी, एसटी, ओबीसी तथा सामान्य वर्ग के गरीब लोग इन धर्मांधता फैलाने वाले चालाक व्यक्तियों के द्वारा प्रतिपादित दकियानूसी विचारधारा को अनुसरण करके पूजा-पाठ, कथा-भागवत, यज्ञ, पदयात्रा इत्यादि में बहुत ज्यादा लिप्त हो रहे हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग तो प्रत्येक सप्ताह/माह लम्बी-लम्बी धार्मिक यात्राओं पर जाते हैं। सुबह जल्दी उठकर घर का कार्य न करके मन्दिर में जाकर पूजा करते हैं और मन्दिर में बैठे पुजारियों की आर्थिक समृद्धता में सहयोग देते हैं।
यह भी देखा गया है कि इन वर्गो के लोग जो सरकारी सेवा में रहते हुए उनके सेवाकाल में समाज हित के कार्यों में रूचि नहीं लेते हैं वे जब सेवानिवृत्त हो जाते हैं तो समाज हित का कार्य न करके इन अंधविष्वासयुक्त धार्मिक कर्मकाण्ड के जाल में बहुत अधिक लिप्त हो जाते हैं। इससे एक ओर तो इन लोगों के अनुभव व समय का समाज को लाभ नहीं मिल पा रहा है तथा दूसरी ओर ये धर्मांधता को बढ़ावा देने वाली विचारधारा को सूदृढ़ करके शोषक लोगों को आर्थिक रूप से समृद्ध भी बना रहे हैं।
उक्त के मद्देनजर यह विचारणीय बिन्दु है कि एससी, एसटी, ओबीसी तथा सामान्य वर्ग के गरीब लोग क्या अंधविष्वासयुक्त धार्मिक कर्मकाण्ड वाली विचारधारा को आगे बढ़ाकर क्या वे दिग्भ्रमित नहीं हो रहे हैं ?
यह भी नोट किया गया है कि राजनीतिज्ञ व्यक्ति वोट कटने के डर से इन बातों का खुलकर विरोध नहीं करते हैं एवं जनता को सही दिषा नहीं दिखाते हैं। अतः हम सभी की इस विषय में जागृति लाने की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
सभी को खासकर सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों व अधिकारियों को चाहिए कि वे इन अंधविष्वासयुक्त धार्मिक कर्मकाण्ड जैसे पूजा-पाठ, कथा, भागवत, यज्ञ व पदयात्रा इत्यादि में अनावष्यक लिप्त नहीं हो। उन्हें उनके समय व अनुभव का सदुपयोग करके सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद करके, सामाजिक गतिविधियों में भाग लेकर तथा नए बच्चों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने हेतु प्रेरित करके समाज व गरीब के उत्थान हेतु कार्य करना चाहिए।
रघुवीर प्रसान मीना
एस सी, एस टी, ओबीसी तथा सामान्य वर्ग के गरीब लोग ज्यादा बढ़ा रहे हैं अंधविश्वासयुक्त धार्मिक कर्मकांड एवम् कर रहे हैं खुद को व अपने के समाज को भारी नुकसान
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