Friday 30 July 2021

क्या मीना हिन्दू है?

 
rpmwu420 dt.30.07.2021

क्या मीना हिंदू है? यह प्रश्न अब बार-बार उठने लगा है और मीनाओं की एतिहासिक विरासत आमागढ़, जयपुर में जून जुलाई 2021 में अज्ञात लोगों द्वारा मुर्तियों को खंड़ित करने, भगवा ध्वज पहनाने और उसको उतारने एवं तत्पश्चात एक राजनेता द्वार यह कहना कि आदिवासी हिंदू नहीं है और दूसरे राजनेता द्वारा यह कहना कि मीना हमेशा हिंदू थे, हिंदू है और हिंदू रहेंगे, समाज के वरिष्ठ राजनेताओं के इस प्रकार केे स्टेटमेंटस् से युवाओं मेंं भ्रम और अधिक बढ़ गया है। 

मीना आदिवासी है। प्रकृति पूजक थे और है। हमारे पूर्वज सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, जीवात्मा, वनस्पति जगत, पशुपतिनाथ के रूप में शिवजी व जननी के रूप में पार्वती माँ तथा स्थानीय देवी-देवताओं को कृतज्ञता प्रदर्शित करने व सम्मान देने के रूप में पूजते रहे है। कालांतर में हिन्दू संस्कृति मानने वाले जनमानस के साथ रहकर उनकी रीति रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानने लग गये।

आसान भाषा में यह ऐसे है जैसे कि हिन्दी मातृभाषा वाला व्यक्ति उसकी आवश्यकता अथवा परिवेश के कारण अंग्रेजी सीख ले। वह व्यक्ति है तो हिन्दी मातृभाषा वाला ही, अंग्रेजी सीख लेने के कारण उसे अंग्रेज नहीं कह सकते है जबकि वह हिंदी लिखते समय रेल व रोड जैसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करे। इसी प्रकार प्रकृति पूजक मीना आदिवासी समुदाय को उनकी जीवनपद्धति में प्रकृति पूजा के साथ हिन्दू रीती रिवाजों व देवी देवताओं के मानने से उन्हें हिन्दू नहीं कह सकते है। 

हिन्दू मान्यताओं की भेदभावयुक्त वर्ण व्यवस्था आदिवासियों पर लागू नहीं होती है। और न ही उन्हें उसमें कोई रूचि लेनी चाहिए। अनेकों लोग हिन्दू का मतलब एक जीवन पद्धति मानते है परन्तु एक वर्ग विशेष जो कि हिन्दू वर्ण व्यवस्था में अपने आप को शीर्ष पर बैठा मानता है और वह दूसरों का धार्मिक अंधविश्वास के बल पर शोषण करता है और दूसरों को नीचा होने का बोध करता है। अस्पृश्यता की उत्पत्ति भी उनकी घिनौनी सोच का परिणाम था। आज भी जब काम है तो सभी हिन्दू है कहने वाले लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर हिन्दूओं की उन्नति की राह में आयेदिन नये नये प्रपंच व रोड़े रचते रहते है। ऐसी स्थिति में हमारी पहचान प्रकृति पूजक आदिवासी के रूप में ही सही व उचित है।

कई विद्वानों का मानना है कि मीना समुदाय सिंधुघाटी सभ्यता के लोग है। आर्यों ने भारत देश में उत्तर पश्चिम दिशा से प्रवेश किया और उस क्षेत्र में रहने वाले मूलनिवासियों को वहां से विस्थापित होने पर मजबूर कर दिया और मूलनिवासी लोगों की जनसंख्यां का घनत्व राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड में अधिक हो गया। यह बात इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि जब आर्य भारत में आये थे उस समय सभी जनसंख्यां कृषि व पशुपालन पर निर्भर रहती थी और आज के पाकिस्तान सहित पंजाब, हरयाणा व उत्तरप्रदेश तीनों राज्यों में नदियों की उपलब्धता व उपजाऊ भूमि होने से इन राज्यों में आदिवासियों की जनसंख्याँ भौगोलिक परिस्थियों के कारण सबसे अधिक होनी चाहिए जबकि वास्तव में या तो है ही नहीं या लगभग नगण्य है। इस प्रकार निश्चित है कि राजस्थान राज्य में मीना समुदाय भारत में आर्यों के आने से पहले से ही निवास करता है। मीना एक बहादुर कौम है और उसके वीर पुरुषों  एवं योद्धाओं ने राजस्थान में अनेकों जगह राज किया और दुर्ग व स्मारक बनवाये। मीना समुदाय के लोग प्रकृति पूजक रहे है, वे सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, वनस्पति जगत, जीवात्मा को विभिन्न स्वरूपों में सम्मान देते और पूजते आये है।  मीना समुदाय के राजाओं के साथ धोखा किया गया और वे राजा से प्रजा बन गए। तत्कालीन शासकों द्वारा मीना समुदाय के लोगों को नियंत्रित करने और उनका दमन करने के लिए अंग्रेजों से मिलकर उनके विरुद्ध जरायमपेशा कानून एंव दादरसी कानून लागु किये गए जो कि आजादी के बाद समाज सेवकों के अथक प्रयासों व कड़ी मेहनत से समाप्त हो पाये। यह भी उल्लेखनीय है कि विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध मीना समुदाय के अनेकों बहादुरों ने युद्ध किया। महाराणा प्रताप, राणा सांगा व  शिवाजी के साथ जी जान से लड़े और उन्हें सम्मान दिलवाया।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में दी गई परिभाषा के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ है ऐसी जनजातियां या जनजातीय समुदाय या ऐसे के कुछ हिस्से या समूह जो कि जनजातियों या आदिवासी समुदायों के रूप में अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित है। अनुच्छेद 342 के तहत मीना समुदाय राजस्थान राज्य के 12 अनुसूचित जनजाति समूहों में क्रमांक 9 पर अंकित है। अनुच्छेद 25 व  26 के अनुसार सभी नागरिकों को कोई भी धर्म मानने की स्वतंत्रता प्रदान की हुई है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 (2) के अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड 25 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों पर यह अधिनियम लागु नहीं है।

जनजाति समूह मुख्य रूप से जीवन शैली, स्थानों, मूल्यों और विश्वास प्रणालियों के माध्यम से अन्य समूहों से भिन्न होते है। किसी समुदाय विशेष को अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मलित करने हेतु 5 विशेषताएं होनी चाहिए 1.आदिम लक्षण या जीवन का तरीका 2.भौगोलिक अलगाव  3.संपर्क करने में संकोच 4.विशिष्ट संस्कृति  5.सामान्य/आर्थिक पिछड़ापन। इस प्रकार सभी जनजाति समुदाय दूसरे अग्रणी समाजों से अलग होते है।

कालांतर में आजीविका व विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से राजस्थान के मीना समुदाय के लोग मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व महाराष्ट्र में पलायन कर वहां भी निवास करने लगे है। इन प्रदेशों में हिन्दू धर्म को मानने वाले आर्थिक रूप से अग्रणी समाजों के लोगो के संपर्क में आने के कारण प्रकृति की पूजा करने वाले मीना समुदाय के नागरिक हिंदू रीति रिवाजों को भी मानने लगे। आज के दिन अधिकांश मीना, प्रकृति की पूजा के साथ हिंदू रीति रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानते है। यह ऐसे हुआ जैैसे हिन्दी मातृभाषा वाले बच्चे परिवेश, माहौल व आवश्यकता के अनुसार हिंदी के साथ अंग्रेजी भी सीख लेते है। लेकिन जिस प्रकार का वातावरण बन रहा है उससे ऐसा लगता है कि भविष्य में आदिवासी बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर की तरह हिंदू रीति रिवाजों को मानना बंद कर दे, जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण है - 

1.  आदिवासी समुदायों में वर्ण के आधार पर ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं है। परन्तु हिन्दू लोग उनमें वर्ण व्यवस्था का पैमाना लगाकर उन्हें आरक्षण के कारण नीचे के पायदान पर स्थापित करना चाहते है। जो कि आदिवासियों को कतई स्वीकार्य नहीं है क्योंकि किसी ज़माने में आदिवासियों ने राज किया हुआ है और आज भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में दूसरे सुमदाय या जातियां उनके ऊपर ही आश्रित रहती है अतः वे उसी गौरव के साथ जीना चाहते है। 

2. मीना समुदाय के आदिवासी पढ़ने लिखने व सभी के साथ भाईचारा से रहने में विश्वास करते है परन्तु महसूस किया जाता है कि प्रकृति पूजा के साथ हिन्दू रीती रिवाज़ों को मानने के वाबजूद अग्रणी हिन्दू समुदाय उनके विरुद्ध विभिन्न तरह के भेदभाव करके उनको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते रहते है। 

3. अशिक्षित व्यक्ति धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषणों (DAP) में ज्यादा विश्वास रखते है और जीवन की समझ नहीं आने वाली चीजों को भगवान के आश्रय पर छोड़ देते है। चालाक लोग स्वयं के लाभ हेतु उनके भोलेपन का लाभ उठाकर उन्हें भगवान का डर एवं उसमें आस्था और पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करते रहते है। इसी सोच के कारण आदिवासियों को भी पढ़ने-लिखने से वंचित रखा गया। देश में संविधान लागू होने के पश्चात व आरक्षण जैसे सकारात्मक प्रावधानों के कारण देश के आदिवासी शिक्षा ग्रहण करने लगे है और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषणों से दूर होने लगे है। 

4.  हिंदू धर्म पर एक वर्ण/जाति विशेष ने एक प्रकार से उनके स्वयं के लाभ के लिए कब्जा कर लिया है। जैसे लोग फिटर, टेक्नीशियन, इलेक्ट्रिशियन व मैकेनिक इत्यादि में आईटीआई करते है उसी प्रकार से उस वर्ण/जाति के बच्चे गुरुकुलों में जाकर कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण करते है और धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण को बढ़ावा देकर दूसरों के बल पर स्वयं की आजीविका चलाते है। गुरुकुलों में दूसरी जाति समुदाय के लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता है। शिक्षित युवा अब इस बात को समझने लगे है। 

5. जितने भी धार्मिक स्थल है या तो अधिकांशतः राजा महाराजाओं या अन्य भामाशाओं द्वारा दान की गई जमीन पर है अथवा अनाधिकृत रूप से कब्जा की गई जमीन पर है और उनको बनाने के लिए भी समाज के लोगों द्वारा चंदा एकत्रित किया जाता रहा है। ऐसे धार्मिक स्थलों पर जाति विशेष द्वारा कब्जा कर लेना अनुचित प्रतित होता है। 

6. धार्मिक स्थलों की पूजा-अर्चना करने की आड़ में अपने आप को श्रेष्ठ समझना और पूजा-अर्चना करवाने वाली जनसंख्या को नीचा समझना आखिर कब तक चलेगा? 

7. हिन्दू धर्म के शीर्ष पर बैठे समाज के बारे में धारण बन गई है कि खाय भी और गुर्राय भी। एक ओर तो आदिवासियों से सम्मान के साथ दान-दक्षिणा लेते है और दूसरी ओर राजनितिक, व्यावसायिक व सरकारी और निजी क्षेत्रों में उनकी उन्नति को रोकने के लिये वर्ग विशेषों द्वारा समता मंंच जैसे संगठनों की गतिविधियां, न्यायालयों और सरकार के महत्वपूर्ण पदों बैठे व्यक्तियों द्वारा उनकी अथॉरिटी का दुरुपयोग किया जाता है। शिक्षित व नौकरीपेशा लोगों को यह समझ आने लग गया है।

8.  शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न हो रहा है इसकी वजह से भी धार्मिक प्रपंचों से जुड़ी चीजों से युवा विमुख होते जा रहे है। 

9. सूचना प्रौद्योगिकी के युग में देश के समस्त आदिवासी युवा आपस में संवाद कर सकते है और उन्होंने ऐसा करना प्रारंभ भी कर दिया है। उनको लगता है कि देश की जल जंगल जमीन जो कभी उनके पुरखों की हुआ करती थी वहीं पर एकलव्य के समय से ही धार्मिकता का दुरुपयोग करके उन्हें हाशिए पर खड़ा कर दिया गया है।

10. आदिवासी युवाओं को लगता है कि हिन्दू धर्म केवल समुदाय विशेषों के उत्थान के लिए ही है शेष जनसंख्यां मात्र सेवा करने के लिए बनी है। उन्हें जीवन भर मेहनत करने के साथ हमेशा कम महत्पूर्ण ही समझा जाता रहेगा।

आखिर देश के आदिवासी हिन्दू धर्म के बारे में अब ऐसा सोचने पर क्यों मजबूर हो रहे है ? जो भी व्यक्ति या संगठन चाहते है कि आदिवासियों को हिन्दू धर्म के रीती रिवाजों को मानना चाहिए, उन्हें आदिवासियों के साथ उनके द्वारा किये जा रहे व्यवहार के बारे में विचार करना चाहिए न कि आदिवासियों को ही दोष दे।

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना



11 comments:

  1. Dear Sir,
    मीणा समाज भूमिया और पितृ प्रेत की पूजा करने वाला आदिवासी आदर्शवादी समाज रहा है। आदर्शवादी अच्छे सिद्धांतों का अनुयाई भी रहा है। अच्छी सिद्धांतों को मानने का मतलब नहीं है कि हम आदिवासी संस्कृति को छोड़ दें। जंगल जमीन प्रकृति हमारा पहला प्रेम होता है और पूरा आदिवासी समाज इन्हीं चीजों में आज भी अपने आप को पूर्ण समाहित किए हुए हैं। हम बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और संविधान के आभारी हैं कि हमें नौकरी मिली और समाज में उत्थान के लिए हम आगे आ पाए। हमें अपने आदिवासी विचारों को सहेज ते हुए समाज का भला करना चाहिए यूनाइट रहना चाहिए। राजनीतिक मौकापरस्त नेताओं से दूरी बनाते हुए समाज को एकजुट करना चाहिए। हमारे समाज के प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता अपने आप को मुख्य मुखिया मानते हुए अपने सम्मान के अलावा समाज का कुछ भला नहीं करना चाहते। हमारे समाज के प्रशासनिक अधिकारी और नेताओं को बोलने का मौका नहीं दिया जाए तो वह हमारे सामाजिक सम्मेलनों में भी आने की इच्छा नहीं रखते। जब कभी उन्हें आमंत्रित किया जाता है तो पूछा जब वह पूछते हैं कि हमें मुख्य अधिवक्ता अध्यक्ष बनाओगे या नहीं। जबकि वैश्य ब्राह्मण और अन्य समाज में प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता नीचे चटाई पर बैठकर समाज के लोग स्टेज पर बैठकर उनको दिशा निर्देशन करते हैं।यह सब चीजें हमारे प्रशासनिक अधिकारी राजनेताओं में नहीं आएंगी नहीं सोचेंगे तब तक समाज यूनाइट नहीं हो सकता और संगठित होकर कोई लड़ाई भी नहीं लड़ सकता।

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  2. बहुत ही सटीक विवेचना की गई हैं

    आज की पीढ़ी पढ़ी लिखी हैं
    वोह DAP को समझने लगी हैं

    इसी लिये चूल हिल रही हैं

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  4. SC और OBC कहाँ से आये सर ?

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  5. Sir very useful article for all adivasi society

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  6. आपने हमें हमारे इतिहास से रूबरू कराया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद जी

    🙏🙏जय जोहार🙏🙏

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद सर
    जय जोहार

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  8. सर
    आपने बहुत ही सहज और सटीक भाषा में आदिवासी मीना समुदाय के इतिहास का बखूबी वर्णन किया है और किसी भी आदिवासी को अपना इतिहास को जानने में मददगार आर्टिकल लिखा है।
    बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏
    सर , मैं भी महाराजा कॉलेज में पढ़ता हूं।

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  9. *_Thanks sir_* 🌹🙏🌹_*
    *_ the best of the best_*

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  10. Bilkul sahi kaha sir👉👉✍✍✍

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Thank you for reading and commenting.