Sunday 1 August 2021

हमारा प्रमुख उद्देश्य देश के सभी नागरिकों से जुड़ना एवं देश की उन्नति में महत्वपूर्ण भागीदारी होना चाहिए। आत्मनिरीक्षण (Introspection) : आदिवासी मीना समुदाय

rpmwu421 dt.01.08.2021

कहाँ से कहाँ आ गए है और अब क्या कर रहे है और किस दिशा में जा रहे है हम? इस विषय में समय समय पर विचार करना चाहिए। क्योंकि यदि व्यक्ति लखनऊ की गाड़ी में बैठा है तो लखनऊ अवश्य पहुंचेगा चाहे थोड़ी बहुत देर क्यों नहीं हो जाये। अतः हमें समय निकालकर सोचना चाहिए कि हम सही दिशा में जा रहे है अथवा कहीं अनजाने में गलत दिशा तो नहीं पकड़ रखी है? मीना आदिवासी समुदाय की यदि बात करें तो निम्नलिखित तथ्य विचारणीय है -  
  1. मीना आदिवासी समुदाय का अत्यंत गौरवशाली इतिहास रहा है। महाभारतकाल में विराट नामक राजा मत्स्य महाजनपद का शासक मीना समुदाय का था। आमेर, खोहगंग, मांच (जमवारामगढ़), गैटोर, झोटवाड़ा, नायला, नाहण,नॉढला (आमागढ़),मातासुला,नरेठका,झांकड़ी अंगारी,रणथम्भोर व बूंदी अनेकों दूसरे भूभागों पर मीना समुदाय के राजाओं और वीर महापुरुषों ने राज किया था। कछवाहा लोगों को मीनाओं ने शरण दी और बाद में उन्होंने ही धोखा देकर मीनाओं का राज छीन लिया और मीना समुदाय राजा से प्रजा बन गया।
  2. मत्स्य महाजनपद के राजा विराट व खोहगंग के राजा आलन सिंह ने क्रमशः पांडवों व कछवाहा रानी को शरण दी थी। सोचिये उनकी ताकत व दयालुता कितनी महान रही होगी।
  3. विदेशी आक्रांताओं से दोस्ती और रिश्तेदारी नहीं की। हर विदेशी आक्रांता चाहे वह मुग़ल हो या अंग्रेज हो या कोई राजा महाराजा ही क्यों नहीं हो मीना समुदाय हमेशा देश की जनता के साथ खड़ा रहा और आक्रांताओं के विरुद्ध मीना समुदाय के अनेकों बहादुरों ने पुरे जोश के साथ युद्ध किया। महाराणा प्रताप, राणा सांगा व  शिवाजी के साथ जी जान से लड़े और उन्हें सम्मान दिलवाया।
  4. कछवाहों से समझौता होने के बाद मीना सरदार इतने ईमानदार व वफादार थे कि वे राज्य के खजाने के मुख्य प्रहरी होते थे। बेईमानी करने पर वे किसी पर भी रहम नहीं करते थे।
  5. राज जाने के पश्चात भी मीना समुदाय के लोग छापामार तरीक़े से लगातार लड़ते रहते थे और राजकाज में बाधा डालते थे। तत्कालीन शासकों द्वारा मीना समुदाय के लोगों को नियंत्रित करने और उनका दमन करने के लिए अंग्रेजों से मिलकर उनके विरुद्ध जरायमपेशा कानून एंव दादरसी कानून लागु किये गए जो कि आजादी के बाद 1952 में समाज सेवकों के अथक प्रयासों व कड़ी मेहनत से समाप्त हो पाये।
  6. देश की आजादी के पश्चात सन 1950 में राजस्थान में केवल अकेले भील समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में सम्मलित किया गया था। समाज सेवकों एवं महापुरुषों के अथक प्रयासो से राजस्थान का मीना समुदाय सन 1956 में अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल हुआ। भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में दी गई परिभाषा के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ है ऐसी जनजातियां या जनजातीय समुदाय या ऐसे के कुछ हिस्से या समूह जो कि जनजातियों या आदिवासी समुदायों के रूप में अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित है। अनुच्छेद 342 के तहत मीना समुदाय राजस्थान राज्य के 12 अनुसूचित जनजाति समूहों में क्रमांक 9 पर अंकित है। अनुच्छेद 25 व  26 के अनुसार सभी नागरिकों को कोई भी धर्म मानने की स्वतंत्रता प्रदान की हुई है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 (2) के अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड 25 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों पर यह अधिनियम लागु नहीं है।
  7. वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 121 करोड़ जनसँख्या में 10.43 करोड़ (8. 62 %) अनुसूचित जनजाति है। राजस्थान राज्य में 6.85 करोड़ जनसँख्या में 92.39 लाख (13.48 %) अनुसूचित जनजाति है, जिनमें से 43.46 लाख (47 %) मीना समुदाय के नागरिक है।
  8. भारत की  जनगणना  2011  के  आंकड़ों के  मुताबिक राजस्थान राज्य में अनुसूचित जनजातियां एवं उनके द्वारा माने जाने वाले धर्मों की स्थिति निम्न प्रकार है। इसके अनुसार लगभग समस्त अनुसूचित जनजाति मीना समुदाय के लोग हिन्दू धर्म में विश्वास करते है। 

  9. समान्यतः मीना समुदाय के लोग कृषि से जुड़े व्यवसाय करते आये है। अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के बाद मीना समुदाय के लोगों ने पढ़ना लिखना प्रारम्भ किया। शुरू में 1980 तक गति बहुत धीमी थी, किसी गांव क्या क्षेत्र विशेष में केवल गिने चुने लोग ही उच्च सरकारी सेवा में आ पाए थे।
  10. 1980 के पश्चात खासकर सरसों की फसल की पैदावार शुरू करने के बाद मीना समुदाय के लोगों की आर्थिक दशा सुधरने लगी और सम्पूर्ण समुदाय में शिक्षा के प्रति एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा हो गई। समाजसेवकों के प्रयासों से कई सामाजिक कुरुतियां दूर की गई और उनमें व्यय होने वाले धन को शिक्षा की ओर मोड़ा गया। लोग कर्ज लेकर भी बच्चों को पढ़ाने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि मीना समुदाय के छात्र शिक्षा के क्षेत्र में जोरदार प्रदर्शन करने लग गए। प्रशासनिक व इंजीनियरिंग सेवाओं के क्षेत्र में उनकी उपस्थिति दिखने लगी। इसके बाद सबोर्डिनेट सेवाओं में भी अनेकों छात्र जाने लगे।छात्रों के साथ माँ बाप की मेहनत का परिणाम है कि आज सरकार के हर विभाग में मीना समुदाय के व्यक्तियों की उपस्थिति मिलेगी।
  11. राजनीती के क्षेत्र में भी मीना समुदाय ने उपस्थिति बढ़ाई है। राजस्थान राज्य में लगभग हर बार समुदाय के विधायक व मंत्री होते है। तीन बार केंद्र सरकार में भी समुदाय के राजनेताओं को मंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ है। हालाँकि इस क्षेत्र में प्रदर्शन और अधिक बेहतर होना चाहिए था। लम्बे राजनितिक कर्रिएर के बावज़ूद हमारे वरिष्ठ राजनेताओं को उनकी मांग मंगवाने के लिए आयेदिन धरनों इत्यादि पर बैठना पड़ता है। उन्हें ज्यादा प्रभावशाली होना चाहिए ताकि उनके साधारण कार्य फ़ोन करने या पत्र लिखने मात्र से ही हो जाये। पाँचना की नहरों में पानी खुलवाने जैसे जनहितैषी मुद्दे पर भी वे एकजुटता से संघर्ष नहीं करते है। एक राजनेता कहता है कि नहर में पानी खोलो तो दूसरा अनावश्यक तौर पर कहने लग गया कि नदी में खोलना चाहिए। समाज के अधिकांश राजनेता आपस में टिका टिप्पणी करने में ही वे उनकी ऊर्जा व समय नष्ट करते है।   
  12. प्राइवेट क्षेत्र में नौकरियों व स्वयं के व्यवसाय दोनों में ही मीना समुदाय के लोगों की उपस्थिति बहुत ही कम है।
  13. मीना समुदाय के लोग सामान्यतया धार्मिक होते है और प्रकृति की पूजा करते आये है। सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, जीवात्मा, वनस्पति जगत, पशुपतिनाथ के रूप में शिवजी व जननी के रूप में पार्वती माँ तथा स्थानीय देवी-देवताओं को कृतज्ञता प्रदर्शित करने व सम्मान देने के रूप में पूजते रहे है। कालांतर में हिन्दू संस्कृति मानने वाले जनमानस के साथ रहकर उनकी रीति रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानने लग गये।
  14. पहले की अपेक्षा समाज के लोग धार्मिक अंधविश्वास के प्रदुषण (DAP) से बहार आने लगे है। अपने आप को आदिवासी मानने और कहने में गर्व महसूस करने लगे है और आदिवासियों के अधिकारों की जनजागृति हेतु अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस मानाने में सक्रीय हुए है। 
  15. सामाजिक तौर पर ज्यादा लोग अच्छे घरों में रहने लग गए है। उनके पास कृषि के संसाधनों में वृद्धि हुई है। आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है और अधिक संख्यां में लोग शराब व नॉनवेज का सेवन करने लग गए है।
  16. बालिकाओं की शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति हुई है। बालिकाओं की पढाई पर माँ बाप ध्यान देने लगे है। सामाजिक स्तर पर भी छात्रावास इत्यादि की सुविधाएं विकसित की जाने लगी है। बालिकाओं के पढ़ने को समाज प्रोत्साहित करता है।   
  17. आर्थिक सम्पन्नता बढ़ने के बावजूद एक दूसरे की मदद करने की भावना में कमी आयी है। राजनीती में भी समाज का रुतवा कमजोर हुआ है। लोग धन व शराब इत्यादि की लालच में आकर वोट देने लग गए है। वोट देने में जोश काम हो गया है, जिसके कारण समाज के राजनेताओं की हार होती है जिसका कि अंततोगत्वा समाज की उन्नति पर ही विपरीत असर पड़ता है।
  18. प्रेस व मीडिया में मीना समुदाय के लोगों की लगभग नगण्य उपस्थिति है। सोचसमझकर हमारे युवाओं को इन क्षेत्रों में जाने की आवश्यकता है। 
  19. न्यायपालिका एवं डिफेन्स सर्विसेज में भी हमारे लोगों की भागीदारी काफी कम है। ये दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्र है, इनमें भी उपस्थिति जरूरी है।
  20. मीना समुदाय में काफी पढ़े लिखे लोग होने के बावजूद दूसरे आदिवासी समुदायों के साथ समन्वय की कमी है। यदि सभी जनजातियों को एकजुट किया जा सके तो सभी की उन्नति तीव्र गति से हो सकती है। 
  21. मीना समुदाय में बहुत से अधिकारी होने के बावजूद आदिवासियों के कल्याण हेतु सरकारी फण्डस् के खर्च की मोनिटरिंग नहीं करते है। लोग अपने आप में सिमटते जा रहे है और स्वयं के बच्चों व रिश्तेदारों तक ही ध्यान देने लगे है।
  22. वर्ष 2005 के पश्चात से लगता कि दूसरे लोग मीना समुदाय की उन्नति से ईर्ष्या या द्वेष की भावना के कारण उनके युवाओं, समाजसेवकों और राजनेताओं का विभिन्न प्रकार से समय व संसाधन नष्ट करने वाली अड़चने पैदा करने लग गए है। उदाहरणार्थ (i) गुर्जरों द्वारा अनुसूचित जनजाति में सम्मलित होने की मांग से उपजे विवाद के कारण राजनेताओं, समाजसेवकों व युवाओं का बहुत समय और ऊर्जा नष्ट हुई, पाँचना डैम की नहरों में पिछले 15 वर्षों से अभी तक भी पानी बंद है। (ii) मीना-मीणा विवाद : एकदम बेमतलब का विवाद खड़ा किया गया, जिसके कारण अनेकों युवाओं को सरकारी नौकरी लगने और सरकार की योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह गए और समाज के हर जागरूक नागरिक का समय, ऊर्जा व  संसाधन नष्ट हुए। (iii) पदोनत्ति में आरक्षण से छेड़छाड़ और 13/200 पॉइंट रोस्टर में भी युवाओं का समय नष्ट हुआ और नुकसान हुआ। (iv) आमागढ़ पर ध्वज लगाने के मसले पर मीना समाज को बदनाम किया गया और समाज में फूट डालने का प्रयास किया गया।

मोटे तौर पर हम अभी तक के घटना क्रम को उक्त प्रकार से संक्षिप्त में मान सकते है। समुदाय व दूसरे आदिवासियों की स्थिति में सुधार हेतु समुदाय के लोगों को स्वयं निम्नलिखित दिशा में सकारात्मक कार्य करने चाहिए -

  1. अपने अतीत के गौरव को याद करें और भारत माँ के सच्चे सपूत बने। देश की एकता और अखंडता में योगदान दे। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सकारात्मक भूमिका निभाए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करें और नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए तत्पर रहें। संविधान का अध्यन करें। संविधान में प्रदत्त मूल कर्तव्यों का पालन करें और साथ में मूल अधिकारों के प्रति जागरूक बने। हमेशा देश की उन्नति के हित को सर्वोपरि रखें और उसमें महत्वपूर्ण योगदान दें।
  2. सभी का साथ : आजकल देखने में आ रहा है कि कई युवा अनजाने में आदिवासियत के नाम पर समुदाय को अलग थलग कर रहे है। कट्टर बनने से नुकसान होगा। अपने आप से प्रश्न करें कि क्या मैंने दूसरे समुदाय के लोगो से कभी कोई मदद नहीं ली या कभी नहीं लूंगा? अधिकांशतया इसका उत्तर मिलेगा कि सभी का आपस में काम पड़ता है। एक दूसरे की मदद लेते है और मदद करते भी है। तब फिर अलग थलग पड़ने से क्या लाभ? अतः सभी समाजों के लोगों के साथ रहे और सब का साथ सब का विकास में विश्वास रखें।
  3. हर व्यक्ति कमाई को घर में ही खर्च करता है। परन्तु ऐसा करते समय पुब्लिक में दिखावा नहीं करता है। सोचो यदि कोई व्यक्ति चौहराये पर जाकर पब्लिक के सामने दिखा दिखा कर अपने बच्चों को रूपये दे तो दूसरे लोग कैसा सोचेंगे? समाज भी एक बड़े परिवार की तरह होता है। आपस में मदद करें परन्तु अनावश्यक दिखावा करने से बचें।
  4. स्वयं अस्पृश्यता नहीं करें और दूसरों को भी छुआछूत नहीं करने के लिए प्रेरित करें। देश निर्माण के लिए कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए सरकार, विभिन्न संस्थाओं या व्यक्तिगत स्तर पर किये जाने वाले हर कार्य का समर्थन करे।
  5. जागरूक नागरिक बनें और आदिवासियों के कल्याण के लिए अलग से निर्धारित फंड्स के उपयोग के बारे में जानकारी रखें। समय समय पर इस सम्बन्ध में राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच संवाद व समन्वय किया जाये।
  6. ब्रांड एम्बेसडर : 1. अच्छा कार्य व व्यवहार करके समाज की ब्रांड वैल्यू बढ़ाई जाये। 2. एक दूसरे की मदद करें और भाईचारा बढ़ाएं व अपना काम सही से करें
  7. अपने मन व मष्तिक को तिज़ोरी समझे न कि डस्टबिन। दूसरों के बारे में सकारात्मक भाव रखें, नकारात्मक भाव जल्दी हटा दे। प्रतिदिन आत्मवलोकन करें और एक बेहतर व्यक्ति और नागरिक बनाने का प्रयास करें।
  8. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के संगठन : दूसरे आदिवासी समाजों से जानकारी करें व उनके साथ रहें। आदिवासी एकता के कार्य करें। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं व ऑथॉरिटीज़ से 3 माह में एक बार मिलने का प्रोग्राम रखे। संस्थागत इस्टैब्लिशमेंट होने चाहिए, मिलने, बात करने की जगह व संस्थाएं हो।
  9. दूरस्थ पैदा हुए समाजसेवियों व राजनेताओं के साथ अपने स्थानीय समाजसेवियों व राजनेताओं का सम्मान करें। सोच के विचार करो कि जरायमपेशा कानून एंव दादरसी कानून हटवाने में या आरक्षण दिलाने में किन किन समाजसेवियों और राजनेताओं का सर्वाधिक योगदान रहा? उनका आदर व सम्मान सबसे पहले करें।
  10. राजनितिक रूप से बहुत कमजोर है। राजनीति : 1. खुले दिमाग से राजनितिक बातें करें। 2. समाज की बैठकों में भाग लें और पार्टी की विचारधारा को गौण रखें।
  11. शिक्षा पर विशेष ध्यान दें : 1. गांव में अध्ययन केन्द्र खुलवाएं व स्कूलों पर ध्यान दें। 2. ट्राइबल हेल्पिंग हैंड्स जैसी शिक्षा में सहयोग करने वाली संस्थाओं की आर्थिक मदद करें। 3. एकलव्य स्कूलों के संचालन पर निगरानी रखे।
  12. भूमि के स्वामित्व जैसे वन भूमि अधिकार अधिनियम की अनुपालना व आदिवासियों के लिए बनाई गई अन्य कल्याणकारी योजनाओं की मॉनिटरिंग करें।
  13. सेवानिवृत्त आदिवासी अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्यां काफी होती जा रही है। उनके पास समय, संपर्क व धन भी होता है। वे समाज की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है। अतः उनका सम्मान करें और उनकी सुनें। उन्हें भी सामाजिक दायित्व के भाव से काम करना चाहिए।
  14. मीना समुदाय के लोग धार्मिक होते है और प्रकृति की पूजा करते आये है। कालांतर में हिन्दू धर्म के रीती रिवाजों व देवी देवताओं को भी मानने लगे है। परन्तु धर्म के मसले में ज्यादा नहीं डूबने से लाभ नहीं है। व्यक्ति को अच्छे आचरण और नैतिकता पर ध्यान देना चाहिए। अपने कर्तव्य को ही सबसे बड़ी पूजा समझे। संविधान के मुताबिक राजस्थान का मीना समुदाय अनुसूचित जनजाति है एवं जनगणना के आंकड़ों मुताबिक समस्त मीना समुदाय हिन्दू धर्म में विश्वास करता है।
  15. धार्मिक अन्धविश्वास के प्रदूषण (DAP) का दुरूपयोग बहादुर आदिवासी समुदायों को नियंत्रण में करने के लिए किया गया है। हमें सोचना और समझना होगा कि कौन क्या कर रहा है? हमें हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था से दूर ही रहना है। उसे मानने से आर्थिक रूप से लूटने के साथ नीचता का बोध कराया जाता है।
  16. नशाखोरी व खैनी, गुटका इत्यादि से दूर रहना होगा। इनके सेवन से इज्जत के साथ आर्थिक नुकसान भी होता है। व्यक्ति स्वयं की वैल्यू खुद ही ख़राब कर लेता है।
  17. सामाजिक कुरीतियों से दूरी : बाल विवाह एवं मृत्यु भोज जैसी सामाजिक कुरीतियां बड़ी मुश्किल से दूर हुई है। दहेज़ अभी भी बड़ी कुरीति है। लगन टीका व सेवानिवृति पर बड़े आयोजन अभीहाल में कुरीति का रूप धारण करने लगे है।
  18. स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है। पौष्टिक भोजन नहीं मिलने के कारण आदिवासियों की महिलाओं में खून की कमी रहती है। इसी प्रकार बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है।
  19. प्रेस व मीडिया तथा न्यायपालिका एवं डिफेन्स सर्विसेज में भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। युवाओं को इन क्षेत्रों में जाना चहिये।
  20. महिला शिक्षा व महिला सम्मान : आदिवासिओं में महिलाओं की शिक्षा पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरुरत है। साथ ही महिलाओं का सम्मान भी जरुरी है।
  21. लिंग समानता : लड़के व लड़की में भेद करना बंद करना होगा। कई लोग लड़के की चाहत में अनेकों लड़कियों को जन्म दे देते है और समस्त परिवार व लड़का जीवन भर परेशान रहते है।
  22. एंट्रेप्रेन्योरशिप व बिज़नेस : 1. प्राईवेट बिजनेस की सोच विकसित करनी होगी। 2. स्किल बढ़ाने के लिए स्किल का खेलों की तरह कंपटीशन किया जाना चाहिए।
  23. गलत करने वालों को टोके। समाज के हित की बात करने में हिचके नहीं।
  24. बड़ों का सम्मान व छोटों का प्रोत्साहन : 1. युवा संस्कार शिविर आयोजित किये जाये। 2. दूसरों का सम्मान करने साथ अपने लोगों का सम्मान भी करें।
  25. राजनेताओं को अधिकारिओं को सरकार की ‘की-पोस्टों’ पर पदस्थ करने में मदद करनी चाहिए ताकि वे समाज के ज्यादा काम आ सके।
  26. अपनी पोजीशन को सेवा का मौका समझें। जब व्यक्ति पद पर नहीं रहता है तो दूसरे से अनुरोध ही करना पड़ता है।
  27. इतिहास को पहचाने और सीख लें। परन्तु इतिहास पर आवश्यकता से अधिक समय नहीं दें। व्यक्ति को वर्तमान व भविष्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
  28. सामाजिक कार्यकर्ताओं की वीडियो क्लिपिंग्स : वयोवृध्द व प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं की वीडियो क्लिपिंग्स बना लेनी चाहिए ताकि उनके कार्यों एवं विचारों से अधिकतम लोग आसानी से परिचित हो सके।
  29. लिखना प्रारम्भ करें और सोशल मीडिया का प्रयोग करें। दूर रहकर भी हर चीज में विचारों से रोल अदा कर सकते है।
  30. बेवजह की वहसों में नहीं फसे। समाज की ओर से प्रतिक्रिया नपी तुली होनी चाहिए। आमागढ़ प्रकरण में दो लोगों के कुछ कहने पर समुदाय के बहुत लोगों द्वारा प्रतिक्रिया देने की जरुरत नहीं थी। मीना-मीणा मसले पर भी जरुरत से ज्यादा प्रतिक्रिया की गई जबकि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा बहुत ही आसान हल दे दिया था।

सरकार से उचित स्तर पर आदिवासियों के कल्याण व उनकी उन्नति हेतु की निम्नलिखित महत्पूर्ण मांगे होनी चाहिए -

  1. आदिवासियों में एकता और उनमें उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जाये। इसी कड़ी में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर केन्द्र व राज्य सरकार उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित करवायें एवं अन्य धर्मों के अनुयाइयों के लिए जब इतनी सारी अवकाशें निर्धारित है तो देश की लगभग 10 प्रतिशत आबादी के लिए 9 अगस्त के दिन राजकीय अवकाश घोषित करें।
  2. प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के हक की नीति तय हो। आदिवासी क्षेत्र से निकाली जाने वाली प्राकृतिक सम्पदा में आदिवासियों की हिस्सेदारी हो।
  3. विकास के नाम पर आदिवासियों की बेदखली पर नियंत्रण हो। विकास कार्य हेतु सोशल इम्पेक्ट ऑडिट हो एवं उसके पश्चात यदि बेदखली टाली नहीं जा सकती तो मुआवज़े की ठोस नीति बने व उसकी अनुपालना हो।
  4. वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन भूमि पर स्वामित्व के अधिकार की अनुपालना एवं उसकी गहन मॉनिटरिंग ज़रुरी है।
  5. आदिवासियों के संस्थागत विकास हेतु विशेष पैकेज के साथ कार्ययोजना बने व उसकी क्रियान्विति हो।
  6. आदिवासी नेताओं, समाजसेवियों व स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये।
  7. महत्वपूर्ण सार्वजनिक सम्पत्ति व रोडस् के नाम आदिवासी नेताओं, समाज सेवियों व महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम पर रखे जाये।
  8. देश की राजधानी व समस्त राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में आदिवासी विकास केंद्रों की स्थापना की जाये। इन केंद्रों में आधुनिक सुविधाओं के साथ ऑडिटोरियम, कांफ्रेंस हॉल, पुस्तकालय, शोध केन्द्र, होस्टल्स, गेस्ट हाउसेस एवं थियेटर बनाये जायें ताकि आदिवासियों की संस्कृति, खेल-कूद, परम्पराएँ एवं पुरा महत्व के दस्तावेज़ों का संरक्षण हो ताकि नई पीढ़ी आदिवासी धरोहरों से अवगत हो सके।
  9. वर्ष 2011 के जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार देश में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 8.62 % है जबकि आरक्षण 7.5 % ही है। अतः आवश्यकता है कि जनजाति आरक्षण वर्तमान जनसंख्या के अनुरूप 7.5 % से बढ़ाकर 8.62 % किया जाये।
  10. राज्य सभा में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण होना चाहिए।
  11. सरकार के मंत्रियों में आदिवासियों को जनसंख्या के अनुसार उपयुक्त प्रतिनिधित्व मिले।
  12. न्यायिक सेवाओं हेतु भारतीय न्यायिक सेवा का गठन हो ताकि न्यायिक सेवाओं में हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो सके। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायधीशों के चयन में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व हेतु आरक्षण होना चाहिए।
  13. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान एवं विश्वविद्यालयों एवं काॅलेजों की फैकल्टी में जनसंख्या के अनुसार आदिवासियों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
  14. सरकार के महत्वपूर्ण पदों (की-पोस्टों) पर आदिवासी अधिकारियों को उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिले। ग्रुप ए तक की सभी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान हो एवं आयु सीमा हटाई जाये ताकि सभी स्तरों के पदों पर जनसंख्या के आधार पर समुचित प्रतिनिधित्व हो सके।
  15. जिन-जिन विभागों में अनुसूचित जनजाति का बैकलाॅग है, उसे अविलम्ब भरा जाये।
  16. व्यवसाय की ओर प्रेरित करने हेतु आदिवासियों को विशेष प्रकार के इंसेंटिव दिये जाये।
  17. सरकार की नीतियों की वजह से सरकारी क्षेत्र कम होते जा रहे हैं व निजी क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अतः निजी क्षेत्र में भी आरक्षण का प्रावधान किया जाये।
  18. आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व शिक्षा पर विशेष कार्ययोजना होनी चाहिए। इन क्षेत्रों में पदस्थ किये जाने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को विशेष इंसेंटिव दिया जाये ताकि कठिन परिस्थितियों में पदस्थ होने से परहेज नहीं हो।
  19. अंधविश्वास व कुरीतियों को दूर करने हेतु विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाये एवं कार्यरत समाजसेवियों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाये।
  20. आदिवासियों से संबंधित पुस्तकों, लेखों व साहित्य को बढ़ावा देने हेतु विशेष कार्ययोजना बनाई जाये एवं उसकी क्रियान्विति सुनिश्चित कराएं।
  21. आदिवासी क्षेत्रों में पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों की ज्यादतियाँ कम हो एवं आदिवासियों के उत्पीड़न के प्रकरणों पर तत्परता से ठोस कार्यवाही की जाये।
  22. आदिवासी खिलाड़ियों को सही प्रोत्साहन मिले।
  23. आदिवासियों के गौरव की ऐतिहासिक धरोहरों एवं मोनुमेंट्स जो कि सामान्यतया वन विभाग या पुरातत्त्व विभाग के अधीन होते है, उनको चिन्हित करके गज़ट में नोटिफाई करवाएं एवं उनका उचित संरक्षण किया जाये।
उपरोक्त मांगों में समय की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन किये जाते रहने चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

6 comments:

  1. समाज एकता जिंदा बाद

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  2. बहुत सुंदर विचार सर

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  3. जय आदिवासी जय जोहार

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  4. अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई गई है लेकिन समाज को किसी फालतू के मुद्दे में उलझ कर रहने की आगे बढ़ने चाहिए।

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  5. बहुत ही अच्छी जानकारी हमारे समाज के युवाओं, नोजवानों, सरकारी सेवकों एवं पृत्येक आदिवासी भाई बहनों के लिए उपलब्ध करवाई है इसके लिए बहुत बहुत शुकिया

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Thank you for reading and commenting.