Sunday 4 July 2021

भ्रष्टाचार बन रहा है उत्प्रेरक अंधविश्वास व धार्मिक क्रिया-कलापो को बढ़ाने में। सीधे-साधे लोग होड़ में लुट रहे है व नहीं कर रहे है जनहित के कार्यों में आर्थिक सहयोग।

 भ्रष्टाचार बन रहा है उत्प्रेरक अंधविश्वास व धार्मिक क्रिया-कलापो को बढ़ाने में। सीधे-साधे लोग होड़ में लुट रहे है व नहीं कर रहे है जनहित के कार्यों में आर्थिक सहयोग। [rpmwu409 dated 04.07.2021]

**************************
यह देखने में आया है कि अंधविश्वास व धार्मिक क्रिया-कलाप जैसे कथा, भागवत, यज्ञ इत्यादि में कई लोग बहुत अधिक धन ख़र्च कर देते है। यज्ञ की मुख्य कुण्डी पर बैठने हेतु लाखों रू. तक की बोली लगती है। कथा-भागवतों के कार्यक्रमों में भी कथा वाचक व उसके सहयोगी लाखों रू. एकत्रित करके ले जाते है।
अब यह देखे कि कौन लोग है जो इस प्रकार के आयोजनो में अधिक धन ख़र्च करते है? अनुभव व आम लोगो से हुई बातचीत के अनुसार भ्रष्टाचार से धन कमाने वाले अधिकतर लोग इन प्रोग्रामों को ज्यादा करवाते है। इसका कारण यह भी बताया जाता है कि ऐसे लोग यह समझते है कि इस प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन से भ्रष्टाचार करने से हुए पाप कम हो जायेंगे।
भ्रष्टाचार में लिप्त इस प्रकार के लोगो से प्रभावित होकर या होड़ में कई अंधविश्वासी लोग भी ऐसे आयोजनो में मेहनत से कमाये धन को भी नष्ट करते है। जब सामाजिक महत्व व गरीब के हित के कार्य जैसे कन्या छात्रावास के निर्माण या गरीब होनहार बच्चे की पढ़ाई में आर्थिक सहयोग के लिए उनसे बात करते है तो वे विभिन्न प्रकार के बहाने बनाते है व सहयोग नहीं करते है।
इस प्रकार के अंधविश्वास पर भ्रष्टाचार से कमाये गये धन को ख़र्च करने से समाज को निम्न चार प्रकार के नुकसान प्रमुखत: है-
1. भ्रष्टाचार करने के कारण आम आदमी (कॉमन मेन) को डॉयरेक्ट या इनडॉयरेक्ट हानि व परेशानी। जो व्यक्ति भ्रष्टाचार का शिकार होता है वह भी फिर भ्रष्टाचार करके धन कमाने का प्रयास करता है। इस प्रकार यह भ्रष्टाचार का एक कुचक्र बन जा रहा है जिससे देश की जनता परेशान हो रही है व देश की छवि पर भयंकर विपरीत असर हो रहा है।
2. ऐसे लोगो की होड़ में या उनसे प्रभावित होकर सामान्य लोग भी इन कथा, भागवत व यज्ञों में लुट रहे है। वे अंधविश्वासी व कम साहस वाले बनते जा रहे है।जिससे देश व समाज सभी को नुकसान है।
3. जब लोग इन धार्मिक प्रपंचों में धन व्यर्थ कर देते है तो उनके पास अच्छे कार्यों में सहयोग के लिए धनराशि नहीं बचती है। इससे सामाजिक उत्थान के कार्यों की मात्रा व गति दोनों ही कम हो जा रही है।
4. एक और नुकसान यह है कि कथा-भागवत, यज्ञ इत्यादि करने वाले लोगो की संख्यॉ बढ़ती जा रही है। क्योंकि उनको कमाई का बहुत ही सरल साधन मिल जा रहा है। ये लोग नॉन-प्रोडक्टिव और कहे तो अंधविश्वास फैलाने वाले नकारात्मक कार्य में लिप्त हो जा रहे है। यदि लोग इनके कार्यों को प्रोत्साहित नहीं करगें तो ये बुद्धिमान लोग देश हित के सकारात्मक कार्य कर सकेंगे।

यदि धन से वास्तव में मानवता की भलाई ही करनी हो तो गरीब होनहार बच्चों की पढ़ाई , छात्रावासों के निर्माण,  शारीरिक रूप से कमज़ोरों को उनकी हैल्थ सुधारने या ग़रीब-बेसहाराओं को उनके हक़ दिलाने में मदद करे। ज़रा सोचो कि शुभ कार्य या खुशी के मौक़े पर किसी ने #DAP (धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण) के कार्यो की बजाय किसी गरीब होनहार बच्चे की पढ़ाई में मदद करने का कार्य किया हो और वह बच्चा बड़ा होकर योग्य इंसान बन जाये तो कालांतर में इस बात से कितना अच्छा लगता रहेगा।


कृपया उक्त का अवलोकन कर अपने विचारों से अवगत कराये। साथ ही कथा-भागवत व यज्ञ इत्यादि के स्थान पर और क्या क्या जनहित के सामाजिक कार्य करवाये जा सकते है उनके बारे मे भी बताये।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

No comments:

Post a Comment

Thank you for reading and commenting.