Sunday 25 July 2021

आदिवासी धरोहरें एवं उनका संरक्षण - सरकार को निभानी चाहिए जिम्मेदारी।

rpmwu417 dt. 25.07.2021 
आदिवासी धरोहरें हमारे देश के आदिवासियों के गौरवपूर्ण अतीत को याद दिलाकर मन में गर्व दिलाती है। आदिवासी धरोहरों के संरक्षण से देश के आदिवासियों के मन में सरकार के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव उत्पन्न होगा। परन्तु उनकी समय पर सुध नहीं लेना हम सभी की सामूहिक उदासीनता का परिचय है। यदि हम लंबे समय तक घर में ताला नहीं लगाये और चोर घुस जाये तो गलती मालिक की भी है। मालिकों की सजगता बहुत जरूरी है। 

आदिवासियों के #आमागढ़ (आंबागढ़), जयपुर दुर्ग के सम्बन्ध में हाल ही में वाद विवाद पैदा हुआ है। इस विषय में विचारणीय एवं एक्शनेबल पहलू निम्नलिखित है - 

1. अधिकांश आदिवासी धरोहरों का मालिकाना वन विभाग या पुरातत्व विभाग अर्थात सरकार के पास है। अतः सीधे तौर पर सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी बनती है कि आदिवासियों की समस्त धरोहरों का उचित रखरखाव, विकास व संरक्षण करें। जनजातियों के विकास हेतु अलग से उपलब्ध फण्डस् का कुछ हिस्सा इस काम में लिया जा सकता है। 

2. जनजातियों के मामलों के मंत्रालय व आदिवासी राजनेताओं को चाहिए कि वे सरकार के माध्यम से सभी चिन्हित आदिवासी धरोहरों को नोटिफाई करवाकर उनका संरक्षण व विकास करवायें। पुरातत्व व वन विभागों में इस कार्य की मोनिटरिंग की उच्च पर जिम्मेदारी प्रदान की जाये। जनजातियों के विकास से सम्बन्धित मंत्रालय को इस सम्बन्ध में समन्वय करना चाहिए। 

3. आदिवासियों के सामाजिक संगठनों व व्यक्ति विशेषों को चाहिए कि वे आदिवासी धरोहरों की रक्षा करने वाले हर व्यक्ति व संस्था का समर्थन व सहयोग किया जाये। हमेशा जरूरत पड़ने पर सभी प्रकार की रेखाओं को तोड़कर उनका साथ दे। दूसरे समझदार तथा वृहद सोच रखने वाले महानुभावों, संगठनों व संस्थाओं का साथ व समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करें। 

4. जो लोग आदिवासियों की धरोहरों के साथ खिलवाड़ करते है उनका न्यायायिक प्रक्रिया व आमने सामने हर तरह से मुँहतोड़ जवाब दे। किसी से भी डरने या लिहाज़ करने की जरूरत नहीं है। जो लोग, संगठन व संस्थाएं धरोहरों से खिलवाड़ करने वालों का साथ देते है, उन्हें ऐसा नहीं करने हेतु व्यक्तिगत व सामूहिक स्तरों पर समझाया जाये। उनकी संख्या कम करने का प्रयास करें न कि बढ़ाने का । किसी भी जाति, धर्म व समुदाय के विरूध्द सामान्य तौर पर अनावश्यक भड़काऊ भाषा के प्रयोग करने से बचे। 

5. आवश्यकता है कि सभी आदिवासियों को भी समय व संसाधन खर्च कर, अपनी धरोहरों की ओर नियमित रूप से ध्यान देने को प्राथमिकता दे। समय समय पर वहां जाये, देखें व कुुछ गलत हो रहा हो तो उसके बारे में आवाज उठायें। आदिवासी सामाजिक संगठन मिलकर व्यवस्थित तरीके से अपनी धरोहरों को पहचान कर उनके संरक्षण की मुहिम चलाये। सामूहिक रूप से #आदिवासी_धरोहर_संरक्षण_समिति बनाकर आदिवासी धरोहरों का संरक्षण करवाया जाये। 

सादर
रघुवीर प्रसाद मीना 

1 comment:

  1. संघटन ही सक्ति हैं 🙏🙏🙏🙏🙏

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Thank you for reading and commenting.