rpmwu210
23.03.2019
आरक्षण का प्रावधान समाज में समानता को लाने हेतु किया गया है। कई लोग कहते हैं कि आरक्षण जाति के आधार पर नहीं होना चाहिए और मुझे लगता है कि यदि मैं भी उनकी जाति में पैदा हुआ होता और उस तरह के वातावरण में पलता तो यही प्रश्न कर सकता था। अतः उनके इन प्रश्नों का बुरा नहीं मानना चाहिए।
गहराई से सोचने से पता चलता है कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी हम जातियों को तो समाप्त नहीं करना चाहते हैं परंतु जातियों के आधार पर दिए गए आरक्षण को समाप्त करना चाहते हैं। ऐसा दौहरा मापदंड नहीं हो सकता है।
मेरे अनुसार इस विषय का एक बड़ा अच्छा टेस्ट मैं आपको समझाता हूं कि आप अपनी आंखें बंद करें और भगवान से प्रार्थना करें कि अगले जन्म में मैं किसी दलित जाति में पैदा हो जांऊ। यदि इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक मिले तो आप वास्तव में जातियों में विश्वास नहीं कर रहे हैं और यदि इसका उत्तर नकारात्मक मिले तो आप जातियों में विश्वास करते हैं। और आपका कोई नैतिक अधिकार नहीं बनता कि आप जातियों के आधार पर दिए गए आरक्षण को प्रश्न करें।
पहले हमें जातियों को समाप्त करना होगा और उसके पश्चात जाति आधारित आरक्षण को समाप्त करने की बात लॉजिकल लगेगी। साथ ही अधिकतर लोग दूसरी जातियों में अपनी बहन बेटियों की शादी भी नहीं करना चाहते हैं, खासकर जिन जातियों को समाज में नीचा समझा जाता है उनके साथ तो बिल्कुल ही नहीं। जब तक ऐसा होता रहेगा तब तक हमें जाति आधारित आरक्षण के विरोध में बात करने का कोई हक नहीं है।
कन्हैया कुमार द्वारा इस विषय पर दिये गये जबाब को आप निम्न लिंक पर देख सकते हैं और कृपया इस विषय में अपने विचार भी व्यक्त करें ताकि समाज में जाति आधारित आरक्षण के संबंध में चल रही दुर्भावना कम हो सके।
https://youtu.be/csHfg6urwP4
रघुवीर प्रसाद मीना
No comments:
Post a Comment
Thank you for reading and commenting.